इस फिल्म में एक गाना है, ‘यह फगली...फगली क्या है’. दर्शक शायद ‘फगली’ का मतलब न समझ पाएं लेकिन हम आप को बता दें कि फगली का मतलब है ‘फाइटिंग अगली’. इस फिल्म में युवाओं द्वारा सिस्टम में बदलाव लाने की कोशिश की गई है लेकिन यह कोशिश हास्यास्पद बन कर रह गई है. हालांकि निर्देशक ने सिस्टम में फैली कई बुराइयों की ओर इशारा किया है. मसलन, निर्दोष लोगों को फांसने में पुलिस कैसेकैसे हथकंडे इस्तेमाल करती है, पुलिस और राजनेताओं की सांठगांठ, मीडिया वालों द्वारा टीआरपी पाने के लिए हद से गुजर जाना, ईवटीजिंग और पुलिस के संरक्षण में चलने वाली ड्रग्स पार्टियां, फिर भी ये सब दर्शकों पर अपना असर नहीं छोड़ पातीं.

‘फगली’ कुछ साल पहले आई आमिर खान की फिल्म ‘रंग दे बसंती’ से प्रेरित लगती है लेकिन यह उस फिल्म का मुकाबला बिलकुल भी नहीं कर सकी है. शुरू से आखिर तक निर्देशक कन्फ्यूज्ड रहा है. मध्यांतर से पहले तक तो फिल्म में दिखाए गए 4 दोस्तों को सिस्टम में सुधार लाने की सुध तक नहीं होती, मध्यांतर के बाद जब उन का पाला एक भ्रष्ट डीसीपी से पड़ता है तो अचानक उन्हें सिस्टम को सुधारने की सुधि आती है.

कहानी देव (मोहित मारवाह) नाम के एक नौजवान के नई दिल्ली स्थित इंडिया गेट पर बनी अमर जवान ज्योति के पास आत्मदाह से शुरू होती है. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया जाता है जहां वह एक चैनल की रिपोर्टर को आपबीती सुनाता है.

देव, देवी (कियारा आडवाणी), गौरव (विजेंदर सिंह) और आदित्य (आरफी लांबा) 4 दोस्त हैं. गौरव दिल्ली में एक बाहुबली मंत्री का बेटा है और देव एक ऐडवैंचर कैंप और्गेनाइजर है. एक दिन वे चारों दिल्ली पुलिस के अधिकारी चौटाला (जिमी शेरगिल) से टकरा जाते हैं और उन की जिंदगी में तूफान आ जाता है. चौटाला उन्हें ब्लैकमेल करता रहता है. तंग आ कर देव आत्मदाह करता है और मरतेमरते चौटाला की काली करतूतों को जनता के सामने लाता है. चौटाला को गिरफ्तार कर लिया जाता है परंतु मंत्री राजवीर सिंह अहलावत उसे मरवा डालता है.

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