रेटिंग: ढाई स्टार
धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर पर पिछले बीस वर्षों से लोगों ने बात करना बंद कर दिया था. फिल्मकारों ने भी कश्मीर की खूबसूरती को अपनी फिल्मों में पेश करने से दूरी बना ली थी. लेकिन अब कुछ फिल्मकार कश्मीर को लेकर गंभीर व संजीदा हुए हैं. जिसके चलते ‘‘हामिद’’जैसी फिल्में बनी हैं और इन फिल्मों ने लोगों को कश्मीर के प्रति सोचने पर मजबूर किया है. अब खुद को चैथाई कश्मीरी मानने वाले फिल्मकार अश्विन कुमार ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ लेकर आए हैं. फिल्म की कहानी कश्मीर घाटी में गायब या आर्मी द्वारा उठाए गए लोगों की तलाश के बहाने कश्मीर की जटिलता के साथ ही मानवीय रिश्तों व उनकी मजबूरियों का चित्रण किया है. अश्विन कुमार का दावा है कि उन्होंने कश्मीर के गांव जाकर काफी शोघकार्य किया है और उस दूसरे पक्ष को दिखाने का प्रयास किया है जिसे अमूमन नहीं दिखाया जाता.
माना कि फिल्म में मासूमियत, अपराध बोध, मानवता, उम्मीद, लालसा, धोखाधड़ी, गंदी राजनीति, ब्यूरोके्रट्स के साथ ही कश्मीर की वास्तवकिता का चित्रण है. मगर अश्विन कुमार की अपनी एकपक्षीय सोच के चलते यह फिल्म प्रोपेागंडा/प्रचारात्मक फिल्म ही बनकर रह जाती है. फिल्म कई सवालों पर चुप रहती है. फिल्मकार अश्विन कुमार राजनैतिक रूप से अति संवेदनशील विषय को सही परिपेक्ष्य में पेश नहीं कर पाए.
जबकि फिल्म की शुरूआत में ही दर्शकों को बताया जाता है कि यह फिल्म भारत व पाक के बीच होते आ रहे सैकड़ों गुप्त युद्ध की सत्य कथा पर आधारित है. मगर फिल्म के कई दृश्य नजर आते हैं.