यह पहली बार नहीं हुआ है कि कोई कलाकार पसरते ब्राह्मणवाद की खुलेआम आलोचना करने लगा हो. हां, लेकिन ऐसा अपवादस्वरूप ही होता है कि वह आलोचक खुद ब्राह्मण हो. चेतन कुमार ऐसे ही कन्नड़ अभिनेता हैं जो खुल कर पौराणिक ब्राह्मणवाद के खिलाफ मैदान में हैं. कन्नड़ अभिनेता उपेंद्र और कन्नड़ अभिनेता व सामाजिक कार्यकर्ता चेतन कुमार उर्फ चेतन ‘अहिंसा’ के बीच सोशल मीडिया पर हुई ‘ब्राह्मणवाद’ पर नोक झोंक पुलिस स्टेशन तक पहुंच गई है. इस पूरे विवाद को राज्य प्रायोजित कहा जाए, तो गलत न होगा. यों भी कन्नड़ अभिनेता व सामाजिक कार्यकर्ता चेतन कुमार के ट्वीट ‘ब्राह्मणवाद, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व की भावना का निषेध है’ के चलते कर्नाटक राज्य के श्रम मंत्री, कर्नाटक राज्य ब्राह्मण डैवलपमैंट बोर्ड’, ‘विप्रयुवावेदिका व सामाजिक कार्यकर्ता गिरीश भारद्वाज का गुस्सा आसमान पर पहुंचा है.

ये सभी परोक्षअपरोक्ष रूप से सरकार के ही अंग हैं. हकीकत में चेतन कुमार ‘अहिंसा’ द्वारा सोशल मीडिया पर ब्राह्मणवाद को ले कर की गई टिप्पणी कर्नाटक राज्य ब्राह्मण विकास बोर्ड के अध्यक्ष एच एस सच्चिदानंदमूर्ति, जो 38 वर्षों तक आरएसएस के सक्रिय सदस्य व भाजपा के अध्यक्ष रहे हैं और जनवरी 2020 में सरकार द्वारा इस पद पर आसीन किए गए और कर्नाटक राज्य के श्रम विभाग के मंत्री शिव राम हेब्बार को इस कदर नागवार गुजरी कि उन्होंने चेतन कुमार द्वारा सोशल मीडिया पर जारी वीडियो में ब्राह्मणवाद पर की गई टिप्पणी को आपत्तिजनक कहते पुलिस से कार्यवाही करने की मांग कर डाली. मंत्री महोदय ने तो चेतन कुमार की गिरफ्तारी की मांग की, जबकि एक अन्य ब्राह्मण संगठन से जुड़े गिरीश भारद्वाज ने तो चेतन कुमार को भारत से वापस अमेरिका भेजने तक की मांग कर डाली. तब कर्नाटक पुलिस को चेतन कुमार ‘अहिंसा’ के खिलाफ सैक्शन 193 बी और सैक्शन 295 ए के तहत एक नहीं बल्कि 2 अलगअलग पुलिस स्टेशनों में एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू करनी पड़ी.

ये भी पढ़ें- Indian Idol 12 फिनाले से पहले अरुणिता कांजीलाल ने पास किया बोर्ड

कर्नाटक राज्य ब्राह्मण विकास बोर्ड चेतन कुमार के ब्राह्मणवाद के बयान को ब्राह्मणवादी पितृसत्ता पर चोट मान कर चल रहा है. पुलिस ने 16 जून को अभिनेता चेतन कुमार को बासवनागुडी पुलिस स्टेशन बुला कर 4 घंटे पूछताछ की पर पुलिस की पूछताछ अधूरी रही. अब पुलिस ने उन से सारे सवालों के जवाब लिखित में देने के लिए कहा है. उधर चेतन कुमार ने ऐलान कर दिया है कि वे इस गलत जांच से डर कर चुप नहीं रहेंगे, सच के लिए सदैव लड़ते रहेंगे. ब्राह्मणवादी पितृसत्ता क्या है? हिंदू, खासकर ब्राह्मण व पंडित, बातबात पर कुछ पौराणिक शास्त्रों के हवाले देते कहते हैं कि लड़की को पहले पिता, फिर पति और बाद में बेटों के संरक्षण में रहना चाहिए.

मोटेतौर पर इसी व्यवस्था को वे ब्राह्मणवादी पितृसत्ता कहते हैं. जब कोई इस के विपरीत पुरुष और नारी समानता की बात करता है तो पोंगापंथियों को यह अपमानजनक, आतंकवाद वगैरह लगने लगता है जैसा कि चेतन कुमार के बयानों के बाद हो रहा है. लोग कुछ भी कहें मगर ब्राह्मणवादी पितृसत्ता भारतीय समाज की देन है और इसे सम झने के लिए हमें अतीत में जाना होगा. वैदिक काल के बाद जब हिंदू धर्म में कट्टरता आई तो महिलाओं और शूद्रों (तथाकथित नीची जातियों) का दर्जा गिरा दिया गया. उसी दौरान पुरुषों ने सार्वजनिक जीवन में अपने वर्चस्व को यथावत रखने के लिए कई पौराणिक ग्रंथ रच डाले, कई नियम बना डाले. मसला कब शुरू हुआ कर्नाटक राज्य में कन्नड़ फिल्मों के सफलतम अभिनेता उपेंद्र ने 5 जून को कोरोनाकाल के दौरान आर्थिकरूप से कमजोर वर्ग को मुफ्त में राशन बांटने का कार्यक्रम आयोजित किया जिस में उन्होंने कुछ पुरोहितों को भी निमंत्रित किया था.

ये भी पढ़ें- Inox का बड़ा ऐलान, टोक्यो ओलंपिक में मेडल जीतने वाले को जिंदगीभर फ्री में

इस पर कन्नड़ अभिनेता व सामाजिक कार्यकर्ता चेतन कुमार उर्फ चेतन अहिंसा ने इस आयोजन में सिर्फ पुरोहित वर्ग के लोगों को बुलाने के लिए उपेंद्र की आलोचना की. जन्म से खुद भी ब्राह्मण मगर जातिविरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में मशहूर अभिनेता चेतन ने कहा, ‘‘वे ब्राह्मणों की नहीं, बल्कि ब्राह्मणवाद की आलोचना करते हैं, जैसे कि कन्नड़ दुनिया में कई ब्राह्मण खुद ब्राह्मणवाद का विरोध करते रहे हैं.’’ चेतन कुमार की आलोचना का जवाब देते हुए अभिनेता उपेंद्र ने कहा, ‘‘केवल जातियों के बारे में बात करते रहने से जातिवाद बना रहेगा.’’ जबकि, चेतन का कहना था कि ब्राह्मणवाद असमानता की मूल जड़ है. चेतन ने किया वीडियो सा झा उपेंद्र के जातियों पर चर्चा करने के बयान के बाद चेतन ने उन्हें जवाब देते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर सा झा किया जिस में कहा, ‘‘हजारों वर्षों से ब्राह्मणवाद ने बासव और बुद्ध के विचारों को मार डाला है.

2,500 साल पहले बुद्ध ने ब्राह्मणवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी. बुद्ध विष्णु के अवतार नहीं हैं और यह एक झूठ है. ऐसा कहना पागलपन है.’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘हमारी कुछ हस्तियों का मानना है कि जाति और भेदभाव पर चर्चा करने से बचना उन मुद्दों को कायम रखने से रोकेगा. क्या यह अब हंसी की बात नहीं है? भ्रष्टाचार, कन्याभ्रूण हत्या या यहां तक कि कोरोना जैसे संकट क्या दूर हो जाएंगे अगर हम उन के बारे में बात करना बंद कर दें? किसी बीमारी का इलाज करने का एकमात्र तरीका पहले उसे संबोधित करना है. इसी तरह जाति की पहचान समाज की बीमारी है. इस संबंध में हम सभी उस पर की गई टिप्पणियों के आधार पर यह आकलन कर सकते हैं कि यह व्यक्ति (उपेंद्र) कितना परिपक्व है. ‘‘न्याय यथास्थिति बनाए रखने के बारे में नहीं है बल्कि उन लोगों को समर्थन देने के बारे में है जिन के साथ भेदभाव किया गया है. बाबासाहेब अंबेडकर के साथ भी भेदभाव किया गया था.

ये भी पढ़ें-  फिल्म ‘‘तारे जमीन पर’’ फेम अदाकारा टिस्का चोपड़ा करने जा रही हैं पहली

हम सभी जानते हैं कि यह हस्ती महान आंबेडकर के बारे में कितना जानती है, जानती है भी कि नहीं.’’ अंबेडकर व पेरियार के कथनों को ट्वीट करना चेतन कुमार ने एक ट्वीट में डा. बाबासाहेब अंबेडकर और पेरियार के कथनों को सा झा करते हुए लिखा, ‘ब्राह्मणवाद स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना को अस्वीकार करता है. हमें ब्राह्मणवाद को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए-’ अंबेडकर. ‘सभी समानरूप से पैदा होते हैं, ऐसे में यह कहना कि सिर्फ ब्राह्मण ही सर्वोच्च हैं, बाकी सब अछूत हैं, बिलकुल बकवास है. यह एक बड़ा धोखा है-’ पेरियार. इस से नाराज हो कर व अपनी दुकानदारी बंद हो जाने के डर से कर्नाटक राज्य ब्राह्मण डैवलपमैंट बोर्ड के सदस्यों ने अभिनेता चेतन पर ब्राह्मणवाद की तुलना आतंकवाद से करने का आरोप लगाया. उस के बाद कर्नाटक ब्राह्मण डैवलपमैंट बोर्ड के अध्यक्ष एच एस सच्चिदानंद मूर्ति ने चेतन के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पुलिस कमिश्नर कमलपंत से मुलाकात कर दावा किया कि अभिनेता के विचार धार्मिक मान्यताओं को आहत करते हैं. कर्नाटक राज्य ब्राह्मण विकास बोर्ड ने उल्सूर पुलिस स्टेशन में तथा एक अन्य संगठन विप्रयुवावेदिका ने बासवनगुडी में शिकायत दर्ज कराई.

उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153 बी (आरोप, राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक दावे) और 295 ए (जानबू झ कर व दुर्भावनापूर्ण कृत्य, किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को उस के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करने का इरादा) के तहत मामले दर्ज किए गए. चेतन के खिलाफ बेंगलुरु के उल्सूर गेट और बासवनगुडी पुलिस थानों में 2 प्राथमिकियां दर्ज की गईं और 16 जून को बासवनगुडी पुलिस स्टेशन पर अभिनेता से 4 घंटे पूछताछ हुई. चेतन ने ट्वीट कर पुलिस द्वारा पूछताछ की बात स्वीकारी जातिवाद विरोधी कार्यकर्ता के रूप में मशहूर चेतन कुमार ने ट्वीट कर कहा, ‘‘बेंगलुरु में बासवनगुडी पुलिस ने मु झ से 16 जून को इस संदर्भ में 4 घंटे तक पूछताछ की जहां मु झ पर कथित रूप से ब्राह्मणवाद पर अपने हालिया ट्वीट्स के माध्यम से धार्मिक विश्वासों को आहत करने के लिए मामला दर्ज किया गया था.

पुलिस ने मु झे सोशल मीडिया पर उस पोस्ट के लिए तलब किया जिस में मैं ने डा. बी आर अंबेडकर और पेरियार के हवाले से ब्राह्मणवाद की आलोचना की थी. 4 घंटे की पूछताछ के बाद अभिनेता ने ट्विटर पर कहा, ‘‘मैं सचाई और लोकतंत्र के साथ खड़ा था. मु झे समानता, न्याय और अहिंसा के वैश्विक आंदोलन में अपने छोटेछोटे तरीकों से योगदान करने पर गर्व है. लड़ाई जारी है.’’ चेतन कुमार कहते हैं, ‘‘मैं जाति की बात करता रहूंगा. मैं एक दशक से आधुनिक संदर्भ में अंबेडकर, पेरियार और कुवेम्पु के जातिविरोधी विचारों को उजागर करता आ रहा हूं.’’ उधर चेतन कुमार ने एक अन्य बयान में कहा, ‘‘मेरे बयान तथ्यात्मक हैं और मेरे पास केवल बोले गए तथ्य हैं.

हम नहीं चाहते कि समाज में अन्याय हो, चाहे वह सामाजिक, आर्थिक या लैंगिक हो. मेरा उद्देश्य दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए शिक्षा का उपयोग करना है. हमारा लक्ष्य समाज को एक बनाना है जो भेदभावपूर्ण है.’’ चेतन कुमार ने पहली बार इस तरह का बयान दिया हो, ऐसा भी नहीं है. उन्होंने इस से पहले आदिवासियों को जंगल से हटाने पर कोडगु जिले में धरने पर बैठ कर विस्थापितों को वैकल्पिक जगह दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. कट्टर अंबेडकरवादी अभिनेता चेतन जमीनी स्तर पर और अपने सोशल मीडिया लेखन के माध्यम से लगातार दलित समानता और सम्मान के संघर्ष में शामिल रहते हैं. चेतन लिखते हैं, ‘‘दलितों पर अत्याचार, एकतरफा ऊपर से नीचे का उत्पीड़न, कभीकभार होने वाली घटनाएं नहीं हैं बल्कि जातिवाद व्यवस्थित और संस्थागत रूप से निहित हैं. दलितों के खिलाफ इस तरह के अन्याय के लिए अब समय आ गया है कि हम केवल आरक्षण के लिए दलित समानता पर चर्चा करना बंद कर दें.

’’ गिरीश भारद्वाज ने की वापस अमेरिका भेजने की मांग हिंदू कार्यकर्ता गिरीश भारद्वाज ने एक कदम आगे बढ़ कर बेंगलुरु में विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण अधिकारी को पत्र लिख कर चेतन कुमार को दिए गए अस्थाई निवास परमिट को रद्द करने की मांग कर डाली. अपनी शिकायत में गिरीश भारद्वाज ने चेतन कुमार पर एक विशेष समुदाय के खिलाफ नाराजगी, भावनाओं को भड़काने के लिए दरार और सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा करने के उद्देश्य से बयानबाजी करने का आरोप लगाया. गिरीश ने अपने पत्र में लिखा है, ‘चेतन संयुक्त राज्य अमेरिका के नागरिक हैं और अस्थायी निवासी परमिट पर बेंगलुरु में रह रहे हैं. ओसीआई कार्ड धारक इस तरह की गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकते. एक विशिष्ट समुदाय को लक्षित करने वाले उन के अपमानजनक, अवमाननापूर्ण ट्वीट और वीडियो अत्यधिक निंदनीय हैं और सभी को इन से घृणा करनी चाहिए. उन की दिल दहला देने वाली बातें झूठ और भारत के सब से शांतिपूर्ण, प्रगतिशील समुदाय पर घोर हमले का एक जरिया हैं. ऐसे में चेतन को भारतीय कानूनों के प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिए तुरंत उन को देश निर्वासित कर दिया जाना चाहिए.’

कन्नड़ फिल्म उद्योग ने बनाई इस विवाद से दूरी चेतन के इस रुख ने उन्हें कई अंबेडकरवादियों और जातिविरोधी कार्यकर्ताओं का समर्थन जरूर दिलाया. लेकिन कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों ने इस विवाद से दूरी बना रखी है. वैसे भी, सभी जानते हैं कि कन्नड़ फिल्म उद्योग की तमाम जानमानी हस्तियां कावेरी जलविवाद को छोड़ कर किन्हीं भी सामाजिक मुद्दों पर अपने विचार नहीं रखतीं. चेतन कुमार के ब्राह्मण वाले मुद्दे पर कन्नड़ ही नहीं, हर भाषा के फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों ने चुप्पी साध रखी है. वास्तव में बौलीवुड से ले कर भारत में सभी भाषाई फिल्म इंडस्ट्रीज में ब्राह्मण व ऊंची जातियां ही काबिज हैं. कुछ दिनों पहले एक बातचीत के दौरान 21वें न्यूयौर्क इंटरनैशनल इंडी फिल्म फैस्टिवल में फिल्म ‘फायर इन द माउंटेंस’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार जीत चुके लेखक व निर्देशक अजीत पाल सिंह ने कहा था, ‘‘मैं एक साधारण सवाल बारबार अपनेआप से पूछता हूं कि मेरे आसपास दलित फिल्म निर्देशक, कैमरामैन या तकनीशियन कितने हैं, इन की संख्या इतनी कम क्यों है कि हम इन्हें उंगलियों पर गिन सकते हैं?’’ एक कन्नड़ अभिनेता ने अपना नाम उजागर न करते हुए कहा, ‘‘मैं इस मसले पर बात नहीं करना चाहता.’

’ जबकि, एक फिल्मकार व खुद को सामाजिक राजनीतिक चेतना का वाहक बताने वाले निर्देशक ने नाम छिपाते हुए कहा, ‘‘चेतन कुमार को ले कर कहने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है.’’ जबकि, एक ने कहा, ‘‘वह सिर्फ अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए इस तरह की हरकतें करता रहता है.’’ ‘द न्यूज मिंट’ से बात करते हुए चेतन ने कहा, ‘‘मैं इस बात पर चर्चा करना चाहता था कि जाति के बारे में बात न करें, यह विचार गलत है. जाति लगातार कमजोर होती जा रही है. हमारे अस्तित्व के हरेक हिस्से में यह एक कारक है. नौकरी, पानी तक पहुंच, गरिमा तक पहुंच, बुनियादी मानवाधिकार और जिस तरह से आप के जन्म के क्षण से आप के साथ व्यवहार किया जाता है.’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘यह लड़ाई किसी जाति के खिलाफ नहीं, बल्कि असमानता की व्यवस्था के खिलाफ है. अगर ब्राह्मण बोर्ड के लोग गलती ढूंढ़ रहे हैं तो ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि वे इसे नहीं जानते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि वे इसे स्वीकार नहीं करना चाहते हैं. वे चाहते हैं जब इन समुदायों को अत्यधिक सामाजिक पूंजी और शिक्षा से लाभ हुआ है तो पीडि़त होने का विचार बनाएं. जिस तरह से जाति की भूमिका होती है और जिस तरह से लोग एक ही समय में इस व्यवस्था में उत्पीड़क और उत्पीडि़त होते हैं, उस से ब्राह्मणवाद को हटाना मुश्किल है.’

’ चेतन ने कहा, ‘‘हम अंबेडकर, पेरियार और कुवेम्पु के जातिविरोधी विचारों को बनाए रखने के लिए लड़ रहे हैं. लेकिन बड़ी भीड़ होने पर भी इसे मीडिया की मान्यता नहीं मिल रही. मैं लगभग एक दशक से यह देख रहा हूं कि लोग इसे प्रवचन कह मुख्यधारा से बाहर रख कर स्वीकार नहीं करते.’’ चेतन से कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री की दूरी की मूल वजह कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े सूत्रों की मानें तो लगभग 3 वर्ष पहले जब पूरे देश में ‘मीटू मूवमैंट’ चला था तभी दक्षिण भारत की कई फिल्मों में अभिनय कर चुकी 32 वर्षीया अभिनेत्री श्रुति हरिहरन ने ‘मीटू मूवमैंट’ के तहत फिल्म जगत की जानीमानी हस्ती अर्जुन सरजा के खिलाफ अनुचित व्यवहार करने का आरोप लगाया था. उस वक्त जब पूरी इंडस्ट्री ने श्रुति हरिहरन से किनारा कर लिया था तब चेतन कुमार ने आगे बढ़ कर फिल्म इंडस्ट्री फौर राइट्स एंड इक्वैलिटी (एफआईआरई) नाम से एक मंच बना कर श्रुति हरिहरन का साथ दिया था. यह मंच आज भी फिल्मों में काम करने वाले लोगों के आर्थिक व शारीरिक उत्पीड़न जैसे मसलों पर काम करता है, लेकिन उसी दिन से कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री के लोगों ने चेतन कुमार से दूरी बनाने के साथ ही उन्हें गंभीरता से लेना बंद कर दिया. श्रुति हरिहरन उवाच उधर श्रुति हरिहरन कई बार कह चुकी हैं,

‘‘चेतन ऐसे शख्स हैं जिन्हें इस बात की कोई परवा नहीं है कि वे जो कर रहे हैं उस से उन्हें कितनी बदनामी या प्रसिद्धि मिलेगी. फिल्म उद्योग में जो लोग अधिकारों से वंचित हैं उन की मदद करने में चेतन यकीन रखते हैं. वे सिर्फ कहते नहीं हैं बल्कि कर के भी दिखाते हैं.’’ श्रुति ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, ‘‘चेतन खुद एक ब्राह्मण परिवार से हैं लेकिन ऐसी कुछ धार्मिक प्रथाएं थीं जिन का उन्होंने पालन नहीं किया. मैं चेतन से सहमत हूं कि ब्राह्मणवाद समानता को स्वीकार नहीं करता. माहवारी जैसे मसलों पर यह बेहद पितृसत्तात्मक है. मु झे नहीं लगता कि उन्होंने किसी को ठेस पहुंचाई है.’’ मजेदार बात यह है कि गौरी लंकेश की निर्मम हत्या का चेतन कुमार ने जम कर विरोध किया था. 2017 में ‘मैं गौरी हूं’ अभियान का हिस्सा बन कर बेंगलुरु और कोलार में गौरी लंकेश की हत्या का विरोध करते हुए उन्होंने कर्नाटक में नफरत की संस्कृति के खिलाफ आवाज उठाई थी. लेकिन अब गौरी लंकेश के भाई व फिल्मकार इंद्रजीत लंकेश भी मौन साधे हुए हैं. चेतन की पहली फिल्म के निर्देशक मंसोरे ने जरूर चेतन को निर्दोष बताते हुए कहा है, ‘‘उन्होंने ब्राह्मणों के खिलाफ कुछ नहीं कहा है.

उन्होंने ब्राह्मणवादी संस्कृति की बात की है जो फिल्म जगत में अपनी जड़ें जमाए हुए है. उन्होंने सिर्फ ब्राह्मणवादी मानसिकता की बात की है.’’ कर्नाटक राज्य ब्राह्मण डैवलपमैंट बोर्ड है क्या बला यों तो 2018 के राज्य के बजट में तत्कालीन मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने 25 करोड़ रुपए की लागत से कर्नाटक राज्य ब्राह्मण विकास बोर्ड के गठन की घोषणा की थी, फिर मार्च 2019 में इसे कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत किया गया. इस तरह उन्होंने अपना एक चुनावी वादा पूरा किया था. यही वजह है कि जब 26 जुलाई, 2019 को भाजपा शासन में आई तो मुख्यमंत्री बनते ही बी एस येदियुरप्पा ने सब से पहले इसी बोर्ड को अमली जामा पहनाने का काम किया. यानी कि यह भाजपा की देन है. मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने 26 जुलाई, 2019 को मुख्यमंत्री बनते ही नवंबर 2019 में इस के गठन की प्रक्रिया को पूरा किया और 6 जनवरी, 2020 को इस के चेयरमैन के पद पर एच एस सच्चिदानंद मूर्ति को नियुक्त किया. सर्वविदित है कि एच एस सच्चिदानंद मूर्ति 38 वर्ष तक आरएसएस के सक्रिय कार्यकर्ता तथा भाजपा में कई पदों पर आसीन रहे हैं. उस वक्त कर्नाटक राज्य ब्राह्मण विकास बोर्ड के गठन का मकसद राज्य में ब्राह्मण समुदाय के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के विकास के लिए शिक्षा, कौशल विकास, स्वरोजगार, बुनियादी सुविधाओं के विकास की योजनाओं को शुरू करना बताया गया था.

बोर्ड की जरूरत क्यों कर्नाटक राज्य विकास बोर्ड के गठन के साथ ही भाजपा सरकार पर उंगली उठने लगी थीं. लोग सवाल पूछते हैं कि इस की जरूरत क्यों पड़ी? ज्ञातव्य है कि कर्नाटक राज्य की कुल आबादी लगभग 6 करोड़ से अधिक है. इन में से 83 प्रतिशत हिंदू, 13 प्रतिशत मुसलिम, 3 प्रतिशत ईसाई, 0.78 प्रतिशत जैन और 0.3 प्रतिशत बौद्ध हैं. सारा मसला वोटबैंक का है. बी एस येदियुरप्पा राज्य के 83 प्रतिशत हिंदुओं में से राज्य की कुल आबादी के 4 प्रतिशत ब्राह्मण लौबी को साधने में लगे हुए हैं. इसी तरह उन्होंने वोटबैंक के मकसद से ही लिंगायत के लिए भी एक बोर्ड का गठन किया है. बोर्ड की मदद भी छलावा, सब वोटबैंक की रणनीति के तहत कर्नाटक राज्य ब्राह्मण विकास बोर्ड के अध्यक्ष मूर्ति ने फिलहाल 2 योजनाएं ला कर भाजपा के वोटबैंक को मजबूत करने वाला कदम उठाया है. पहली ‘अरुंधति’ योजना के तहत गरीब पृष्ठभूमि की 550 ब्राह्मण महिलाओं को उन की शादी के लिए 25,000 रुपए दिए जाएंगे. दूसरी ‘मैत्रेयी’ योजना के तहत गरीब पृष्ठभूमि के ब्राह्मण पुजारियों से शादी करने वाली 25 महिलाओं के लिए 3 लाख रुपए की वित्तीय सहायता देने की बात है.

मगर यह विवाह कम से कम 3 वर्ष टिकना चाहिए और हर वर्ष एकएक लाख कर के 3 वर्ष तक रुपए मिलेंगे. मजेदार बात यह है कि पहले मैत्रेयी योजना बीपीएल ब्राह्मण किसानों या रसोइयों या पुजारियों से शादी करने वाली औरतों के लिए प्रस्तावित थी, मगर अचानक बोर्ड के अध्यक्ष मूर्ति को एहसास हुआ कि बेचारे ब्राह्मण पुजारी ही ज्यादा गरीब हैं और उन्हीं के जीवनस्तर को ऊंचा उठाया जाना चाहिए. यहां अहम सवाल यह है कि क्या ब्राह्मण पुजारी, आदिवासियों व दलितों के मुकाबले ज्यादा गरीब हैं? इस योजना में यह प्रावधान कि विवाह 3 वर्ष टिकना चाहिए इस बात की पोल खोलता है कि पौराणिक नियमों से हुए विवाह मृत्यु तक चलते हैं. ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को खत्म करने की मांग कर्नाटक में ब्राह्मणवादी पितृसत्ता का मसला पहली बार नवंबर 2018 में उस वक्त गरमाया था जब ट्विटर के सीईओ जैक डोर्से ने भारत दौरे के दौरान कुछ भारतीय महिलाओं के साथ एक बैठक की और उस के बाद एक पोस्टर ले कर तसवीर खिंचवाई थी. उस तसवीर के मीडिया में सामने आते ही ब्राह्मणवादी पितृसत्ता का मुद्दा इस कदर गरमाया था कि ट्विटर को सफाई देनी पड़ गई थी.

सोशल मीडिया पर मौजूद एक तबके ने इसे ब्राह्मणों के खिलाफ और ब्राह्मणों के प्रति नफरत व पूर्वाग्रह से ग्रस्त बताया था. विवाद इतना बढ़ा था कि एक खास हैशटैग वाले हजारों ट्वीट किए गए और बाद में ट्विटर को सफाई तक देनी पड़ी थी. तब ट्विटर इंडिया ने कहा था, ‘‘हम ने हाल ही में भारत की कुछ महिला पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के साथ बंद कमरे में एक चर्चा की ताकि ट्विटर पर उन के अनुभवों को अच्छी तरह सम झ सकें. चर्चा में हिस्सा लेने वाली एक दलित एक्टिविस्ट ने यह पोस्टर जैक को तोहफे के तौर पर दिया था.’’ कौन हैं चेतन कुमार चेतन कुमार उर्फ चेतन ‘अहिंसा’ कन्नड़ फिल्म अभिनेता, सार्वजनिक बौद्धिक और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं. उन के मातापिता डाक्टरी पेशे से जुड़े मूल कर्नाटक से हैं जो कि अमेरिका के शिकागो, इलिनोइस में रहते हैं. वहीं पर 24 फरवरी, 1983 को चेतन कुमार का जन्म हुआ था. चेतन के छोटे भाई अशोक कुमार औक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पीएचडी और फुलब्राइट स्कौलर हैं. ?वे वर्तमान में ब्रिटेन के बिर्कबेक विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र पढ़ा रहे हैं.

अमेरिकी नागरिक चेतन कुमार 2005-2006 में फुलब्राइट स्कौलर के रूप में भारत आए थे. यहां थिएटर में अध्ययन करने के साथ महिला सशक्तीकरण और दहेजप्रथा के खिलाफ कुछ नुक्कड़ नाटक किए. उस के बाद चेतन ने 2007 की कल्ट क्लासिक फिल्म ‘आदीनागलु’ से अभिनय कैरियर की शुरुआत की थी. एक नई मिसाल, मेघा से विवाह चेतन ने 2 फरवरी, 2020 को अपनी दोस्त मेघा से साधारण, गैरधार्मिक और सामाजिक रूप से जागरूकता फैलाने वाले तरीके से अनाथालय में विवाह किया था. उक्त वैवाहिक कार्यक्रम की अध्यक्षता एक ट्रांसजैंडर कार्यकर्ता ने की थी तथा सभी मेहमानों को वापसी में उपहार के रूप में ‘भारतीय संविधान’ की प्रति दी गई थी. चेतन का फिल्मी कैरियर चेतन ने 2007 में निर्देशक के एम चैतन्य के निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘आदीनागलु’ के माध्यम से कन्नड़ फिल्मों में एक नायक के रूप में शुरुआत की. यह फिल्म बौक्स औफिस पर अत्यधिक सफल रही और समीक्षकों द्वारा प्रशंसित हुई. इस ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए ‘उदय’ फिल्म पुरस्कार भी दिलाया.

इस के बाद, चेतन पुनीत राजकुमार की 2009 की फिल्म ‘राम’ में एक कैमियो भूमिका में दिखाई दिए. फिल्म ‘बिरुगाली’ में उन की भूमिका के लिए उन्हें अधिक आलोचनात्मक प्रशंसा मिली. ‘सूर्यकांति’ और ‘दशमुख’ जैसी फिल्मों ने बौक्स औफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखाया. हालांकि, 2013 में उन की फिल्म ‘मैना’ सफल रही. उन्होंने मराठी उपन्यास ‘दुनियादारी’ पर आधारित एक पीरियड फिल्म ‘नूरोंडुनेनापु’ के साथ प्रयोग किया जो 9 जून, 2017 को रिलीज हुई थी. उन्होंने श्रेयस नाम के एक चरित्र की मुख्य भूमिका निभाई. हालांकि इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर खराब प्रदर्शन किया लेकिन चेतन के अभिनय की तारीफ हुई थी. 24 नवंबर, 2017 को रिलीज हुई उन की आखिरी फिल्म ‘अथिरथ’ को सकारात्मक समीक्षा मिली, लेकिन शुरुआती दिन से विवाद के कारण असफल रही.

कर्नाटक के चामराज नगर में दक्षिणपंथी चरमपंथियों ने फिल्म के पोस्टर फाड़ दिए और चेतन के राजनीतिक रुख के कारण फिल्म को प्रदर्शित होने से रोक दिया. इतना ही नहीं, हिंदू कट्टरपंथियों ने एक औनलाइन अभियान चला कर चेतन की सक्रियता का हवाला देते हुए ‘अथिरथ’ का बहिष्कार करने का आह्वान किया था. खैर, चेतन ने फिल्म ‘मार्गा’ की शूटिंग पूरी कर ली है. फिल्म ‘डीटीएस’ की शूटिंग चल रही है. इतना ही नहीं, इन दिनों वे फिल्म ‘सौ करोड़’ का तेलुगू व कन्नड़ भाषा में स्वयं निर्माण कर रहे हैं. चेतन के सामाजिक कार्यों का लेखाजोखा बचपन से 23 वर्षों तक अमेरिका में रहने के बाद चेतन ने खुद के लिए अपने पैतृक राज्य कर्नाटक को ही कर्मभूमि बनाई. उन्हें कन्नड़ फिल्म से ही अभिनेता के तौर पर पहचान मिली. लेकिन चेतन ने समानता व न्याय के लिए लड़ने के लिए प्रगतिशील युवा और छात्र संगठनों, महिला समूहों, किसान समूहों, ट्रेड यूनियनों और दलित व आदिवासी आंदोलनों का सदैव समर्थन किया. चेतन सर्वाधिक चर्चा में पहली बार तब आए थे जब उन्होंने 2013 में ‘एंडोसल्फान’ के पीडि़तों के लिए राज्य सरकार के पुनर्वास कोष से मुआवजा दिलवाने में सफलता पाई थी.

उस के बाद ढिदाली, कूर्ग (2016) के बेदखल आदिवासियों के लिए 528 घरों का निर्माण करने के लिए सरकार को मजबूर किया. इस के बाद उन्होंने 2017 में ‘एफआईआरई’ यानी कि ‘फिल्म इंडस्ट्री फौर राइट एंड इक्वैलिटी’ की स्थापना की. और कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री की महिलाओं, लेखकों व श्रमिकों के लाभ के लिए काम करना शुरू किया. 2018 में कडुगोला समुदाय और लिंगायतों के लिए राज्य द्वारा अनुमोदित ‘अल्पसंख्यक दर्जा’ दिलवाया.

इतना ही नहीं, ‘मीटू मूवमैंट’ के अलावा किसान आंदोलन में वे किसानों के साथ खड़े हैं. वे सामाजिक सरोकारों, जैसे कास्ंिटग काउच, पानी की राजनीति, स्टील ब्रिज निर्माण के खिलाफ, सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ, हाशिए पर रहने वालों के लिए आरक्षण और भूमि अधिग्रहण विधेयक, असहिष्णुता व पर्यावरण विनाश जैसी सरकारी नीतियों के बारे में लेखन के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करते रहे हैं. चेतन सक्रिय रूप से राज्यव्यापी सामाजिक व राजनीतिक संगोष्ठियों और अभियानों, जैसे वर्गजातिलिंग समानता उपायों, निजी क्षेत्र के आरक्षण, महिला पुलिस स्टेशनों की मांग, युवा जागरूकता, फासीवाद विरोधी चर्चा और किसानों, छात्रों, पिछड़ों, श्रमिकों, महिलाओं, दलितों, युवा संगठनों के साथ जमीनी स्तर पर लामबंद हो कर काम करते रहते हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...