सिनेमा में भले ही बहुत बड़ा बदलाव आ गया हो, मगर बौलीवुड के गैर फिल्मी परिवार से आने वाले लोगों के लिए दरवाजे अभी भी पूरी तरह खुले नहीं हैं. वास्तव में अभी बौलीवुड फैमिली बिजनैस ही बना हुआ है. चंद फिल्मी परिवार ही पूरी तरह से हावी हैं. ऐसे में जालंधर के एक गैर फिल्मी व उच्च शिक्षा हासिल करने वाले वरुण शर्मा का बौलीवुड में आ कर अपनी पहचान बनाना बहुत बड़ी उपलब्धि है. वे अब तक ‘फुकरे’, ‘वार्निंग’, ‘डौली की डोली’, ‘किसकिस को प्यार करूं’ के अलावा शाहरुख खान व काजोल के साथ फिल्म ‘दिलवाले’ में नजर आ चुके हैं. प्रस्तुत हैं, उन से हुई बातचीत के खास अंश :
आप ने अभिनय को ही कैरियर बनाने की बात कब सोची?
बचपन से ही मुझे अभिनेता बनना था. यों तो मूलत: मैं जालंधर से हूं पर मेरी स्कूली शिक्षा कसौली के द लौरेंस स्कूल, सनावर से हुई. स्कूल की पढ़ाई के ही दौरान मेरे पिता का देहांत हो गया था. इसलिए मुझे कसौली छोड़ कर चंडीगढ़ आ कर अपनी मम्मी के साथ रहना पड़ा और फिर मेरी आगे की पढ़ाई चंडीगढ़ में ही हुई.
मुझे याद है, जब मैं छोटा था, तो एक दिन फिल्म ‘बाजीगर’ देखते हुए फिल्म का यह गाना, ‘कालीकाली…’ आते ही उस पर नृत्य करने लगा था. उस वक्त मेरे मातापिता को लगा कि यह बचपना है और यह सब 2-3 माह बाद खत्म हो जाएगा, पर मेरे अंदर नृत्य व अभिनय की दीवानगी बढ़ती ही चली गई. अभिनेता संजय दत्त भी सनावर से ही पढ़े हुए हैं. हमारे स्कूल के स्थापना दिवस पर संजय दत्त मुख्य अतिथि बन कर आए थे.
मैं उन से मिलना चाहता था और उन के सामने अपनी कला को दिखाना चाहता था. इसलिए मैं ने अपने शिक्षक से प्रार्थना कर एक नाटक में छोटा सा किरदार निभाया पर संजय दत्त से कोई बात नहीं हो पाई. मैं उन से बात करने व उन से मिलने के लिए कुछ देर तक उन के पीछेपीछे चलता रहा और मैं ने तय कर लिया कि कुछ भी हो जाए अब तो मुझे यही करना है.
पर जैसा कि मैं ने पहले बताया कि पिता के देहांत की वजह से मुझे 10वीं तक की पढ़ाई पूरी करने से पहले ही जालंधर लौटना पड़ा. उस के बाद मेरी शिक्षा जालंधर और चंडीगढ़ में हुई. मैं ने फिल्म विधा में स्नातक की डिग्री ‘इंडिया थिएटर अकादमी’ चंडीगढ़ से ली. चंडीगढ़ में रहते हुए आशू शर्मा के साथ जुड़ कर थिएटर किया. फिर कुछ विज्ञापन फिल्में करने के कारण एक दिन मुंबई चला आया. अब कुछ फिल्में रिलीज हो चुकी हैं. कलाकार के तौर पर लोग मुझे भी पहचानने लगे हैं.
चंडीगढ़ से मुंबई पहुंचने के आप के अनुभव कैसे रहे?
मैं चंडीगढ़ में इंडियन थिएटर अकादमी से फिल्म मेकिंग में पढ़ाई करने के बाद आगे की ट्रेनिंग लेने और फिल्मों में अभिनय करने के मकसद से मुंबई आया था. यहां मैं ने बतौर सहायक कास्टिंग डायरैक्टर अपने कैरियर की शुरुआत की थी. मैं नंदनी श्रीकांत के साथ भी बतौर सहायक कास्टिंग डायरैक्टर के रूप में काम करते हुए ट्रेनिंग लेता रहा. मैं ने उन्हें साफसाफ बता दिया था कि मेरा मकसद अभिनय करना है पर मैं कुछ समय के लिए आप के साथ जुड़ना चाहता हूं. नंदनी श्रीकांत के साथ काम करते हुए मैं ने ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’, ‘यह जवानी है दीवानी’, ‘एक मैं और एक तू’, मीरा नायर की फिल्म ‘लेफटिस्ट फंडामैंटलिस्ट’ और बंगला फिल्म ‘ताशेर देश’ के लिए मौडलिंग की.
कास्टिंग के दौरान मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. क्योंकि जब एक ही स्क्रिप्ट पर 400 कलाकार अलगअलग ढंग से परफौर्म करते थे, तब कैमरे के पीछे खड़े हो कर उसे रिकौर्ड करते हुए हम बहुत कुछ सीखते थे. जब मुझे पहली फिल्म ‘वार्निंग’ मिली तब मैं ने कास्टिंग का काम करना बंद कर दिया और अभिनय में ही पूरी तरह से डूब गया. ‘वार्निंग’ की शूटिंग खत्म होते ही मैं ने ‘फुकरे’ के लिए औडिशन दिया और मेरा चयन हो गया. ‘फुकरे’ फिल्म रिलीज होने के बाद मेरी जिंदगी बदल गई.
‘फुकरे’ फिल्म रिलीज होने के बाद किस तरह से जिंदगी बदली?
‘फुकरे’ फिल्म रिलीज होने के बाद सभी को मेरा काम इतना पसंद आया कि अब मुझे औडिशन देने की जरूरत नहीं पड़ती. अब निर्देशक मुझे बुलाता है और सीधे कहानी सुनाता है. ‘फुकरे’ के बाद मैं ने अरबाज खान की फिल्म ‘डौली की डोली’ में सोनम कपूर के साथ, अब्बास मस्तान की फिल्म ‘किसकिस को प्यार करूं’ में कपिल शर्मा के साथ और अब रोहित शेट्टी निर्देशित फिल्म ‘दिलवाले’ में शाहरुख खान, काजोल, वरुण धवन, बोमन ईरानी के साथ काम किया है. लोग मेरे काम की तारीफ कर रहे हैं.
आप ने ‘दिलवाले’ फिल्म की. मगर ‘दिलवाले’ में शाहरुख खान, काजोल, वरुण धवन और कृति सैनन हैं. फिल्म के प्रमोशन में भी इन्हें महत्त्व दिया गया. ऐसे में आप को खुद के लिए खतरा महसूस नहीं हुआ?
मेरा ध्यान इस तरफ गया ही नहीं. कैरियर की शुरुआत में ही काजोल और शाहरुख खान जैसे सुपर स्टार कलाकारों के साथ फिल्म का हिस्सा बनने का अवसर मिल रहा था तो इनकार करने का सवाल ही नहीं था. फिर इस में बोमन ईरानी, संजय मिश्रा, वरुण धवन सहित कई दिग्गज व प्रतिभाशाली कलाकार भी हैं.
मेरे दिमाग में सिर्फ एक ही बात थी कि इन बेहतरीन कलाकारों के बीच मुझे भी अपनी प्रतिभा को दिखाने का अवसर मिलेगा. मुझे काफी कुछ सीखने को मिलेगा और दुनिया के सामने मेरी कला भी पहुंच सकेगी. इसलिए मेरे मन में कभी भी दूसरों से खुद के लिए खतरा पैदा होने वाली बात नहीं आई.
आप के अनुसार ‘दिलवाले’ फिल्म क्या है?
‘दिलवाले’ एक मनोरंजक फिल्म है, जिस में रोमांस, ड्रामा, ऐक्शन, इमोशन सब कुछ है. मेरा किरदार सिद्धू का है जो बहुत फन लविंग करैक्टर है. मगर यह किरदार मेरी पहले की फिल्मों के किरदारों से काफी अलग है. पर यह गंभीर किस्म का किरदार नहीं है. यह किरदार भी फनी है, जोकि लोगों को हंसाता है. इस में मेरे साथ एक नई लड़की चेतना पांडे है, जिस के संग मेरी प्रेम कहानी है. फिल्म में सिद्धू की शादी का भी मसला है. मेरी कोशिश तो यही रही है कि मैं लोगों के चेहरे पर मुसकराहट ला सकूं. फिल्म में मेरे तमाम सीन्स शाहरुख खान, काजोल व वरुण धवन के साथ हैं. हम ने पूरे 180 दिन शूटिंग की है.
जब कोई फिल्म 180 या उस से अधिक दिन तक फिल्माई जाती है तो उस के तमाम दृश्यों पर कैंची चलने की उम्मीदें बढ़ जाती हैं. आप को डर नहीं लगा था?
मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं. पर मुझे नहीं लगता कि फिल्म में ऐसा कोई सीन फिल्माया गया, जिसे काटने की जरूरत पड़ेगी. पहले के समय में तो कई साल तक फिल्म फिल्माई जाती थी. मैं बहुत नासमझ हूं. मैं तो अभी बौलीवुड से जुड़ा हूं. बौलीवुड की कार्यप्रणाली को समझने की कोशिश में लगा हुआ हूं. फिलहाल तो मेरे दिमाग में यही बात रहती है कि अपना काम ईमानदारी व अच्छे से करो, तो परिणाम भी अच्छे मिलेंगे.
शाहरुख खान को ले कर क्या कहेंगे?
वे बहुत बेहतरीन इंसान और कलाकार हैं, अभिनय के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा मुकाम हासिल करने के बाद भी वे सैट पर काफी रिहर्सल करते हैं. वे अपने सहकलाकारों की भी हौसलाअफजाई करते हैं. वे सैट पर हर छोटेबड़े कलाकार के साथ घुलमिल जाते हैं. शूटिंग के दौरान वे सैट पर ही ज्यादातर मौजूद रहते हैं. उन के अंदर काम के प्रति जो पैशन है, वह बहुत कम लोगों में नजर आता है. उन्हें काम करते देख मुझे लगा कि मैं बहुत कम मेहनत करता हूं और मुझे कामयाबी पाने के लिए उन की तरह मेहनत करनी होगी.
तो क्या आप सिर्फ कौमेडी करते हुए नजर आएंगे? क्योंकि अब तक आप अपनी हर फिल्म में कौमेडी किरदार ही निभाते आए हैं?
यह सच है कि अब तक मैं अपनी हर फिल्म में कौमेडी करता आया हूं. इस बात को ले कर मुझे तमाम लोगों ने टोका भी है. कुछ लोगों ने कहा कि यदि मैं ने इसी तरह सिर्फ कौमेडी किरदार निभाए, तो एक कौमेडियन की इमेज में बंध कर रह जाऊंगा. मैं ने भी सुना है कि बौलीवुड में कलाकारों को इमेज में बांध कर रख दिया जाता है. पर हकीकत यह है कि जब मैं ने फिल्मों में काम करना शुरू किया था, तो मुझे खुद पता नहीं था कि मैं कौमेडी कर पाऊंगा.
पहले मैं थिएटर किया करता था. थिएटर पर मैं ने ‘अंधा युग’ सहित करीबन 20-25 नाटकों में गंभीर किरदार निभाए हैं. पर मैं ने पहली बार फिल्म ‘फुकरे’ में कौमेडी की थी. यहां तक कि मेरे कैरियर की पहली फिल्म ‘वार्निंग’ भी गंभीर फिल्म थी. पर ‘फुकरे’ में मेरा चूजे का किरदार इतना लोकप्रिय हो गया कि उस के बाद लोगों ने मुझे कौमेडी के लिए ही याद करना शुरू कर दिया. मैं ने सोचा कि जिस चीज को मैं दिल से कर रहा हूं क्यों न उसे आगे बढ़ाया जाए. लेकिन इस का यह मतलब नहीं है कि मैं सिर्फ कौमेडी करना चाहता हूं. मैं गंभीर, इमोशनल नैगेटिव किरदार भी निभाना चाहता हूं.
थिएटर को आप मिस करते हैं या नहीं?
थिएटर को बहुत ज्यादा मिस करता हूं. वास्तव में हमारे जैसे कलाकार मुंबई से दूर थिएटर करते रहते हैं. पर मुंबई पहुंचते ही हमारी प्राथमिकता यह होती है कि हम विज्ञापन फिल्में करते हुए रोजमर्रा के खर्च को निकालें और फिल्मों के लिए कोशिश करें. फिल्मों से जुड़ने के संघर्ष में इतना समय निकल जाता है कि थिएटर हम से दूर हो जाता है. फिल्म मिलने के बाद हम सभी उस में इस कदर व्यस्त हो जाते हैं कि थिएटर को ले कर हम कुछ सोच नहीं पाते हैं. इस की दूसरी वजह यह भी है कि नाटक करने के लिए बहुत समय देना पड़ता है. एक नाटक के लिए लगातार डेढ़ 2 माह का समय रिहर्सल के लिए देना भी चाहिए तभी उस में परफैक्शन आएगा. मगर मुंबई पहुंचने के बाद फिल्मों के चक्कर में कुछ समय के लिए थिएटर छूट जाता है. पर जब हम फिल्मों में काम करने लगते हैं, तो फिर से थिएटर शुरू किया जा सकता है. मैं फिल्मों में व्यस्त हूं. मगर 2 फिल्मों के बीच समय निकाल कर चंडीगढ़ अपने थिएटर गुरु आशू शर्मा से मिलने चला जाता हूं. उन्हीं के माध्यम से मैं नीलम मानसिंह चौधरी व अन्य रंगकर्मियों से मिला था, जिन के साथ चंडीगढ़ में रहते हुए थिएटर किया करता था. बीचबीच में चंडीगढ़ जा कर मैं आशू शर्मा के साथ किसी पुराने नाटक की रिहर्सल करता हूं, जिस से हम अपने अंदर की कला को पौलिश कर पाते हैं अन्यथा एक जैसा काम करने से बोरियत महसूस होने लगती है.
क्या यह माना जाए कि सहायक या कास्टिंग डायरैक्टर के रूप में काम करना फिल्मों में प्रवेश करने का जरिया या यों कहें कि स्टैपिंग स्टोन है?
मैं ऐसा नहीं मानता. मुझे लगता है कि जब कोई इंसान बाहर से मुंबई आता है और फिल्मों से जुड़ना चाहता है, तो उसे किसी न किसी क्षेत्र में बतौर सहायक काम करना चाहिए. क्योंकि मुंबई में पहली जरूरत होती है सुबह उठ कर घर से बाहर निकलने की. यदि आप सुबह उठ कर घर से बाहर नहीं निकलेंगे तो दिन भर घर में रहने की घुटन आप की प्रतिभा को नुकसान पहुंचाती है. बतौर सहायक ऐसी जगह काम करना चाहिए, जहां आप कुछ सीख सकें. जो लोग कास्टिंग डायरैक्टर के रूप में काम कर रहे हैं वे कभी नहीं सोचते कि शायद मेरा खुद का नंबर लग जाएगा. मेरा शुरू से मानना है कि कोई भी कलाकार खुद किसी फिल्म को नहीं चुनता है बल्कि फिल्म खुद कलाकार को चुनती है. जब मैं मुंबई आया तो यदि कास्टिंग में मुझे मौका न मिलता, तो मैं बतौर सहायक निर्देशक या फिल्म विधा के किसी अन्य क्षेत्र में काम करता, क्योंकि मैं घर पर रहने के बजाय सैट पर रहना पसंद करता हूं.
‘दिलवाले’ फिल्म देखने के बाद आप के चंडीगढ़ के दोस्तों की क्या प्रतिक्रिया रही?
देखिए, मेरे परिवार का कोई भी व्यक्ति फिल्मों से नहीं जुड़ा है. बौलीवुड में मैं किसी को नहीं जानता था, इसलिए जब मैं फिल्मों से जुड़ा तो मेरे दोस्तों को भी बड़ा आश्चर्य हुआ था. अब फिल्म ‘दिलवाले’ देखने के बाद उन का उत्साह भी बढ़ गया है. मेरे वे दोस्त जो थिएटर से जुड़े हुए हैं, उन्हें लगता है कि यदि वरुण शर्मा बौलीवुड में अपनी पहचान बना सकता है, उसे सफलता मिल सकती है तो वे भी अवश्य कुछ नया कर सकते हैं. यदि वरुण बड़े कलाकारों के साथ काम कर सकता है, तो वे भी कुछ बड़ा काम कर सकते हैं. मेरी सफलता से मेरे दोस्तों को इस बात का एहसास हो गया कि कुछ भी असंभव नहीं है.
मेरे स्कूल के कुछ दोस्तों ने कहा है कि गैर फिल्मी परिवार का एक लड़का यदि अरबाज खान की फिल्म ‘डौली की डोली’ या शाहरुख व काजोल के साथ ‘दिलवाले’ कर सकता है, तो अब कोई भी कुछ भी कर सकता है. मुझे इस बात का गर्व है कि अब मैं भी लोगों के लिए आत्मविश्वास का कारण बन सकता हूं.
आप अपने पुराने दोस्तों के संपर्क में हैं?
जी हां, मेरी राय में हर इंसान के साथ उस के वे दोस्त जरूर होने चाहिए, जोकि उसे बचपन से जानते हैं क्योंकि ऐसे दोस्तों के बारे में आप सबकुछ जानते हैं. मैं आज भी अपने ऐसे दोस्तों के संपर्क में हूं. हर दिन उन से कम से कम फोन पर तो बात करता हूं. मेरे दोस्त अपनी राय भी मेरे सामने खुल कर रखते हैं.
फिल्म ‘दिलवाले’ देखने के बाद आप की मम्मी की क्या प्रतिक्रिया रही?
वे बहुत खुश हैं. आज मैं जो कुछ भी हूं उन्हीं की वजह से हूं. जब मैं स्कूल में पढ़ाई कर रहा था तभी मेरे पिता का देहांत हो गया था. उसी के बाद मेरी मम्मी ने ही मेरी परवरिश की. मैं तो ऐसी इंडस्ट्री में आया था, जहां कुछ भी निश्चित नहीं होता, पर मुझे सफलता मिली. इस से वे खुश हैं. उन को फिल्म ‘दिलवाले’ बहुत पसंद आई. अब तो वे मेरे साथ मुंबई में ही रहती हैं. मुझे खुशी है कि मैं ने जो सपना देखा था और अपनी मम्मी से जो वादा किया था वह सब पूरा हो रहा है.
फिल्म ‘किसकिस को प्यार करूं’ को देखने वालों की राय है कि इस फिल्म में आप कपिल शर्मा पर हावी रहे हैं?
मैं ऐसा नहीं मानता मगर यदि किसी को ऐसा लगा तो यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है. सब से बड़ा सच तो यह है कि कपिल शर्मा भारत के सब से बड़े हंसाने वाले कलाकार हैं. बेहतरीन स्टैंडअप कौमेडियन हैं. वे नंबर वन ऐंकर हैं. कौमेडी का नाम आते ही सब से पहला नाम कपिल शर्मा का आता है. उन के साथ मेरी तुलना होना ही बहुत बड़ी बात है. मुझे फायदा यह हुआ कि कपिल शर्मा की जो लोकप्रियता है, उस की वजह से मैं भी लोगों के घरों तक पहुंच पाया. जिन लोगों ने मेरी ‘फुकरे’ या ‘डौली की डोली’ फिल्में नहीं देखी थीं, उन्होंने भी कपिल शर्मा की वजह से फिल्म ‘किसकिस को प्यार करूं’ में मुझे देखा और पसंद भी किया.
यानी आप भी लोगों को हंसाने में कामयाब रहे?
मैं तो एक चीज मानता हूं कि यदि हम लोगों को हंसा सकते हैं तो यह बहुत बड़ी बात है. मुझे याद है कि जब ‘किसकिस को प्यार करूं’ फिल्म की रिलीज के कुछ दिन बाद मैं ने अपना ट्विटर अकाउंट देखा तो उस में एक इंसान ने लिखा था कि उन की मां बीमार है. वे अकसर अपसैट रहती हैं और अपनी मां का दिल बहलाने के लिए घर से बाहर नहीं ले जा पाते. उन्होंने अपनी मां को लैपटौप पर फिल्म ‘किसकिस को प्यार करूं’ दिखाई. फिल्म देख कर उन की मां बहुत खुश हुईं. इस के लिए उन्होंने मेरा शुक्रिया अदा किया था.
आप को नहीं लगता कि बौलीवुड में मिथ है कि एक सफल स्टैंडअप कौमेडियन सफल कलाकार नहीं बन सकता?
देखिए, स्टैंडअप कौमेडी में कलाकार का अपना आत्मविश्वास बहुत माने रखता है. कपिल शर्मा सफल कलाकार हैं. वे बहुत मेहनत करते हैं और उन की कौमिक टाइमिंग भी बहुत अच्छी है.
सिनेमा में आ रहे बदलाव को आप किस तरह से देखते हैं?
हकीकत यह है कि अब सिनेमा का दर्शक बहुत बदल चुका है और दर्शकों की बदली हुई रुचि ने सिनेमा को बदलने पर मजबूर किया है. पहले छोटे बजट की फिल्मों के दर्शक नहीं हुआ करते थे पर अब ऐसा नहीं रहा. अब तो नए कलाकारों से सजी अच्छे कंटैंट वाली छोटे बजट की फिल्म को भी दर्शक बहुत पसंद कर रहे हैं.
अब दर्शक हर तरह की फिल्म देखना चाहते हैं. दर्शकों की रुचि में आए बदलाव की वजह से हमारे जैसे प्रतिभाशाली नए कलाकारों को काम करने का अच्छा अवसर मिल रहा है. अब उस तरह की फिल्में बन रही हैं, जिन में हमें अपने अंदर की प्रतिभा को विकसित करने का अवसर मिल रहा है.
इस के अलावा क्या कर रहे हैं?
बहुत जल्द अभिषेक डोगरा की फिल्म ‘तफरी’ की शूटिंग शुरू करने वाला हूं.
आप खुद पंजाबी हैं मगर पंजाबी फिल्में नहीं कर रहे हैं?
मैं खुद पंजाब से हूं. पंजाबी अच्छी लगती है. मैं पंजाबी और हिंदी फिल्में देखते हुए ही बड़ा हुआ हूं इसलिए मैं ने पंजाबी फिल्म ‘यारां द कैचअप’ की. वैसे भी पंजाबी सिनेमा तेजी से ग्रो कर रहा है और काफी अच्छी फिल्में बन रही हैं. मैं सोचता हूं कि साल दो साल में कम से कम एक पंजाबी फिल्म भी अवश्य करूं. मैं खुद को हमेशा पंजाबी भाषा के लोगों के साथ जोड़ कर रखना चाहता हूं. 2015 का वर्ष तो फिल्म ‘किसकिस को प्यार करूं’ और ‘दिलवाले’ में काम करते निकल गया. इसलिए पंजाबी फिल्म नहीं कर पाया जबकि मेरे पास 2 फिल्मों के औफर थे. मगर 2016 में पंजाबी फिल्में करने का मन है.