शिक्षक और शिक्षा के साथ हो रही राजनीति, स्कूल व कालेज मैनेजमेंट में बढ़ती धनलोलुपता, शिक्षा के प्रति सरकार की उदासीनता के साथ एक आम शिक्षक की रोजमर्रा की जिंदगी को वास्तविकता के धरातल पर चित्रित करने के साथ ही चंद उद्योगपितयों के आगे सरकार के नतमस्तक रहने का ज्रिक करने वाली फिल्म का नाम है - चॉक एंड डस्टर. जिसके निर्माता अमिन सुरानी है. इसके लिए फिल्म के निर्देशक जयंत गिलटर और लेखक द्वय रंजीव वर्मा और नीतू वर्मा बधाई के पात्र हैं.

‘‘चॉक एंड डस्टर’’ एक बेहतरीन पटकथा पर बनी फिल्म है. निर्देशक ने विषयवस्तु के साथ फिल्म के हर किरदार के साथ न्याय किया है. फिल्म में यदि हनुमान चालीसा, तुलसीदास व गणित को पढ़ाने के पुराने तरीके का जिक्र है, तो वहीं इस बात का भी जिक्र है कि नासा में वैज्ञानिक के रूप मे कार्यरत या एक सिविल इंजीनियर या एक आर्मी आफिसर किस शिक्षा पद्धति की पैदाइश है.

फिल्म में सोशल मीडिया, टीवी चैनल पर शिक्षक को स्कूल से निकाले जाने पर बहस, शिक्षक के सम्मान में पैदल मार्च का चित्रणकर समाज में आ रहे बदलाव व आधुनिक समाज का भी जिक्र है. गुरू द्रोणाचार्य, एकलव्य और अर्जुन के साथ ही देश के प्रथम उपराष्ट्रति और द्वितीय राष्ट्रपति तथा शिक्षाविद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की सोच वाले स्कूलों की जरुरत की बता की गयी है. फिल्म में इस बात को बेहतरीन तरीके से चित्रित किया गया है कि आज इक्कीसवीं सदी में शिक्षा में आ रही गिरावट के लिए शिक्षक दोषी नहीं है, बल्कि हमारा शिक्षा तंत्र, शिक्षा व्यवस्था और सरकार की नीतियां दोषी है. जिसका फायदा उठाकर स्कूल मैनेजमेंट ने शिक्षा का व्यवसायीकरण कर रखा है. वर्तमान समय में एक काल सेंटर में नौकरी करते ही पहले माह जो किसी युवक या युवती को सैलरी मिलती है, उतनी सैलरी एक शिक्षक को 28 साल तक नौकरी करने के बाद भी नहीं मिलती है.

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