पुलिस का मतलब तो यही है- ‘पु’ से पुरुषार्थी, ‘लि’ से लिप्सारहित, ‘स’ से साहसी. लेकिन कानून व्यवस्था के मुद्दे पर अकसर घिरने वाले राज्य उत्तर प्रदेश की पुलिस अपने नाम की कसौटी पर खरा उतरने में खुद को कमजोर महसूस कर रही है. एशिया के औद्योगिक पटल पर अपनी पहचान बना रहे उत्तर प्रदेश के नोएडा जनपद के दादरी थाने की कोट चौकी के इंचार्ज सबइंस्पैक्टर अख्तर खान को 25 अप्रैल, 2016 को सूचना मिली कि नई आबादी इलाके का बाशिंदा व अपराधी जावेद अपने साथियों के साथ आया हुआ है. दरअसल, जावेद हिस्ट्रीशीटर बदमाश था और उस के खिलाफ 15 मकदमे दर्ज थे. दिल्ली व नोएडा पुलिस को उस की तलाश थी. वह सक्रिय गिरोह चलाता था और लूटपाट व डकैती करने में माहिर था.

पुलिस ने उसे पकड़ने की एक योजना बनाई. सुबह तड़के तकरीबन 4 बजे 12 पुलिस वालों की टीम ने उस के घर पर दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिला. पता चला कि वह दूसरे बदमाश फुरकान के घर में छिपा हुआ है. फुरकान के दरवाजे पर दस्तक दी गई. सूचना सही थी. जावेद अपने साथियों के साथ वहां मौजूद था. पुलिस की दस्तक का एहसास शातिर बदमाशों को भी हो चुका था. दरवाजा खुलते ही उन्होंने बेखौफ हो कर फायरिंग शुरू कर दी.

सबइंस्पैक्टर अख्तर खान सब से आगे थे. लिहाजा, एक गोली ने उन का गला चीर दिया. गोलियां चलते ही बदमाशों का सामना करने के बजाय तथाकथित बहादुर पुलिस वाले अपने चौकी इंचार्ज को वहीं छोड़ कर भाग गए. इन में टीम की अगुआई करने वाले थाना प्रभारी भी शामिल थे. यह घटना मामूली नहीं थी. आईजी सुजीत पांडे, डीआईजी लक्ष्मी सिंह समेत कई अफसर दिन निकलते ही दादरी पहुंच गए. किसी ने नहीं सोचा था कि सीने में फर्ज निभाने का जज्बा रखने वाला वरदी वाला यों अपराधियों की गोली का शिकार हो जाएगा. साथी पुलिस वाले उसे छोड़ कर न भागते, तो तसवीर शायद दूसरी होती.

हालांकि लापरवाही के मामले में थाना इंचार्ज होम सिंह यादव को सस्पैंड कर दिया गया. प्रदेश सरकार ने सबइंस्पैक्टर अख्तर खान के परिवार को मुआवजा देने का ऐलान कर दिया. बदमाशों को पकड़ने के लिए टीमें बना दी गईं.

बाद में पुलिस ने जावेद के साथियों को तो गिरफ्तार कर लिया, लेकिन वह हाथ नहीं आ सका. नोएडा के एसएसपी किरन एस. कहते हैं कि मुठभेड़ के लिए जरूरी तैयारियां नहीं की गईं और सावधानी नहीं बरती गई. सीनियर अफसरों को भी इस की जानकारी नहीं थी. अब पुलिस कुछ भी कहे, लेकिन इस से न तो सबइंस्पैक्टर अख्तर खान वापस आएंगे और न ही पुलिस के दामन पर लगा दाग धुलेगा. मुठभेड़ का यह वाकिआ अब सरकारी कागजों में सिमट गया है. यह कोई पहला मामला नहीं है, जब अपराधियों ने किसी वरदी वाले को अपना शिकार बनाया हो. इसी साल बरेली के फरीदपुर थाने में तैनात दारोगा मनोज मिश्र रात को गश्त कर रहे थे. उन्होंने एक गांव की नहर पर पशु तस्करों को पशु ले जाते देखा. मामला तस्करी का था. मनोज व उन के हमराह पुलिस वालों ने 2 पशु तस्करों को पकड़ लिया. अपने साथियों को छुड़ाने के लिए तस्करों के साथियों ने दारोगा मनोज मिश्र को गोली मार दी. गंभीर रूप से घायल मनोज मिश्र को पहले जिला अस्पताल ले जाया गया और फिर बरेली, लेकिन उन की सांसों की डोर टूट गई.

17 फरवरी, 2016 को बदायूं जिले के बिल्सी इलाके में घटा एक वाकिआ भी कम चौंकाने वाला नहीं है. पुलिस को सूचना मिली कि गढ़ौली गांव में एक शख्स तेज आवाज में डीजे बजा रहा है. अगले दिन उत्तर प्रदेश बोर्ड के इम्तिहान शुरू होने वाले थे. बच्चों की पढ़ाई न होने से परेशान लोगों ने इस की शिकायत पुलिस से की थी.\ रिसौली पुलिस चौकी पर तैनात 2 सिपाही मोहम्मद शहीम व भीमसेन गांव में चले गए. दोनों को यकीन था कि पुलिस के डर से डीजे बंद कर दिया जाएगा. डीजे जगतपाल नामक एक शख्स के घर बज रहा था. उस के घर में दरवाजा नहीं था. दोनों पुलिस वाले सीधे अंदर पहुंचे और जगतपाल को फटकारते हुए डीजे बंद करने को कहा. सिपाहियों का यह रवैया जगतपाल और उस की पत्नी को नागवार गुजरा और उन्हें अपनी शान के खिलाफ लगा. गलती मानने या नसीहत पर अमल करने के बजाय वे पुलिस वालों से ही भिड़ गए. उन्होंने कुल्हाड़ी व फावड़े से दोनों पर हमला बोल दिया. दोनों सिपाहियों को ऐसी कतई उम्मीद नहीं थी. इस हमले में दोनों सिपाही लहूलुहान हो कर गिर गए और जगतपाल परिवार समेत भाग गया.

पुलिस अफसर मौके पर पहुंचे. सिपाहियों को पहले जिला अस्पताल, फिर बरेली उपचार के लिए भेजा गया. लेकिन इस दौरान सिपाही मोहम्मद शहीम की मौत हो गई. पुलिस ने मौके से कुल्हाड़ी, डंडे व फावड़ा बरामद कर लिया. हालांकि बाद में ताबड़तोड़ दबिशों के बाद जगतपाल को परिवार समेत गिरफ्तार कर लिया गया. पता चला कि वह झगड़ालू स्वभाव का था और हर रोज तेज आवाज में डीजे बजाना उस की आदत थी. पुलिस वालों की निजी लड़ाई के मामले नहीं, बल्कि ड्यूटी करते वक्त उन्हें शिकार बनाया गया. इलाहाबाद में यमुनापार के बारा थाना प्रभारी आरपी द्विवेदी फर्ज निभाते हुए शहीद हो गए. वाकिआ एक साल पहले का है. एक दोपहर उन्होंने सूचना के बाद लूटी गई संदिग्ध इंडिगो कार को रोकने की कोशिश की, लेकिन जब वह नहीं रुकी, तो उन्होंने उस का पीछा शुरू कर दिया और इलाहाबादबांदा सफर पर कार को ओवरटेक कर के रोक दिया. इस बीच उन्होंने अतिरिक्त फोर्स की मांग भी कर डाली थी. खुद को घिरा पा कर कार सवारों में से एक ने नीचे उतर कर बेखौफ अंदाज में उन के सीने में गोली उतार दी. वे नीचे गिर पड़े और कार सवार भाग गए.

खाकी का खौफ तब भी बढ़ा, जब प्रतापगढ़ के कुंडा में 2 पक्षों के बीच गोलीबारी में प्रधान की हत्या के बाद हालात काबू करने पहुंचे सीओ जियाउल हक की सरेआम गोली मार कर हत्या कर दी गई. एक साल पहले सहारनपुर जिले में भी सिपाही राहुल ढाका की बदमाशों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी और उन के साथी पुलिस वाले डर कर भाग गए थे. फतेहगढ़ जिले में तैनात इंस्पैक्टर राजकुमार सिंह को एक अपराधी ने उस वक्त गोली मार दी थी, जब वे दबिश देने गए थे. बरेली के कमठैना गांव में 2 पक्षों के बीच तनातनी थी. गांव के एक दबंग तौफीक ने पुलिस को गालियां दीं. किसी ने यह रेकौर्डिंग पुलिस तक पहुंचा दी. झगड़ा सुलझाने की नीयत से पुलिस गांव पहुंच गई. दबंग तौफीक को यह नागवार गुजरा. उस ने न सिर्फ दारोगा खीम सिंह व सिपाही विनय पर हमला बोल कर उन्हें घायल कर दिया, बल्कि विनय की रायफल भी तोड़ डाली. हालांकि बाद में उस दबंग को पकड़ने में पुलिस कामयाब हो गई. कानपुर के देवहा गांव में जमीन पर गलत ढंग से निर्माण की सूचना पर पहुंचे 2 पुलिस वालों की दबंगों ने रायफलें छीन लीं और उन्हें बंधक बना लिया. कई थानों की फोर्स ने पहुंच कर उन्हें छुड़ाया.

4 मई, 2016 को मैनपुरी जिले के बरिहा में पुलिस एक अपराधी मजबूत सिंह की तलाश में दबिश देने गई. स्कार्पियो कार सवार बदमाश व उस के साथियों ने पुलिस जीप को टक्कर मारी और पुलिस पर हमला बोल दिया. इस हमले में पुलिस वाले घायल हो गए. मुजफ्फरनगर के जोगियाखेड़ा गांव में एक दारोगा व 5 सिपाही दबिश डालने गए. इस दौरान लोगों ने लाठीडंडों व धारदार हथियारों से पुलिस पर हमला बोल दिया. सिपाहियों से मारपीट करते हुए उन के वायरलैस सैट व हथियार छीनने की कोशिश की गई. उन्हें बंधक बना लिया गया. बाकी पुलिस बल के पहुंचने पर उन्हें छोड़ा गया. सहारनपुर के मंझार गांव में भी कुछ ऐसा ही हुआ. एक दारोगा व सिपाही गैरकानूनी खनन व मारपीट के आरोपी को पकड़ने पहुंच गए. दोनों को बंधक बना कर पीटा गया और दारोगा की पिस्टल भी लूट ली गई. दोनों बमुश्किल अपनी जान बचाने में कामयाब हुए. हापुड़ में पुलिस को भीड़ ने पत्थर ले कर दौड़ाया, तो रामपुर में 24 अप्रैल, 2016 को सड़क बनाने के नाम पर घरों को उजाड़ने का विरोध कर रहे लोगों ने डंडों के बल पर दर्जनों पुलिस वालों को दौड़ा दिया. ऐसा करने वाले लोगों के खिलाफ कोई सख्त कार्यवाही नहीं होती, बल्कि जम कर राजनीति होती है और मामले सुलहसमझौते से दबा दिए जाते हैं. लोगों को भी पक्का भरोसा होता है कि जिन्हें वे वोट देते हैं, उन्हें बचा लेंगे.

राजनीतिक दखल ने पुलिस की गरिमा को सब से ज्यादा चोट पहुंचाई है. मामूली बात पर नेता और उन के गुरगे भी पुलिस को पीट देते हैं. कोई वरदी फाड़ता है, तो कोई थप्पड़ रसीद करता है. ऐसे में पुलिस कार्यवाही करने के बजाय बैकफुट पर आ जाती है और मारपीट का शिकार हुए पुलिस वालों को समझा कर शांत कर दिया जाता है. कई बार उलटे उन के खिलाफ ही अफसर कार्यवाही कर देते हैं. ट्रांसफर से ले कर लाइन हाजिर और सस्पैंड होने की तलवार उन पर लटका दी जाती है. हालत तब और भी बुरी हो जाती है, जब पुलिस पर थाने, चोकियों में घुस कर ही हमला कर दिया जाता है. कानून के रखवालों को सफेदपोश कठपुतली समझते हैं. ऐसे रखवाले भी कम नहीं, जो इलाके के नेताओं की जीहुजूरी करते हैं. किस को पकड़ना है, किस को छोड़ना है या किस के खिलाफ कार्यवाही करनी है, यह सब भी कई सफेदपोश तय करते हैं. ऐसे हालात पुलिस को और भी बेचारा बना रहे हैं. पूर्व डीजीपी जगमोहन यादव ने ऐसे मामलों में यह कह कर अफसरों पर ठीकरा फोड़ दिया कि किसी पर राजनीतिक दबाव नहीं होता. ऐसा कहने वाले अफसर निकम्मे और नालायक होते हैं.

एक और पूर्व डीजीपी ब्रजलाल कहते हैं कि पुलिस का इकबाल खत्म हुआ है. यही वजह है कि आपराधिक वारदातों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है.  एडीजी मुकुल गोयल भी मानते हैं कि ट्रेनिंग की कमी के चलते पुलिस पर हमले हो रहे हैं. थानों में बिचौलियों और दलालों का भी अपना राज होता है. गरीब तबके को इंसाफ के लिए ठोकरें खानी पड़ती हैं. उस के पास न पैसा होता है, न बल और न ही कोई सिफारिश. थानों के चार्ज काबिलीयत के आधार पर नहीं, बल्कि जुगाड़बाजी और जातीय आधार पर दिए जाते हैं. मुखबिर तंत्र फेल है. आम जनता व पुलिस के बीच तालमेल की कमी होती है. यह भी बड़ा सच है कि पुलिस के मधुर रिश्ते कई बार आम जनता से कम दलालों और अपराधियों से ज्यादा होते हैं. पुलिस वाले कई बार खुद भी अपराधों में लिप्त हो जाते हैं. ऐसे में अपराधी बेखौफ तो होंगे ही. पुलिस वालों को अब ऐसे हमलों से बचने के गुर सिखाए जा रहे हैं. अपराधियों का डर आम जनता को ही नहीं, बल्कि पुलिस को भी सताता है. सब से बड़ा सवाल यही है कि जब पुलिस ही खौफ का शिकार होगी, तो आम जनता की हिफाजत की उम्मीद किस से की जा सकती है. पुलिस ऐसी चुनौतियों का क्यों शिकार हो रही है, जरूरत उस के निदान की है

लुट जाते हैं सरकारी हथियार

उत्तर प्रदेश में शामली जिले के पेलखा गांव में सिपाही ओमकार व होमगार्ड धर्म सिंह गश्त पर निकले थे. रास्ते में बदमाश राहगीरों से लूटपाट कर रहे थे. बदमाशों ने उन्हें भी घेर लिया और मारपीट करते हुए उन की रायफलें लूट लीं. होमगार्ड ने विरोध किया, तो बदमाशों ने उसे गोली मार दी. बदमाश लूटपाट कर के फरार हो गए. इसी तरह सहारनपुर में गश्त कर के आ रहे दारोगा ज्ञान सिंह व होमगार्ड राजेंद्र की मोटरसाइकिल को बदमाशों ने टक्कर मार कर गिरा दिया. उन के साथ मारपीट करते हुए बदमाशों ने लूटपाट की. मथुरा की बजाना चौकी पर तैनात सिपाही रामवीर व कृष्ण कुमार रात को मोटरसाइकिल से गश्त पर निकले थे. अगली सुबह उन की लाश खेत में मिली. उन के कपड़े फटे थे. शरीर पर चोटों व गोली के निशान थे.

गाजियाबाद के साहिबाबाद में लूट का विरोध करने पर बदमाशों ने एक सिपाही जितेंद्र कुमार को चाकुओं से गोद डाला था. एक साल पहले सहारनपुर के नांगल रोड पर लूटपाट कर रहे बदमाशों ने एक दारोगा से उस की सर्विस रिवाल्वर लूट ली. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुख्यात अपराधी अमित भूरा को उस के साथियों ने पुलिस पर हमला कर के छुड़ा लिया. अपराधी पुलिस की अत्याधुनिक रायफलें भी लूट कर ले गए. लूटकांड के एक आरोपी पंकज जाट को 4 पुलिस वालों की टीम मथुरा की कोर्ट में पेशी के बाद बस से फिरोजाबाद ले जा रही थी.बस में सवारी बन कर बैठे उस के साथियों ने पुलिस टीम पर हमला कर के उसे छुड़ा लिया. एक सिपाही ने विरोध किया, तो उसे गोली मार दी गई.

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