अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पाने के लिए बहुत से मातापिता बच्चों के हाथ में अपना मोबाइल फोन थमा देते हैं और फिर यह जानने की कोशिश भी नहीं करते हैं कि बच्चे उस मोबाइल में किस तरह के गेम खेल रहे हैं. बच्चों की यह गेमिंग लत कई बार भारी पड़ जाती है.

राहुल पढ़ने में बहुत होशियार था. वह क्लास में अच्छी रैंक लाता था. राहुल की सब से बड़ी खासीयत यह थी कि उस का व्यवहार लोगों के प्रति काफी विनम्र था. महल्ले के लोग उस की तारीफ करते थे. सबकुछ अच्छा चल रहा था.

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राहुल ने इस वर्ष 12वीं की परीक्षा दी थी, लेकिन जब राहुल का रिजल्ट आया तो राहुल फेल हो गया. यह बात महल्ले में जंगली आग की तरह फैल गई. राहुल के मातापिता परेशान हो उठे, क्योंकि राहुल न केवल होनहार था बल्कि अभी तक वह अपनी कक्षा में अव्वल आता रहा. फेल होने के चलते राहुल ने खुद को कमरे में बंद कर लिया, हालांकि, काफी समझाने के बाद उस ने दरवाजा खोला. राहुल का फेल हो जाना किसी के गले नहीं उतर रहा था.

मांबाप के बहुत पूछने पर राहुल ने जो बताया उसे सुन कर सभी हैरान हो गए. परीक्षा के 2 महीने पहले ही राहुल ने अपने स्मार्टफोन में एक औनलाइन खेला जाने वाला गेम इंस्टौल कर लिया था. राहुल को इस गेम की ऐसी लत लगी कि वह घंटों अपने स्मार्टफोन पर गेम में उलझा रहता था. जब वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकलता तो घरवालों को यह लगता कि राहुल परीक्षा की तैयारी कर रहा है. लेकिन माजरा बिलकुल उलटा था.

राहुल पढ़ाई की आड़ में अपना सारा समय औनलाइन गेम खेलने में लगा देता था, जिस का नतीजा सामने था. राहुल की इस लत के चलते उस के पिता नाराज होने लगे तो राहुल ने उन पर ही हमला बोल दिया. यहां मामला केवल परीक्षा में फेल होने तक ही सीमित नहीं था, बल्कि मामला कहीं ज्यादा गंभीर हो चुका था.

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राहुल के पिता राहुल के इस व्यवहार से काफी घबरा गए थे. वे राहुल को ले कर काफी परेशान रहने लगे. उन्होंने अपनी यह परेशानी अपने जानने वाले को बताई तो उस जानने वाले ने राहुल के पिता को राहुल को दिमाग के डाक्टर को दिखाने की सलाह दी. आखिर राहुल को ले कर जब उस के पिता दिमाग के डाक्टर के पास ले कर पहुंचे तो डाक्टर ने राहुल के लक्षणों को देख कर बताया कि राहुल गेमिंग डिस्और्डर का शिकार हो चुका है.

क्या है गेमिंग डिस्और्डर : मनोरोग विशेषज्ञ डा. बी एम त्रिपाठी की मानें तो गेमिंग डिस्और्डर ऐसा मनोरोग है जो बहुत ज्यादा औनलाइन गेम खेलने से होता है. इस में मरीज को गेम के प्रति अति रुचि हो जाती है जो नशे या व्यसन की तरह काम करने लगती है. पहले इस बीमारी को मनोरोग की श्रेणी से बाहर रखा गया था लेकिन हाल ही में डब्लूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे भयावह मानते हुए गेमिंग डिस्और्डर को मनोरोग की श्रेणी में सूचीबद्ध कर दिया है.

गेमिंग डिस्और्डर के लक्षण : गेमिंग डिस्और्डर के मरीज औनलाइन गेमिंग को इतनी ज्यादा तरजीह देने लगते हैं कि उन के लिए बाकी के काम और ऐक्टिविटीज निरर्थक लगने लगती हैं. धीरेधीरे मरीज को नींद आनी कम हो जाती है. उस का खानपान अनियमित हो जाता है. इस से वह बातबात पर झुंझलाने लगता है. इसी कड़ी में उस के आपसी निजी संबंध चाहे पारिवारिक हों या सामाजिक, बिखर जाते हैं.

सर्वाइकल की समस्या : हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. कृष्णा वर्मा का कहना है कि औनलाइन गेमिंग के ज्यादा इस्तेमाल से हमारी गरदन लगातार मोबाइल की स्क्रीन पर झुकी हुई स्थिति में रहती है. लगातार बैठने की यह स्थिति हमें मुसीबत में डाल सकती है. ऐसी स्थिति में गरदन के पिछले हिस्से में भयानक दर्द व सूजन होने लगती है. परेशानी तब और बढ़ जाती है जब मरीज को कौलर बैल्ट पहनने की नौबत आ जाती है. इन सब के अलावा औनलाइन गेम यूजर के दोनों हथेलियों के अंगूठे बहुत समय तक मुड़े हुए होते हैं. इस से धीरेधीरे अंगूठों में भी तकलीफ महसूस होने लगती है. यही हाल दोनों हाथ की कुहनी का भी होता है जो कि गेम खेलते समय अमूमन मुड़ी हुई अवस्था में होती हैं. आजकल ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ रही है जिन्हें कम उम्र में ही हड्डी के रोगों से जूझना पड़ रहा है.

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आंखों पर असर : मोबाइल चाहे कितना ही अच्छा हो या आई प्रोटैक्शन फीचर से लैस हो, ज्यादा इस्तेमाल नुकसानदायक होता ही है. यदि आप औनलाइन गेमिंग के आदी हो चुके हैं तो इस का सीधा असर आप की आंखों पर पड़ता है. छोटी स्क्रीन का मोबाइल हो या बड़ी स्क्रीन का, ज्यादा देर स्क्रीन पर आंख गड़ाए रहने पर नुकसान तो होता ही है, आंखों से पानी गिरना, जलन व खुजली की समस्या भी होने लगती है. सिर में भारीपन महसूस होने लगता है, सो अलग.

हिंसा को बढ़ावा : समाजशास्त्री

डा. लोकरत्न शुक्ल की मानें तो आज के आधुनिक परिवेश में हर क्षेत्र में एकदूसरे से आगे निकल जाने की होड़ है. जहां पर एक तरफ युवावर्ग अच्छा कैरियर बनाने के पीछे जीतोड़ मेहनत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर एक ऐसा वर्ग भी है जो अपना पूरा समय व ऊर्जा इस तरह के खेलों के पीछे बरबाद कर रहा है. इस तरह के खेले जाने वाले हिंसक खेल, बेशक वर्चुअल ही सही लेकिन हथियारों का इस्तेमाल अपने दूसरे साथी खिलाड़ी पर किया जाता है, निश्चितरूप से खिलाड़ी के मन में हिंसा की भावना पैदा करते हैं.

एकदूसरे को खत्म कर के अपने नंबर को बढ़ाते हुए वर्चुअल दुनिया से बाहर निकल कर जब आप वास्तविक दुनिया में अपनेआप को विस्तारित करने लगें तो समझिए वास्तव में स्थिति माफी गंभीर है. हाल ही में इन खेलों के प्रभाव से होने वाले अपराधों की खबरों ने चिंता पैदा कर दी है. जब युवावर्ग या किशोर को अपना समय, अपनी ऊर्जा अपने सर्वांगीय विकास में लगानी चाहिए, वे बाल सुधार गृह में भेजे जा रहे हैं और इस की वजह अगर कोई खेल है, तो स्थिति बहुत ही चिंतनीय है. ऐसे में हम सब की जिम्मेदारी बनती है कि हम ऐसे हिंसात्मक खेलों से खुद को दूर रखें. अपने बच्चों पर इतनी नजर जरूर रखें कि वे मोबाइल का सदुपयोग कर रहे हैं या दुरुपयोग.

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डा. लोकरत्न शुक्ल के अनुसार तकनीकी के इस दौर में आउटडोर खेल खेलने वाले बच्चों की संख्या लगातार घटती जा रही है. बाहरी परिवेश में खेले जाने वाले खेल हमारा शारीरिक विकास तो करते ही हैं, साथ में, उन से हमारे अंदर टीमवर्क की भावना भी विकसित होती है. और ऐसे खेल हमें किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.

वयस्कों को भी लत : औनलाइन गेमिंग के शौकीन केवल कम उम्र के बच्चे ही नहीं, बल्कि किशोर व वयस्क भी होते हैं. एक रिपोर्ट की मानें तो यूनाइटेड किंगडम मेें लगभग 200 ऐसे मामले दर्ज हुए हैं जिन में महिलाओं ने अपने पति से तलाक मांगा है, जिस की सब से बड़ी वजह है उन का औनलाइन गेम खेलने के चलते अपनी पत्नियों को समय नहीं दे पाना.

पबजी यानी प्लेयर्स अननोन बैटलग्राउंड एक साउथ कोरियन कंपनी ब्लू होल औपरेट करती है. आज के समय का सब से रोचक व एडवांस फीचर ग्राफिक्स वाला यह गेम इन दिनों लोगों को अपने शिकंजे में जकड़े हुए है. पबजी गेम का डिजाइनर ब्रेंडन ग्रीन है जो आयरलैंड का मूल निवासी है. सब से पहले इस गेम का बीटा वर्जन मार्च 2017 में लौंच हुआ, जिस की सफलता ने इस खेल के लिए एक बड़ा बाजार खोल दिया. इसी कड़ी में फरवरी 2018 में इस का फुल वर्जन एडवांस फीचर के साथ ऐंड्रौयड के प्लेटफौर्म पर परोस दिया गया. यह खेल रोचक तो है लेकिन यह हमें बीमार बना रहा है.

अमेरिकी विशेषज्ञों के अनुसार, यह खेल बच्चों का माइंड डैवलपमैंट रोक रहा है. इस खेल को डिजाइन ही ऐसे किया गया कि इसे खेलने वाले के दिमाग में इस खेल के लिए लालच और जनून पैदा हो जाए. इस में सर्वाइवल टास्क दिए गए हैं. दूसरे को मार कर खुद को बचा रखना ही रैंकिंग को बढ़ाता है. अभी हाल में ही कुछ सट्टेबाजी के मामले भी संज्ञान में आए हैं जिस से इस का दुरुपयोग और बढ़ गया है.

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जब आ जाएं इस की जद में : सिक्के के दो पहलू होते हैं, जहां अच्छाई होती है वहां बुराई भी होती है. दोनों चीजें समानांतर चलती रहती हैं. कोई भी खेल मनोरंजन का साधन मात्र होता है. उसे जनून बनाना, उस खेल का नशा पालना जानबूझ कर आग में कूदने जैसा होता है. अगर आप इस की गिरफ्त में आ जाते हैं तो इस से बाहर भी निकलना आप को खुद ही पड़ेगा.

मनोरोग विशेषज्ञ डा. बी एम त्रिपाठी के अनुसार, गेमिंग डिस्और्डर से बाहर आने के लिए अपना दिमाग दूसरे कार्यों में लगाएं. वह कार्य करें जिस से आप का समुचित विकास हो, परिवार को समय दें व एकांत से बचें.

ऐसे में जब आप गेमिंग डिस्और्डर से जूझ रहे होंगे तो सब से ज्यादा सहायक आप का परिवार ही साबित होगा. अपनों से अपनी बातें शेयर करें, अपनों के साथ अच्छा वक्त बिताएं और जो सब से जरूरी बात है वह यह है कि एकांतवास से बच कर रहें. खुद से लौंग टाइम कमिट करें. अच्छी पत्रिकाएं और पुस्तकें पढ़ने की आदत डालें. इस तरह की बुरी लत से बचाने में पत्रिकाओं में समयसमय पर छपने वाले लेख काफी कारगर साबित हो सकते हैं.

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