फिल्मी गानों को लंबे समय से सैंसर की कैंची, कानूनी पचड़ों, महिला संगठनों, धर्म के ठेकेदारों समेत राजनीतिक दलों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. फिल्में तो बाद में रिलीज होती हैं, गानों के विवाद पहले रिलीज हो जाते हैं. कई बार ये विवाद फिल्मों की फ्री पब्लिसिटी तो कभी निर्मातानिर्देशकों को चूना लगा देते हैं. पर जिस मंशा से हंगामा मचता है वह पूरा ही नहीं होता. कैसे, बता रहे हैं राजेश कुमार.

धर्म के ठेकेदार कहते हैं कि राधा को सैक्सी कहना पाप है भले ही वे पूरा जीवन कृष्ण के लिए नाचतीगाती रही हों लेकिन उन्हें डांस फ्लोर पर कोई नहीं नचा सकता. इसलिए यह पाप करने वाले यानी फिल्म ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ के निर्मातानिर्देशक को धार्मिक भावनाएं आहत करने के जुर्म में कानूनी और धार्मिक फतवा जारी कर दिया जाता है.

इसी तरह फिल्म ‘खिलाड़ी 786’ के सुपरहिट गाने ‘हुक्का बार’ पर कुछ सामाजिक तत्व यह कह कर बैन लगाने की असफल कोशिश करते हैं कि इस से युवाओं में गलत संदेश जाएगा. कुछ इसी तरह का शोर रैप सिंगर हनी सिंह के गानों को ले कर मचा. हाल ही में फिल्म ‘बौस’ के गीत ‘पार्टी औल नाइट’ के साथ भी यही कारस्तानी हुई.

हिंदी फिल्मों की कल्पना बिना गानों के मुश्किल है. एक दौर ऐसा भी था जब पूरी फिल्म ही गानों के जरिए बनाई जाती थी. कई बार तो फिल्में सिर्फ अपने गानों की वजह से ही याद की जाती हैं.

गानों के प्रति मोह

गानों के प्रति जनता के बढ़ते मोह को देखते हुए 70-80 के दशकों में कई बार फिल्में नए गाने जोड़ कर दोबारा रिलीज की जाती थीं. फिल्म के प्रचार पोस्टरों में यह लिखा जाता था कि अमुक फिल्म देखिए नए गानों के साथ. राकेश रोशन ने फिल्म ‘कहो न प्यार है’ के दौरान भी कुछ ऐसा किया था जब उन्होंने फिल्म की रिलीज के कुछ सप्ताह बाद अमीषा पटेल पर पिक्चराइज एक गाना रिलीज किया था और दर्शक सिर्फ उसी अतिरिक्त गाने को देखने के लिए दोबारा उस फिल्म के लिए सिनेमाघरों में उमड़ पड़े थे.

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