जिस जीएसटी यानि गुड्स एंड सर्विस टैक्स पर केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली एक कदम भी पीछे हटने को तैयार नहीं थे, उसमें वही सुधार अमल में ला रहे हैं जिन्हें कभी हवा में उड़ा देते थे. केंद्रीय वित्तमंत्री की यह अकड़पन 5 राज्यों में भाजपा की हार और 2019 के लोकसभा चुनाव के चलते कमजोर पड़ी है. अब वित्तमंत्री को मध्यम और कमजोर वर्ग के कारोबारियों की चिंता सता रही है. जीएसटी परिषद की 32वीं बैठक में छोटे कारोबारियों को राहत देने के लिये 40 लाख तक के सालाना व्यापार वाले कारोबारियों को जीएसटी के बाहर कर दिया गया है. पहले यह सीमा 20 लाख थी. सरकार के इस फैसले से 50 फीसदी कारोबारी जीएसटी से बाहर हो जायेंगे.

अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष संदीप बंसल कहते हैं ‘केन्द्र सरकार जीएसटी को लेकर जो बदलाव कर रही है, उसका कारोबार पर बहुत असर नहीं पड़ेगा. जीएसटी का लाभ अगर कारोबारी और जनता को देना है तो जीएसटी की अधिकतम दर 15 फीसदी से अधिक ना हो. डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस सहित अल्कोहल को जीएसटी के दायरे में लाया जाये. जीएसटी में लिखापढ़त की परेशानी भरी व्यवस्था को सरल किया जाये. केन्द्र सरकार की कारोबारी विरोधी नीति ने पिछले सालों में जिस तरह से नुकसान पहुंचाया है, छोटा कारोबारी उससे उबर नहीं पाया है. ऐसे में कारोबारी भाजपा से नाराज हैं और ऐसे दिखावे वाले प्रयासों से उसके साथ जुटने को तैयार नहीं हैं.’

केन्द्र सरकार को कारोबारियों की हालत का अंदाजा नहीं है. इसकी सबसे बडी वजह यह भी है कि भाजपा में कारोबारी नेताओं को हाशिये पर डाल दिया गया है. कारोबारियों पर पकड़ रखने वाला, उनकी परेशानी को सुनने और समझने वाला कोई नेता अब भाजपा में नहीं है. ऐसे में सरकार के फैसलों में कारोबारियों की भूमिका खत्म हो गई है. कारोबारियों की परेशानियों से सरकार को अवगत कराने वाला तंत्र टूट गया है. दूसरे कारोबारी नेता जो भी सुझाव देते हैं भाजपा उनको बाहरी मानकर उनके सुझाव को अपनी आलोचना मान कर नकार देती है.

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