कहने वाले गलत नहीं कहते हैं कि प्यार अंधा होता है और इस में ठगी अकसर वे लड़कियां जाती हैं, जो अपने आशिक पर आंखें मूंद कर जरूरत से ज्यादा भरोसा करती हैं. बदलते दौर में बहुत जल्द ही वे अपना सबकुछ उन को सौंप देती हैं. आएदिन ऐसे मामले उजागर होने लगे हैं, जिन से यह साबित होता है कि इश्क में माशूका और आशिक ने कुछ दिन एकसाथ काटे, इस के बाद आशिक शादी के अपने वादे से मुकर गया या फिर कन्नी काटने लगा. 2-4 फीसदी मामलों में ही लड़कियां खुद ही सच उजागर करते हुए बवाल मचाती हैं, पर तब तक उन के पास रोने के अलावा कुछ और नहीं रह जाता, क्योंकि उन की जिंदगी बरबाद हो चुकी होती है. प्यार में अंधी हो कर अपने आशिक की असलियत और मंशा को न समझ पाने का खमियाजा 28 साला पार्वती (बदला नाम) रोतेसुबकते भुगत रही है.

यों दी दगा

पार्वती को अपने ही शहर सीहोर, मध्य प्रदेश के एक नौजवान रवि सिसोदिया से प्यार हो गया था. दरअसल, रवि के पहले वह उस के भाई अजय को चाहती थी, जिस की बेवक्त मौत हुई, तो वह टूट सी गई थी. ऐसे वक्त में उसे रवि ने सहारा दिया और बड़ेबड़े वादे किए, जिन में से एक शादी कर लेने का वादा भी था. अजय की मौत का गम रवि के प्यार ने भुला दिया, तो जल्द ही पार्वती ने उसे अपना जिस्म भी सौंप दिया. यही रवि चाहता था. आशिक की नीयत का खोट पार्वती वक्त रहते समझ नहीं पाई और कठपुतली की तरह उस के इशारों पर नाचने लगी. सीहोर छोटा और घना शहर है. लिहाजा, वहां हमेशा मिलनेजुलने और हमबिस्तर होने का मौका सहूलियत से नहीं मिलता था, फिर भी दोनों के बीच कोई परदेदारी नहीं रही थी. बात जब शादी की आई, तो रवि ने पार्वती को समझाया कि यहां शादी करेंगे, तो घर और समाज वाले हल्ला मचाएंगे, इसलिए इंदौर चल कर रहते हैं. कुछ दिनों बाद जब सबकुछ ठीक हो जाएगा, तो वापस आ जाएंगे और सभी थोड़ीबहुत नानुकर व नाराजगी के बाद हमें एक होने की मंजूरी देने पर मजबूर हो जाएंगे.

पार्वती उन दिनों पेट से हो गई थी. लिहाजा, वह समझ नहीं पाई कि रवि की असल मंशा यह है कि इंदौर जा कर बच्चा गिरवा दे और न गिरवा पाए तो भी कोई बात नहीं, कम से कम कोई शादी के बाबत दबाव तो नहीं बनाएगा. अपने आशिक से यह सुन कर पार्वती का भरोसा और बढ़ा कि उस ने इंदौर में रहनेखाने का इंतजाम कर रखा है. फिर एक दिन वह चुपचाप रवि के साथ बस में बैठी और इंदौर जा पहुंची यानी घर से भाग गई. इंदौर में सचमुच रहने के लिए रवि ने सिलिकौन सिटी अपार्टमेंट्स में फ्लैट ले रखा था. लिहाजा, किसी तरह का शक पार्वती को नहीं हुआ. वक्त कटता गया. रवि चूंकि खातेपीते घर का था, इसलिए पैसों की उस के पास कमी नहीं थी. दिन पूरे हुए, तो पार्वती ने अस्पताल में एक बेटी को जन्म दिया. प्यार की यह निशानी अभी घुटनों के बल चलना सीख ही रही थी कि रवि एकाएक गायब हो गया. 2-3 दिन तो जैसेतैसे पार्वती ने उस के इंतजार में काटे, लेकिन जब रवि लौट कर नहीं आया तो उसे घबराहट होने लगी. जल्द ही उस ने पड़ोसियों और जानपहचान वालों को सच बता दिया, तो सभी ने उसे इस दगाबाज आशिक के खिलाफ थाने में जा कर रिपोर्ट लिखवाने का मशवरा दिया.

अब तक पार्वती को भी समझ आ गया था कि रवि ने उसे खूबसूरती से धोखा दिया है और गोद में नन्ही बच्ची थमा कर भाग गया है. लिहाजा, वह 10 अप्रैल, 2016 को इंदौर के राजेंद्र नगर थाने पहुंची और रवि के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी.

लेकिन बरबाद तो हुई

इस मामले में अहम बात यह है कि अब पार्वती का क्या होगा, जो एक बिनब्याही मां है? उसे कौन अपनाएगा? जाहिर है, कोई उसे सहारा नहीं देगा. अब पार्वती अकेली है और उसे अपने दम पर जिंदगी काटनी है और मासूम बेटी की परवरिश भी करनी है. आशिक तरहतरह से अपनी माशूकाओं को ठगा करते हैं और धोखा दिया करते हैं या ऐसी दगाबाजियां करते हैं, जिन के बाद माशूका के पास सिवा पछताने के कुछ नहीं रह जाता. इस लिहाज से यह चिंता की बात जरूर है. वजह, जिस्मानी ताल्लुकात बनाना बेहद आसान काम है, लेकिन बाद के अंजाम की चिंता या परवाह न करना बेवकूफी है, जिस में परेशानियां सिर्फ लड़की के हिस्से में आती हैं. क्यों नहीं पार्वती जैसी लड़कियां अपना पेट गिरवा लेतीं? यह सवाल भी अहम है. आशिक के प्यार की निशानी को नाजायज तरीके से पेट में रखे रह कर पैदा करने की कोई तुक नहीं है. अपने दम पर बच्चे की परवरिश कर पाना कोई हंसीखेल नहीं है, वह भी उस सूरत में जब गांठ में पैसा या रोजगार न हो.

लड़कियां ज्यादा जज्बाती होती हैं और प्यार के दौरान ख्वाबोंखयालों में जीती रहती हैं, जिन्हें उन का आशिक चिकनीचुपड़ी बातें करते हुए और हवा देता रहता है, जिस से वे उस की बदनीयती न समझ पाएं. क्या ऐसे आशिक वाकई प्यार करते हैं? इस सवाल का जवाब शायद ही कोई हां में दे. जिस की मंशा ही महज जिस्म हो, वह क्या खा कर साथ निभाएगा. लड़कियों को प्यार करने से पहले अच्छी तरह सोच लेना चाहिए कि आज भी मर्दों का कुछ खास नहीं बिगड़ता, न ही उन के चालचलन या गलती पर कोई उन्हें कोसता या कुसूरवार ठहराता है. उलटे लड़की को ही कुलटा कहने वालों की फौज खड़ी हो जाती है.

पहचानें दगाबाजों को

फिर इस समस्या का हल क्या है, जिस से आशिक की नीयत का पता चल सके? हालांकि इस बात का कोई तयशुदा पैमाना नहीं है, फिर भी वक्त रहते कुछ एहतियात बरते जाएं, तो लड़कियां धोखा खाने से खुद को बचा सकती हैं: * दगाबाज आशिक आमतौर पर बेरोजगार, निकम्मे और दिखावा करने वाले होते हैं. इन की एक खूबी चाशनी में डूबी प्यार भरी बातें करने की होती हैं. ये माशूका को सैक्स करने के लिए धीरेधीरे उकसाते रहते हैं. * ये कभी किसी बात के लिए सीधे मना नहीं करते, इसलिए महबूबा इन से खुश रहती है और इस तरफ उस का ध्यान ही नहीं जा पाता कि जो हर बात में ‘हांहां’ कर रहा है, वह उन से ही अपनी बात बड़ी चालाकी से मनवा भी भी रहा है.

* दगाबाजी की पहली पहचान आशिक का यह कहना होता है कि सैक्स तो प्यार का हिस्सा है. इसे करने में कुछ गलत नहीं. आजकल तो सभी ऐसा करते हैं. फिर कुछ हुआ, तो मैं हूं न. क्या मुझ पर तुम्हें इतना भी भरोसा नहीं?

पर हकीकत में जब ऐसा कुछ हो जाता है, तो ये कहीं नहीं होते, बल्कि मुंह छिपा कर माशूका से भाग रहे होते हैं. थोड़ाबहुत डरें तो माशूका के पेट से हो जाने के बाद बच्चा गिराने का राग अलापने लगते हैं, पर यह आसान काम नहीं है.

डाक्टर और नर्सिंग होम वाले तमाम तरह के सवाल पूछते हैं और जरूरी खानापूरी करवाते हैं, इसलिए ये माशूका को उस के हाल पर छोड़ देते हैं. कई बार जब बात खुलती है, तो ये अपनी कारगुजारी से साफ मुकर भी जाते हैं. जवानी में हमबिस्तरी की इच्छा आम है, पर इसे करने से पहले लड़कियों को आगेपीछे सोच लेना चाहिए कि अगर कंडोम या दूसरी सावधानियां नहीं बरतीं, तो लेने के देने पड़ सकते हैं. कई दफा जल्दबाजी में संबंध बन जाते हैं और नतीजा निकलता है पेट से होना, जिस का अंदाजा और तजरबा लड़कियों को नहीं रहता और जब पता चलता है, तो 2-3 महीने निकल चुके होते हैं. इस के बाद इतना ही वक्त क्या करें और कैसे करें, यह सोचने में कट जाता है. इस पर भी समाज का डर उन के मन में समाया रहता है.

अगर आशिक की मंशा दगा देने की नहीं है, तो वह घरपरिवार तो दूर की बात है, वाकई पहले अपने कहे मुताबिक जमाने से टकरा जाएगा. पर ऐसा अकसर होता नहीं है. होता यह है कि आशिक हाथ खड़े कर देता है कि अब तुम जानो और तुम्हारा काम जाने. रवि जैसे आशिक तो महादगाबाज होते हैं, जो घर वालों के डर से चोरीछिपे माशूका को कहीं और ले जा कर पेट गिरवा देते हैं. चूंकि ऐसे आशिकों को माशूका और बच्चा बोझ लगने लगते हैं, इसलिए ये भाग जाते हैं. यह इन्हें समझ आ जाता है कि अब बच्चों से बंधी माशूका सिर्फ फड़फड़ा कर रह जाएगी और उस का कुछ खास नहीं बिगड़ेगा.बात सच भी है, क्योंकि कानून ऐसी लड़कियों की ज्यादा मदद नहीं कर पाता और कोई उन्हें पनाह नहीं देता. लिहाजा, बच्चा गोद में लादे अपनी नामसमझी को कोसती और रोती माशूका सोचती रह जाती है कि कैसे एक नादानी के चलते अच्छीखासी जिंदगी बरबाद हो गई.

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