भारतीय किसान की प्रयोग धर्मिता किसी सबूत की मोहताज कभी नहीं रही, यह दीगर बात है कि वह वैज्ञानिक कम जुगाड़ू ज्यादा होती है. नवाचारी किसानों को प्रोत्साहन देने सरकार उन्हें समारोह पूर्वक सम्मानित भी करती है जिससे सम्मानित किसान का रुतबा देश भर में बढ़ जाता है, अपने इलाके के किसानों का तो वह रोल मॉडल हो जाता है.
मध्य प्रदेश का इटारसी कस्बा पश्चिम मध्य रेलवे का प्रमुख जंक्शन है जो मुमकिन है जल्द ही शराब वाली मूंग के लिए जाना जाने लगे. इटारसी के तीन गांवों सोमलवाड़ा, चांदौन और घाटली में इन दिनों शराब की नदियां बह रहीं हैं. किसान खुद भले ही न पिएं, पर खेतों में लहलहा रही अपनी मूंग की फसल को जरूर शराब पिला रहे हैं. इन गांवों के किसानों का मानना है कि ग्रीष्म कालीन मूंग में शराब से सिंचाई करने से फसल की बढ़वार और पैदावार दोनों में इजाफा होता है, इसके लिए वे देसी शराब का एक पौव्वा लेकर उसे सिंचाई के पानी में मिलाते हैं और एक एकड़ रकबे में उसे छोड़ देते हैं इसमे वे थोड़ी सी मात्रा में कोई कीटनाशक दवा भी घोलते हैं.
इस नए फार्मूले की लागत 75 रुपये भर आती है, सस्ता होने के चलते इसे अब बड़े पैमाने पर आसपास के गांवों के किसान भी आजमा रहे हैं और पूरे आत्मविश्वास से कह भी रहे हैं कि इसके नतीजे उम्मीद के मुताबिक मिल रहे हैं. इस प्रयोग या टोटके का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, फिर भी यह खूब फल फूल रहा है जिस पर खेती किसानी महकमे ने चुप्पी साध रखी है. पिछले साल कुछ किसानों ने इस नुस्खे को ईजाद करते आजमाया था, इत्तफाक से फसल अच्छी हुई तो दूसरे किसानों को भी ज्ञान प्राप्त हुआ कि इसमे हर्ज क्या है, क्योंकि कीटनाशक, उर्वरक इस्तेमाल किए जाएं तो उनके मंहगे होने के कारण लागत बढ़ती है और मुनाफा कम हो जाता है.