रेटिंग : डेढ़ स्टार

रोमांचक हास्य फिल्म ‘धमाल ‘ का तीसरा सिक्वल ‘टोटल धमाल‘ बेसिर पैर की कहानी के अलावा कुछ नहीं है. हास्य व रोमांच के नाम पर ‘टोटल धमाल‘ से ज्यादा खराब फिल्म शायद नहीं बनायी जा सकती थी.

फिल्म ‘टोटल धमाल‘ की कहानी होटल किंग्स से शुरू होती है, जहां पुलिस कमिश्नर (बोमन ईरानी) अपने एक सहयोगी के साथ एक काला बाजारी से सौदेबाजी कर रहे हैं. वह उस कालाबाजारी से सौ करोड़ पुराने नोट के बदले पचास करोड़ नए नोट देने का सौदा कर रहे हैं. वहां पर सख्त सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद कमीनेपन के लिए मशहूर गुड्डू (अजय देवगन) अपने साथी जौनी (संजय मिश्रा) के साथ बड़े अजीबोगरीब तरीके से पहुंच जाते हैं. और पचास करोड़ रूपए से भरे बैग होटल के कमरे से नीचे फेंकते हैं, जिन्हे कार में मौजूद उनका तीसरा साथी पिंटू (मनोज पाहवा) लेकर फरार हो जाता है. पिंटू इस रकम को ओंकार जू के अंदर छिपा देता है. पर एक मोड़ पर मरने से पहले पिंटू बता देता है कि उसने यह पचास करोड़ रुपये जनकपुर के ओंकार जू में ओके में छिपाया है. अब इस पचास करोड़़ के पीछे पुलिस कमिश्नर के अलावा गुड्ड भी पड़ जाते हैं. फिर नाटकीय घटनाक्रमों के साथ तलाक ले रहे दंपति अविनाश पटेल (अनिल कपूर) और बिंदू (माधुरी दीक्षित), नौकरी की तलाश में लगे कमीने आदित्य श्रीवास्तव उर्फ आदी (अरशद वारसी) व मानव श्रीवास्तव (जावेद जाफरी) के साथ साथ फायर ब्रिगेड में नौकरी कर रहे मगर घूसखोर लल्लन (रितेश देशमुख) अपने साथी झिंगुर (पितोबाश त्रिपाठी) के साथ लग जाता है. अब सवाल है कि पचास करोड़ का विभाजन इनके बीच कैसे हेगा? काफी बहस के बाद तय होता है कि जो जनकपुर पहुंचकर पहले रकम अपने कब्जे कर लेगा, पचास करोड़ उसके हो जाएंगे. कुछ बेसिर पैर के हास्य व रोमांचक दृश्यों के बाद सभी ओंकार जू पहुंच जाते हैं, जहां एक विलेन भी आ जाता है. पर अंत में यह सभी उस विलेन से जू के जानवरों व मालकिन को छुटकारा दिलाने के साथ साथ धन भी आपस में बराबर बांट लेते हैं.

अति घटिया व बेसिर पैर की कहानी, पटकथा व चरित्र चित्रण वाली फिल्म ‘टोटल धमाल‘ देखकर इस बात का एहसास होता है कि फिल्मकार ने अति जल्दबाजी में बिना किसी तरह की तैयारी किए किसी भी तरह इस फिल्म को फिल्माकर दर्शकों के सामने परोस दी. कहानी के अभाव में फिल्मकार ने सिक्वल के नाम पर कुछ भी परोस दो, कि सोच के साथ यह फिल्म बनायी है. फिल्म का लेखन अति भयानक है. चरित्र चित्रण उससे ज्यादा खराब है. संवाद भी घटिया ही है. बतौर निर्देशक भी इंद्र कुमार बुरी तरह से मात खा गए हैं. पूरी फिल्म देखकर यह समझ में नहीं आता कि क्या ‘टोटल धमाल’ का निर्देशन वास्तव में ‘दिल’,‘बेटा’ या ‘मस्ती’ जैसी फिल्मों के निर्देशक इंद्र कुमार ने ही किया है. फिल्म में दर्शकों को जबरन हंसाने का असफल प्रयास किया गया है. फिल्म में एक भी रोमांचक दृश्यों नहीं है, जिसे देखकर दर्शकों को रोमांच का अहसास हो सके. फिल्म में कई दृश्य तो दूसरी फिल्मों से सीधे उठाकर पेश कर दिए गए हैं.

फिल्म में कृछ दृश्य ऐसे हैं जिन्हे देखकर लेखक व निर्देशक  की सोच व उनकी कल्पना शक्ति पर तरस आता है. मसलन-फिल्म में एक दृश्य है, जहां आदित्य श्रीवास्तव उर्फ आदी (अरशद वारसी) रेत में नीचे धंसते जा रहे हैं, उन्हे बचाने के लिए उनका साथी मानव श्रीवास्तव (जावेद जाफरी) रस्सी की बजाय फुफकारने वाला सांप लेकर आते हैं, आदी सांप के मुंह को कसकर पकड़ लेते हैं और उस सांप को मानव अपनी तरफ खीचते हैं, जिससे आदी रेत के गड्ढे से बाहर आ जाते हैं. इसी तरह के एक नहीं कई बेवकूफी वाले दृश्य इस फिल्म का हिस्सा हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो अजय देवगन कहीं से भी प्रभावित नहीं करते. शुरूआत में अरशद वारसी कुछ समय के लिए जमते हैं, मगर फिर वह भी निराश करते हैं. बाकी के सभी कलाकारों ने अपने आपको दोहराया ही है. ‘मूंगड़ा’ गाने में सोनाक्षी अपने नृत्य से जरुर प्रभावित करती हैं.

वैसे फिल्म में एक भी गाना ऐसा नहीं है,जिसकी जरुरत महसूस हो. हर गाना जबरन ठूंसा हुआ लगता है.

दो घंटे सात मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘टोटल धमाल ‘का निर्माण फौक्स स्टार स्टूडियो, अजय देवगन फिल्म्स, अशोक ठाकरिया, इंद्र कुमार, श्रीअधिकारी ब्रदर्स व आनंद पंडित ने किया है. फिल्म के निर्देशक व कहानीकार इंद्र कुमार, फिल्म के पटकथा लेखक वेद प्रकाश, पारितोश पेंटर व बंटी राठौर, संगीतकार गौरव रूशिन, कैमरामैन कीको नकहारा व फिल्म के कलाकार हैं-अजय देवगन, रितेश देशमुख, अरशद वारसी, जावेद जाफरी, अनिल कपूर, माधुरी दीक्षित, ईशा गुप्ता, बोमन इरानी, संजय मिश्रा, अली असगर,महेश मांजरेकर, पीतोबाश त्रिपाठी, सुदेश लहरी, निहारिका रायजादा, स्वाती कपूर, विजय पाटकर, राजपाल यादव, जौनी लीवर, क्रिस्टल द मंकी, संजय दत्त, अशीष चौधरी व ‘मूंगड़ा’ गाने में सोनाक्षी सिन्हा.

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