चुनावी माहौल में आई यह फिल्म राजनीति पर है. अब तक प्रदर्शित राजनीतिक फिल्मों में सिर्फ राजनीति में भ्रष्टाचार की ही बातें की जाती थीं लेकिन यह फिल्म कुछ अलग सी है. निर्देशक ने देश की बागडोर युवाओं के हाथों में दे कर अप्रत्यक्ष रूप से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की बात कही है. फिल्म देख कर साफ लगता है कि निर्देशक एक पार्टी विशेष का प्रचार कर रहा है.
‘यंगिस्तान’ का युवा नायक इस फिल्म के निर्माता का पुत्र जैकी भगनानी है. फिल्म में उस का लुक राहुल गांधी जैसा रखा गया है. अब तक उस की कई फिल्में प्रदर्शित हो चुकी हैं, मगर सभी फ्लौप रही हैं. लेकिन इस फिल्म से उस ने कुछ उम्मीदें जगाई हैं.
 
फिल्म में निर्देशक ने सियासत को बदलने की बात कही है. दूसरी तरफ वह राहुल गांधी सरीखे किरदार, जिसे राजनीति की एबीसीडी भी नहीं आती, प्रोटोकोल क्या होता है, पता नहीं, और जो अपने औफिस में नौकरशाहों के सामने ही अपनी प्रेमिका से रोमांस करता है, को प्रधानमंत्री बनाना चाह रहा है. इस से सियासत कैसे बदलेगी, यह तो वही जाने.
यह फिल्म राजनीति की बातें सतही तौर पर ही करती है. प्रधानमंत्री में जो गंभीरता होनी चाहिए वह इस फिल्म में दिखाए गए प्रधानमंत्री के किरदार में बिलकुल नजर नहीं आती. 
फिल्म की कहानी जापान में गेम डैवलपर के रूप में कार्यरत भारत के प्रधानमंत्री दशरथ कौल (बोमन ईरानी) के बेटे अभिमन्यु कौल (जैकी भगनानी) की है व अन्विता चौहान (नेहा शर्मा) उस की गर्लफ्रैंड है. दोनों लिव इन रिलेशन में रहते हैं. भारत के प्रधानमंत्री की कैंसर से मृत्यु हो जाने पर अभिमन्यु अपनी गर्लफ्रैंड के साथ भारत लौटता है. यहां पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेता अभिमन्यु को सर्वसम्मति से पीएम बना देते हैं, ठीक उसी तरह जैसे इंदिरा गांधी को नौमिनेट किया गया था. अभिमन्यु की मदद के लिए वरिष्ठ नौकरशाह अकबर (फारूख शेख) हर वक्त उस के साथ रहता है, ठीक वैसे ही जैसे इंदिरा गांधी के साथ हर वक्त उन का सचिव पी एन हक्सर रहता था.
अभिमन्यु पीएम का पद संभालता है. लेकिन शीघ्र ही उस की प्रेमिका अन्विता के साथ रोमांस करते फोटोग्राफ्स फेसबुक पर अपलोड कर दिए जाते हैं. मीडिया में शोर मचता है. इधर अन्विता प्रैगनैंट हो जाती है तो पीएम के लिए मुिश्कलें बढ़ जाती हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की नजर में अब यह गुड बौय बैड बौय बन जाता है.
चुनावों में 3 महीने का समय है. अचानक अभिमन्यु प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे कर संसद भंग करने की सिफारिश करता है. आखिरकार चुनाव होते हैं और उस की पार्टी बहुमत हासिल करती है और वह फिर से प्रधानमंत्री चुना जाता है यानी यंगिस्तान का यंग पीएम.
जिस तरह सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बना कर उन्हें चुप करा दिया उसी तरह इस फिल्म में भी एक बंगाली किरदार है, जो पार्टी हाईकमान है. पीएम उसे राष्ट्रपति बना कर चुप करा देता है. पीएम दक्षिण भारत के वित्तमंत्री को भी किनारे लगा देता है तथा रक्षामंत्री द्वारा रक्षा सौदों में ली गई दलाली की जांच सीबीआई से कराने का आदेश भी देता है.
फिल्म की यह कहानी एकदम सपाट है. कहानी को जैकी भगनानी पर ज्यादा फोकस किया गया है. अच्छा होता निर्देशक अन्य किरदारों को भी कुछ ज्यादा फुटेज देता. प्रधानमंत्री के अपनी गर्लफ्रैंड के साथ प्रेमप्रसंग के सीन कुछ ज्यादा हो गए हैं. 
फिल्म का निर्देशन कुछ अच्छा है. गति धीमी है. जैकी भगनानी ने अच्छा काम किया है. फारूख शेख ने दर्शकों को आकर्षित किया है. नेहा शर्मा भी ठीकठाक है.
फिल्म का गीतसंगीत साधारण है. कोई गीत याद नहीं रह पाता. अधिकांश शूटिंग नई दिल्ली में की गई है. छायांकन अच्छा है.

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