म्युचुअल फंड शेयर बाजार में निवेश का सबसे आसान और सुरक्षित जरिया माना जाता है. लेकिन म्युचुअल फंड में निवेश हमेशा फायदेमंद होगा ही, इसका भी कोई तय फॉर्मूला नहीं है. सैकड़ों फंड्स में से अपनी जरूरत और लक्ष्य के हिसाब से फंड चुनना, उनकी पर्फोर्मेंस ट्रैक करना आसान काम नहीं है.
वास्तव में स्कीम में निवेश करने से पहले निवेशकों को कई चीजें ध्यान में रखनी चाहिए. सबसे पहला फैक्टर चयन होता है. निवेशक अपना पैसा उस विशेष फंड में लगाएं जो उनकी जरूरतों को पूरा करती हो, ऐसा तभी हो सकता है जब उस विशेष प्रकार की स्कीम निवेश के लिए उपलब्ध हो. कई बार निवेश को पता नहीं लग पाता कि कौन सा फंड उसकी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है. यही ध्यान में रखते हुए सरिता टीम उन महत्वपूर्ण बिंदुओं को लेकर आई है. जिन्हें आपको निवेश से पहले जरूर ध्यान में रखना चाहिए.
अपनी जरूरत के अनुसार चुनें फंड की प्रकृति
मार्केट में सैकड़ों तरह के म्युचुअल फंड हैं. सभी की प्रकृति अलग अलग होती है. निवेशक कई बार सही फंड का चुनाव इसलिए नहीं कर पाता क्योंकि उसे फंड का बेसिक नेचर नहीं पता होता. इसलिए ओपन एंडिड फंड और क्लोस्ड एंडिड फंस के बीच का अंतर जानना जरूरी होता है. ओपन एंडिड फंड्स में कभी भी नए तरीके से निवेश कर सकते हैं और इसमें किसी भी प्रकार की रोक-टोक नहीं होती है कि किस तरह निवेश करें या फिर कब निवेश करें. वहीं दूसरी ओर क्लोस्ड एंडिड फंड्स में कई तरह की बंदिशें होती हैं जिसके कारण निवेशक कई बार निवेश नहीं कर पाता. क्लोज एंडिड फंड में एक विशेष समय के लिए ही निवेश कर सकते हैं.
लक्ष्य को ध्यान में रखकर चुनें समय अवधि
फिक्स्ड मैच्युरिटी प्लान की तरह कई विकल्प निवेश के समय अवधि से संबंधित भी होते है. ये डेट ओरियेंटिड म्युचुअल फंड्स होते है जिनमें स्कीम को एक निश्चित समय के लिए लॉन्च किया जाता है. फंड मैनेजर उन सिक्योरिटीज को खरीदता है जो स्कीम के साथ मैच्योर होती हैं ताकि अंतरिम पिरियड के दौरान ब्याज दर से संबंधित कोई जोखिम न हो.
इस तरह के फंड्स के लॉन्च को अक्सर टैक्स बेनिफिट्स के साथ गाइड किया जाता है जो इसके साथ आती हैं. पहले के समय में अगर इन फंड्स को तीन से ज्यादा वर्षों के लिए रखते थे तो इन्हें लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन की श्रेणी में रखा जाता था. नतीजतन, निवेशक को बाजार में ऐसी स्कीम्स नहीं मिलती थी जिनका मैच्योरिटी पीरियड तीन वर्षों से कम को हो. ऐसे में निवेशक अगर तीन वर्ष से कम की निवेश योजना बना रहा था तो उसके सामने ये बड़ी परेशानी हो जाती थी.
विभिन्न सेक्टर्स को करें पोर्टफोलियो में शामिल
म्युचुअल फंड्स बने हुए पोर्टफोलियो के आधार पर भी जोखिम उत्पन्न कर देता है. कई बार आपका पोर्टफोलियो में उस जैसा कुछ नहीं दिखता जो निवेशक चाहता था. ऐसा अलग अलग तरह के फंड्स के साथ होता है. खासकर के सेक्टर फंड्स जहां पर फंड्स की कोई एक विशेष कंपनी हो जैसे कि लार्ज कैप फंड जबकि निवेशक कुछ इस तरह के पोर्टफोलियो की उम्मीद कर रहा हो जहां लार्ग कैप, मिड कैप और कुछ अन्य वैरियेशन्स भी दिख रहे हों.