सिंगल मदर की अपनी समस्याएं होती हैं. कोई भी औरत सिंगल मदर या सिंगल पेरैंट्स नहीं बनना चाहती. मगर कई बार हालात ऐसे हो जाते हैं कि उस के पास सिंगल मदर बनने के अतिरिक्त राह नहीं बचती है. यहां हम बात कर रहे हैं 90 के दशक की मशहूर अदाकारा शांती प्रिया की, जिन्हें नियति ने सिंगल मदर बना दिया.

वास्तव में शांती प्रिया ने अभिनेता शांताराम की बेटी के बेटे सिद्धार्थ राय से 1992 में प्रेम विवाह रचाया था. उन से उन के 2 बेटे हुए. सिद्धार्थ राय की 2004 में हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई, तब शांती प्रिया ने अपने फिल्मी कैरियर को त्याग कर अपने दोनों बेटों की परवरिश में ही अपनेआप को झोंक दिया. इस दौरान उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा.

आज उन के दोनों बेटे शुभम व शिष्य अपने पैरों पर खड़े हैं. तब एक बार फिर अभिनेत्री शांती प्रिया ने अभिनय जगत में वापस कदम रखा है. इन दिनों वे ओटीटी प्लेटफौर्म पर स्ट्रीम हो रही वैब सीरीज ‘धारावी बैंक’ में नजर आ रही हैं जबकि बहुत जल्द वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कवि और उत्तर प्रदेश की पहली राज्यपाल सरोजिनी नायडू की बायोपिक फिल्म ‘सरोजिनी नायडू’ में शीर्ष भूमिका में नजर आने वाली हैं.

हाल ही में शांती प्रिया से हमारी मुलाकात हुई. इस मुलाकात में हम ने उन से उन के कैरियर, सिंगल मदर के रूप में उन की कठिनाइयों से ले कर अभिनय में वापसी सहित कई मुद्दों पर लंबी बातचीत की. पेश हैं अंश:

शांती प्रिया ने तमिल फिल्में निशांती के नाम से कीं जबकि हिंदी और तेलुगू में शांती प्रिया के नाम से अभिनय किया, इस के कारण पर उन्होंने बताया, ”“जब कल्याणी मुरूगन ने मुझे तमिल फिल्म ‘इंगा ओरू पट्टूरण’ में अभिनय करने का मौका दिया था, उस वक्त फिल्म के निर्देशक गंगइे अमरानन ने मेरा स्क्रीन नाम निशांती रखा था. लेकिन मेरी मां ने कहा कि निशांती नाम सुनने में अच्छा नहीं लगता. यह नाम तो ‘अ शांती’ की धुन देता है. मेरी बड़ी बहन भानु प्रिया उस वक्त तक स्थापित अभिनेत्री बन चुकी थी. हम बहनों का असली नाम भानु और शांती है. मेरी बहन ने अपने नाम के साथ प्रिया जोड़ा था. तो मेरी मां ने मुझे भी ‘प्रिया’ जोड़ कर शांती प्रिया के नाम से कैरियर में आगे बढ़ने की सलाह दी. उस के बाद मैं ने तेलुगू व हिंदी फिल्में शांती प्रिया के नाम से कीं.””

जब शांती का अभिनय कैरियर ऊंचाइयों पर था तब उन्होंने हिंदी फिल्मों से ब्रेक लिया, इस की वजह बताते वे कहती हैं, “वास्तव में ‘इक्के पे इक्के’ से पहले मैं ने निर्देशक तरुण कुमार की फिल्म ‘अंधा इंतकाम’ साइन की थी. उस में सिद्धार्थ और रोहित राय हीरो थे. उस से 6-7 महीने पहले फिल्मफेयर अवार्ड में ‘न्यूकमर अवार्ड’ के लिए एकसाथ परफौर्म किया था. तो पहली मुलाकात सिद्धार्थजी से तब हुई थी. उस के बाद हम ने एकसाथ फिल्म ‘अंधा इंतकाम’ की और हम दोनों में प्यार हो गया. हम ने शादी कर ली.

““मेरी मम्मी ने मना किया था कि अभी मेरा कैरियर अच्छा जा रहा है तो कुछ समय शादी मत कर. थोड़ा इंतजार करो. इस बीच एकदूसरे को और अधिक समझ भी लो. लेकिन उस वक्त हम काफी युवा थे. प्यार में खोए हुए थे. मम्मी की बात पर अमल नहीं किया. हम ने सिद्धार्थजी से शादी कर ली. सिद्धार्थजी ने मुझ से कभी भी अभिनय करने से मना नहीं किया था पर अभिनय कैरियर शुरू करने से पहले मैं ने अपनी मम्मी से सुना था कि शादी के बाद अभिनय करने में समस्याएं आती हैं. शूटिंग कर के वापस लौटने के बाद घर की जिम्मेदारी निभाना, घर के काम करना आसान नहीं होता.

““फिल्म इंडस्ट्री में हर दिन फिल्म की शूटिंग का समय अलगअलग होता है. जिस के चलते पतिपत्नी के बीच समझदारी नहीं रह पाती. सो, ये सारी बातें भी दिमाग में घूम रही थीं. इस के अलावा मैं चैन्नई यानी कि दक्षिण भारत की रहने वाली और अब मुझे दक्षिण मुंबई के रहनसहन में खुद को ढालना था. पति के परिवार व उन के घर के माहौल आदि को समझने में मुझे काफी वक्त लगा था. फिर भी मैं अभिनय कर सकती थी. उन्होंने मना नहीं किया था.

““मेरी आदत रही है कि जो भी करो, ईमानदारी से सौ प्रतिशत करो. इसलिए मैं ने अभिनय से दूरी बना कर खुद को पूरी तरह से पारिवारिक जीवन में व्यस्त कर लिया था. लेकिन वक्त ऐसा आया कि शादी के 11 साल बाद उन का हार्ट अटैक से देहांत हो गया. इस से मैं टूट गई थी. उस वक्त मेरा बड़ा बेटा शुभम 10 साल और छोटा बेटा शिष्या साढ़े 7 साल का था. यानी, मैं 2 बेटों की मां थी.

“”मुझे बहुत बड़ा झटका लगा था. लेकिन मैं ने सोचा कि कोई बात नहीं. फिल्म इंडस्ट्री तो अपनी ही है. कुछ समय बाद अभिनय में वापसी कर लूंगी. पहले अपने बेटों को कुछ बड़ा कर लूं. उन्हें अच्छी परवरिश दे दूं. अब शुभम 27 और शिष्या 24 साल का है तो मैं ने सोचा कि बहुत अच्छा किरदार निभाने को मिल रहा है, इसलिए फिल्म ‘सरोजनी नायडू’ से मैं अभिनय में वापसी कर रही हूं. अब तो मैं देख रही हूं कि हमारे 90 के दशक के तमाम कलाकार अभिनय में वापसी कर रहे हैं.””

हर कलाकार हमेशा कैमरे के सामने रहना पसंद करता है मगर शांती ने शादी के बाद अभिनय से दूरी बना ली? इसे ले कर वे कहती हैं, “”मैं अपनी पारिवारिक जिंदगी में इस कदर मस्त हो गई थी कि मैं ने अभिनय को मिस किया. दूसरी बात, हम लोग दक्षिण मुंबई में रहते थे, अभी भी वहीं रह रहे हैं. जबकि, हमारी फिल्म इंडस्ट्री बांदरा से अंधेरी की तरफ है. तो वहां पर फिल्म वालों से हमारा मिलनाजुलना कम हो गया था. इसी वजह से लोगों को तो अभी भी लगता है कि मैं मुंबई नहीं, चैन्नई में रहती हूं. जबकि मैं लोगों से कहती हूं कि मैं 30 सालों से मुंबई में ही रहती आ रही हूं. मैं पूरी तरह से मुंबईया बन चुकी हूं.

“इसी इंडस्ट्री में पैसे के साथ लक्जरी भी मिलती है. मैं ने अपनी इस फिल्म इंडस्ट्री को काफी ‘मिस’ किया है. अब मैं ने तय कर लिया है कि मैं फिल्म इंडस्ट्री से जाने वाली नहीं हूं. यहां पर मरते दम तक काम करती रहूंगी.””

2002 में शांती ने मुकेश खन्ना के सीरियल ‘आर्यमान’ में भी अभिनय किया था. उस वक्त परिवार और शूटिंग को मैनेज करने को ले कर वे बताती हैं, मैं 1989 में मुकेश खन्ना के साथ सीरियल ‘विश्वामित्र’ में शकुंतला का किरदार निभा चुकी थी. तो हम दोनों एकदूसरे से परिचित थे. मुकेश खन्ना ने जब ‘शक्तिमान’ के बाद ‘आर्यमानः ब्रम्हांड का योद्धा’ शुरू किया तब उन्होंने मुझे उस सीरियल में तेजी का किरदार निभाने का औफर दिया था.

“”तब तक मैं शुभम व शिष्या की मां बन चुकी थी. तो कभीकभी शुभम भी मेरे साथ सेट पर जाता था. मैं ने परिवार व काम दोनों को बड़ी सुंदरता से मैनेज किया. मैं तो शादी के पहले से ही मल्टीटास्किंग रही हूं. आज भी मल्टीटास्किंग हूं. जब मैं स्कूल में पढ़ती थी, तब पढ़ाई के साथ ही डांस, गायन, संगीत सबकुछ करती थी.””

शांती के पति सिद्धार्थ की अचानक हार्ट अटैक से मौत हो गई, उन से जब उस के बाद आई चुनौतियों को ले कर पूछा तो वे कहती हैं, ““चुनौती ही नहीं, मैं शुरू में बहुत डिप्रैशन में थी. डिप्रैशन मतलब मैं ने अपनेआप को स्ट्रौंग बनाने के लिए खुद को ही दूसरों से अलगथलग कर लिया था. मैं ने हर किसी से दूरी बना ली थी. मैं ने खुद को अपने दोनों बेटों तक ही सीमित कर लिया था. देखिए, बेटे की परवरिश अलग ढंग से करनी होती है और बेटी की अलग ढंग से. एक औरत होते हुए मुझे अपने बेटों के लिए मां से कहीं अधिक पिता बनना था. मुझे अपनी ताकत दिखानी थी कि एक पुरुष इस तरह से होना चाहिए. मुझे अपने बेटों की परवरिश सौफ्ट हो कर नहीं देनी थी.

““मुझे अपने बेटों को इस तरह से तैयार करना था कि वे अपने जीवन में किसी भी चुनौती का सामना कर सकें. इस के लिए मुझे दोतीन साल थोड़ी तकलीफ हुई थी. मैं लोगों से मिल नहीं रही थी, किसी से बात नहीं कर रही थी. एक तरह से मैं ने अपने घरनुमा जेल के अंदर खुद को बंद कर लिया था. मैं घर पर रहते हुए सिर्फ सफेद रंग के कपड़े ही पहनती थी. एक दिन मैं ने महसूस किया कि मुझे देख कर मेरे बेटे भी डिप्रैशन का शिकार होते जा रहे हैं. तो मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. तभी मेरी मम्मी ने मुझे चैन्नई बुला कर समझाया कि मुझे अपने बेटों की जिंदगी बरबाद नहीं करनी चाहिए.

““मां ने समझाया कि अगर मैं इस तरह से रहूंगी तो बेटे क्या करेंगे. मां ने मुझे समझाया कि सफेद कपड़े पहनना छोड़ दे. मेरी मां तो 60 के दशक को पार कर चुकीं, फिर भी वे प्रगतिशील हैं. उन्होंने मुझे काफी समझाया. तब मेरी समझ में आया कि आखिर मेरे बेटों ने क्या किया है. मेरे पति नहीं रहे, तो इस में उन का क्या दोष है. तब मैं ने धीरेधीरे खुद को बदलना शुरू किया. इस में डेढ़दो साल का समय लग गया था.””

देखा जाता है कि ऐसी परिस्थिति में अकसर बच्चे बिगड़ जाते हैं. इन हालात में बच्चों को किस तरह की परवरिश मिलनी चाहिए, इस सवाल पर शांती कहती हैं, मैं एकसाथ मां और पिताजी के 2 किरदार निभा रही थी. पहले होता यह था कि किसी बात के लिए मम्मी ने ‘न’ बोल दिया, तो वह पिताजी के पास जा कर विनती करते थे. पर मैं ने पहले दिन से ही यह स्थापित कर दिया था कि मेरी ‘न’ यानी कि उन के पिता की ‘न’ है, यह समझ कर चलना. जब मैं कहती थी कि ‘लेट्स सी’, तो वे समझ जाते थे कि इजाजत मिल सकती है क्योंकि मम्मी अभी पिताजी बनना चाहती हैं. लेकिन उन को पता था कि मेरी मम्मी के कुछ बेसिक नियम हैं जिन के खिलाफ नहीं जाना है. दूसरी बात, जब सिद्धार्थ थे तब भी हम दोनों का सिद्धांत रहा है कि यदि हमारे बेटे अपने किसी दोस्त के घर जा रहे हैं तो किसी भी सूरत में वे रात में अपने किसी भी दोस्त के घर पर नहीं रुकेंगे.

““सिद्धार्थ के गुजर जाने के बाद मैं ने इस नियम में कोई बदलाव नहीं किया. आज भी मेरे बेटे इस नियम का पालन करते हैं. यदि कभी बेटों ने जिद की, तो मैं उन से एक ही बात कहती थी कि आप के पिताजी का जो सिद्धांत था, उस से समझौता संभव नहीं. उस के बाद मेरे बेटे चुपचाप उन नियमों का पालन करते थे. मेरे बच्चों ने हमेशा मेरा साथ दिया.””

सिंगल मदर के रूप में संघर्ष करते हुए अपने बेटों की परवरिश के लिए ताकत के सोर्स के बारे में शांती कहती हैं,मुझे मेरी मम्मी से ही ताकत मिली. मेरी मम्मी भी सिंगल पेरैंट थीं. तो मैं ने उन से काफीकुछ सीखा. सिंगल पेरैंट्स होते हुए मेरी मां ने मेरी बहन भानुप्रिया, मुझे व मेरे भाई को जो शिक्षा दी, उसी की वजह से हम तीनों ने अपनीअपनी जगह बनाई है. हम तीनों को मेरी मां से ही ताकत मिली. अपनी मां की शिक्षा की बदौलत ही हम अपने पैरों पर खड़े हैं. हम तीनों ने अपना मुकाम बनाया. मेरी मम्मी ने मुझे जो कुछ सिखाया उसी पर चलते मैं अपने बच्चों को भी परवरिश दे पाई.

सिद्धार्थ के चले जाने के बाद शांती ने दूसरी शादी नहीं की. तब परिवार व समाज से मिल रहे दूसरी शादी के दबाव को ले कर वे कहती हैं, उस वक्त मैं ने सिर्फ अपनी मम्मी को देखा था. मम्मी के साथ भी ऐसा हादसा हुआ था और मम्मी ने भी शादी नहीं की थी. तो मैं ने भी अपनी मम्मी की तरह कदम उठाया. मैं यह नहीं कहती कि स्त्री के जीवन में एक पुरुष की जरूरत नहीं है. जो नारी ऐसा सोचती है वह गलत है. मेरी राय में दोनों समान हैं. आज हम सभी वीमन एंपावरमैंट की बातें करते हैं पर वीमन एंपारमैंट पुरुषों से भी होता है. मैं यह नहीं कहती कि मेरी शादी न करने का फैसला सही था या गलत. लेकिन उस वक्त मेरी प्राथमिकता मेरे अपने बेटे व उन की परवरिश थी. मुझे लगा कि शादी नहीं करनी चाहिए.

“”दूसरी बात, मैं दक्षिण मुंबई में रह रही थी. मेरी जिंदगी का एक ढर्रा बन चुका था. मैं एक जिंदगी सिद्धार्थ संग जी चुकी थी जिसे भुला पाना भी मेरे लिए आसान नहीं था. यदि मैं दूसरी शादी करती हूं तो जो नया शख्स मेरी जिंदगी में आएगा वह कितना अंडरस्टैंडिंग होगा, यह कहना मुश्किल है. देखिए, यदि तलाक हो गया है तो हमें पता है कि वह इंसान किसी न किसी गली में है. उस से कभी भी हेलोहाय हो सकती है. जो इंसान इस दुनिया में ही नहीं है, उस की जगह पर किसी दूसरे इंसान को स्थापित करना बहुत मुश्किल होता है.

“”मैं जो कुछ करती हूं, उसे अपनी तरफ से सौ प्रतिशत देती हूं. यदि मैं पत्नी हूं तो उस की जिम्मेदारी भी सौ प्रतिशत निभानी है. पत्नी ही नहीं बहू, मां हर किरदार में मैं अपनी तरफ से सौ प्रतिशत देना चाहती हूं तो उस वक्त मैं मां के रूप में सौ प्रतिशत देना चाहती थी.आज मुझे लगता है कि मैं ने मां के रूप में अपनी तरफ से सौ प्रतिशत देने में सफल रही हूं. अब मेरे बच्चे मुझ से कहते हैं कि, ‘मां, बस, हो गया. अब आप हमारी तरफ कम ध्यान दीजिए. अब आप को फिल्म इंडस्ट्री में काम करना चाहिए. हमें पता है कि आप अभिनय व फिल्म इंडस्ट्री को कितना मिस कर रहे हो.’””

पिछले कुछ वर्षों से वीमन एंपावरमैंट को ले कर काफी चर्चा हो रही है. आजकल महिलाएं सिगरेट या शराब पीने को ही वीनम एंपावरमैंट मान लेती हैं. इसे ले कर शांती प्रिया कहती हैं, ““सभी की अपनीअपनी सोच है. वीमन एंपावरमैंट की बातों के चलते औरतों को समाज में बराबरी का दर्जा मिल गया हो, ऐसा नहीं है. औरतों का संघर्ष जारी है. यह भी सच है कि आज औरतें हर क्षेत्र में काफी अच्छा काम कर रही हैं. अब उन्हें पंख मिल चुके हैं. अब उन के पंख कोई नहीं कतर रहा.

“”मेरा मानना है कि वीमन एंपावरमैंट की बातें भले ही कुछ वर्षों से हो रही हैं पर मेरी मां 50 व 60 के दशक में सिंगल पेरैंट थीं. वीमन एंपावरमैंट की मिसाल उन से बेहतर कौन हो सकता है. मुझे याद है कि इंदिरा गांधी ने ‘सिंगल वुमन’ के लिए कुछ योजनाएं शुरू की थीं तब मेरी मां ने गार्मेंट एक्सपोर्ट का व्यापार शुरू किया था. मां ने अपने यहां तमाम औरतों को काम पर रख कर अपने एक्सपेार्ट बिजनैस को बढ़ाया था. वे कौटन की शर्ट अन्य कपड़े एक्सपोर्ट करती थीं. मेरी नजर में उसी वक्त से वीमन एंपावरमैंट शुरू हो गया था.

सिगरेट या शराब का सेवन करना हर इंसान, फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, की निजी इच्छा पर निर्भर करता है. इस का वीमन एंपावरमैंट से कोई संबंध नहीं है. यदि कोई औरत सोचती है कि सिगरेट व शराब का सेवन करने से वह मर्द बन गई, तो गलत है.””

10 साल बाद अभिनय में वापसी करने के लिए शांती ने फिल्म ‘सरोजिनी नायडू’ को चुना, इसे ले कर वे कहती हैं, आप मेरे पूरे कैरियर ग्राफ को देखेंगे तो आप पाएंगे कि मैं ने हमेशा चुनौतीपूर्ण किरदार ही निभाए हैं. मुझे चुनौतीपूर्ण किरदार निभाना पसंद है. अक्षय कुमार के साथ फिल्म ‘सौगंध’ में भी मेरा चुनौतीपूर्ण किरदार था. तमिल में पहली फिल्म ‘इंगा आरू पुत्तुकरन’ में स्नेह बेगम का किरदार चुनौतीपुर्ण था. तेलुगू फिल्म ‘महर्षि’ में सुचित्रा का किरदार भी काफी चुनौतीपूर्ण था. अब तक मैं ने सभी नारी प्रधान व सशक्त किरदार ही निभाए हैं.

“”सरोजिनी नायडू भी चुनौतीपूर्ण है. ऐसे में जब मुझे सरोजिनी नायडू का औफर मिला तो मैं मना नहीं कर पाई. सरोजिनी नायडू ने सही मानो में वीमन एंपावरमैंट शुरू किया था. उन का जन्म 1879 में तथा मृत्यु 1949 में हुई थी. स्कूल में मैं ने उन के बारे में कुछ पढ़ा था, इसलिए कुछ जानकारी थी.”

वे आगे कहती हैं, जैसा कि मैं ने पहले ही कहा कि मैं ने उन के बारे में स्कूल में कुछ पढ़ा, मैं उन के बारे में जानती थी कि वे बहुत सुंदर कवयित्री थीं. वे राजनेता थीं. वे 15 अगस्त, 1947 से 2 मार्च, 1949 तक उत्तर प्रदेश की पहली महिला गवर्नर थीं. हम जानते हैं कि 2 मार्च, 1949 को लखनऊ में उन का देहांत हुआ था. उन्होंने कुछ किताबें भी लिखी हैं लेकिन उन की स्टाइल, उन के बात करने के तरीके आदि के बारे में ज्यादा नहीं जानती थी. पर उन की उपलब्धियां जानती थी. वे गांधीजी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा थीं. फिल्म ‘सरोजिनी नायडू’ स्वीकार करने के बाद जब मैं ने विस्तार में उन के बारे में जाना, तो पता चला कि उन दिनों उन के पहनावे के चलते उन की साड़ी का ट्रैंड चला था. उन के ब्लाउज का ट्रैंड चला था. उन के बटुआ का ट्रैंड भी चला था.

““हम लोग कहते हैं कि हमारा यह फैशन पैटर्न है, जबकि हकीकत में आज से 90 साल पहले ही सरोजिनी नायडू ने फैशन का ट्रैंड शुरू किया था. ब्रोज लगाना, ज्वैलरी लगाना वगैरह तो उन का स्टाइल था. कैप स्लीव, लौंग स्लीव, चूड़ीदार स्लीव आदि जो हम लोगों ने आज नाम दिया, वे सब तो सरोजिनीजी ने अपने वक्त में ही कर दिया था. वे जब बात करती थीं तो कविता सुनाने की तरह फटाफटा बात करती थीं.””

सरोजिनी नायडू की तरह परदे पर नजर आने के लिए की गई तैयारियों के बारे में वे कहती हैं, इस फिल्म में सरोजिनी नायडू को 3 फेज में चित्रित किया जा रहा है. पहले फेज में उन का बचपन है, जिसे एक लड़की ने निभाया है. शादी से 35 साल तक की उम्र के किरदार को एक दूसरी अभिनेत्री ने निभाया है. 35 साल से उन की मुत्यू तक के किरदार को मैं निभा रही हूं. इस के लिए मैं अपना वजन कम से कम 10 से 15 किलो बढ़ा रही हूं. इस के अलावा उन के चेहरे के अनुरूप हम प्रोस्थेटिक मेकअप कर रहे हैं. मेरे चेहरे का रंग और उन के चेहरे का रंग एकजैसा ही है. मुझे अपने रंग पर गर्व है. हम इसे हिंदी सहित 4 भाषाओं में बना रहे हैं.”

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