लंबे अरसे से फिल्मों में सक्रिय अभिनेता अनुपम खेर जिस तरह से आज भी अपने विविध अभिनय के रंग बिखेर रहे हैं, वह काबिलेतारीफ है. बौलीवुड से हौलीवुड तक की अपनी फिल्मी यात्रा पर उन्होंने शांतिस्वरूप त्रिपाठी से बातचीत की. पेश हैं अंश :

महेश भट्ट निर्देशित फिल्म ‘सारांश’ में वृद्ध इंसान का किरदार निभाने से ले कर डेविड ओ रसल निर्देशित अमेरिकन फिल्म ‘सिल्वर लाइनिंग प्लेबुक’ में रौबर्ट डी नीरो जैसे अभिनेता के साथ काम कर अनुपम खेर ने हर किसी को कई बार आश्चर्यचकित किया है. इन दिनों वे कई बड़ी फिल्मों में काम कर रहे हैं.

अब तक की अपनी अभिनय यात्रा को किस तरह देखते हैं?

अभी तक की मेरी अभिनय यात्रा काफी खूबसूरत व शानदार रही. ‘सिल्वर लाइनिंग प्लेबुक’ में अभिनय करने के मेरे अनुभव उसी तरह के रहे जैसे कि मेरी पहली फिल्म ‘सारांश’ के वक्त थे. मैं तो हर फिल्म के सैट पर खुद को नवोदित अभिनेता ही मानता हूं.

जब मैं फिल्मों में अभिनय करने के मकसद से मुंबई पहुंचा था उस वक्त मेरे सिर के बाल झड़ रहे थे और लोग कह रहे थे कि बौलीवुड में काम मिलना मुश्किल है. मगर ‘सारांश’ में बूढ़े का किरदार निभाया और अब तक ‘स्पैशल 26’ सहित 475 फिल्में कर चुका हूं.

लेकिन ‘सिल्वर लाइनिंग प्लेबुक’ के लिए आप को अवार्ड नहीं मिल पाया?

‘स्क्रीन ऐक्टर्स गिल्ड अवार्ड’ के लिए नौमिनेट होना ही बहुत बड़ी उपलब्धि होती है. हमारी फिल्म ‘सिल्वर लाइनिंग प्लेबुक’ की अभिनेत्री जेनिफर लारेंस को अवार्ड से नवाजा गया. मुझे इस अवार्ड समारोह की वजह से एक बार फिर मंच पर रौबर्ट डी नीरो के साथ खड़े होने का मौका मिला. मुझे गर्व है कि मैं इस फिल्म का हिस्सा रहा.

आप ने इस फिल्म में क्या सोच कर काम करना स्वीकार किया?

रौबर्ट डी नीरो मेरे लिए अभिनय के स्रोत हैं. इस फिल्म की वजह से मुझे रौबर्ट डी नीरो जैसे कलाकार से मिलने का मौका मिला. कम लोगों को यह मौका मिल पाता है.

सुना है इस फिल्म का औडिशन टेप एक होटल के रूम सर्वेंट ने रिकौर्ड किया था?

मैं अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फैस्टिवल के सिलसिले में टोरैंटो में था. फिल्म के निर्देशक डेविड ने स्कायपे पर औडिशन रिकौर्ड किया था, पर तकनीकी गड़बड़ी के कारण औडिशन रिकौर्ड नहीं हुआ था. तब उन्होंने कहा कि मैं अपना औडिशन रिकौर्ड कर के उन्हें ईमेल कर दूं. उस वक्त मैं अपने होटल के रूम में बैठा चाय का इंतजार कर रहा था. चाय देने रूम सर्वेंट आया. वह बंगलादेशी था और मेरा बहुत बड़ा फैन था. उस ने मुझ से पूछा कि दादा, क्या हुआ? मैं ने उसे सारी कहानी सुनाई. उस ने बताया कि उस के पास ‘आईफोन’ है. वह मेरा औडिशन रिकौर्ड कर सकता है. उस के बाद मेरे ऐक्शन व कट कहने पर उस ने औडिशन रिकौर्ड किया. फिर 3 घंटे के अंदर उस ने उस की क्लिप मुझे भेज दी और मैं ने फिल्म के निर्माता डेविड ओ रसल को ईमेल कर दिया.

इस फिल्म से आप ने क्या पाया?

मुझे इतने बेहतरीन लोगों को जानने का मौका मिला. एक कलाकार व इंसान के रूप में मेरी प्रतिभा में विस्तार हुआ. मुझे बहुतकुछ सीखने को मिला. इस फिल्म में काम करने को ले कर मैं कई वर्षों तक बात कर सकता हूं. इस फिल्म ने मुझे अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों तक पहुंचाने का काम किया है.

बौलीवुड और हौलीवुड की फिल्मों में काम करने में क्या फर्क महसूस किया?

हौलीवुड में काम करने का कल्चर बहुत अलग है. वहां कलाकार फिल्मों के प्रति समर्पित रहता है. फिल्म की शूटिंग के दौरान कलाकार का सीन न होने पर भी कलाकार सैट पर मौजूद रहता है. दूसरी बात, जब आप हौलीवुड फिल्म के लिए काम करते हैं तो आप को अंदर से एहसास होता है कि आप अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. मेरे दिमाग में हमेशा यह बात चलती रहती थी कि इस फिल्म में रौबर्ट डी नीरो, ब्रैडली कूपर, जेनिफर लारेंस के अलावा एक भारतीय है.

पिछले दिनों इरफान खान ने कहा कि हौलीवुड फिल्मों में सिर्फ उन की ज्यादा डिमांड है. आप क्या कहेंगे?

यदि उन्हें ऐसा लग रहा है तो अच्छी बात है. पर उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि उन की फिल्म ‘लाइफ औफ पाई’ के सूरज शर्मा से बड़ा स्टार तो कोई हो ही नहीं सकता. जबकि फिल्म ‘लाइफ औफ पाई’ सूरज शर्मा के कैरियर की पहली फिल्म है. आज की तारीख में महज एक फिल्म की वजह से इरफान के मुकाबले सूरज शर्मा कहीं ज्यादा शोहरत बटोर रहा है. इसलिए मुझे लगता है कि कलाकारों के बीच इस तरह की होड़ नहीं होनी चाहिए.

भारतीय सिनेमा अभी भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान पाने का संघर्ष कर रहा है?

हमें बदलाव की जरूरत है. जरूरत इस बात की है कि हमें मौडर्न तरीके से हिंदुस्तानी कहानी को पेश करना पड़ेगा. जब तक हम भारत की जमीन से जुड़ी अपनी कहानियों को मौडर्न तरीके से फिल्मों में पेश नहीं करेंगे तब तक कोई भी विदेशी हमें या हमारी फिल्मों को गंभीरता से नहीं लेगा. फिल्मों के कंटैंट में बदलाव जरूरी है.

आप को नहीं लगता कि अन्ना और अरविंद केजरीवाल के आंदोलन के बिखराव से मामला गड़बड़ हो गया?

ऐसा नहीं है. वास्तव में मीडिया का अपना टीआरपी का जो खेल है उस के चलते कोई भी मुद्दा लंबे समय तक जीवित नहीं रह पाता. अन्ना या केजरीवाल के आंदोलन को छोड़ दीजिए, दिल्ली में चलती बस के अंदर लड़की के साथ हुए गैंगरेप की बात भी लोग अब भूल चुके हैं.

लगता है अब आप ने फिल्मों के चयन करने का तरीका बदल दिया है?

मैं ने हमेशा छोटी फिल्मों को भी करने की कोशिश की. मैं आज भी वही कलाकार और वही इंसान हूं जो ‘सारांश’ में अभिनय करने से पहले था. यदि किरदार पसंद होता है तो मैं फिल्म कर लेता हूं.

कभी भी आप को लगा कि आप ने महत्त्वहीन फिल्म में काम किया?

मैं इस मुगालते में नहीं जीता कि मैं सिनेमा को बदलने की ताकत रखता हूं. यदि मेरा कोई दोस्त फिल्म बना रहा है, वह मेरे पास किसी किरदार को ले कर आएगा तो मैं उस दोस्त के लिए उस फिल्म में काम जरूर करूंगा. मैं खुशी के लिए काम करता हूं. यदि महेश भट्ट जैसे निर्देशक की फिल्म में मेरे 2 सीन हों तो भी मैं उन के साथ काम करूंगा.     

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