हालिया चुनावी हार से सदमे में डूबे शिवराज सिंह चौहान अपनी मौजूदा स्थिति को सहज तरीके से नहीं ले पा रहे हैं. अब उन्हें अपनी ही पार्टी से दरकिनार होने का भय सता रहा है.

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता शिवराज सिंह चौहान 16 जनवरी को उज्जैन में थे, लेकिन इस बार हमेशा की तरह उन्होंने प्रसिद्ध महाकाल मंदिर में जा कर पूजापाठ और अभिषेक नहीं किया. उन के इर्दगिर्द पहले की तरह अधिकारियों, नेताओं और पत्रकारों का जमावड़ा नहीं था, बल्कि उन के समर्थक के तौर पर इनेगिने भाजपा कार्यकर्ता ही थे. शिवराज सिंह को अब जनता में भगवान दिखने लगा है.

यह स्वभाविक है कि 13 साल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान विपक्ष के नेता भी नहीं हैं. वे विधायक ही रह जाते अगर भाजपा आलाकमान उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नहीं बनाता. हालांकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 2 और हारे राज्यों के मुख्यमंत्रियों राजस्थान से वसुंधरा राजे सिंधिया और छत्तीसगढ़ से रमन सिंह को भी पार्टी उपाध्यक्ष बनाया है जिस का मकसद इन तीनों को राज्यों से निकालना है. राष्ट्रीय राजनीति में लाना ही इस फैसले का मकसद है, यह लोकसभा चुनाव के वक्त पता चलेगा.

यह भी सच है कि प्रदेश के लोगों ने पूरी बेरहमी से भाजपा और शिवराज सिंह को नहीं नकारा है बल्कि 230 में से 109 सीटेें दे कर भाजपा और उन का थोड़ाबहुत लिहाज किया है. लेकिन आम लोगों को उन पर तरस ही आता है और दिलों में हमदर्दी भी पैदा होती है जब वे यह देखते हैं कि शिवराज सिंह चौहान अभी भी मुख्यमंत्रीपना छोड़ नहीं पा रहे हैं यानी अपनी स्थिति को सहज तरीके से नहीं ले पा रहे हैं. इस चक्कर में वे और असहज हो उठते हैं. वे कभी खुद को बाहुबली बताते हैं तो कभी कहते हैं कि टाइगर अभी जिंदा है.

पार्टी ने भी मुंह फेरा

भाजपा के यूज ऐंड थ्रो कल्चर का शिकार होने से शिवराज सिंह चौहान भी खुद को बचा नहीं पा रहे हैं.

वे चाहते हैं कि पार्टी की जो साख मध्य प्रदेश में बची है उस का श्रेय उन्हें ही दिया जाए, जबकि अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी अब उन से धीरेधीरे और कूटनीतिक तरीके से किनारा करने में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपना फायदा देख रही है. इस में मोदीशाह का साथ अब तक हाशिए पर पड़े दूसरी पंक्तिके महत्त्वाकांक्षी नेता दे रहे हैं. इन में भी ब्राह्मण लौबी प्रमुख है जिस के अपने सटीक तर्क शिवराज सिंह चौहान को ले कर हैं.

भारी पड़ी ब्राह्मण लौबी

हार के बाद कई वजहें सभी ने गिनाईं लेकिन उमा भारती के नजदीकी माने जाने वाले नेता रघुनंदन शर्मा ने दोटूक कह डाला कि शिवराज सिंह चौहान का ‘माई के लाल’ वाला बयान और वायरल हुआ वीडियो हार की वजह रहा.

इस वीडियो में शिवराज सिंह चौहान दलितों के एक समारोह में हाथ उठा कर यह कहते नजर आ रहे हैं कि जब तक वे हैं तब तक कोई माई का लाल आरक्षण नहीं हटा सकता. इस वीडियो से नाराज सवर्णों ने भाजपा को वोट नहीं दिया और अपनी अलग पार्टी सपाक्स बना ली. चुनाव में उतर कर सपाक्स कुछ खास नहीं कर पाई, लेकिन उस ने भाजपा को खास नुकसान पहुंचाया.

शिवराज सिंह चौहान विपक्ष का नेता बनना चाहते थे लेकिन ब्राह्मण खेमे ने दूसरे नाम इस पद के लिए उछालने शुरू किए. इस पद के लिए जो 3 नाम उछले, हैरत की बात यह है कि वे सभी ब्राह्मणों के थे. मसलन, नरोत्तम मिश्रा, राजेंद्र शर्मा और गोपाल भार्गव.

जब बात मतदान के जरिए नेता प्रतिपक्ष चुनने की होने लगी तो मध्य प्रदेश का मसला निबटाने की जिम्मेदारी अमित शाह ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह को सौंपी जो भोपाल आए और पंडित गोपाल भार्गव को नेता प्रतिपक्ष बनवा गए.

16 जनवरी को उज्जैन में ही उन्होंने फिर अपनी मंशा जता दी कि वे प्रदेश की जनता की सेवा अपनी जान जाने तक करते रहेंगे. यह कोरी भावुकता नहीं थी लेकिन इसे व्यावहारिकता भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि धीरेधीरे शिवराज सिंह का कद पार्टी में बौना होता जा रहा है.

दिग्विजय जैसा हो रहा हाल

चमत्कारों में यकीन करने वाले शिवराज सिंह चौहान बारबार कमलनाथ सरकार को अल्पमत वाली सरकार कहते उस के गिरने का अंदेशा जताते रहते हैं क्योंकि कांग्रेस सरकार 2 बसपा, 1 सपा और 4 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से चल रही है.

न केवल शिवराज सिंह चौहान, बल्कि पूरी भाजपा के सभी नेता कमलनाथ सरकार जल्द गिराने की बात कहते रहते हैं. लेकिन कमलनाथ के कानों पर ऐसे बयानों से जूं तक नहीं रेंगतीं. उलटे, कमलनाथ हर कभी भाजपा को अपना घर देखने की सलाह दे कर जता देते हैं कि 4-6 भाजपा विधायक फोड़ कर कांग्रेस में शामिल करना उन के लिए मुश्किल बात नहीं.

अब शिवराज सिंह चौहान अपनी उपयोगिता और महत्त्व दोनों बनाए रखना चाहते हैं. लेकिन इस के लिए उन के साथ किसी राष्ट्रीय नेता का समर्थन या आश्वासन नहीं है. भले ही शिवराज खेमे में 50 विधायक गिनाए जाते हों पर कांग्रेस और भाजपा में यह मौलिक और सनातनी फर्क कई बार उजागर हो चुका है कि भाजपा अपने नेताओं को पनपने नहीं देती.

इस का एक बेहतर उदाहरण मध्य प्रदेश की धाकड़ और फायरब्रैंड साध्वी उमा भारती हैं जिन्हें हुबली कांड के पहले मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा था. उमा भारती ने साल 2003 के चुनाव में भाजपा की शानदार वापसी मध्य प्रदेश में कराई थी लेकिन जब मुकदमे से निबट कर वे वापस आईं तो आलाकमान ने उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनाया. इस से गुस्साईं उमा भारती ने अपनी अलग भारतीय जनशक्ति पार्टी बना ली थी, लेकिन भाजपा का वोटबैंक वे नहीं तोड़ पाई थीं, इसलिए खामोशी से भाजपा में वापस आ गई थीं और अब केंद्रीय मंत्री हैं.

डेयरी और खेती हैं विकल्प

अब शिवराज सिंह चौहान क्या करेंगे, यह सवाल या जिज्ञासा अच्छेअच्छों को मथे डाल रही है. उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए जाने का फैसला आरएसएस का ज्यादा प्रतीत होता है क्योंकि वह लोकसभा चुनाव तक इन तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों को होल्ड पर रखना चाहता है. इस पद ने शिवराज सिंह का कद बढ़ाने के बजाय घटाया ही है क्योंकि यह सम्मान है तो वह छत्तीसगढ़ में 90 में से महज 15 सीटें हासिल कर भाजपा की फजीहत कराने वाले रमन सिंह को भी बख्शा गया है और 200 में से 73 सीटें लाने वाली वसुंधरा राजे को भी.

जाहिर है यह लोकसभा चुनाव तक के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था है. इस में शिवराज सिंह चौहान का रोल अहम इसलिए भी है कि वे आरएसएस के ज्यादा नजदीक हैं और उन के भविष्य के बारे में आखिरी फैसला मोहन भागवत को ही करना है जो 3 राज्यों की हार के बाद से खामोश हैं. हर कोई उन की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा है. जब तक वशिष्ठ और विश्वामित्र जैसे ऋषिमुनि नहीं बोलेंगे, तब तक, बस, बयानबाजी और कयासबाजी होती रहेगी.

यदि आरएसएस ने भी शिवराज सिंह को उन की प्रतिष्ठा व लोकप्रियता से परे उन की इच्छा के मुताबिक जगह नहीं दी तो उन के पास एकलौता रास्ता या सुनहरा मौका विदिशा का अपना जमींदारों जैसा फार्महाउस और डेयरी की देखभाल करने का बचेगा जिसे मुख्यमंत्री रहते उन्होंने दिल से बनाया है. आरोप या चर्चा यह भी है कि विदिशा में बैस टीला गांव से ले कर ढोलाखेड़ी तक की अधिकतर जमीनें शिवराज ने खरीद रखी हैं. जमीनों की पैदावार और विदेशी नस्लों वाली भैसों के दूध से ही उन्हें करोड़ों की आमदनी हो रही है.

कई मानों में दिग्विजय सिंह और शिवराज सिंह की हालत एक सी है. दिग्विजय सिंह अपने बेटे जयवर्धन सिंह की खातिर राहुल गांधी की घुड़कियां सुनते रहे थे तो अब अगर शिवराज सिंह भी कार्तिकेय को राजनीति में लाने की सोच रहे होंगे तो उन्हें भी कई समझौते करने पड़ेंगे. लेकिन ब्राह्मण लौबी उन का वजूद खत्म करने पर आमादा हो आई है, इस से वे कैसे निबटेंगे, यह देखना दिलचस्पी की बात होगी.

नाथ से भी खा रहे मात

हकीकत में कमलनाथ हर लिहाज से शिवराज सिंह पर भारी पड़ रहे हैं. इस की वजह कमलनाथ का तजरबा और प्रशासनिक क्षमता है. अपने चहेते छिंदवाड़ा से विधायक दीपक सक्सेना को प्रोटेम स्पीकर बनाते वक्त भी उन्होंने सख्त तेवर दिखाते शिवराज सिंह से कहा था कि मुझे कायदेकानून मत सिखाइए, मैं खुद लोकसभा का प्रोटेम स्पीकर रह चुका हूं. चुनाव के पहले जब भाजपाइयों ने कमलनाथ और शिवराज सिंह चौहान की दोस्ती की अफवाह उड़ाई थी और खुद शिवराज सिंह ने उन्हें दोस्त कहा था तो बेरुखी दिखाते कमलनाथ ने उन्हें नालायक दोस्त करार दिया था.

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