बौलीवुड के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ता ही जा रहा है. भारतीयों के साथ साथ विदेशी भी बौलीवुड से जुड़ने के लिए बेताब नजर आते हैं. ऐसे में यदि मूलतः भारतीय मगर विदेश में बसे अप्रवासी भारतीयों की संताने बौलीवुड में करियर बनाने के लिए वापस भारत आ रहे हैं, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है. मसलन सनी लियोनी की पहचान कनाडियन पौर्न स्टार के रूप में होती है, पर मूलतः वह भारतीय ही हैं. इसी तरह हालिया प्रदर्शित फिल्म ‘‘अक्सर 2’’ में बच्चन सिंह का ग्रे किरदार निभाकर चर्चा बटोर रहे अभिनेता मोहित मदान भी मूलतः भारतीय ही हैं. उनका जन्म दिल्ली में हुआ था. मगर जब वह एक वर्ष के थे, तभी अपने माता पिता के साथ न्यूजीलैंड के औकलैंड शहर में जाकर रहने लगे थे. एमबी और सी ए तक की पढ़ाई कर चुके मोहित मदान की शिक्षा दिक्षा भी न्यूजीलैंड में ही हुई. मगर बौलीवुड अभिनेता बनने की चाह के कारण चार वर्ष पहले वह मुंबई आ गए थे. अब तक उनकी दो फिल्में ‘‘लव एक्सचेंज’’ और ‘‘अक्सर 2’’ प्रदर्शित हो चुकी है.

‘‘अक्सर 2’’ के प्रदर्शन के दूसरे दिन उनसे हुई बातचीत इस प्रकार रही.

तो आप महज अभिनेता बनने के लिए न्यूजीलैंड छोड़ मुंबई पहुंच गए?

हमारे लिए तो अपने वतन में वापस आना है. हम लोग मूलतः दिल्ली के रहने वाले हैं. मेरा जन्म दिल्ली में ही हुआ था, मगर बचपन में ही हम अपने माता पिता के साथ न्यूजीलैंड जाकर बस गए थे. तो मेरी शिक्षा दिक्षा न्यूजीलैंड में हुई. चार वर्ष पहले ही मुंबई वापस आया हूं. बचपन से ही मुझे फिल्म देखने का शौक रहा है. मैं बचपन से ऐसी हरकतें करता आया हूं, जिसे देखकर लोग हंसते थे. लोगों को हंसाना मेरी आदत सी बन गयी थी. तो बचपन से ही दिमाग में अभिनय की बात थी. लेकिन मेरे पिता जी की इच्छा थी कि मैं पहले पढ़ाई पूरी करुं इसलिए मैंने चाटर्ड एकाउंटैंसी की पढ़ाई की. उसके बाद फिल्म मेकिंग की पढ़ाई की. यह कहना गलत होगा कि मैं किसी से प्रेरित होकर अभिनय के क्षेत्र में आया हूं. हकीकत यह है कि मैं बचपन से ही अभिनय करना चाहता था.

मैं निजी जिंदगी में अपने पापा से बहुत प्रभावित हूं. मैंने उनको मेहनत करते और समस्याओं से जूझते हुए आगे बढ़ते देखा है. मेरा जन्म मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ. मेरे पापा ने अपने बच्चों के लिए बहुत त्याग किया है. पढ़ाई पूरी होने के बाद मैंने उनको समझाया और उनकी रजामंदी के बाद ही मैं न्यूजीलैंड से मुंबई आया. बचपन से ही मुझे शाहरुख खान की फिल्में देखने का शौक रहा है. इसकी एक वजह यह भी है कि मेरी मम्मी शाहरुख खान और अक्षय कुमार की फिल्मों की शौकीन हैं.

आपके पापा ने भारत छोड़कर न्यूजीलैंड में बसने का निर्णय क्यों लिया था?

अपने बच्चों को बेहतर जिंदगी दे सकने के लिए. मेरे पापा इंजीनियर और मम्मी गृहिणी हैं.

जब आप अपने पापा से प्रभावित हैं, तो फिर आपने इंजीनियर बनने की बजाय अभिनय को क्यों चुना?

मेरे पापा चाहते थे कि मैं इंजीनियर बनूं पर उन्होनें मुझ पर दबाव नहीं डाला. पढ़ाई करते समय मैंने फाइनेंस को चुना. पहले मैंने बिजनेस मैनेजमेंट किया. फिर सीए बना. मैंने कुछ समय के लिए न्यूजीलैंड में औडिटर की नौकरी भी की लेकिन किस्मत में जो लिखा होता है, वह बदलता नहीं है. बनना तो मुझे अभिनेता ही था, इसलिए जब पापा ने इजाजत दी, तो मुंबई आकर अपनी एक नयी यात्रा शुरू की.

मुंबई में आपकी नई यात्रा कैसी रही?

जब मैं न्यूजीलैंड में औडिटर की नौकरी कर रहा था, उन्हीं दिनों मैं वहां शाम को न्यूयार्क फिल्म अकादमी में फिल्म मेकिंग व एक्टिंग सीखने जाया करता था. इसके अलावा मैंने काफी थिएटर किया. मगर मुंबई आने के बाद तो सब कुछ बदला हुआ पाया.

यहां संघर्ष काफी है?

जी हां! मुझे भी बहुत कठिन संघर्ष करना पड़ा. पर मैंने सीखा कि हर उभरते हुए कलाकार को ‘ना’ सुनने की आदत डाल लेनी चाहिए क्योंकि यहां ना बहुत सुनना पड़ता है. हर औडिशन से ज्यादा उम्मीदें नहीं लगानी चाहिए, जब जो फिल्म मिलनी होगी, मिल जाएगी, उसे कोई रोक नहीं सकता. धैर्यवाना होना जरूरी है. लोगों ने मुझे झूठे सपने दिखाए. गलत राह बतायी. धीरे धीरे सही गलत की समझ आती गयी. फिल्म पाने के लिए संघर्ष के साथ साथ वर्कशाप करता रहा.

पहली फिल्म ‘‘लव एक्सचेंज’’ कैसे मिली थी?

मेरी पहली फिल्म ‘‘लव एक्सचेंज’’ मेरे एक मित्र की वजह से ही मिली थी, जिसमें मैंने एक मराठी लड़के का किरदार निभाया. इस फिल्म के निर्देशक राज शेट्टी थे, जिनसे मुझे काफी कुछ सीखने को मिला. यह फिल्म अक्टूबर 2015 में रिलीज हुई थी.

अक्टूबर 2015 के बाद अब नवंबर 2017 में आपकी दूसरी फिल्म ‘‘अक्सर 2’’ प्रदर्शित हुई है?

फिल्म ‘‘लव एक्सचेंज’’ के बाद मेरे पास कई आफर आ रहे थे. उस वक्त टीवी के आफर भी आने शुरू हुए पर होता यह था कि जब टीवी करने के लिए मैं हामी भरूं, उससे पहले ही फिल्म का आफर आ जाता था. तो मुझे मना करना पड़ता था. पांच माह तक सिर्फ बातें होती रही. फिर मई 2016 में मुझे फिल्म ‘अक्सर 2’ मिली जो कि इसी सप्ताह रिलीज हुई है.

‘‘अक्सर 2’’ को आपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है. तो आपने क्या सोचकर यह फिल्म स्वीकार की थी?

अभी तो सिर्फ दो दिन हुए हैं. धीरे धीरे दर्शकों तक यह फिल्म पहुंच रही है. जहां तक मेरे इस फिल्म को करने का सवाल है, तो यह एक ऐसी फिल्म है, जिसे कोई भी कलाकार मना न करता क्योंकि यह सफलतम फिल्म ‘‘अक्सर’’ का सिक्वअल है. दूसरी बात इसके निर्माता व निर्देशक भी वही हैं. तीसरी बात मुझे पटकथा और मेरा बच्चन सिंह का किरदार भी पसंद आया. बच्चन सिंह की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह किरदार मेरे व्यक्तित्व के ठीक विपरीत हैं. आपने फिल्म देखते हुए पाया होगा कि बच्चन सिंह खुदगर्ज है,सिर्फ अपने बारे में सोचता है. आज की तारीख में हर इंसान खुदगर्ज है. इसलिए भी मेरे किरदार के साथ लोग रिलेट कर रहे हैं.

इस फिल्म में आपके साथ अभिनव शुक्ला व जरीन खान भी हैं, जो कि पहले सीरियल व फिल्में कर चुके हैं. तो इनके बीच खो जाने का डर नहीं था?

बिलकुल नहीं. मुझे अच्छा एक्सपोजर मिला. फिल्म देखकर जिस तरह से लोग रिलेट कर रहे हैं, उससे मुझे खुशी हुई. आपने फिल्म देखी होगी तो पाया होगा कि इस फिल्म का हर किरदार सशक्त है.

कुछ लोग मानते हैं कि करियर की शुरुआत में ग्रे किरदार करना गलत होता है?

पर मैं ऐसा नहीं मानता. मेरी राय में ग्रे किरदारों में अभिनय दिखाने के मौके ज्यादा होते हैं.

आप न्यूजीलैंड में पले बढ़े हैं. इसलिए आपको पटकथा में कमियां नजर आती रहीं. क्योंकि भारत व न्यूजीलैंड के कलचर में फर्क है?

ऐसा ना कहें. मेरी परवरिश पूरी तरह से भारतीय बच्चे के रूप में हुई है. मेरा दिल पूरी तरह से हिंदुस्तानी है. आपको मेरे उच्चारण में कहीं भी ऐसा नहीं लगेगा कि मैं अप्रवासी भारतीय हूं. मेरे घर में मेरी मम्मी हमेशा शुद्ध हिंदी में बात करती थीं. तो मैंने हर फिल्म की पटकथा को भारतीय संस्कृति के हिसाब से ही पढ़ा. पर कई बार लगा कि वह मेरे लिए उचित नहीं है या किरदार ठीक नही था.

किस तरह के किरदार निभाना चाहते हैं?

मुझे हर फिल्म में सशक्त किरदार निभाना है. मुझे प्रभावशाली और यादगार किरदार निभाने हैं.

कहा जा रहा है कि सिनेमा बदल गया है. क्या उसका फायदा आपको नहीं मिल रहा है?

सिनेमा के बदलाव की वजह से ही नए कलाकारों को काम मिल रहा है, फिर भी अड़चनें आती हैं. मैं खुद को एक नया कलाकार ही मानता हूं क्योंकि यहां स्थापित कलाकार भी हैं, फिल्म सितारों की संताने भी हैं. सिनेमा में आए बदलाव के ही कारण ‘‘न्यूटन’’ जैसी फिल्में सफल हो रही हैं.

इसके अलावा कौन सी फिल्म कर रहे हैं?

मैंने एक फिल्म जो जो डिसूजा की ‘‘इश्क तेरा’’ की है, जिसमें मैंने राहुल व कबीर की दोहरी भूमिका निभायी है. इस फिल्म में मेरे साथ हृषिता भट्ट हैं. फिल्म की कहानी के केंद्र में पति पत्नी हैं. पत्नी की स्प्लिट पर्सनालिटी है. इस विषयवस्तु ने मुझे बहुत प्रभावित किया क्योंकि स्प्लिट पर्सनालिटी की बीमारी का दवाई में कोई इलाज नही है. फिल्म में परिवार प्यार और कमिटमेंट की बात की गयी है. यह फिल्म लोगों को बताएगी कि हमें दूसरों के साथ किस तरह से व्यवहार करना चाहिए, जिससे वह इस बीमारी से छुटकारा पा सके. इसके अलावा एक अन्य फिल्म की कुछ दिन शूटिंग की है, जिसके बारे में अभी कुछ बताना ठीक नही है.

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