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मणिकर्णिका : रानी लक्ष्मीबाई – स्वमोह ने किया फिल्म का सत्यानाश

यदि आप अपनी टीम के सदस्यों की प्रतिभा को स्वीकार किए बगैर महज खुद को ही बेहतरीन कलाकार साबित करने का प्रयास करेंगी, तो फिल्म का सत्यानाश होना तय है.

स्वमोह और खुद को ही महिमा मंडित करने के चक्कर में कंगना रानौट ने एक बेहतरीन फिल्म का मटियामेट कर डाला. कंगना रानौट यह भूल गईं कि फिल्म से जुड़े हर सदस्य के पूर्ण सहयोग व मेहनत से ही बेहतरीन फिल्म बनती है. यदि आप अपनी टीम के सदस्यों की प्रतिभा को स्वीकार किए बगैर महज खुद को ही बेहतरीन कलाकार साबित करने का प्रयास करेंगी, तो फिल्म का सत्यानाश होना तय है. फिल्म ‘मणिकर्णिका’ में यही हुआ. फिल्म देखकर लगता ही नहीं कि यह फिल्म ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी’ की कहानी है.

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फिल्म के शुरू होते ही सूत्रधार के तौर पर अमिताभ बच्चन की आवाज आती है जो कि इतिहास के पन्ने पर रोशनी डालते हैं. फिर कहानी 1828 के बिठूर से शुरू होती है, जहां चार वर्ष की मणिकर्णिका को नदी से निकालकर मोरोपंत (मनीष वाधवा) ने अपनी बेटी बनाते हुए मणिकर्णिका नाम दिया. वह बिठूर के पेशवा बाजीराव (सुरेश ओबेराय) के यहां कार्यरत हैं. फिर एक गांव के बाहर शेर पर निशाना साधे मणिकर्णिका (कंगना रानौट) नजर आती हैं. वह शेर को तीर मार बेहोश करती हैं और  फिर उसका तीर निकाल दवा लगाकर उसे जंगल में छुड़वा देती हैं. यह देखकर झांसी के राजगुरु व वैद्य दीक्षित (कुलभूषण खरबंदा) काफी प्रभावित होते हैं.

वह झांसी जाकर राजमाता काशीबाई (मिस्टी) से कहते हैं कि राजा गंगाधर राव (जीशू सेन गुप्ता) के लिए उन्होंने एक लड़की देखी है जो कि झांसी राज्य के लिए एकदम सही सिद्ध होगी. फिर वह बिठूर जाकर मणिकर्णिका का हाथ मांगते हैं. झांसी के राजा और मणिकर्णिका की शादी हो जाती है. शादी होते ही मणिकर्णिका नाम बदलकर रानी लक्ष्मीबाई हो जाता है.

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रानी लक्ष्मीबाई बहुत दयालु हैं. वह कभी किसी बकरी के बच्चे को अंग्रेजों के चंगुल से बचाकर गांव वालों को वापस देने जाती हैं, तो कभी गांव वालों के संग नृत्य करती हैं. फिर वह एक बेटे को जन्म देती हैं, जिसका नाम दामोदर रखा जाता है. पर सदाशिव (मोहम्मद जीशान अयूब) रचित साजिश में दो साल की उम्र में ही दामोदर की मौत हो जाती है.

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