अमेठी में राहुल गांधी को हराने के लिये भाजपा ने जो जाल बिछाया उसके तहत गांधी परिवार की ही मेनका और वरुण की सीटों में आपसी फेरबदल कर मेनका को सुल्तानपुर संसदीय सीट से टिकट दिया गया. जिससे गांधी परिवार पर मेनका के हमले राहुल को चुनाव हरा सकें. मेनका ने अपने शुरुआती चुनाव प्रचार में ही विवादस्पद बयान देकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है. यह भी देखना दिलचस्प होगा कि मेनका और स्मृति ईरानी के बीच से राहुल गांधी अमेठी जितने में किस तरह से सफल होते हैं.
‘हम खुले दिल के साथ आये हैं. लेकिन जब आप मुस्लिम भाजपा को वोट नहीं करते हैं तो हमारा दिल टूटता है. मैं चुनाव जीत रही हूं, पर यह जीत मुस्लिमों के बिना अच्छी नहीं लगेगी. इससे दिल खट्टा हो जाता है. फिर जब काम के लिये मुसलमान आता है तो मैं सोचती हूं कि रहने दो क्या फर्क पड़ता है’, मेनका के इस बयान ने उनकी समझदारी पर सवाल उठा दिये हैं. मेनका के बयान पर चुनाव आयोग जो भी संज्ञान ले, पर जनता में इस बयान को लेकर तीखी प्रतिक्रिया है. इस बयान से मेनका की इमेज को नुकसान हुआ है.
मेनका गांधी समझदार हैं. पुरानी राजनैतिक समझ रखती हैं. इसके बाद भी सुल्तानपुर में अपने चुनाव प्रचार में मुस्लिमों को लेकर जो बयान दिया उससे उनको लाभ की जगह नुकसान होने की संभावना अधिक है. मेनका गांधी के इस बयान की रिकार्डिंग वायरल होने के बाद चुनाव आयोग ने मेनका गांधी से जवाब मांगा है. मीडिया को जवाब देते मेनका गांधी ने कहा है ‘उनके बयान को सही से समझा नहीं गया उन्होंने किसी को धमकाया नहीं है.’ कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला कहते हैं ‘मोदी सरकार की मंत्री ने जिस तरह की बात कही है, उनके खिलाफ मुकदमा होना चाहिये.’
इमरजेंसी में था प्रमुख रोल
मेनका संजय गांधी का जन्म 26 अगस्त 1956 को हुआ था. नरेंद्र मोदी की सरकार में महिला और बाल विकास मंत्री हैं. वह एक पशु अधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणविद, और भारतीय राजनीतिज्ञ संजय गांधी की विधवा भी हैं. वह चार सरकारों में मंत्री रही हैं. मेनका ने कानून और पशु अधिकारों पर कई किताबें लिखी हैं. मेनका का जन्म दिल्ली में एक सिख परिवार में हुआ था. उनके पिता भारतीय सेना के अधिकारी कर्नल तरलोचन सिंह आनंद थे और उनकी मां अम्तेश्वर आनंद थीं. संजय गांधी से मेनका की मुलाकात एक पार्टी में हुई. जानपहचान रिश्तों में बदल गई. मेनका ने 23 सितंबर 1974 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय से शादी की.
इमरजेंसी में संजय के राजनीति में उदय को देखा और मेनका को उनके दौरों में लगभग हर बार उनके साथ देखा गया. संजय गांधी के हर अभियान में मेनका उनके साथ रह कर उनकी मदद करती थी. यह अक्सर कहा जाता है कि आपातकाल के दौरान संजय गांधी का अपनी मां पर पूर्ण नियंत्रण था. सरकार की शक्ति प्रधानमंत्री कार्यालय के बजाय संजय गांधी के हाथों में थी. इमरजेंसी के फैसलों में मेनका का पति संजय गांधी को पूरा समर्थन मिलता था. वह इमरजेंसी के हर फैसले में पति के साथ रहती थी. संजय जब भी बाहर होते मेनका साथ जाती थी.
गांधी परिवार से दूरी
मेनका गांधी ने 1977 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी की बुरी हार के बाद पार्टी के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1980 में वरुण गांधी का जन्म हुआ. मेनका सिर्फ तेईस साल की थी और उसका बेटा सिर्फ 100 दिन का था जब उसके पति संजय की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. इंदिरा गांधी के साथ मेनका का रिश्ता संजय की मौत के बाद धीरे-धीरे बिखरने लगा. तब मेनका ने अकबर अहमद डम्पी के साथ राष्ट्रीय संजय मंच की स्थापना की. इसके बाद मेनका गांधी की राजनैतिक विचारधरा बदलती रही. मेनका गांधी ने लोकसभा चुनाव के लिए 1984 के आम चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश से अमेठी निर्वाचन क्षेत्रा का चुनाव लड़ा. यहां वह अपने ही परिवार के राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ी पर राजीव गांधी से वह चुनाव हार गई.
परिवार के खिलाफ लड़ी चुनाव
1988 में मेनका गांधी वीपी सिंह के जनता दल में शामिल हो गईं और महासचिव बनी. नवंबर 1989 में मेनका गांधी ने अपना पहला चुनाव जीता. वीपी सिंह सरकार में पर्यावरण मंत्री राज्य मंत्री बनी. मेनका ने 1992 में संगठन पीपुल फौर एनिमल्स शुरू किया. यह भारत में पशु अधिकारों एवं कल्याण के लिए सबसे बड़ा संगठन है. मेनका गांधी अंतर्राष्ट्रीय पशु बचाव की संरक्षक भी हैं. राजनीति में उनका प्रयोग हमेशा विरोधी दलों ने गांधी परिवार के खिलाफ किया. वीपी सिंह से लेकर नरेन्द्र मोदी तक यह सिलसिला चलता रहा. भाजपा की अटल सरकार और बाद में मोदी सरकार में वह मंत्री रही.
मेनका गांधी ने उत्तर प्रदेश की पीलीभीत लोकसभा सीट से अपना चुनाव लड़ा. सिख बाहुल्य सीट पर मेनका को जीत मिलती रही. 2014 के लोकसभा चुनाव में मेनका गांधी के साथ भाजपा ने उनके बेटे वरुण गांधी को सुल्तानपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया था. मोदी लहर में वरुण गांधी सुल्तानपुर से सासंद तो बन गये पर सुल्तानपुर से लगी अमेठी लोकसभा सीट पर उनका असर भाजपा की मदद नहीं कर सका और कांग्रेस नेता राहुल गांधी वहां से सांसद बनने में सफल रहे. भाजपा ने राहुल गांधी को चुनाव में मात देने के लिये ही वरुण गांधी को सुल्तानपुर और अभिनेत्री स्मृति ईरानी को अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा था. इसके बाद भी राहुल गांधी एक लाख से अधिक वोट से चुनाव जीत गये थे.
राहुल को घेरने आई सुल्तानपुर
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी के चुनाव क्षेत्र को आपस में बदल दिया है. भाजपा ने मेनका गांधी को वरुण की संसदीय सीट सुल्तानुपर से टिकट दिया और मेनका गांधी की संसदीय सीट पीलीभीत से वरुण गांधी को टिकट दिया है. मां-बेटे की सीटों में फेरबदल करके भाजपा अमेठी में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को हराना चाहती है. भाजपा के चुनावी चाणक्य को लगता है कि गांधी परिवार के खिलाफ वरुण गांधी से प्रभावी बयानबाजी और भावुक अपील मेनका गांधी कर सकती हैं.
ऐसे में अगर मेनका ने सही से गांधी परिवार को कठघरे में खड़ा कर परिवार की इमेज को नुकसान पहुंचा दिया तो राहुल गांधी को अमेठी में हारना सरल हो जायेगा. राहुल मेनका और स्मृति ईरानी के बीच फंसकर चुनाव हार जाएंगे. मेनका ने जिस तरह से सुल्तानपुर में वोट के लिये मुस्लिम समुदाय को लेकर टिप्पणी की है उससे वह परेशानी में घिर गई हैं. अपने ऐसे भाषण से वह राहुल का नुकसान कर पाये ना कर पाये पर अपना नुकसान जरूर कर सकती हैं.