गुड़गांव, हरियाणा में जन्मे व पलेबढ़े राज कुमार यादव ने ‘पुणे फिल्म संस्थान’ से अभिनय का प्रशिक्षण लेने के बाद बौलीवुड में कदम रखा था. उन के पिता सत्य प्रकाश यादव, हरियाणा राजस्व विभाग में एक सरकारी कर्मचारी थे. उन की मां कमलेश यादव, एक गृहिणी थीं. उन्होंने अपनी 12वीं कक्षा एस.एन. से पूरी की. सिद्धेश्वर वरिष्ठ. सेक पब्लिक स्कूल, जहां उन्होंने स्कूली नाटकों में भाग लिया. आत्मा राम सनातन धर्म कालेज, (दिल्ली विश्वविद्यालय) से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जहां वह क्षितिज थिएटर ग्रुप और दिल्ली में श्री राम सेंटर के साथ थिएटर कर रहे थे. 2008 में वह पुणे फिल्म संस्थान चले गए. 2010 में अमिताभ बच्चन व परेश रावल के साथ राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘रण’ में न्यूज रीडर का छोटा सा किरदार निभा कर अपने अभिनय कैरियर की शुरूआत की थी. इस फिल्म के साथ ही उन्हें दिबाकर बनर्जी ने अपनी एंथोलौजी फिल्म ‘‘लव सैक्स और धोखा’ में हीरो भी बना दिया. एक तरफ फिल्म ‘रण’ ने ‘टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फैस्टिवल’ में प्रदर्शित हो कर जलवा बिखेरा तो दूसरी तरफ ‘लव सैक्स और धोखा’ भी सफल हो गई. राज कुमार यादव रातोंरात स्टार बन गए तो वहीं 2010 से ही उन्होंने अभिनेत्री पत्रलेखा पसल संग रोमांस फरमाना भी शुरू कर दिया. ( पूरे 12 वर्ष तक प्यार की पतंग उड़़ाने के बाद 15 नवंबर 2021 में दोनों विवाह के बंधन में बंध गए.) फिर वह ‘रागिनी एमएमएस’, ‘शैतान’, ‘गैंग आफ वासेपुर 2’, ‘चिटगांव’ और अमीर खान प्रोडक्शन की फिल्म ‘तलाश’ में भी नजर आए. पर यह सभी कलात्मक फिल्में थीं जिन से उन्हें चर्चा तो मिली मगर व्यावसायिक सफलता नहीं मिली.
2012 में हंसल मेहता निर्देशित फिल्म ‘शाहिद’ प्रदर्शित हुई, जिस के लिए राज कुमार यादव को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और उन के लिए व्यावसायिक सिनेमा के रास्ते खुल गए. 2013 में फिल्म ‘काई पो चे’ में उन के अभिनय के लिए उन्हें काफी सराहा गया. 2014 में उन्होंने कंगना रानौत के साथ फिल्म ‘क्वीन’ की और इस फिल्म को मिली जबरदस्त सफलता ने उन के सामने सफलता के सारे रास्ते खोल दिए. अब तक वह साबित कर चुके थे कि उन के अंदर अभिनय क्षमता कूटकूट कर भरी हुई थी. वह फिल्म ‘शाहिद’ के बाद निर्देशक हंसल मेहता के पसंदीदा कलाकार बन चुके थे. ‘क्वीन’ के बाद हंसल मेहता ने उन्हें ‘सिटी लाइट’ में उन की प्रेमिका पत्रलेखा संग अभिनय करने का अवसर दिया. दोनों ने कमाल का अभिनय किया. फिल्म ‘सिटीलाइट’ राजस्थान के एक गरीब किसान परिवार की कहानी बताती है, जो आजीविका की तलाश में मुंबई आता है.
लेकिन अब उन के अंदर अचानक इस देश का सर्वाधिक व्यस्त व यानी कलाकार बनने की भूख संवार हो चुकी थी. इसी लालच में उन्होंने अपने पीआर व मैनेजर के इशारे पर नाचना शुरू कर दिया. सब से पहले उन्होंने अपना नाम ‘राज कुमार यादव’ से बदल कर ‘राज कुमार राव’ कर लिया तथा अंगरेजी में नाम की स्पेलिंग एक ‘एम’ अलग से जोड़ लिया. नाम बदलने का कारण बताया, ‘‘राव या यादव, मैं दोनों में से किसी एक उपनाम का उपयोग कर सकता हूं क्योंकि दोनों पारिवारिक नाम हैं. पर स्पेलिंग में ‘एम’ जोड़ने के सवाल राज कुमार राव ने कहा था कि नाम में ‘एम’ जोड़ने का फैसला अंक ज्योतिष की सलाह पर किया. (कुछ लोग कहते हैं कि एक अंक ज्योतिष की माने तो नाम में इस तरह का बदलाव सिर्फ साढ़े 3 वर्ष तक के लिए ही ठीक रहता है लेकिन इस बारे में मेरी कोई समझ नहीं है.)
नाम बदलने के बाद 2015 में वह सोनम कपूर के साथ अभिषेक डोगरा की फिल्म ‘‘डौली की डोली’’ में वह सह नायक तथा विद्या बालन के साथ फिल्म ‘हमारी अधूरी कहानी’ में नजर आए. यह दोनों फिल्में ठीकठाक ही रहीं पर फिर हंसल मेहता के निर्देशन में वह मनोज बाजपेयी के साथ फिल्म ‘अलीगढ़’ में सहायक भूमिका में नजर आए. 4 अक्तूबर 2015 को प्रदर्शित फिल्म ‘अलीगढ़’ की लागत 11 करोड़ थी,पर इस ने बाक्स आफिस पर सिर्फ 4 करोड़ कमाए थे,जबकि फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चा मिली थी. राव को फिल्म में उन के प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नोमीनेट किया गया था. अब यह नाम बदलने का परिणाम था या…
2016 में वह ‘ट्रेप्ड’, ‘बहन होगी तेरी’, ‘बरेली की बर्फी’ में नजर आए. यह फिल्में ठीकठाक चली. 2017 में अमित मसूरकर की फिल्म ‘‘न्यूटन’’ में राज कुमार राव ने पंकज त्रिपाठी के साथ अभिनय किया. इस फिल्म में राव ने न्यूटन का शीर्ष किरदार निभाया था. इस में राजकुमार राव एक ईमानदार सरकारी क्लर्क की भूमिका में नजर आए थे,जिसे नक्सल-नियंत्रित शहर में चुनाव ड्यूटी पर भेजा जाता है. 10 करोड़ की लागत में बनी इस फिल्म ने 85 करोड़ कमा कर इतिहास रच दिया. कहा जाता है कि इस फिल्म की सफलता के बाद अचानक राज कुमार राव अहम के शिकार हो गए. उन्होंने पत्रकारों से भी दूरी बना ली. जबकि ‘न्यूटन’ के प्रदर्शन से पहले तक वह हर पत्रकार के संग घुलते मिलते थे.
2017 में वह ओमर्टा’, कृति खरबंदा संग ‘शादी में जरुर आना’ व ऐश्वर्या राय संग ‘फन्ने खां’ जैसी फिल्में की. 2018 में राज कुमार राव ने अमर कौशिक निर्देशित फिल्म ‘‘स्त्री’’ में पंकज त्रिपाठी व श्रृद्धा कपूर के साथ अभिनय किया. 14 करोड़ की लागत में बनी इस फिल्म ने 180 करोड़ कमा कर हंगामा मचा दिया. इस फिल्म की सफलता के बाद राज कुमार राव के अंदर बहुत बड़ा बदलाव आया, जिस ने उन्हें पतन की ओर ले जाना शुरू किया. सच यही है कि राज कुमार राव के कैरियर में अंतिम सफल फिल्म 2018 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘स्त्री’’ ही है. ‘स्त्री’ के बाद वह ‘लव सोनिया’ में नजर आए थे, जिस ने बाक्स आफिस पर पानी तक नहीं मांगा. फिर वह 30 करोड़ की लागत से बनी हिंदी व अंगरेजी भाषा की फिल्म ‘‘5 वेंडिंग्स’ में नरगिस फाखरी के साथ नजर आए, जिस ने बाक्स आफिस पर सिर्फ 20 लाख रूपए ही कमाए.
उस के बाद 2019 में ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’, ‘जजमेंटल है क्या’, ‘शिमला मिर्च’, ‘मेड इन चाइना’, ‘लूडो’, ‘छलांग’, ‘द व्हाइट टाइगर’, ‘रूही’, ‘हम दो हमारे दो’, ‘बधाई दो’, ‘हिट : द फस्ट केस’, ‘मोनिका ओ माय डार्लिंग’, ‘भेड़िया’, ‘भीड़’ सहित कुल 16 फिल्मों में नजर आ चुके हैं और यह सभी 16 फिल्में बाक्स आफिस पर बुरी तरह से असफल रही हैं. इन में से एक भी फिल्म अपनी लागत वसूलने में कामयाब नहीं रही. मगर मगर राज कुमार राव आज भी अपनेआप को भारत का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता मानते हैं. रस्सी जल गई मगर अकड़ नहीं गई.
सफलतम फिल्म ‘‘स्त्री’’ के बाद अब राज कुमार राव की 17वीं फिल्म ‘‘श्रीकांत’’ 10 मई 2024 को प्रदर्शित हुई है. यह फिल्म उद्योगपति श्रीकांत बोला की बायोपिक फिल्म है जो कि बचपन से ही अंधे हैं. एक अच्छे विषय पर बनी इस फिल्म का भविष्य भी आधार में है क्योंकि इस फिल्म की एडवांस बुकिंग लगभग शून्य है, जो कि चिंता का विषय है. माना कि फिल्म के पीआरओ ने मशक्कत कर कुछ पत्रकारों से फिल्म को चार से पांच स्टार दिलवा दिए हैं और फिल्म निर्माण कंपनी टीसीरीज ने भी 10 मई की सुबह लोगों के घर पहुंचे अखबारों में पूरे पेज का विज्ञापन भी छपवा दिया है. मगर निर्माता भूल गए कि फिल्म आलोचक द्वारा दिए गए ‘स्टार’ किसी भी फिल्म की सफलता की गारंटी नहीं है. अगर ऐसा होता, तो ‘मैदान’ और ‘बड़े मियां छोटे मियां’ को उतनी बुरी असफलता न मिलती कि सिनेमाघर मालिकों को सिनेमाघर बंद करने जैसा कदम उठाना पड़ता.
‘मैदान’ और ‘बड़े मियां छोटे मियां’ को भी कई पत्रकारों ने चार से पांच स्टार दिए थे. दूसरी बात दर्शक भी समझ चुका है कि इन पत्रकारों पर यकीन करना गलत है,जिन के नाम विज्ञापन में छपते हैं क्योंकि खुद करण जोहर सहित कई फिल्मी हस्तियां पिछले दिनों खुलेआम कह चुकी हैं कि वह फिल्म आलोचकों को पैसे दे कर उन से मनचाहा ‘स्टार’ दिलवाते हैं फिर उन के नाम के साथ विज्ञापन छपवाते हैं. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वर्तमान समय में बड़े अंगरेजी के अखबारों में पूरे पेज का विज्ञापन छपवाने के लिए 5 लाख रूपए तक देना पड़ता है. अब सवाल यह भी उठ रहा है कि 10 मई की सुबह विज्ञापन पर खर्च की गई रकम क्या फिल्म ‘श्रीकांत’ बाक्स आफिस पर इकट्ठा कर सकेगी?
यदि हम अतीत पर नजर दौड़ाएं तो अतीत में अंधे किरदरों पर जो भी फिल्में आईं उन में से कोई भी फिल्म बाक्स आफिस पर सफलता दर्ज नहीं करा पाईं फिर चाहे नसिरूद्दीन शाह की फिल्म ‘स्पर्श’ हो, जया प्रदा की ‘सरगम’ हो, अक्षय कुमार की ‘आंखें’ हो, अमिताभ बच्चन व रानी मुखर्जी की ‘ब्लैक’ हो या तापसी पन्नू की ‘ब्लर’ हो या सोनम कपूर की फिल्म ‘ब्लाइंड’ ही क्यों न हो.
इतना ही नहीं बाल कलाकार यज्ञ भसीन की एथलिट बनने वाले अंधे बालक की कहानी बयां करने वाली फिल्म ‘‘बिस्वा’’ पिछले 3 वर्ष से भी अधिक समय से सिनेमाघरों में पहुंचने का इंतजार कर रही है, पर उसे वितरक हाथ नही लगा रहे हैं. इस से यह आभास होता है कि शायद दर्शक अंधे किरदरों को परदे पर देखना नहीं चाहता. मगर ‘श्रीकांत’ में अंतर यह है कि यह फिल्म एक जीवित इंसान की बायोपिक फिल्म है, एक ऐसा बचपन से ही दृष्टि बाधित उद्योगपति जिस की इच्छा देश का राष्ट्रपति बनने की है.
विषय अच्छा,फिल्म अच्छीः मगर मनोरंजन शून्य
जहां तक बात फिल्म ‘श्रीकांत’ की है तो इस बायोपिक फिल्म की कहानी 1992 से 2024 तक की है. कहानी का संदेश भी बहुत अच्छा है. श्रीकांत बोला के दृष्टि बाधित किरदार को अभिनेता राजकुमार राव ने बड़ी संजीदगी और आत्मसात कर निभाया है. मगर फिल्म इंटरवल तक तो रोचक होने के साथ ही दर्शकों को बांध कर भी रखती है, पर इंटरवल के बाद फिल्म शिथिल हो गई है. लेखक व निर्देशक की पकड़ से फिल्म का दूसरा भाग बाहर हो गया है. इस के अलावा फिल्म बहुत शुष्क है, मनोरंजन का अभाव है. जबकि दर्शक संदेश के साथ साथ मनोरंजन भी चाहता है.
यह फिल्म ‘इलीट’ क्लास को पंसद आएगी, मगर आम दर्शक इस से दूर रह सकता है. फिल्म के निर्देशक तुशार हिरानंदानी इस से पहले फिल्म ‘सांड़ की आंख’ के अलावा वेब सीरीज ‘स्कैम 2003’ निर्देशित कर चुके हैं, जिन्हें सिर्फ ‘इलीट’ क्लास ने ही पसंद किया था.
आम दर्शक के इस फिल्म से दूर रहने की कई वजहें हैं. पहली वजह फिल्म में मनोरंजन का अभाव है. दूसरी वजह फिल्म का प्रचार ठीक से नहीं हुआ है. फिल्म को ले कर कोई ‘बज’/ चर्चा हीन हीं है. ऐसे में दर्शक कैसे सिनेमाघरों की तरफ जाएगा? दर्शकों को सिनेमाघर के अंदर खींच कर लाने वाले ‘करिश्मा’ का राजकुमार राव में अभाव है. वह तो इन दिनों टीवी स्टार बन कर रह गए हैं. राजकुमार राव ने पता नहीं किस की सलाह पर पिछले दिनों प्लास्टिक सर्जरी करा कर अपना चेहरा भी खराब कर लिया है, उन का नया चेहरा भी दर्शकों को पसंद नहीं आ रहा है. वर्तमान समय में दर्शकों का सिनेमाघरों में जाने से मोहभंग हो चुका है, क्योंकि उसे सिनेमाघर के अंदर अपनी गाढ़ी कमाई की रकम को खर्च करने पर उचित मनोरंजन नहीं मिलता है.
ऐसे में दर्शकों को सिनेमाघर तक खीेच कर लाने की जिम्मेदारी कलाकार पर बढ़ गई है. लेकिन राजकुमार राव ने भी वही गलती की, जो गलती अजय देवगन ने अपनी फिल्म ‘मैदान’ के प्रदर्शन के वक्त की थी. अजय देवगन ने ‘मैदान’ को प्रमोट नहीं किया और एक अच्छी फिल्म, एक अच्छी कहानी लोगों तक नही पहुंच पाई. फिल्म ‘मैदान’ बाक्स आफिस पर बुरी तरह से नाकाम रही. कुछ ऐसी ही गलती अब राजकुमार राव ने भी की है. राज कुमार राव ने फिल्म के अंदर अपने अभिनय से ‘श्रीकांत’ के किरदार को जीवंतता प्रदान की है, लेकिन वह फिल्म के प्रदर्शन से पहले इस फिल्म को सही ढंग से प्रमोट करने से दूर रहे. उन का अहम अब उन्हें पत्रकारों से मिलने नहीं देता? उन्हें लगता है कि सोशल मीडिया की बदौलत वह अपने आप को सुपरस्टार बनाए रखेंगे. जो कि गलत सोच है. हकीकत तो यही है कि सोशल मीडिया ने कलाकारों के स्टारडम को खत्म किया है जिन कलाकारों के सोशल मीडिया पर एक करोड़ फोलोवअर्स हैं, उन की भी फिल्म देखने के लिए भी 25 हजार दर्शक नहीं मिल रहे हैं. इस सच पर हर कलाकार को सोचना चाहिए.
माना कि किसी भी फिल्म की सफलता का कोई तयशुदा नियम नहीं है. हर शुक्रवार को कलाकार की किस्मत भी बदलती है मगर कटु सत्य यह है कि ज्योतिषी या अंक ज्योतिषी के टोटकों से अथवा नाम की स्पेलिंग बदल लेने से भी फिल्म को सफलता नहीं मिलती तो वहीं हर इंसान का अहम भी उसे ले डूबता है. राज कुमार राव को अपनी पिछली 16 फिल्मों के परिणामों पर बैठ कर गौर करना चाहिए कि उन की तरफ से कहां क्या चूक हुई है?
राज कुमार राव को याद रखना चाहिए कि ‘श्रीकांत’ के बाक्स आफिस पर सफलता या असफलता का असर 31 मई को ही प्रदर्शित होने वाली उन की दूसरी फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेस माही’ पर भी पड़ेगा. काश!वह इस फिल्म को सही ढंग से प्रमोट करे, अभी उन के पास वक्त है.