देवेन भोजानी: अभिनेता,निर्माता, निर्दशक

गुजराती नाटक से अपने अभिनय कैरियर की शुरूआत करने वाले अभिनेता देवेन भोजानी प्रसिद्ध टीवी शो ‘मालगुडी डेज’ से डेब्यू किया. फिल्म ‘जो जीता वही सिकंदर’ उनके जीवन की टर्निंग पौइंट थी. वे कौमिक रोल के लिए खास तौर पर जाने जाते हैं. उन्होंने केवल अभिनय ही नहीं बल्कि निर्माता और निर्देशन का भी काम किया है. हर भूमिका में अभिनय करना उन्हें पसंद है और इस माध्यम के द्वारा वे दर्शको खुशी देने में विश्वास रखते है. कौमेडी में उन्होंने कभी कोई मजाक ‘बिलो द बेल्ट’ नहीं किया और द्विअर्थी वाले कौमेडी को वे कभी पसंद नहीं करते. अभी उनकी सब टीवी पर धारावाहिक ‘भाखरवाड़ी’ काफी पोपुलर हो चुकी है. जिसमें वे बालकृष्ण गोखले यानि अन्ना की भूमिका निभा रहे हैं. उनसे उनकी इस सफलतापूर्वक जर्नी के बारें में बात हुई. पेश है कुछ अंश.

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इस धारावाहिक में आपको सबसे अच्छी क्या लगती है?

मैं अपने दर्शकों का बहुत आभारी हूं, क्योंकि इतने सालों में मैंने अलग-अलग भूमिका निभाई और दर्शकों ने मेरी अधिकतर भूमिका को पसंद किया है. मैं हमेशा उस चरित्र को करता हूं जिसे करने में मज़ा आयें और दर्शकों को भी अच्छा लगे. इसके अलावा मेरी शो ऐसी होनी चाहिए जिसे पूरा परिवार साथ मिलकर देख सकें. यही वजह है कि बच्चे से लेकर वयस्क सभी मुझे देखना पसंद करते हैं. लेकिन पिछले 3-4 साल से मैंने अभिनय अधिक नहीं किये ,क्योंकि मैं निर्देशन से जुड़ा रहा. मैंने साराभाई वर्सेज साराभाई टीवी शो और कमांडो 2 फिल्म बनायीं. इसके अलावा तब मुझे अच्छे चरित्र भी अभिनय के लिए नहीं मिल रहे थे. इस शो में मुझे मेरी भूमिका बहुत पसंद आई, क्योंकि ये शुद्ध पारिवारिक शो है. दो अलग-अलग समुदाय के होते हुए भी वे आपस में जुड़कर रहते हैं और ये बात मुझे अच्छी लगी.

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शो में आप परंपरा और संस्कार को फौलो करते हुए दिखाई पड़ते हैं, रियल लाइफ में इन सबमें आप कितना विश्वास रखते हैं?

रियल लाइफ में बैलेंस करना पसंद करता हूं. ख़ास वैल्यूज मेरे परिवार का मुझे बहुत पसंद है, मसलन एक दूसरे से प्यार, एक दूसरे के लिए चाहत, साथ मिलकर काम करना आदि सब मुझे अच्छा लगता है, लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि परिवर्तन जरुरी है. हमारी कुछ पुरानी परम्पराएं जो सही नहीं है, उसे जमाने के साथ-साथ बदल देने में कोई हर्ज नहीं.

इतने सालों के लंबे सफर में कहानियों और किरदार में किस तरह के बदलाव को आप महसूस करते हैं?

बदलाव काफी है और ये तो होता ही रहेगा. मैंने हमेश किसी भी चरित्र के बदलाव को रिसर्च करके फिर उसे पर्दे पर उतारा है. ये पहले और आज हमेशा से कर रहा हूं. अभी नए-नए निर्देशक आये है और वे नयी-नयी चीजो को अपने शो में दिखाना चाहते हैं. ये अच्छा दौर है. अनुभव और नयापन जब साथ मिलते है, तो अच्छी चीज बनकर सामने आती है.

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परिवार का सहयोग यहां तक पहुंचने में कितना रहा ?

मेरे यहां तक पहुंचने में परिवार का बहुत सहयोग रहा है. मैं माता-पिता का इकलौता बेटा हूं, पर उन्होंने मेरे काम की हमेशा सराहना की है. अभी पत्नी भी है, जो मेरे इस हंसते-खेलते परिवार से जुड़ चुकी है. हम साथ में मिलकर बहुत खुश रहते हैं.

किस अभिनय ने आपकी जिंदगी बदल दी?

फिल्म ‘जो जीता वही सिकंदर’ ने मेरी जिंदगी बदल दी थी.पहले मैं चार्टेड एकाउंटेंट बनना चाहता था, पर इस फिल्म ने मेरी जिंदगी बदल दी. चार्टेड एकाउंटेंट पीछे रह गया और मैं अभिनय के क्षेत्र में आगे बढ़ गया.

आपने अभिनय के अलावा निर्माता, निर्देशक भी बने हैं, किसे अधिक एन्जौय करते हैं और क्यों?

मैंने हर तरह के अभिनय को एन्जौय किया है. जिस प्रोजेक्ट के साथ मैं जुड़ता हूं, उससे मेरा लगाव हो जाता है. मुझे आसपास की दुनिया तब दिखाई नहीं पड़ती. उसे ही करना अच्छा लगता है. इसलिए मैंने हमेशा किसी स्क्रिप्ट या काम को करने से पहले ये जरूर देख लेता हूं कि इसे करने में मजा आयेगा या नहीं. मैं दर्शकों को सौ प्रतिशत शुद्ध मनोरंजन देना चाहता हूं.

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आजकल द्विअर्थी कौमेडी का प्रचलन है, आप कौमेडी में किस बात का ध्यान रखते हैं?

जो लोग ऐसे कौमेडी दिखाते है,ये उनका स्टाइल है. मैं ऐसे कौमेडी में असहजता महसूस करता हूं. डबल मीनिंग वाले कौमेडी मैं पर्सनली कभी करना नहीं चाहता, क्योंकि टीवी घर पर सबके साथ देखी जाती है.

किसी भी चरित्र से निकलने में आपको कितना वक्त लगता है?

मैं बाहर से जींस और टी-शर्ट में सेट पर आता हूं और मेकअप रूम में चला जाता हूं. मेकअप के  दौरान मैं अपने चरित्र में घुसता चला जाता हूं और स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद उसका रंग मेरे उपर चढ़ जाता है. रात को मेकअप उतारने के बाद गाड़ी तक जाते-जाते फिर से देवेन भोजानी बन जाता हूं.

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