भारतीय सेंसर बोर्ड हमेशा अपनी ही शैली में काम करता है. सरकारें बदल जाती हैं. सेंसर बोर्ड के चेयरमैन बदलते हैं, लेकिन सेंसर बोर्ड की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आता. यहां तक कि ‘संस्कारी चेयरमैन’ के रूप में मशहूर सेंसर बोर्ड के वर्तमान चेयरमैन पहलाज निहालानी भी उसी अंदाज में काम कर रहे हैं. सेंसर बोर्ड सदैव छोटे फिल्म निर्माताओं के लिए ‘संस्कारी’ बन जाता है, मगर जब बड़े फिल्म निर्माता की फिल्म हो, तो वह अपने सारे ‘संस्कार’ भूल जाता है.

इन दिनों सेंसर बोर्ड ‘यशराज फिल्मस’ की आदित्य चोपड़ा निर्देशित फिल्म ‘‘बेफिक्रे’’ की वजह से आरोपों के घेरे में है. इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने ‘यूए’ प्रमाणपत्र से पारित किया है, जिसमें ‘मिडल फिंगर’, ‘किसिंग सीन’, रणवीर सिंह का ‘बट’ सीन के साथ साथ फिल्म के नायक रणवीर सिंह और नायिका वाणी कपूर के अपने शरीर से कपड़े उतारने के सीन भी हैं. इन सारे दृश्यों को सेंसर बोर्ड ने बड़ी दरियादिली दिखाते हुए पारित किया है. जबकि निर्माता निर्देशक ने फिल्म ‘‘बेफिक्रे’’ के जो पोस्टर लगाए हैं, उन पर लोगों को आपत्ति हैं और कुछ लोगों ने इन पोस्टरों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करायी है. फिल्म ‘बेफिक्रे’ को जिस अंदाज में पारित किया गया है, उसको लेकर तमाम शिकायतें सेंसर बोर्ड तक पहुंच चुकी हैं.

अब बडे़ बैनर की फिल्मों में हीराईनें बिकनी पहने नजर आ जाती हैं. जबकि छोटी फिल्म में इस तरह के दृश्यों पर कैंची चला दी जाती है. फिल्म ‘बार बार देखो’ में कई दृश्यों पर सेंसर बोर्ड की कैंची चली थी, मगर ‘बेफिक्रे’ मे रणवीर सिंह का ‘बट’ सीन भी नहीं काटा गया. ‘बेफिक्रे’ में रणवीर सिंह का किरदार हीरोईन वाणी कपूर को अपशब्द कहता है, उस पर भी कैंची नहीं चली. इतना ही नहीं हौलीवुड फिल्म ‘स्पेक्ट्रम’ में जेम्स बांड और मोनिका ब्लूची के किसिंग सीन पर सेंसर बोर्ड ने कैंची चला दी  थी. मजेदार बात यह है कि सेंसर बोर्ड के ‘संस्कारी’ चेयरमैन पहलाज निहलानी का दावा है कि फिल्म ‘बेफिक्रे’ में कुछ भी गलत नही है. यह फिल्म पेरिस की कहानी है.

उधर केंद्रीय फिल्म प्रमाणबोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी ने कुछ लोगों से बात करते हुए कहा कि,‘हमारे यहां एक नियम सा है. जब कोई छोटी फिल्म होती है, तो उसके किसी सीन या पोस्टर पर कोई उंगली नहीं उठाता. मगर बड़े बैनर की फिल्म है, इसलिए जिसे देखे वह अपनी शिकायत लेकर पहुंच रहा है.’’

जबकि सेंसर बोर्ड के चेयरमैन पहलाज निहालानी ‘बेफिक्रे’’ से जुड़े सारे विवादों पर कहते हैं-‘‘देखिए, इस फिल्म में जहां कैंची चलाने की जरूरत थी, वहां हमने कैची चलायी है. फिल्म में जितने भी किसिंग सीन थे, उनकी लंबायी हमने कम की है. क्लायमैक्स के सीन को हमने छोटा किया है. हमने किसिंग के सारे क्लोजअप दृश्यों को हटा दिया है, मगर जो दृश्य बचे हैं, वह रचनात्मकता को बरकरार रखने के लिए हमने छोड़े हैं. मैं खुद फिल्म निर्माता हूं. मुझे पता है कि जब हम कोई कहानी कहते हैं, तो उसके लिए किस तरह की रचनात्मक स्वतंत्रता की जरूरत होती है. फिल्म ‘बेफिक्रे’ की कहानी फ्रांस के पेरिस शहर की है. एक पेरिस निवासी किस ढंग से जीवन जीता है, किस तरह से वह रिश्तों को निभाता है, उसकी कहानी इस फिल्म में है. पेरिस में हर इंसान जब एक दूसरे से मिलता है, तो ‘किस’ से ही एक दूसरे का अभिवादन करता है. इस बात का ख्याल हमने रखा है.’’

तो कुछ देर बाद पहलाज निहलानी कहीं न कहीं अपना बचाव करते हुए व ट्रिब्यूनल पर उंगली उठाते हुए कहते हैं- ‘‘देखिए, जब हम इस तरह के दृश्यों पर कैंची चलाते हैं, तो हम पर आरोप लगता है कि हम सेंसर बोर्ड की गाइड लाइन के खिलाफ काम कर रहे हैं. हम पर ‘संस्कारी’ होने का आरोप लगता है. जब हम रचनात्मकता को बरकरार रखते हुए इस तरह के दृश्यों को छोड़ देते हैं, तो हम पर कुछ ज्यादा ही स्वतंत्र होने का आरोप लग जाता है. इतना ही नहीं कई फिल्मों में जब हमने इस तरह से दृश्यों को काटा, तब वह फिल्मकार दिल्ली में ट्रिब्यूनल में चले जाते हैं और वहां से उन दृश्यों के साथ फिल्म को पास करा कर ले आते हैं. अब हमें कई तरह की दुविधाओं के साथ काम करना पड़ रहा है.’’

फिल्म ‘‘बेफिक्रे’’ में रणवीर सिंह के ‘बट’ शॉट को लेकर काफी आलोचना की जा रही है. जबकि पहलान निहलानी का दावा है कि उन्होंने इस सीन की लंबाई काफी कम की है. अब यह सीन सिर्फ झलक मात्र है. दूसरी बात हमने यह ध्यान रखा है कि नायक अपनी प्रेमिका के  साथ अकेले कमरे के अंदर है. वह वही कर रहे हैं, जो कि एक आम दंपति करता है. इसमें गलत क्या है? इस तरह के दृश्य तो मधुर भंडारकर की फिल्म ‘जेल’ में भी थे. हमने तो कई विदेशी फिल्मों में भी इस तरह के दृश्यों पर कैची नहीं चलायी.’’

सेंसर बोर्ड के चेयरमैन पहलाज निहलानी चाहे जितनी सफाई दें, मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड हर फिल्म को एक ही तराजू पर क्यों नहीं तौलता है, बेचारा छोटी फिल्मों का निर्माता ट्रिब्यूनल के चक्कर नहीं काट सकता, इसलिए उसकी फिल्म के साथ अलग रवैया अपनाना सही नहीं कहा जा सकता.

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