फिल्मी परदे पर विविध किरदारों को जीवंत करने वाले अभिनेता प्राण अब इस दुनिया में नहीं हैं. उन का खलनायकी मिजाज और अभिनय का अंदाज सिनेमा प्रेमियों के जेहन में ताउम्र जिंदा रहेगा. कैसे, बता रही हैं बुशरा खान.

प्राण कृष्ण सिकंद भारतीय सिनेमा के ऐसे नायाब कलाकार थे जिन्हें दुनिया प्राण के नाम से जानती है. प्राण ने अपनी बेजोड़ और दमदार अदाकारी के बल पर फिल्मी परदे पर खलनायकी के नए आयाम गढ़े और आधी से अधिक सदी तक हिंदी फिल्म जगत और सिनेप्रेमियों के दिलों पर राज किया. प्राण ने शुरुआती दौर में बतौर खलनायक व नायक फिल्मों में अभिनय किया. बाद में जब चरित्र भूमिकाओं की बात आई तो उन्होंने इस काम को भी बखूबी अंजाम दिया.

प्राण 12 जुलाई, 2013 को दुनिया को अलविदा कह गए. प्राण के फिल्मी सफर की शुरुआत बेहद रोचक किस्से के साथ हुई. उन को फिल्मों में लाने का श्रेय वली मोहम्मद वली को जाता है जो एक लेखक थे. प्राण के जीवन पर लिखी गई किताब ‘...ऐंड प्राण’ में इस का जिक्र बड़ी खूबसूरती के साथ किया गया है.

एक सर्द शाम को अपने कुछ दोस्तों के साथ अविभाजित भारत के लाहौर की हीरा मंडी में रंगीले राम लुभाया की दुकान पर पान का और्डर देने के साथ ही इस गोरेचिट्टे युवक के जीवन में पूर्ण रूप से नया अध्याय खुलने जा रहा था. वली मोहम्मद फिल्म ‘यमलाजट्ट’ की स्क्रिप्ट पर काम कर रहे थे. जब उन्होंने पान की दुकान पर प्राण को देखा तो वे उन की खूबसूरती और पान खाने के खास अंदाज से बेहद प्रभावित हुए. वली मोहम्मद ने प्राण से कहा, ‘‘आप का यह रूपरंग मेरी कहानी के किरदार से मेल खाता है. क्या आप फिल्म में काम करेंगे?’’ हालांकि प्राण ने शुरुआत में उन से नानुकुर की लेकिन अचानक हुई अगली मुलाकात के बाद आखिरकार प्राण इस फिल्म में 50 रुपए महीने के वेतन पर काम करने को तैयार हो गए. फिल्म बेहद कामयाब रही और यहीं से प्राण के फिल्मी सफर की शुरुआत हो गई.

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