हम भारतीय सिनेमा के जनक दादासाहब फाल्के की बात कर रहे हैं. वही दादासाहब फाल्के, जिन्होंने पहली भारतीय फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' बनाई थी. आज हम दादासाहब फाल्के के जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी ही बातें लेकर आये हैं, जिनसे शायद आप अब तक अंजान हैं.

जिस समय भारत अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, उस समय एक व्यक्ति भारत का एक नया अध्याय लिख रहा था. इस अध्याय को लिखते समय उसके साथियों ने उसका मज़ाक उड़ाया और समाज ने उसे पागल करार दिया, पर बिना किसी की भी परवाह किये बिना वे अपने आप में लगे रहे और उन्होंने भारत के उस सुनहरे भविष्य की नींव रखी, जिस पर आज भारतीय सिनेमा टिका हुआ है.

कल दादासाहब फाल्के यानि कि भारतीय सिनेमा के पिता का जन्मदिन था. जानिए उनके जीवन से जुड़ी वो बातें, जो उन्हें वाकई में सिनेमा का जनक बनाती हैं.

कौन थे दादा साहब फाल्के

दादासाहब फाल्के का जन्म एक देशस्थ ब्राह्मण मराठी परिवार में 30 अप्रैल 1870 में नासिक के त्र्यम्बकेश्वर में हुआ था. क्या आप जानते हैं अपने कॉलेज के शुरुआती दौर में दादासाहब ने मूर्तिकला, पेंटिंग और फोटोग्राफी पर हाथ आजमाये. एक फोटोग्राफर के रूप में ही उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी. इसके बाद उन्होंने खुद का प्रिंटिंग प्रेस खोला और उन्हें राजा रवि वर्मा के साथ काम करने का मौका मिला.

हिन्दी सिनेमा का नया अध्याय

फाल्के के जीवन में फिल्म निर्माण से जुड़ा रचनात्मक मोड़ फिल्म 'लाइफ ऑफ क्राइस्ट' देखने के बाद आया. इसी से उन्हें फिल्म निर्माण की प्रेरणा मिली अपने फिल्मी करियर की शुरुआत करने से पहले दादासाहब ने फिल्मों का गहन अध्ययन किया और 5 पाउंड में कैमरा खरीद कर उस पर 20 घंटे से ज्यादा समय तक अभ्यास किया.

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