रेटिंग: एक स्टार

निर्माताः संजय सुन्ताकर

निर्देशकः अनीस बारूदवाले

कलाकारः प्रियांषु चटर्जी, देव शर्मा, जय मिश्रा, श्रवण, असरानी, मुकेश खन्ना, अनुप्रिया कटोच, जरीना वहाब, अर्जुमन मुगल, निशांत तंवर,कुणाल सिंह राजपूत, हिमानी शिवपुरी, राकेश बेदी, टीकू टलसानिया, ज्यूनियर महमूद व हिना पंचाल

अवधि: दो घंटे 23 मिनट

वर्तमान समय की युवा पी-सजय़ी रातों रात सफलता अर्जित करने के लिए गलत रास्ते अख्तियार करती है, जो कि उन्हें शुरूआती सफलता देती जरुर है, मगर यह उन्हें अंततः बर्बादी की ओर ही ले जाती है. इस बेहतरीन कॉन्सेप्ट पर एक बेहतरीन हास्य फिल्म बन सकती थी, लेकिन असी कॉन्सेप्ट पर लेखक व निर्देशक अनीस बारूदवाले पूरी तरह से असफल रहे हैं.

FILM

कहानी:

आर्यन( देव शर्मा) फिल्म स्टार बनने के सपने देख रहा है. और दिन में देर तक सोता रहता है. उसकी इस आदत से उसकी मां(जरीना वहाब ) परेशान रहती है. एक तरफ वह फिल्मों में अभिनेता बनना चाहता है, तो दूसरी तरफ वह अपने दोस्तो विक्की (प्रियांशु चटर्जी ) व कुणाल (कुणाल सिंह राजपूत ) संग मिलकर लोगों को मूर्ख बनाकर पैसे ठगने का काम करते रहता है.एक दिन एक अंधा भिखारी अठन्नी(जय मिश्रा ) उसके घर के सामने से भीख मांगते हुए निकलता है,तो आर्यन उसके कटोरे से पैसे गायब कर देता है. अठन्नी यह देख लेता है, मगर उस वक्त वह अंधा बना हुआ है, इसलिए रोते हुए चला जाता है. दूसरे दिन विक्की एक ट्रांसपोर्टर को मूर्ख बनाकर पचास हजार रूपए हथिया लेता है, तो वहीं वह एक सिंधी(असरानी ) के पैसे नहीं वापस कर रहा है.फिर वह अठन्नी के जोड़ीदार व भिखारी चवन्नी से देा हजार रूपए ठग लेते हैं.अब अठन्नी व चवन्नी इसकी शिकायत अपने बॉस(टीकू टलसानिया) से करते हैं. उनका बॉस इन तीनों युवकों का मजा चखाने की योजना बनाता है. मगर यह तीनों उन्हें ही मूर्ख बनकर काफी धन ऐंठ लेते हैं. अब भिखारियों के बॉस व सभी भिखारी इन तीनों युवकों के पीछे पड़ जाते हैं.फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.

लेखन व निर्देशनः

फिल्मसर्जक अनीस बारूद वाले इस हास्य फिल्म को बनाने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म में किसी भी दृश्य में दर्शक को हंसी नहीं आती.

REVIEW

फिल्मसर्जक ने बेवजह दो दर्जन से अधिक कलाकारों को फिल्म में भर दिया है और किसी भी किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाए. मूल कहानी के साथ कई छोटी छोटी कहानियां भी जबरन पिरो दी हैं. राकेश बेदी हो या असरानी दर्शक समझ जाता है कि इन्हे बेवजह ठूंसा गया है.या लेखक व निर्देशक इन प्रतिभाशाली कलाकारों का उपयोग नहीं कर पाया. विक्की और कुणाल कहां से आते हैं, कुछ नहीं दिखाया. अपरिपक्व लेखन व निर्देशन…फिल्म को बेवजह रबर की तरह खींचा गया है. फिल्म के कई दृश्य बेवकूफी भरे लगते हैं.

अभिनयः

अतिम कमजोर पटकथा व बकवास संवादों के चलते किसी भी कलाकार का अभिनय निखर कर नही आया.निर्देषक ‘यारियंा’ फेम देव षर्मा और ‘पिंजर’ फेम प्रियांषु चटर्जी जैसे कलाकारों से भी अभिनय नहीं करवा सके.अठन्नी के किरदार में अपने इंट्रोडक्शन वाले दृश्य में अपने अभिनय से प्रभावित करने के साथ ही दर्शकों को हंसाने में कामयाब रहने वाले अभिनेता जय मिश्रा को भी बाद में अभिनय का कारनामा दिखा सकने वाले दृश्य नहीं मिले. राकेश बेदी,असरानी, जरीनप वहाब व मुकेश खन्ना जैसे कलाकारो ने यह फिल्म क्यों की,यह बात समझ से परे है?

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