यह पौर्न फिल्म ‘क्या कूल हैं हम’ की सीक्वल है. पिछली दोनों फिल्मों की तरह ही इस फिल्म में द्विअर्थी संवादों व फूहड़पन की भरमार है. फिल्म को बनाने वालों में किसी जमाने में मशहूर ऐक्टर रह चुके जितेंद्र की पत्नी शोभा कपूर और उन की बेटी एकता कपूर भी शामिल है. इस फिल्म ने अश्लीलता की सारी हदें तोड़ दी हैं. फिल्म का टाइटल भले ही ‘क्या कूल हैं हम’ हो परंतु यह फिल्म ‘क्या हौट हैं हम’ लगती है.
फिल्म की कहानी कन्हैया (तुषार कपूर) और उस के दोस्त रौकी (आफताब शिवदासानी) की है. कन्हैया की हरकतों से तंग आ कर उस का पिता (शक्ति कपूर) उसे घर से निकाल देता है. वह रौकी के साथ मिल कर अपने दोस्त मिकी (कृष्णा) के पास पताया चला जाता है. वहां कृष्णा पौर्न फिल्में बनाता है. एक दिन कन्हैया की नजर शालू (मंदना करीमी) पर पड़ती है, जिसे देखते ही उसे उस से प्यार हो जाता है. शालू अपने पिता (दर्शन जरीवाला) के साथ कन्हैया के घर आना चाहती है. कन्हैया रौकी को बाप बनने को कहता है परंतु मिकी कन्हैया का बाप बन कर उस के घर पहुंचता है. फिर वहां ऐसा घालमेल मचता है कि कन्हैया के 3-3 बाप होते हैं. असली बाप भी पहुंच जाता है. अंत में सारे किरदार समुद्र की रेत में धंस जाते हैं जिन्हें मिकी एअरबैलून के सहारे ऊपर खींच लेता है.
यह फिल्म पिछली दोनों फिल्मों के मुकाबले कमजोर है. पुरानी फिल्मों के सीन और गानों पर फूहड़ ऐक्ंिटग की गई है. हीरोइनों ने कम कपड़े पहन कर अपने उभारों व हावभावों से दर्शकों को रिझाने की कोशिश की है.
तुषार कपूर ने अब तक जितनी भी फिल्में की हैं सब में फ्लौप ही रहा है. आफताब शिवदासानी भी फ्लौप ऐक्टर है. कृष्णा की मौजूदगी कौमेडी नाइट्स से ज्यादा कुछ भी नहीं दर्शाती. फिल्म के संवाद द्विअर्थी और वाहियात हैं. गीतसंगीत बेकार है. छायांकन जरूर अच्छा है. फिल्म ऐसे युवाओं के लिए है जो पौर्न साइटें या अश्लील फिल्में देखना पसंद करते हैं, परिवार वालों के लिए तो कतई नहीं. इस तरह की फिल्मों पर सरकार द्वारा पाबंदी लगानी चाहिए.