शुरू से ही जमीन से पानी निकालने के तरीके अपनाए जा रहे हैं. एक फ्रैंच इंजीनियर, हैनरी डार्सी ने साल 1856 में जल निकासी के तरीकों पर परीक्षण किया था. उस के बाद जल निकासी के बहुत से तरीके खोजे गए और भूमि से जल निकासी का इंजीनियरिंग विज्ञान के?रूप में विकास हुआ, जो अब आधुनिक खेती की जमीन से जल निकासी प्रणाली का डिजाइन तैयार करने का खास जरीया बन गया?है. हालांकि इन सिद्धांतों की मदद से अभी भी जमीन से जल निकासी समस्या का कोई ठोस हल नहीं निकल सका है.
भूमि जल निकासी क्यों?: पौधों की जड़ों के आसपास की मिट्टी में मौजूद फालतू पानी और लवण पौधों के लिए नुकसानदायक होते है. खराब जल निकासी वाली मिट्टी में फसल की उपज में भारी कमी हो सकती है. बहुत देर तक पानी भरा रहने पर जल क्षेत्र में आक्सीजन की कमी हो जाने के कारण पौधे मर जाते हैं. जल निकासी पौधों की सही बढ़वार के लिए जरूरी है. जड़ क्षेत्र में हवा, पानी व लवण की सही मात्रा तय करने के लिए खराब जल निकासी वाले खेतों से बाहरी तरीकों से जल निकासी जरूरी है.
भूमि जल निकासी प्रौद्योगिकी : मोटे तौर पर 2 प्रकार की जल निकासी प्रणालियां प्रचलित?हैं. सतही जल निकासी व उपसतही जल निकासी. सतही जल निकासी में मानसूनी वर्षा के दौरान समतल और निचले खेतों की सतह पर पाए जाने वाले ज्यादा पानी को निकाला जाता है. उप सतही जल निकासी में उथले जल तल वाले इलाकों में पानी के तल और लवणता को सही किया जाता है. भारत में लगभग 150 लाख हेक्टेयर खेती की भूमि पानी के भराव और लवणता से प्रभावित है, जिस के कारण फसल उत्पादन को?भारी नुकसान होता?है.
सतही जल निकासी : सतही जल निकासी नेटवर्क का एक सिलसिलेवार क्रम?है, जो सब से ऊंचाई पर बनी मुख्य नाली से खेतों के न्यूनतम स्तर पर बनी नाली तक फैला होता?है. मध्यवर्ती स्तर पर संचयन नालियां और उप मुख्य नालियां होती हैं. खेतों की नालियों के आकार की उथली नालियां होती हैं, जो कि लगभग 15-20 सेंटीमीटर गहरी होती?हैं, जिन्हें खेत के मुख्य ढलान के आरपार लगभग 100 मीटर के अंतराल पर बनाया जाता?है. संचयन नालियां 40 सेंटीमीटर औसत गहराई की होती हैं, जिन की तली की चौड़ाई कम से कम 20 सेंटीमीटर होती है. इन्हें खेतों के चारों ओर इस तरह बनाया जाता है कि इन में खेतों की नालियों से निकलने वाला पानी आसानी से आता रहे. इन का डिजाइन जल निकासी वाले इलाकों के मुताबिक तैयार किया जाता?है. खेतों की नालियों का निकास ऐसा होना चाहिए जिन से बह कर आने वाला पानी धीरे से निकासी नाली में चला जाए.
खेतों में इस तरह के बांध बनाए जाते हैं, जो नाली में पानी के ज्यादा बहाव को रोक सकें, जिन से मिट्टी का कटाव न हो और नाली में गाद या तलछट न जमा हो. सही जल निकासी के लिए खेतों की सतह को समतल होना चाहिए. उपमुख्य और मुख्य नालियों की डिजाइन इस प्रकार से तैयार की जाती है कि उन से बह कर आने वाला सारा पानी नीचे की नालियों में जमा हो सके. चूंकि ऊंचाई की नालियां ऊपरी बहाव से निचले बहाव की ओर बढ़ती हैं, इसलिए उन नालियों के पास शुरू में थोड़ा छोटा भाग होता है और उस में निचले बहाव की ओर सही तरीके से इजाफा होता है.
सतही नालियों के निर्माण की लागत का अंदाजा उन में शामिल जमीन पर किए जाने वाले कामों की लागत के अनुसार लगाया जाता?है. पुलिया या?पाइप आदि की लागत नालियों की खुदाई पर लगने वाली लागत के अलावा होती है.
उपसतही जल निकासी : उपसतही जल निकासी के लिए मिनरल फिल्टर डिजाइन और छोटे पैमाने की जल निकासी के लिए मृत्तिका टाइल वाली नालियों का डिजाइन तैयार करना जरूरी है. फिल्टर इस्तेमाल में कमखर्ची के लिहाज से उपसतही जल निकासी प्रणाली को लगाने की
2 तकनीकें हैं. मृत्तिका टाइलों के जोड़ों के?ऊपर चुने हुए स्थानों पर फिल्टर को स्थापित करना और फिल्टर को प्लास्टिक शीट से कवर करना ताकि उपसतही जल की नालियों में सीधे बहाव को रोका जा सके. कोई भी व्यक्ति नालियों में?टाइलें लगा सके, इस के लिए नालियां चौड़ी व गहरी होनी चाहिए. जहां भी फिल्टर को लगाना हो, वहां इस के लिए स्टील स्लाइडिंग खुला बक्सा और स्टील की चलायमान सेपरेटर प्लेट का इस्तेमाल होता?है. नाली को पाटने से पहले मिनरल फिल्टर के ऊपर प्लास्टिक की एक शीट डाल दी जाती है ताकि टाइलों में मिट्टी न घुसे.
मृत्तिका टाइल वाली जल निकासी नाली की डिजाइन व उस का इस्तेमाल : उपसतही जल निकासी के लिए मृत्तिका टाइल की नालियां सब से सस्ता तरीका है. मिट्टी की अच्छी तरह से पकाई हुई टाइलें मजबूत होती?हैं और लंबे समय तक चलती हैं. ये छोटे पैमाने पर हाथ से बनाई जाने वाली उपसतही जल निकासी प्रणाली के लिए कुम्हार से बनवाई जाती हैं. 10-15 सेंटीमीटर व्यास की मृत्तिका टाइलों का इस्तेमाल किया जाता है. टाइलों में मिट्टी को जाने से रोकने के लिए उन में बने?छेदों से उन में जाने वाले जल बहाव को बढ़ाया जा सकता है.
] डा. प्रभा शंकर तिवारी, डा. एस के सिंह*, डा. हंसराज सिंह
(कृषि विज्ञान केंद्र, गाजियाबाद* भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान केंद्र,?झांसी)