किस देश की कितनी आबादी बैंकिंग सुविधा का प्रयोग करती है, इस से उस देश की आर्थिक स्थिति परिलक्षित होती है. इसी मापदंड को ध्यान में रखते हुए सरकार देश की ऐसी आबादी को भी बैंकिंग सुविधा पहुंचाने के लिए प्रयासरत है जो अभी तक इस के दायरे में नहीं है. जानकारी दे रहे हैं एस सी ढल.

देश के हर परिवार को बैंकिंग सुविधा मिले, सरकार इस के लिए प्रयासरत है. वित्तीय समावेश का अर्थ देश की ऐसी आबादी तक वित्तीय सेवाएं पहुंचाना है जो अभी तक इस के दायरे में नहीं हैं. इस का उद्देश्य विकास क्षमता को बढ़ाना और गरीब लोगों को वित्त उपलब्ध कराना है. स्वतंत्रतादिवस पर दिए गए अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि ‘हमारा प्रयास होगा कि हम अगले 2 वर्षों में सभी परिवारों के लिए बैंक खातों के लाभ को सुनिश्चित करें.’ इस के मद्देनजर स्वाभिमान योजना के तहत बैंक सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं.
 

बैंक शाखाओं का नैटवर्क
31 मार्च, 2012 तक देश में काम करने वाले अधिसूचित वाणिज्य बैंकों की कुल 93,659 शाखाएं हैं. इन में से 34,671 यानी 37.02 प्रतिशत शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में, 24,133 यानी 25.77 प्रतिशत शाखाएं कसबों में, 18,056 यानी 19.28 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में और 16,799 यानी 17.93 प्रतिशत शाखाएं महानगरीय क्षेत्रों में काम कर रही हैं.
 

बैंक शाखाएं खोलना
वित्तीय समावेश और बैंक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए सरकार ने अक्तूबर, 2011 में वित्तीय समावेश के संबंध में बैंकों को सलाह दी थी कि ऐसे सभी कम आबादी वाले क्षेत्रों में, जिन की आबादी 5 हजार या उस से अधिक है और अन्य सभी जिलों में जिन की आबादी 10 हजार या उस से अधिक है, वहां शाखाएं खोली जाएं. जून 2012 के अंत तक इन सभी क्षेत्रों में 1,237 शाखाएं (अति लघु शाखाओं सहित) खोली गईं.

शाखाओं की विस्तार योजना
वित्तीय समावेशी योजना को प्रभावशाली बनाने और बिना बैंक/कम बैंक वाले ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं की पहुंच बनाने के लिए आरआरबी यानी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक को वर्ष 2011-12 और 2012-13 के लिए शाखा विस्तार के लिए काम करना आवश्यक हुआ. वर्ष 2011-12 के दौरान आरआरबी ने 1247 शाखाएं खोलने का लक्ष्य तय किया था. इस लक्ष्य के अनुरूप आरआरबी ने 913 शाखाएं खोली हैं. वर्ष 2012-13 के लिए 1,845 नई शाखाएं खोलने का लक्ष्य तय किया गया है.

शाखाओं को खोलने की नीति
भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने 1 अगस्त, 2012 को जारी सर्कुलर में आरआरबी की ब्रांच लाइसैंसिंग नीति को उदार बना दिया है और उस ने आरआरबी को अनुमति दे दी है कि वह टीयर 2-6 केंद्रों (2001 की जनगणना के अनुसार जिन केंद्रों की आबादी 99,999 हो) में शाखाएं खोले और इस के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी. इस के लिए आवश्यक है कि वे कतिपय शर्तों को पूरा करें. जो आरआरबी शर्तों को पूरा नहीं करते हैं उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक/ नाबार्ड से अनुमति लेनी होगी. टीयर-1 केंद्रों (2001 की जनगणना के अनुसार जहां आबादी 1 लाख या उस से अधिक हो) वहां शाखाएं खोलने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से पूर्वानुमति लेनी होगी.

वित्तीय समावेशी अभियान
बैंकिंग की पहुंच ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ाने के लिए बैंकों को वाणिज्यिक एजेंटों-बीसीए के माध्यम से शाखारहित बैंकिंग सहित विभिन्न मौडलों और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने को कहा गया है. स्वाभिमान नाम का यह समावेशी अभियान सरकार द्वारा औपचारिक रूप से फरवरी, 2011 में शुरू किया गया था. इस अभियान के तहत मार्च, 2012 तक 74,194 गांवों में बैंकिंग सुविधा मुहैया कराई गई है और लगभग 3 करोड़ 16 लाख वित्तीय खाते खोले गए हैं.

अत्यंत लघु शाखाएं
संबंधित बैंकों द्वारा वाणिज्यिक एजेंटों के कार्यों पर निगरानी रखने और निर्दिष्ट गांवों में बैंकिंग सुविधा सुनिश्चित करने के लिए बीसीए के माध्यम से अत्यंत लघु बैंकिंग शाखाएं यानी यूएसबी स्थापित करने का फैसला किया गया है. ये शाखाएं 100 से 200 वर्गफुट में होंगी, जहां बैंकों द्वारा निर्दिष्ट किए गए अधिकारी पहले से तय किए गए दिनों में लैपटौप के साथ उपलब्ध रहेंगे. नकदी की सुविधा बैंकिंग एजेंटों द्वारा दी जाएगी जबकि बैंक अधिकारी अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराएंगे.

बिना बैंक वाले प्रखंड
बिना बैंक वाले प्रखंडों में बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने जुलाई, 2009 में 129 ऐसे प्रखंडों की पहचान की थी. इन में से 91 प्रखंड पूर्वोत्तर राज्यों में हैं और 38 अन्य राज्यों में हैं. सरकार के निरंतर प्रयासों से 31 मार्च, 2011 तक बिना बैंक वाले प्रखंडों की संख्या घट कर 71 रह गई है और मार्च, 2012 तक बैंकिंग सुविधाएं सभी गैरबैंकिंग प्रखंडों में स्थायी बैंकों या बैंकिंग एजेंटों या मोबाइल बैंकिंग के जरिए उपलब्ध कराई जा रही हैं.

सलाहकार समिति
भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय समावेशन के प्रयासों को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए उच्च स्तरीय वित्तीय समावेशी सलाह समिति यानी एफआईएसी गठित की है. समिति के सदस्यों से यह उम्मीद की जाती है कि वे बैंकिंग नैटवर्क से बाहर के ग्रामीण व शहरी उपभोक्ताओं के लिए वहन करने योग्य वित्तीय सेवाओं पर केंद्रित टिकाऊ बैंकिंग सुविधा की ओर ध्यान देंगे और समुचित नियामक व्यवस्था का ढांचा सुझाएंगे.
लब्बोलुआब यह है कि वित्तीय समावेशन बढ़ाने की दिशा में उल्लेखनीय लेकिन धीमी प्रगति हो रही है. सच यह भी है कि भारत के सभी 6 लाख गांवों
में वहन करने योग्य वित्तीय सेवाएं सुनिश्चित कराना एक ब३हुत बड़ा कार्य है. इस के लिए सभी संबंधित पक्षों-भारतीय रिजर्व बैंक, अन्य सभी क्षेत्रों के नियामकों जैसे भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड, पेंशन को नियामक और विकास प्राधिकरण, राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक, बैंकों, राज्य सरकारों सामाजिक संगठनों व गैरसरकारी संगठनों के बीच एक साझेदारी कायम किए जाने की आवश्यकता है.

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