जीवन की आपाधापी में कब शादी के 8 साल बीत गए, नक्षत्रा को पता ही नहीं चला. कंपनी की ओर से आयोजित एक सैमिनार में उसे बेंगलुरु बुलाया गया तो उस ने पति श्याम से साथ चलने को कहा. वह मना नहीं कर पाए और दोनों खुशीखुशी 3 दिनों के लिए बेंगलुरु पहुंच गए. विश्राम के बाद शाम को वे होटल से बाहर निकले तो सामने एक बाजार दिखा. दोनों उस ओर बढ़ गए. जहां विश्व प्रसिद्ध साउथ इंडियन सिल्क साडि़यों की कई दुकानें दिखीं.
नारीमन साड़ी के नाम पर न पिघले, ऐसा कैसे हो सकता था, नक्षत्रा की नजरें ही नहीं, उस के कदम भी बरबस साड़ी की एक दुकान की ओर खिंचे चले गए. दुकान पर 200 से ले कर ढाई लाख रुपए तक की साडि़यां उपलब्ध थीं. साडि़यों की कीमत देख कर एकबारगी तो नक्षत्रा का मन किया कि दुकान से बाहर निकल जाए परंतु श्याम ने कंधे पर हाथ रखा तो उस में थोड़ी हिम्मत जगी और उस ने सेल्समैन से कम रेंज की साडि़यां दिखाने को कहा.
अब स्थिति यह हो गई कि कम रेंज की साडि़यां उसे पसंद नहीं आ रही थीं. काफी जद्दोजेहद के बाद उस ने7 हजार रुपए की एक साड़ी पसंद कर पैक करने के लिए सेल्समैन को कहने ही वाली थी कि श्याम ने कहा कि पहली बार इतनी दूर आई हो तो मम्मी और भाभी के लिए भी एकएक साड़ी ले लो न.
बड़ी मुश्किल से उस ने 7 हजार रुपए की साड़ी खरीदने का मन बनाया था पर श्याम ने तो 21 हजार रुपए का बजट बना दिया. न उन के पास उतनी नकदी थी न ही एटीएम में इतने पैसे और उन्हें 3 दिन वहां रुकना भी था. होटल, खानेपीने, घूमने के खर्चे भी थे, सो अलग. नक्षत्रा ने श्याम को घूरा जो मस्ती से साडि़यों को छू कर उन का आनंद ले रहे थे.