'ओ माय गौड - 2' की एक आम मध्यमवर्गीय परिवार के किशोर विवेक ( आरुष शर्मा ) की है जो हस्तमैथुन को ले कर कुछ गलतफहमियों और तनाव का शिकार हो कर नीमहकीमों के चक्कर में पड़ जाता है . स्कूल के टौयलेट में जब वह हस्तमैथुन कर रहा होता है तो कुछ दोस्त उस का वीडियो बना कर वायरल कर देते हैं . स्कूल में उस की खिल्ली उड़ती है और घबराया विवेक आत्महत्या करने की कोशिश करता है.

विवेक के पिता कांति शरण मुदगल ( पंकज त्रिपाठी ) ऐसे में समझ से काम लेते हैं .यह समझ भी मानवीय न हो कर दैवीय होती है. हालांकि इस से फिल्म का इतना ही लेनादेना है कि यह शायद निर्देशक अमित राय की मजबूरी हो गई थी कि उन्हें शंकर के दूत के रूप में अक्षय कुमार को दिखाना पड़ा.

बेटे और परिवार को शर्मिंदगी से बचाने के लिए कांति शरण अदालत की शरण लेता है . फिल्म मनोरंजक ढंग से चलती रहती है और यह साबित हो जाता है कि मास्टरवेशन कोई पाप या गलती नहीं है बल्कि टीनएज की जरूरत है जिस के बारे में स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए. सैक्स की अहमियत को दिखाने के लिए कामसूत्र और पंचतंत्र जैसे ग्रन्थों का भी हवाला फिल्म में दिया गया है .

मास्टरवेशन जरूरी है

'ओ माय गौड ' की दूसरी खूबी यह है कि यह आज के लड़कों की कहानी है . हस्तमैथुन हालांकि हर दौर के किशोर करते रहे हैं लेकिन इसे ले कर डर यह बैठाल दिया गया है कि यह पाप है या फिर इस से कमजोरी आती है जिस के चलते युवा पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाते , खुद भी सैक्स का लुत्फ नहीं उठा पाते और इस से पेनिस का साइज छोटा हो जाता है वगैरहवगैरह . उलट इस के चिकित्सक और मनोवैज्ञानिक हस्तमैथुन को एक जरूरी सैक्स क्रिया मानने लगे हैं जिस से कोई नुकसान नहीं होता. यह सत्य भी है कि हस्तमैथुन अच्छे स्वास्थ की ही निशानी है.

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