मां बनना अब एक चैलेंज बनता जा रहा है. पहले मां का कर्तव्य सुरक्षित घर देना, कपड़ों का खयाल रखना, खाना समय पर देना और वक्त पड़ने पर तिमारदारी करना था. आज मांएं बच्चों को पढ़ाती हैं, उन के कैरियर का खयाल रखती हैं, स्कूलों की पेरैंटटीचर मीटिंगों में जाती हैं, बच्चों की पार्टियां और्गेनाइज  करती हैं और उन्हें घर से स्कूल, स्कूल से जिम, जिम से पार्टी, पार्टी से दोस्तों तक ढोने का काम भी करती हैं.

कम बच्चों ने मांओं की जिम्मेदारियों को बढ़ा दिया है और जैसे जैसे बच्चे स्वतंत्रता का हक जमाने लगे हैं, मांओं को उन की सुरक्षा का खयाल भी रखना पड़ रहा है. बिहार की एक विधायिका अपने बेटे की करतूतों के कारण जेल में बंद है. कितनी ही बेटियों का गर्भपात कराने के लिए मारीमारी फिरती हैं.

विवाह बाद भी वर्षों तक मां की जिम्मेदारी समाप्त नहीं हो रही. बेटियां या बेटे अपने साथी से झगड़ें तो सुलझाने का काम मां के सिर पर आने लगा है. अदालतों के गलियारों में बूढ़ी होती मांएं बच्चों के वैवाहिक मामलों में साथ देती दिखने लगी हैं. यह जिम्मेदारी पहले केवल आदमियों की होती थी पर अब सब गायब हो गए हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए लगी कतारों के आसपास मंडराती मांएं भी दिख जाएंगी. ग्रैजुएशन पार्टियों में मांओं का होना जरूरी हो गया है. मांओं की बढ़ती जिम्मेदारियों ने अब उन्हें ज्यादा समझदार बना दिया है. वे अपना रंगरूप बदलने लगी हैं. अब बच्चे मां को मौडर्न, पढ़ीलिखी, स्मार्ट, सही कपड़ों में देखना चाहते हैं. ब्यूटीपार्लरों में ज्यादा ग्राहक मांएं ही होती हैं, जो अपनी नई जिम्मेदारियों के अनुसार अपनेआप को ढाल रही हैं.

मगर थोड़ा अफसोस यह जरूर है कि बच्चों ने अपनी मांओं को अपना वह प्यारदुलार देना शुरू नहीं किया है, जिस की वे हकदार हैं.

मां की प्रौपर्टी पर नजरें अब ज्यादा जमने लगी हैं. मां को वृद्धावस्था में अकेला छोड़ने पर बच्चों में गिल्ट की भावना चाहे हो पर वे अपने सुखों, कैरियर, पार्टियों को मांओं के लिए बलिदान नहीं कर रहे. मां ने जो 10-15 साल बच्चों के लिए लगाए उस का भुगतान वे अपने बच्चों पर प्यार उडे़ल कर तो कर रहे हैं पर उस मां पर नहीं जिस ने उन्हें बनाया.

इस में कठिनाई यह है कि आज की युवा पीढ़ी पर दोहरा बोझ पड़ने लगा है. एक तरफ अपने बच्चों का और दूसरी तरफ अपने मांबाप का. तेज भागती जिंदगी, प्रतिस्पर्धा, हर समय का डर और फिर 2 पीढि़यों का एकसाथ ध्यान रखना एक चुनौती बन रहा है. अफसोस यह है कि जानकारी का बड़ा स्रोत सोशल मीडिया आज इस पर शांत है. उसे तो चुटकुलों से ही फुरसत नहीं. पर जीवन तो कठोर है और मां की गोद आसानी से नहीं मिलती.

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