पिछले कुछ अरसे से मौसम जिस तरह से करवटें ले रहा है, उस से खेती की दुनिया पर बहुत खतरनाक असर पड़ रहा है. कुछ अरसा पहले बेमौसम की बारिश ने तो खेती का कबाड़ा किया ही था और अब बेवक्त की गरमी ने रबी की फसल का हिसाब गड़बड़ा दिया है. बिना मौसम की गरमी से रबी सीजन की खास फसल गेहूं के उत्पादन में कमी आने के पूरे आसार हैं. कृषि वैज्ञानिकों व माहिर किसानों का कहना है कि ज्यादा गरमी पड़ने से गेहूं की फसल समय से पहले ही पक जाएगी, नतीजतन पैदावार में गिरावट आ जाएगी.

वैसे तमाम कृषि विशेषज्ञों और जानकार किसानों का यह भी कहना है कि अगर अब भी बरसात हो जाए और तापमान घट जाए तो नुकसान उतना ज्यादा नहीं होगा, जितना होने का फिलहाल अंदेशा है. उत्तर भारत के गेहूं उगाने वाले खास इलाकों में फिलहाल दिन का तापमान सामान्य से करीब 7 डिगरी सेंटीग्रेड तो रात के वक्त का तापमान सामन्य से 5 डिगरी सेंटीग्रेड तक ज्यादा दर्ज किया जा रहा है. तापमान के ये तेवर गेहूं व रबी की अन्य फसलों के लिए घातक साबित हो सकते हैं.

इस सिलसिले में भारतीय किसान यूनियन के महासचिव चौधरी युद्धबीर सिंह कहते हैं कि तापमान में इस किस्म की बढ़ोतरी से महज गेहूं ही नहीं, बल्कि सरसों के खेतों पर भी उलटा असर पड़ेगा. मौसम सामान्य हो तो इस दौरान पड़ने वाली ओस व धुंध की नमी से सरसों और गेहूं की फसलों को अच्छाखास फायदा पहुंचता है, मगर तापमान ज्यादा होने से ऐसा नहीं हो पा रहा है. तापमान ज्यादा होने की वजह से सरसों की फसल में वक्त से पहले ही फूल निकल आए हैं जो कि अच्छे आसार नहीं हैं.

माहिरों का मानना है कि अगर मौसम ऐसा ही रहा तो गेहूं की पैदावार में पक्केतौर पर गिरावट होगी. मोदी नगर इलाके के माहिर किसान व ‘भारतीय किसान यूनियन’ के मंडल अध्यक्ष (मेरठ) राजबीर सिंह कहते हैं कि इस तरह की गरमी से गेहूं के दाने की क्वालिटी पर बेहद खराब असर पड़ेगा और पैदावार में भी अच्छीखासी गिरावट होगी. हालात से चिंतित राजबीर सिंह ने कहा कि पिछले साल फरवरीमार्च में हुई बेमौसम बरसात की वजह से भी गेहूं की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई थी और अब की बार बेमौसम की गरमी की वजह से फसलें तबाह हो रही हैं.

यानी नुकसान का सिलसिला लगातार जारी है, चाहे वह ज्यादा बरसात की वजह से हो या ज्यादा गरमी की वजह से. इन कुदरती आपदाओं से यह बात साफ हो जाती है कि बेवक्त या बेमौसम की चीजें मुफीद नहीं होती हैं. साल 2013-14 में गेहूं का उत्पादन 958.5 लाख टन रहा था, जो साल 2014-15 में घट कर 889.5 लाख टन हो गया. अब 2015-16 में क्या तसवीर उभर कर सामने आएगी यह तो वक्त ही बताएगा, मगर असार अच्छे नहीं हैं. आमतौर पर गेहूं की बोआई नवंबर में शुरू होती है और अप्रैल तक फसल पक कर तैयार हो जाती है. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2015 दिसंबर तक 271.4 लाख हेक्टेयर रकबे में गेहूं की बोआई की गई थी, जो पिछले साल के मुकाबले काफी कम है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (पूर्वी क्षेत्र) के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी पुष्पनायक का कहना है कि जैसे ठंडे देशों के लोग जब गरम मुल्कों में जाते हैं तो उन्हें चर्मरोग हो जाते हैं, वैसे ही सर्दी के मौसम की फसल को जब गरमी मिलेगी तो उस का खराब असर पड़ेगा ही.                                 

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