‘‘जिंदगी में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए’’ इस संदेश के इर्द गिर्द बुनी गयी फिल्म ‘‘सुल्तान’’ की कहानी भारतीय कुश्ती से शुरू होकर ‘‘मिक्स मार्शल आर्ट’’ तक की गाथा है. यह एक अलग बात है कि फिल्मकार ने इस फिल्म में ‘मिक्स मार्शल आर्ट’ को ‘‘प्रो टेक डाउन’’ नाम दिया है. मगर पूरी फिल्म आम मुंबईया कमर्शियल फिल्म से ज्यादा कुछ नहीं है. सलमान खान के प्रशंसक उन्हे जिस अंदाज में देखना पसंद करते हैं, उसी अंदाज में सलमान खान नजर आते हैं.

यूं तो सलमान खान की तरफ से उनके प्रशंसकों को फिल्म ‘‘सुल्तान’’, ईदी यानी ईद का का उपहार है. मगर फिल्म में नएपन का अभाव है. कई सीन कुछ समय पहले प्रदर्शित फिल्म ‘ब्रदर्स’ सहित दूसरी फिल्मों का दोहराव मात्र ही है. ‘ब्रदर्स’ की ही तरह इस फिल्म में एक व्यापारी विदेशों की तरह भारत में भी ‘मिक्स मार्शल आर्ट’ को लोकप्रिय बनाने के लिए चिंता से ग्रस्त नजर आता है. यानी कि खेल भी एक व्यापार ही है.

‘‘सुल्तान’’ की कहानी दिल्ली के एक बिजनेस मैन आकाश से शुरू होती है, जो कि परेशान है कि भारत में वह ‘प्रो टेक डाउन’ खेल को लोकप्रिय नहीं बना पा रहा है. उसे नुकसान पर नुकसान हो रहा है. ऐसे में आकाश के पिता (परीक्षित साहनी) उसे सुल्तान की मदद लेने के लिए कहते हैं. आकाश, सुल्तान के पास जाता है, तो सुल्तान कह देता है कि उसने तो कुश्ती लड़ना बंद कर दिया है. आकाश की मुलाकात सुल्तान के दोस्त गोंविंद से होती है. गोविंद उसे सुल्तान की कहानी सुनाता है कि उसने कुश्ती लड़ना क्यों बंद किया. तब कहानी कुछ साल पहले जाती है.

कहानी हरियाणा के रेवाड़ी जिले के एक गांव में बिना किसी मकसद के कटी पतंग पकड़ने के लिए दौड़ रहे तीस वर्षीय युवक सुल्तान अली (सलमान खान) की है. पतंग पकड़ने के लिए दौड़ते हुए ही एक दिन सुल्तान अली की टक्कर दिल्ली से पढ़ाई करके वापस लौटी आरफा (अनुष्का शर्मा) से हो जाती है, जो कि मशहूर पहलवान गुरू बरकत अली की बेटी है और राज्यस्तर की कुश्ती विजेता है. पहली मुलाकात में ही आरफा को सुल्तान दिल दे बैठता है. एक दिन सुल्तान उसका पीछा करते हुए पहलवानों के अखाड़े में पहुंच जाता है, जहां वह एक पहलवान को परास्त करती है.

आरफा, सुल्तान के प्यार के प्रस्ताव को ठुकरा देती है, क्योंकि उसका ध्यान ओलंपिक में गोल्डमैडल हासिल कर अपने पहलवान पिता द्वारा देखे गए सपने को पूरा करने पर है. आरफा सुल्तान से कहती है कि लड़की होना किसी लड़के से कम नहीं है. आरफा का साथ पाने के लिए सुल्तान भी बरकत का शागिर्द बनकर पहलवानी/कुश्ती सीखने लगता है. आरफा व सुल्तान स्कूटर बैठकर साथ में घूमते हैं. मगर जब सुल्तान का दोस्त गोविंद, आरफा को भाभी कहकर बुलाता है, तो आरफा भड़क जाती है. वह ऐलान करती है कि वह एक सफल कुश्तीबाज/चैपिंयन रेसलर से ही शादी करेगी. इतना ही नहीं आरफा, सुल्तान से कहती है कि उसकी अपनी औकात क्या है, उसके बाद सलमान कुश्ती सीखने में पूरा दम लगा देता है.

राज्य स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर और फिर ओलंपिक में गोल्ड मैडल भी हासिल कर लेता है. तब आरफा व सुल्तान का निकाह हो जाता है. कुछ समय बाद आरफा मां बनने वाली होती है. वह चाहती है कि सुल्तान उसके पास रहे. पर सुल्तान पर तो मैडल हासिल करने का भूत सवार है. वह विश्व चैंपियन बनने के लिए जाता है. इधर आरफा बेटे अमन को जन्म देती है, जो कि ‘ओ ’ निगेटिव खून न मिलने की वजह से मर जाता है. इसके लिए आरफा, सुल्तान को दोष देती है, क्योंकि सुल्तान का ब्लड ग्रुप ‘ओ’ निगेटिव ही है. फिर आरफा, सुल्तान से अलग अपने पिता के साथ रहने चली जाती है. सुल्तान भी कुश्ती से दूरी बना लेता है.

सुल्तान का अतीत जानने के बाद आकाश, सुल्तान से नए सिरे से बात करता है और सुल्तान ‘‘प्रो टेक डाउन’’ का हिस्सा बनकर खेलने को तैयार हो जाता है. इस बार उसे फत्ते सिंह (रणदीप हुड्डा) ट्रेनिंग देता है. प्रो टेक डाउन के रेसलर मैच होते हैं. अंततः जीत सुल्तान की होती है और आरफा भी सुल्तान के पास वापस आ जाती है.

तमाम कमियों के बावजूद फिल्म अंत तक दर्शकों को बांधकर रखती है. फिल्म को बहुत ही बड़े ग्रेंजर के साथ फिल्माया गया है. पर फिल्म कुछ ज्यादा ही लंबी हो गयी है. फिल्म की अवधि दो घंटे पचास मिनट है. इसे कम किया जा सकता था. फिल्म में एक दो गाने कम किए जा सकते थे. इंटरवल से पहले फिल्म धीमी गति से आगे बढ़ती है, जहां पर कसाव की जरुरत है. फिल्म में ‘ब्लड बैंक’ का मुद्दा जबरन ठूंसा हुआ लगता है. ओलंपिक में सुल्तान कुश्ती खेलकर गोल्ड मैडल जीतता है. विश्व चैंपियन भी बनता है. पर फिल्म में देश कहीं नहीं उभरता. कुश्ती के कुछ दांव पेंच तो निर्देशक ने अच्छे रचे हैं, पर धीरे धीरे यह फिल्म उनके हाथ से फिसल जाती है. इंटरवल के बाद ‘प्रो टेक डाउन’ के मैच का मसला पूरी तरह से बनावटीपन का अहसास देता है. कुश्ती जहां मिट्टी से जुड़ाव का अहसास दिलाता है, वहीं ‘मिक्स मार्शल आर्ट’ तो खून का खेल बनकर उभरता है.

बेटे अमन की मौत और आरफा का सुल्तान से अलगाव वाले दृश्यों में इमोशन की कमी नजर आती है. यह सब बहुत सतही स्तर पर निकल जाता है. भावनात्मक पहलुओं का स्थान नाटकीयता व दोहराव ने ले लिया है. शादी से पहले शेरनी की तरह दहाड़ने वाली मार्डन औरतों के मान सम्मान आदि की बात करने वाली आरफा शादी के बाद जिस तरह से भारतीय परंपरावादी हो जाती है, वह गले नहीं उतरता. यानी कि निर्देशक कहानी को पूरी तरह से आम भारतीय फिल्मों के हीरो की तरह पेश करने लग जाता है. पूरी फिल्म देखकर अहसास होता है कि निर्देशक कई जगह विचलित हुआ है. वह भी उसी द्वंद का शिकार नजर आता है, जिस द्वंद में पूरा भारतीय समाज जी रहा है.

सलमान खान और अनुष्का शर्मा दोनो ने बेहतरीन परफार्मेंस दी है. ‘जग घुमैया’ के अलावा कोई भी गीत आकर्षित नहीं करता. 170 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘सुल्तान’’ का निर्माण आदित्य चोपड़ा ने ‘‘यशराज फिल्मस’’ के बैनर तले किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक अली अब्बास जफर हैं.

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