हिंदी फिल्मों में संगीत की मौजूदगी कितनी जरूरी है, यह बताने की जरूरत नहीं है. एक औसत फिल्म की लगभग एकचौथाई रील गानों व बैकग्राउंड म्यूजिक पर गुजर जाती है. बीते अरसों में तकनीक के आगमन ने संगीत को बड़ा सस्ता व हलका बना दिया है. कंप्यूटर पर गाने मिक्स हो जाते हैं, कोई भी बेसुरा अब गा लेता है. साउंड मिक्ंिसग से आवाज का स्तर ठीक हो जाता है. इस तरह संगीतकारों की जगह बौलीवुड में नए लोग ऐसे भी आ गए हैं जो खुद गाते हैं और कंपोज भी करते हैं. कुछ ऐसा ही ट्रैंड आज से लगभग 4 दशक पूर्व संगीतकार व गायक बप्पी लाहिड़ी ने भी शुरू किया था. हाल में उन्हें फ्रांस के ग्लोबल मूवी फैस्ट में लाइफटाइम अचीवमैंट अवार्ड मिलने की खबर है. 80 के दशक के डिस्को किंग के नाम से मशहूर संगीतकार और गायक बप्पी लाहिड़ी के बड़ेबड़े चश्मों के साथ गले में सोने के ढेरों जेवर ट्रैक सूट या कुरतापायजामा उन की शख्सीयत को अलग करते हैं. हालांकि उन पर कई बार विदेशी धुन चुराने का आरोप लगा है और कई दफा उन्होंने स्वीकार भी किया है. उन्होंने किशोर कुमार, आशा भोंसले, अलिशा चिनौय और उषा उत्थुप की आवाज को बखूबी इस्तेमाल किया. हंसमुख और नम्र स्वभाव के बप्पी लाहिड़ी इन दिनों फिल्मों से ज्यादा टीवी पर बिजी हैं.

बौलीवुड में डिस्को गीतों की परंपरा को लाने वाले बप्पी कहते हैं कि वर्ष 1979 में मैं ने पहली बार अमेरिका का सफर किया. तब वहां जौन ट्रावोल्टा का सैटरडे नाइट फीवर काफी पौपुलर था. क्वीन्सी जोन का थ्रिलर भी लोकप्रिय था. उन के गानों पर लोग झूम उठते थे. उन्हें देख कर मुझे ऐसा लगा कि क्यों न मैं भी भारत में ऐसी धुन बनाऊं जिसे सुनते ही पब्लिक डांस करना शुरू कर दे. उन दिनों निर्देशक रविकांत नागैच एक फिल्म बना रहे थे. उन्होंने कहा कि फिल्म के हीरो मिथुन चक्रवर्ती हैं. फिल्म थी ‘सुरक्षा’. मैं ने उन से कहा कि इस फिल्म की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ दो. मिथुन एक अच्छे डांसर हैं, मैं ने गाने बनाए और बोल थे, ‘मौसम है गाने का…’,

‘तुम जो भी हो दिल आज दो…’ ये गाने हिट हो गए. मिथुन ने कमाल का डांस किया. ‘सुरक्षा’ फिल्म शुरुआत थी और ‘डिस्को डांसर’ फिल्म इतिहास बनी. ‘नमक हलाल’, ‘शराबी’, ‘साहब’, ‘कसम पैदा करने वाले की’, ‘कमांडो’ आदि फिल्मों के सभी गाने एक के बाद एक हिट होते गए. यह भी सच है कि बप्पी मुख्यधारा की फिल्मों या ए गे्रड फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद कभी नहीं बन पाए. छोटे बजट की फिल्मों में ही उन को संगीत देने का मौका मिला. और तो और, उन के ज्यादातर हिट गानों पर मिथुन चक्रवर्ती थिरकते नजर आते हैं. इस बाबत बप्पी बताते हैं कि केवल डिस्को गाने ही नहीं, मेलोडियस गानों में भी हम दोनों की जोड़ी सब को पसंद थी. अभी भी हम दोनों का रिश्ता घरेलू है. डिस्को संगीत के साथसाथ शास्त्रीय संगीत से भी लगाव रखने वाले बप्पी भी एक स्टार किड की तरह इस क्षेत्र में आए. उन के पिता भी इसी क्षेत्र में थे, लिहाजा, जानपहचान के दम पर वे बौलीवुड में जम गए. उन के मुताबिक, ‘‘मैं ने संगीत विरासत में पाया है. मेरी मां बनसरी लाहिड़ी बहुत बड़ी सिंगर थीं. मेरे पिता अपरेश लाहिड़ी भी संगीतज्ञ थे. संगीत के माहौल में पैदा हुआ. मेरा डिस्को संगीत और गजल गायिकी हर जगह चलती रही. शास्त्रीय संगीत के बिना मैं अधूरा था. इसलिए उस का भी प्रयोग करता रहा.’’ अंगरेजी लोकप्रिय धुनों को चोरी कर कई साल तक बप्पी का संगीत सुपरहिट रहा. इस बीच, उन्हीं की तरह यहांवहां की धुनों को उठा कर संगीत बनाने वाले अनु मलिकनुमा कई नए लोग आ गए. इस का नुकसान कुछ यों हुआ कि बप्पी को काम मिलना बंद हो गया. कई सालों तक फिल्मों से दूर रहे बप्पी फिलहाल इक्कादुक्का फिल्मों में आइटम सौंग सरीखा गाना करते नजर आते रहे. इतने सालों की गुमनामी के पीछे की वजह का खुलासा करते हुए बप्पी कहते हैं, ‘‘मैं खाली वक्त में पब्लिक शो करता हूं. विदेशों में अभी भी मेरे गाने सुन कर पब्लिक झूम उठती है. पर मैं हमेशा समय के साथ चलता हूं.

‘‘फिल्म ‘द डर्टी पिक्चर’ का गाना ‘ऊलाला ऊलाला…’, फिल्म ‘गुंडे’ का गाना ‘तू ने मारी एंट्री…’ आदि हिट रहे. ऐसे गाने मैं हमेशा बनाता हूं जिस से सुनने वाले को मजा आए. अब मैं संगीत में चूजी हो चुका हूं. आजकल एक फिल्म में कई संगीत निर्देशक होते हैं. ऐसे में मैं उन में गीत देना ठीक नहीं समझता. पूरी फिल्म में संगीत देने का मजा कुछ और होता है. पहले एक संगीत निर्देशक पूरी फिल्म के गाने और बैक ग्राउंड संगीत देता था, जिस से उस का ब्रैंड स्थापित होता था. कंप्यूटराइज्ड संगीत की देन भी मेरी ही है. ‘थानेदार’ फिल्म का ‘तम्मातम्मा लोगे…’ ऐसा ही कंप्यूटराइज्ड गाना था जिसे बहुत पसंद किया गया. कई बार मैं संगीत न दे कर गा भी लेता हूं.’’ फिलहाल बप्पी कई फिल्मों में गाने दे रहे हैं. उन का बेटा बाप्पा भी उन की कई फिल्मों का संगीत बना रहा है. इस के अलावा अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं को ले कर उन्होंने एक एलबम बनाया है.

बप्पी लाहिड़ी को ले कर हमेशा एक बात अखरती है कि वे हमेशा सोना पहनने के पीछे सफलता व उन्नति के लिए तथाकथित भगवान आदि को श्रेय दे कर मेहनतकश व संघर्षशील लोगों के बीच अंधविश्वास फैलाने का काम करते हैं. उन की मानें तो गले में ढेर सारा सोना लादने से सफलता मिलती है. अगर ऐसे ही सफलता मिलती तो सारे कलाकार आलाप या रियाज के बजाय सुनारों की दुकानों में कतारें लगाए खड़े होते. चर्चित हस्ती होने के नाते नामी कलाकारों को इस तरह की दकियानूसी बातों से बचना चाहिए

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