चीन विकास के लिए किसी की परवा नहीं करता. पर्यावरण का नुकसान हो, हिमालय का नुकसान हो, खेतखलिहान का हो अथवा मूल अधिकारों का हनन, विकास का सवाल है तो उन सब का चीन के लिए महत्त्व नहीं है. उसे प्रगति चाहिए. यह मानसिकता चीन के जनसामान्य के साथ ही वहां के नेताओं व उद्योगपतियों की भी है. वहां के फैक्टरी मालिक और निर्माण कंपनियां इसी सूत्र पर काम करती हैं. उन का यह रवैया स्वदेश में नहीं बल्कि विदेशों में भी चलता है और वे वहां भी अपनी शर्तों पर काम करना चाहती हैं. चीनी कंपनियों को पश्चिमी देशों में काम करने का अनुभव नहीं है, इसलिए इस मानसिकता के चलते उन्हें वहां विरोध का सामना करना पड़ रहा है.

अफ्रीका में तेल तथा जस्ता खदानों में चल रहा चीनी कंपनियों का काम मजदूरों की हड़ताल के कारण ठप पड़ा है. मजदूरी कम देना और काम की शर्तों के कारण श्रमिकों में नाराजगी है. म्यांमार में चीन सरकार द्वारा चलाए जा रहे बांध निर्माण का काम पर्यावरण को होने वाले नुकसान के प्रति बेपरवा रहने के कारण बंद कर दिया गया है.

निकारागुआ में चीनी निर्माता द्वारा नहर के निर्माण कार्य में ग्रामीणों के पुनर्वास को ले कर किए जा रहे काम में गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाए जाने से लोगों का विरोध जारी है. इसी तरह से भारत में गुजरात के शिंदे में चीन की ट्रक निर्माता कंपनी बीकी फोटोन मोटर फैक्टरी लगाना चाहती है. कंपनी ने इस के लिए 250 एकड़ भूमि का चयन किया है लेकिन उसे 1,250 एकड़ भूमि और चाहिए. यह कृषि भूमि है जिस की पीठ पर पहाड़ी और सामने नदी का प्रवाह है.

ग्रामीण इस जमीन को फैक्टरी को नहीं देने के लिए अड़े हुए हैं. उन का कहना है कि कृषि भूमि का इस्तेमाल नहीं होने देंगे और अपना पुश्तैनी गांव नहीं छोड़ेंगे. सवाल यह है कि चीनी कंपनी को वही गांव क्यों चाहिए. वह खाली पड़ी जमीन पर फैक्टरी का निर्माण क्यों नहीं कर रही है? ग्रामीणों का कहना है कि वह खाली पड़ी जमीन पर फैक्टरी बनाए. उस से जमीन का भी इस्तेमाल होगा और उन्हें भी खेती के अलावा रोजगार मिलेगा. साथ ही, संस्कृति और पर्यावरण भी बचे रहेंगे.

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