अप्रैल से ले कर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक नरेंद्र मोदी के शब्दों के भ्रमजाल में फंसा रहा बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई का सूचकांक नित नए रिकौर्ड तोड़ता और बनाता हुआ 26 हजार अंक के मनोवैज्ञानिक स्तर के करीब पहुंचा. शेयर बाजार पूरी तरह से मोदीमय हो गया था.

आएदिन बाजार नए क्षितिज को छूता रहा लेकिन जैसे ही मोदी सरकार का रेल बजट आया, मानो सरकार की हकीकत से परदा उठ गया और बाजार एक ही दिन में 500 से अधिक अंक तक लुढ़क गया. रेल बजट की निराशा अगले दिन भी बाजार पर छाई रही और फिर आम बजट वाले दिन तक बाजार लगातार तीसरे दिन औंधे मुंह गिरता रहा. बजट के दिन तो बाजार में अत्यधिक अफरातफरी का माहौल था. सूचकांक कारोबार के दौरान 800 अंक तक के उतारचढ़ाव के बीच झूमता रहा और विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली के कारण सूचकांक गिरावट पर बंद हुआ, हालांकि दिनभर चली उठापटक को देखते हुए गिरावट मामूली 73 अंक ही दर्ज की गई.

निफ्टी में भी खासा उतारचढ़ाव देखा गया. बजट के दिन बाजार की गिरावट को नकारात्मक नहीं कहा जा सकता है क्योंकि पिछले 8 साल में बजट के दिन सिर्फ 3 बार ही सूचकांक तेजी के साथ बंद हुआ है. इस साल के बजट में भी बाजार लगातार झुकता हुआ ही नजर आया. इस से पहले बाजार पूरी तरह से मोदी के रंग में रंगा हुआ था. इसी रंग का असर था कि मानसून के सुस्त रहने, महंगाई का आंकड़ा बढ़ने और पैट्रोल, डीजल व रसोई गैस की कीमत बढ़ने का दबाव जो हर बार शेयर बाजार पर रहता है, इस बार इन सब परिस्थितियों से ऊपर नजर आया.

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