बचपन से भूत प्रेत की कहानियां सुनते सुनते कुछ लोग भूत प्रेत में यकीन करना शुरू कर देते हैं. कुछ लोग इसे सुपर नेच्युरल पावर मानने लगते हैं. तो वहीं कुछ लोग दूसरो की इस यकीन का गलत फायदा उठाने का प्रयास करते हैं. यह कहानी भी ऐसे ही एक मिथ व सच की बात करती है. मगर लोगों के मन में बसे भूत प्रेत के डर का दूसरे किस तरह अपने स्वार्थ के लिए फायदा उठाते हैं, यह संदेश फिल्म में उभरकर नहीं आता.
आत्मा, भूत प्रेत आदि से युक्त हारर व रहस्यप्रधान फिल्म ‘एक तेरा सात’ कहीं से न डराती है और न ही प्रेम कहानी का अहसास कराती है..
फिल्म की कहानी राजस्थान में जोधपुर के एक राजपरिवार के इर्दगिर्द घूमती है. राजे रजवाड़े तो रहे नहीं, मगर जो पहले राजा हुआ करते थे, वह अब राजनेता बन गए हैं. ऐसे ही एक राजनेता सिंह (विश्वजीत प्रधान) हैं. उनकी अपनी संतान नही है. उन्होंने अपने भतीजे को गोद लेकर अपने बेटे कुंअर आदित्य प्रताप सिंह (शरद मल्होत्रा)के रूप में पाला है.
फिल्म शुरू होती है कुंअर आदित्य प्रताप सिंह के राज महल दरबार हाल से. उनके फूफा इसे आलीशान होटल में बदलना चाहते हैं, मगर वह ऐसा नहीं चाहता. कुंअर आदित्य प्रताप ने दरबार हाल में एक ऐसा माहौल बना रखा है, जिससे सभी को लगता है कि यहां पर भूत प्रेत बसते हैं. एक पर्यटक आता है और वह रात में मारा जाता है. उसकी जांच के लिए एक राजपूत पुलिस इंस्पेक्टर सूर्यकांत सिंह (दीप राजा राणा) आता है. पुलिस इंस्पेक्टर सूर्यकांत सिंह उसी दिन से कुंअर आदित्य का पीछा करना शुरू करता है.
कहानी धीरे धीरे खुलती है. कुंअर आदित्य प्रताप सिंह जब शिमला में पढ़ रहे होते हैं, तो वह एक दिन एक खूबसूरत लड़की कस्तूरी (रितु ददलानी) की जान बचाते हैं और वह उन्हे अपना दिल दे बैठती है. आदित्य व कस्तूरी वहीं मंदिर में शादी कर लेते हैं. जब वह वापस जोधपुर पहुंचते हैं तो एक दिन कुंअर आदित्य प्रताप की फैक्टरी में आग लग जाती है, जिसमें एक अनाथ लड़की मर जाती है, पर पहले आदित्य को लगता है कि कस्तूरी जलकर मर गयी. जबकि कस्तूरी जिंदा होती है. कस्तूरी के मरने की खबर आग की तरह फैलती है. तब इंश्योरेंस कंपनी के मैनेजर आदित्य को फोनकर दुःख प्रकट करते हुए कहते हैं कि यदि उनकी पत्नी कस्तूरी इस अग्निकांड में नही मरी होती, तो यह केस सही न माना जाता. लोग कहते कि आपने इश्योंरेंस से बीस करोड़ रूपए वसूलने के लिए खुद ही फैक्टरी में आग लगा दी. यह फोन आने के बाद आदित्य व कस्तूरी निर्णय लेते हैं. कस्तूरी दिल्ली अपने माता पिता के पास चली जाती है.
इधर आदित्य दरबार हाल में कस्तूरी की तस्वीर लगा कर भूत प्रेत के वास का हल्ला मचा देता है. आदित्य को बीस करोड़ रूपये का इंतजार है. इस बीच आदित्य की अमरीका में रहने वाली दोस्त सोनाली (मेलानी नजरथ) आती है. वह सोनाली को भी परेशान करना शुरू करता है. सोनाली उसका पीछा नही छोड़ती, तो वह उससे कहता है कि वह दिल्ली चलकर रहे. वह अमावस्या को पंडित की सलाह पर एक हवन करके कस्तूरी की आत्मा को शांति दिलाकर उसके पास आएगा. हवन करने के बाद आदित्य व सोनाली एक साथ दिल्ली में रहना शुरू करते हैं, जहां उसे एक दिन निकिता (रितु ददलानी) मिलती है, आदित्य उसे कस्तूरी कहता है, धीरे धीरे आदित्य, सोनाली को यकीन दिला देता है कि आदित्य कस्तूरी के प्यार में पागल है और वह उसे छोड़कर अमरीका वापस लौट जाती है.
जब वह इंश्योंरेस कंपनी में मैनेजर बनकर भारत आती है, तो बिना किसी जांच के वह आदित्य को बीस करोड़ रूपए देकर अपनी दोस्ती निभाती है. इंश्योंरेंस से बीस करोड़ रूपए मिलते ही कुंअर आदित्य, निकिता का अपहरण का नाटक कर दरबार हाल पहुंच जाता है. जहां आदित्य के नौकर उसका कस्तूरी महारानी के रूप में स्वागत करते हैं. वहां पर पुलिस इंस्पेक्टर सूर्यकांत सिंह आकर कहता है कि उसे सच पता है. और वह उसे गिरफ्तार करने आया है. पर गिरफ्तारी से बचने के लिए आदित्य, इंस्पेक्टर के घर पर पांच करोड़ रूपए पहुंचाने के लिए राजी हो जाता है. उसके बाद राज खुलता है कि इंस्पेक्टर तो मर चुका है. इंस्पेक्टर अपनी पत्नी व बच्चों को भूख से मरते नही देख सकता था, इसलिए वह उन्हे पैसा दिलाना चाहता था. इंस्पक्टर की आत्मा का संकेत पाकर आदित्य अपने फूफा की हत्या कर देता है.
फिल्म के लेखक व निर्देशक अरशद सिद्दिकी का पहला प्रयास समझकर उनकी गलतियों को भले ही नजरंदाज कर दे, अन्यथा यह अपरिपक्व पटकथा व अपरिपक्व निर्देशक की फिल्म है. कुछ दृश्य काफी अच्छे बन पड़े हैं. फिल्म का इंटरवल से पहले का हिस्सा काफी धीमी गति से आगे बढ़ता है. इंटरवल के बाद कई घटनाक्रम घटित होते हैं और सच सामने आता है. फिल्म में प्रेम कहानी उभर नहीं पाती. पटकथा में तमाम कमियां हैं. संवाद भी आकर्षित नहीं करते. फिल्म का संगीत तो बहुत ही बेकार है. मगर फिल्म दर्शकों को बांधकर नहीं रखती. कई दृश्यों में हंसी आती है.
जहां तक अभिनय का सवाल है, तो शरद मल्होत्रा ने काफी निराश किया. जबकि इस किरदार में उनके लिए अभिनय प्रतिभा को दिखाने के काफी मौके थे, पर हो सकता है कि पटकथा लेखक की गलती व उनके चरित्र चित्रण की कमियों ने उन्हे बांध दिया हो. दीपराजा राणा हर फिल्म में एक जैसी ही चाल ढाल में नजर आते हैं. रितु ददलानी, खूबसूरत जरुर लगी मगर बहुत उम्मीदें नहीं बंधाती हैं.
वी नजरथ, प्रदीप के शर्मा और आइफा स्टूडियो निर्मित फिल्म ‘‘1:13:7’’के लेखक व निर्देशक अरशद सिद्दिकी, संवाद लेखक बाबी खान, संगीतकार सुनील सिंह, लियाकत अजमेरी व अली पिकू तथा कलाकार हैं – शरद मल्होत्रा, रितु ददलानी, मेलानी नजरथ, विश्वजीत प्रधान, दीपराज राणा व अन्य.