बाजार और खरीद के बदलते तेवरों के बीच आज छुट्टे पैसे यानी सिक्कों की किल्लत धीरेधीरे बड़ी समस्या के तौर पर सामने आ रही है. आम झड़पों से गंभीर झगड़ों तक जहां ये सिक्के कलह का कारण बन रहे हैं वहीं आम आदमी के जेब पर इन की किल्लत के चलते किस तरह डाका डाला जा रहा है, बता रही हैं साधना शाह.

काफी समय से रेजगारी की किल्लत के कारण बाजार से ले कर हाट तक, सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट से ले कर परचून व मौल तक में छुट्टे पैसों के बदले कहीं कूपन तो कहीं टौफी, कहीं कैरम की गोटियां तो कहीं प्लास्टिक व रबर के सिक्कों का उपयोग आर्थिक लेनदेन में हो रहा है. कुल मिला कर गलीमहल्ले से ले कर डिपार्टमैंटल स्टोर व मौल तक में एक समानांतर अर्थव्यवस्था चल निकली है.

इस सामानांतर व्यवस्था को ले कर देशभर की सड़कोंबाजारों में आएदिन आम आदमी के साथ हर जगह झड़पें हो रही हैं, कभीकभी तो जान तक पर भी बन जाती है. पिछले दिनों छुट्टे पैसों के सवाल पर मध्य कोलकाता के पार्क सर्कस इलाके में एक आटोचालक ने ब्लेड से यात्रियों के चेहरे पर हमला ही नहीं किया, बल्कि गले की नली तक काट डाली.

महंगाई की मार पहले से झेल रही जनता को छुट्टे के बदले टौफी, शैंपू के सैशे, पानमसाला जैसी वस्तुएं जबरन खरीदनी पड़ रही हैं. यह समस्या इस कदर विकराल हो गई कि इस को ले कर कलकत्ता हाईकोर्ट में पिछले दिनों एक जनहित याचिका दायर की गई थी. यह याचिका एक स्वयंसेवी संस्था की ओर से राजीव सरकार ने दायर की. मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्र और जयमाल बागची की खंडपीठ कर रही है. पिछले दिनों सुनवाई के दौरान केंद्र, राज्य और रिजर्व बैंक के वकीलों से खंडपीठ ने इस समानांतर अर्थव्यवस्था पर हैरानी जताते हुए प्रश्न किया कि ‘यह सब क्या चल रहा है?’ सुनवाई के बाद इस आरोप के सिलसिले में न्यायाधीशों ने राज्य वित्त विभाग, परिवहन विभाग समेत केंद्रीय वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक से हलफनामा तलब किया है.

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