सिनेमा में कथा कथन की कई नई शैलियां विकसित हुई हैं. मगर हर कथा कथन की शैली के लिए उपयुक्त कहानी का चयन करना निर्देशक की जिम्मेदारी होती है. पर पहली बार फीचर फिल्म निर्देशित करने वाले लेखक व निर्देशक अमित कुमार यहां पर मात खा गए और कमजोर कहानी पर बुरी फिल्म बना बैठे. ‘मानसून शूटआउट’ ऐसी फिल्म है, जिसे देखना समय व पैसे की बर्बादी करना ही है.
फिल्म ‘‘मानसून शूटआउट’’ की कहानी के केंद्र में एक आदर्शवादी व लोगों को न्याय दिलाने तथा अपराध खत्म करने की बात सोचने वाले युवा आदि कुलश्रेष्ठ (विजय वर्मा) की है, जिसने पुलिस अकादमी से ट्रेनिंग लेने के बाद पुलिस की क्राइम ब्रांच में नौकरी शुरू की है. पहले ही दिन उसका बास खान (नीरज काबी) उसके सारे भ्रम तोड़कर रख देता है और आदि को किसी भी केस को सुलझाने की असलियत का अहसास होता है.
शहर के भवन निर्माताओं को डागर भाई (आर बालसुब्रमणियम) से करोड़ों में फिरौती देने की धमकी मिल रही हैं. डागर भाई के इशारे पर किसी को भी कुल्हाड़ी से मौत के घाट उतारने का काम शिवा (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) कर रहा है. शिवा की पत्नी (तनिष्ठा चटर्जी) व बेटा है, पर वह अपनी पत्नी के साथ कभी भी अच्छे ढंग से पेश नहीं आता है.
खान को अपने मुखबिर से शिवा के बारे में खबर मिलती है. खान, आदि व पाटिल को साथ में लेकर शिवा को पकड़ने के लिए बारिश में निकलता है. तेज बारिश के बीच शिवा, खान को चकमा दे देता है. खान के कहने पर आदि, शिवा का पीछा करता है और एक दीवार के पास शिवा को आदि अपनी बंदूक के निशाने पर ले लेता है. पर यहां वह सोच में पड़ जाता है कि वह शिवा पर गोली चलाए या नहीं.
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