‘‘माता पिता की बद्दुआ का उनके बच्चों पर असर होता है...’’ की बात करने वाली यह एक शापित व दुःखद प्रेम कथा है. उपरी दृष्टिकोण से फिल्म के कथानक मे कोई नवीनता नहीं है. ‘सनम तेरी कसम’ देखते समय बीच बीच में दर्शकों को टीवी सीरियल ‘जस्सी जैसी कोई नहीं’ के अलावा ‘कट्टी बट्टी’ या ‘अॅंखियों के झरोखे से’ जैसी कुछ फिल्मों की याद आ सकती है. मगर फिल्म के लेखक व निर्देशकद्वय राधिका राव व विनय सप्रू का कहानी को बयां करने का अंदाज नया है.

कहानी में कई मोड़ ऐेसे हैं, जो कि नयापन का अहसास कराने के साथ साथ फिल्म के साथ दर्शकों को जोड़कर रखते हैं. इसी के साथ फिल्म भावनात्मक है. कई सीन दर्शकों को रूलाते है, तो हंसाते भी हैं. लेकिन पिता द्वारा अपनी जीवित बेटी का श्राद्धकर्म करने की बात गले नहीं उतरती. यह अविश्वसनीय और आज के आधुनिक युग में इस तरह की चीजों को बढ़ावा देना भी गलत ही कहा जाएगा.

इतना ही नहीं ‘‘जब इंसान किसी चीज को बहुत दिल से चाहता है,फिर चाहे वह सुख हो या दुःख वह जरूर पूरा हो जाता है.’’ इस मूल संदेश को पहुंचाने की मंशा से बनी फिल्म ‘‘सनम तेरी कसम’’ इस संदेश को दर्शकों तक पहुंचाने में कामयाब रहती है.

फिल्म की कहानी इंदर परिहार (हर्षवर्धन राणे) और सरस्वती पार्थसारथी उर्फ सरू (मावरा होकाने) के इर्द गिर्द घूमती है.इंदर और सरू दोनो मुंबई की एक ही इमारत में रहते हैं. इंदर आठ साल जेल में बिताने के बाद इस इमारत में रहने आया है. इंदर से अति मार्डन लड़की प्यार करती है और रोज उससे मिलने आती है. दोनों का रोमांस खुलेआम चलता रहता है. जिससे सरू का पिता जयराम पार्थसारथी (मनीष चैधरी) काफी नाराज रहते हैं. उधर सरू एक दक्षिण भारतीय ब्राम्हण परिवार से है. उसकी छोटी बहन कावेरी की शादी संजय नामक युवक से तय हो चुकी है. मगर सरू का देसीपन लुक होने की वजह से दस लड़के उसके साथ शादी करने से इंकार कर चुके हैं. सरू के पिता उसके लिए दक्षिण ब्राम्हण के साथ साथ आईआईटी आईआईएम में पढ़े लड़के की तलाश कर रहे हैं. इधर दो दिन के लिए सरू के माता पिता मुंबई से बाहर जाते हैं, तभी संजय, कावेरी को धमकी देता है कि एक माह के अंदर यदि उसने उसके साथ शादी नहीं की, तो वह उसे छोड़ देगा. इससे कावेरी दुखी होती है. बहन के दुःख को दूर करने के लिए सरू अपना मेकओवर कराने का निर्णय लेती है.

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