2013 से 2015 तक करण जोहर के साथ काफी विद करण में कार्य करने के बाद ‘ऐ दिल मुश्किल’, ‘जवानी है दीवानी’ में बतौर सहायक जुड़े रहे शरण शर्मा ने बतौर स्वतंत्र निर्देशक फिल्म ‘गुंजन सक्सेना : द कारगिल गर्ल’ निर्देशित की थी. उस के बाद अब वह फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेस माही’ ले कर आए हैं.

2 घंटे 18 मिनट की लंबी अवधि वाली इस फिल्म में उन्होंने क्रिकेट खेल की पृष्ठभूमि के साथ पुरूष सत्तात्मक सोच के साथ ही पुरूष मानसिकता, अपनी पत्नी के हर काम का क्रेडिट खुद लेले से ले कर मतलबी पिता तक का मुद्दा उठाया है. कुल मिला कर कहानी का केंद्र बिंदु यह है कि ‘हर सफल महिला के पीछे एक पुरुष होता है, जो उस के माध्यम से अपने सपनों को साकार करता है.’ तो वहीं इस में स्पोर्ट्स मेलो ड्रामा और रोमकौम का चूरन भी है पर फिल्म देखते हुए ‘अभिमान’ सहित कई दूसरी फिल्में याद आती हैं, तो वहीं फिल्म ‘धड़क’ के होली गीत के दृश्यों को नकल कर के इस में पिरोया गया है.

महेंद्र अग्रवाल (राजकुमार राव), जिस ने अपना उपनाम ‘माही’ रखा हुआ है, क्रिकेट जगत में बल्लेबाज के रूप में अपना स्थान बनाने के लिए प्रयास रत है. उन के पिता की क्रिकेट के खेल से जुड़ी सामग्री बैट, बौल आदि बेचने की दुकान है. पर बल्लेबाज के तौर पर महेंद्र औसत दर्जे का खिलाड़ी है और हर बार वह जलन में दूसरे खिलाड़ी को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करता है, जिस के चलते उस का ‘इंडिया’ टीम में चयन नहीं हो पाता. उस का कोच बेनी शुक्ला (संजय शर्मा) भी मानता है कि वह औसत दर्जे का खिलाड़ी है.

अब उसे अपने पिता (कुमुद मिश्रा) की दुकान पर बैठना पड़ता है. इस असफलता से वह कड़वाहट से भर गया है. उस के पिता उस की शादी डाक्टर महिमा (जान्हवी कपूर) से उस के बारे में झूठ बोल कर कराना चाहते हैं, पर महेंद्र खुद, महिमा से मिल कर अपना सच बता देते हैं.

महिमा भी ‘माही’ नाम से ही जानी जाती है. महिमा, महेंद्र की इमानदारी से प्रभावित हो कर उस से शादी कर लेती है. सुहागरात की ही रात महेंद्र को पता चल जाता है कि उस की पत्नी महिमा क्रिकेट मैच देखने की शौकीन है, क्योंकि बचपन में उस ने क्रिकेट खेला है. हर तरफ से हार कर अब महेंद्र बेनी की सलाह पर क्रिकेट कोच बनना चाहता है. पर उस से क्रिकेट की कोचिंग कौन लेगा? अपने स्वार्थ व अहम में अंधे महेंद्र, महिमा की बल्ले के कौशल को देखने के बाद उसे प्रशिक्षित करने का निर्णय ले, महिमा को समझाता है कि डाक्टरी छोड़ कर उसे क्रिकेटर बनना चाहिए.

महिमा अपने पति की बातों में आ जाती है. 6 माह की ट्रेनिंग के बाद महिमा अच्छी खिलाड़ी बन जाती है और वह एक टीम का हिस्सा बन जाती है. टीम का हिस्सा बनने पर महेंद्र चाहता है कि इंटरव्यू में महिमा उस की प्रशंसा करे कि वह महेंद्र की कोचिंग की बदौलत आज क्रिकेटर बन पाई. पर ऐसा न होने पर महेंद्र, महिमा से नाराज हो जाता है. जिस का असर महिमा के खेल पर भी पड़ता है.

महेंद्र का अहम कहता है कि महिमा को उसी ने बनाया है. इसलिए सारा श्रेय उसे मिलना चाहिए लेकिन जब महेंद्र से उस की मां बात करती है तो महेंद्र को अपनी गलती का अहसास होता है फिर महिमा का चयन ‘इंडिया’ टीम में हो जाता है.

लेखक ने विषय तो अच्छा चुना था पर उस के साथ न्याय करने में असफल रहे हैं. फिल्म में पुरुषों की महत्वाकांक्षा, मतलबी पिता द्वारा अपने बेटे का कैरियर बरबाद करने से ले कर सफलता के अहंकार की कमजोरी सहित कई मुद्दों पर तीखी बात कही गई है, मगर कमजोर पटकथा व दूसरी फिल्मों के दृश्यों की नकल करते हुए लेखक व निर्देशक ने फिल्म को तबाह कर डाला.

फिल्म में अस्पताल का एक दृश्य है, जहां डाक्टर महिमा एक मरीज के औपरेशन के वक्त अपने सीनियर डाक्टर को असिस्ट करने जा रही है, तब उस का पति उसे इस बात पर दबाव डालता है कि वह डक्टरी छोड़ कर क्रिकेटर बन जाए. यह दृश्य ही गलत है. यह दृश्य घर पर होता तो ठीक था मगर ऐन औपरेशन से पहले अस्पताल में इस दृश्य के चलते किसी इंसान की जान जा सकती है. इस तरह के दृश्य पर सेंसर को भी कैंची चलानी चाहिए थी.

खैर, फिल्म में होता यही है कि महिमा, तीन एमएल की बजाय छह एमएल का इंजैक्शन, मरीज को लगान वाली होती है पर सीनियर डाक्टर की सजगता के चलते वह महिमा को रोक लेता है. लेखक व निर्देशक ने जिस तरह से चरित्र व कहानी रची है, उस से पुरूष व महिला की मानसिकता, सोच पूरी तरह से उभर कर नहीं आ पाती. बल्कि फिल्म पूरी तरह से एकतरफा नजर आती है.

फिल्म में पुरूष व नारी समानता की बात गायब है यदि एक पुरूष अपने बेटे का कैरियर बरबाद करता है तो दूसरा पिता अपनी बेटी को अपने इशारे पर नचाता है. इंटरवल से पहले फिल्म काफी कमजोर है. ऊपर से निर्देशक ने फिल्म ‘धड़क’ के होली गीत वाले दृष्यों को इस में ज्यों का त्यों फिल्मा दिया है. फिल्म में क्रिकेट के दृश्य नकली से भी नकली हैं. निर्देशक की कल्पना भी अजीब है कि जिस ने बचपन में गलीमहल्ले में क्रिकेट खेला था, वह जवानी में डाक्टर बनने के बाद महज 6 माह की ट्रेनिंग में ही ‘इंडिया’ टीम का हिस्सा बन जाती है. फिल्म के कुछ संवाद जरुर अच्छे बन पड़े हैं.

पूरी फिल्म राजस्थान में फिल्माई गई है. फिल्म में राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा और वहां की उप मुख्यमंत्री दिया कुमारी का धन्यवाद ज्ञापन भी है, तो इस का मतलब इस फिल्म को राजस्थान सरकार से सब्सिडी मिली है. इसी कारण इस में दर्शकों को सनातनी प्रेम का आभास होगा. फिल्म की कहानी राजस्थानी पृष्ठभूमि की है मगर गाना पंजाबी है. वाह..क्या कहना..जबकि सभी जानते हैं कि राजस्थानी फोक गीतसंगीत काफी लोकप्रिय है.

फिल्म के प्रचारक ने थोड़ी मेहनत की होती तो शायद यह फिल्म शुक्रवार को 99 रूपए की टिकट दर पर दर्शकों को सिनेमाघर तक ले आती.

महेंद्र के किरदार में कई दृश्यों में राजकुमार राव बुरी तरह से निराश करते हैं. जब क्रिकेट टीम में चयन नहीं होता और अब उन्हें पता है कि उन्हें मजबूरन अपने पिता की दुकान पर बैठना पड़ेगा, उस वक्त उन के चेहरे पर जिस तरह के बेबसी, लाचारी के साथ अपनेआप पर कोफ्त होने के भाव आने चाहिए थे, वह नहीं आते.

कुछ दृश्यों में तो वह शाहरुख खान की नकल करते हुए नजर आते हैं. मतलब राज कुमार राव अपने अंदर की अभिनय प्रतिभा को भूलते जा रहे हैं. महिमा के किरदार में जान्हवी कपूर कुछ दृश्यों में ही अच्छी लगी है, अन्यथा वह बेदम ही है. कुमुद मिश्रा अपने किरदार में जमे हैं. संजय शर्मा भी ठीकठाक हैं. पूर्णेंदु भट्टाचार्य और जरीना वहाब के हिस्से करने को कुछ खास नहीं रहा.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...