सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के बीच लंबे समय से जारी खींचतान अक्टूबर के आखिर में अपने चरम पर जा पहुंची. 26 अक्टूबर को मुम्बई में एडी श्रॉफ स्मृति व्याख्यान देते हुए आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आर्चाय ने कहा, “जो सरकार केन्द्रीय बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करतीं, वे देर-सवेर वित्तीय बाजारों का आक्रोश झेलने, आर्थिक आग को हवा देने तथा उस दिन का मातम मनाने को अभिशप्त होती हैं, जिस दिन उन्होंने इस संस्थान की स्वायत्तता कमजोर की थी.” खबरों के मुताबिक इसके पांच दिन बाद सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक कानून 1935 की धारा 7 के तहत दिशानिर्देश जारी करने के बारे में परामर्श आरंभ किया. यह धारा सरकार को वित्तीय मामलों में आरबीआई को परामर्श जारी करने का अधिकार देती है. अब से पहले इस धारा का इस्तेमाल कभी नहीं किया गया.

सरकार और आरबीआई के बीच चल रहे इस विवाद के केन्द्र में सरकार का वह अभूतपूर्व प्रस्ताव है जिसमें सरकार ने केन्द्रीय बैंक को उसके 9.59 लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त भंडार का एक तिहाई 3.59 लाख करोड़ रुपए सरकार को सौंपने को कहा है. इन भंडारों को अभूतपूर्व किस्म की आर्थिक कठनाइयों के वक्त अर्थतंत्र की मदद के लिए रखा जाता है. मोहन गुरुस्वामी सहित कई जानेमाने अर्थशास्त्रियों ने सरकार की इस मांग की आलोचना की है. 1998 में तत्कालीन बीजेपी सरकार ने गुरुस्वामी को आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया था परंतु उन्होंने एक वर्ष के भीतर ही पद से इस्तीफा दे दिया. हाल में वह एक स्वतंत्र थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी अल्टरनेटिव के संस्थापक और निदेशक हैं.

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