लोकसभा चुनाव से लगभग 3 महीने पहले 11 जनवरी को ‘द ऐक्सिडैंटल प्राइम मिनिस्टर.’ फिल्म रिलीज हुई. इस से पहले इस फिल्म का ट्रेलर पिछले वर्ष 27 दिसंबर को जारी हुआ. जिस के बाद से भाजपा और कांग्रेस आमनेसामने थीं. दोनों के बीच कई दिनों तक तकरीबन हर टीवी चैनल, अखबार और सोशल मीडिया पर ऐसी जबानी जंग छिड़ी रही जिस से हर घर को पता चल गया कि मनमोहन सिंह के बारे में बनी ‘द ऐक्सिडैंटल प्राइम मिनिस्टर’ फिल्म जल्दी ही थिएटरों की शोभा बढ़ाने वाली है.

कांग्रेस ने इसे भ्रामक प्रचार, मनमोहन सिंह को बदनाम करने की साजिश बताया तो भाजपा की ओर से कहा गया कि यह कहानी है कि कैसे एक परिवार ने देश को 10 साल तक बंधक बना कर रखा. तब कई फिल्म समीक्षकों ने कहा कि इस चुनाव में नया ट्रैंड शुरू होगा. आम चुनाव तक कई बायोपिक रिलीज होने वाले हैं जो इस बात का संकेत है कि वोट के लिए फीचर फिल्में इस्तेमाल की जाएंगी.

वे समीक्षक गलत नहीं थे. पिछले चुनाव में सोशल मीडिया का इस्तेमाल हुआ था, इस बार फीचर फिल्मों का होगा. चुनावों को ध्यान में रख कर इस महीने 4 बायोपिक रिलीज हुए हैं. उन के पीछे एक राजनीतिक मकसद है कि आखिर फिल्में दर्शकों की सोच को प्रभावित करती हैं.

हर शुक्रवार फार्मूला फिल्में परोसने वाले बौलीवुड को पिछले कुछ समय से अचानक बायोपिक का चस्का लग गया है. कुछ राजनीतिक दल चुनाव के मौसम में चुनावप्रचार के लिए इस का जम कर इस्तेमाल कर रहे हैं. इस साल के पहले महीने में ही अब तक 4 बायोपिक प्रदर्शित हो चुके हैं, चुनाव तक कई और आने वाले हैं.

‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’ तो डेढ़ सौ करोड़ कमा कर सौ करोड़ी क्लब में ऐंट्री पा चुकी है. पहले लगा था कि कहीं सिर्फ भाजपा वालों का यह नया चुनावी हथकंडा तो नहीं है, मगर अब लगता है कि कई पार्टियां फिल्मों का अपनी बात वोटरों तक पहुंचाने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं. इन में भाजपा सब से आगे है. इस के साथ यह भी सवाल उठने लगा है कि ये राजनीतिक बायोपिक चुनावी लाभ पहुंचाने में कहां तक सफल होंगे.

ये फिल्में चुनावी रूप से कितनी सफल होंगी, यह अभी से कहना मुश्किल है मगर ये फिल्में अपनी पब्लिसिटी खुद कर लेती हैं. फार्मूला फिल्मों को अपने प्रचार के लिए कोई न कोई कंट्रोवर्सी गढ़नी पड़ती है. मगर राजनीतिक बायोपिक के साथ तो कंट्रोवर्सी खुद खिंची चली आती है. उन को टीवी, अखबार और सोशल मीडिया चटखारे लेले कर उछालता है. सो, हींग लगे न फिटकरी और पब्लिसिटी पूरी.

वोट की खातिर फिल्में

वैसे अभी चुनाव के लिए फिल्मों के इस्तेमाल के सिलसिले में जो हिंदी फिल्में सामने आ रही हैं उन्हे देख कर लगता है कि यह भाजपा खेमे की पार्टियों द्वारा वोट के लिए फिल्मों के इस्तेमाल की सुनियोजित कोशिश है. जैसे, ‘द ऐक्सिडैंटल प्राइम मिनिस्टर’.  कांग्रेस पार्टी और उस की सरकार के 10 वर्ष तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को बदनाम करने की कोशिश है.

यह फिल्म दिखाती है कि मनमोहन सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथों की  कठपुतली मात्र थे. स्वतंत्ररूप से वे कोई फैसला नहीं ले पाते थे. इस के साथ रिलीज हुई ‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’ मोदी सरकार की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में थी जिसे विपक्ष फर्जीकल स्ट्राइक कहता है. यह फिल्म यह दिखाने की कोशिश है कि मोदी सरकार किस तरह साहसी फैसले लेने की क्षमता रखती है.

‘मणिकर्णिका – द क्वीन औफ झांसी’ के जरिए भाजपा ने अपने राष्ट्रवाद के एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की है. ‘ठाकरे’ के जरिए भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने हिंदुत्व की विचारधारा को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया है. यह भाजपा के प्रचार का पैटर्न है. आप सोच रहे होंगे कि सारा तामझाम हो और मोदी

न हों, यह भला कैसे संभव है. मोदी के बिना भाजपा का प्रचार आगे बढ़ ही नहीं सकता. आप को बता दें कि चुनाव से पहले मोदी पर भी फिल्में दिखाई जाएंगी.

‘द ऐक्सिडैंटल प्राइम मिनिस्टर.’ फिल्म तो साफसाफ भाजपा की करतूत नजर आती है. फिल्म के निर्देशक विजय रत्नाकर गुट्टे हैं. यह उन की पहली फिल्म है. बता दें कि बीते अगस्त महीने में विजय रत्नाकर गुट्टे को 34 करोड़ रुपए से ज्यादा की वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) धोखाधड़ी मामले में गिरफ्तार किया गया था. गुट्टे चीनी कारोबार से जुड़े उद्योगपति रत्नाकर गुट्टे के बेटे हैं. रत्नाकर गुट्टे ने 2014 में महाराष्ट्र के परभणी जिले के गंगाखेड़ से भाजपा गठबंधन की तरफ से 2014 का विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन वे हार गए थे.

गुट्टे की गिरफ्तारी ऐसे समय में हुई है जब उन के पिता की कंपनी पर 5,500 करोड़ रुपए की बैंक धोखाधड़ी का आरोप लगा है. इस तरह, उन के भाजपा से रिश्ते हैं. इसलिए भाजपा के आधिकारिक फेसबुक और ट्विटर अकाउंट से फिल्म के ट्रेलर को साझा किया गया. इस के बाद से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की ओर से भाजपा पर निशाना साधा गया.

दूसरी तरफ कांग्रेस नेताओं ने अनुपम खेर अभिनीत फिल्म ‘द ऐक्सिडैंटल प्राइम मिनिस्टर’ को अपनी पार्टी के खिलाफ भाजपा का दुष्प्रचार करार दिया. इस के बाद, महाराष्ट्र यूथ कांग्रेस के नेताओं ने धमकी दी थी कि फिल्म रिलीज होने से पहले वे इस की स्क्रीनिंग चाहते हैं और अगर उन की मांग पूरी नहीं की गई तो वे इस फिल्म को देश में कहीं भी रिलीज नहीं होने देंगे. उधर, फिल्म में मनमोहन सिंह का किरदार निभा रहे अनुपम खेर ने कहा कि यह मेरा अब तक का सब से बेहतरीन अभिनय है.

‘यह एक राजनीतिक फिल्म है,’ फिल्म को ले कर शुरू हुए विवाद पर खेर ने कहा, ‘यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला है. हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं, लेकिन बात जब इसे लागू करने की होती है तो सभी लोग पीछे हट जाते हैं.’

अनुपम खेर की दलील के बावजूद यह गंभीर राजनीतिक फिल्म नहीं, बल्कि प्रोपेगंडा फिल्म है. इस की ट्रैजडी यह है कि प्रोपेगंडा फिल्म बनने में भी यह फेल हो गई है. यानी फिल्म ने प्रोपेगंडा करने की कोशिश की है मगर यह कोशिश पूरी तरह असफल हो गई. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब पर आधारित पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के राजनीतिक जीवन पर बनी इस फिल्म के ट्रेलर रिलीज होने के बाद जैसा होहल्ला मचाया गया था, फिल्म में वैसा कुछ भी नहीं है. साफ शब्दों में कहें तो यह बेहद ही कमजोर फिल्म है.

फिल्म में वही है, जैसा लगभग उस समय सरकार को ले कर धारणा थी. फिल्म में सोनिया गांधी पर निशाना साधा गया है. सत्ता के 2 केंद्र हैं, पीएम पर एक परिवार का दबाव है, गठबंधन की मजबूरियां हैं. यह बात लगभग हर जबान पर थी. मनमोहन सिंह दूसरे कार्यकाल में लगातार कमजोर होते चले गए. पहले कार्यकाल के बाद उन्हें  ‘सिंह इज किंग’ कहा जाता था, लेकिन बाद में उन्हें अंदर ही अंदर कमजोर किया जाता रहा. फिल्म में ऐसा ही दिखाया गया है.

दर्शकों के लिहाज से कहें तो जो थोड़ीबहुत राजनीतिक रुचि रखते हों वही इसे देख सकते हैं. पूरी कहानी बिखरी हुई है और कई बार यह एक पौलिटिकल डौक्युमैंट्री टाइप की लगती है, फीचर फिल्म नहीं.

इस के साथ ही ‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’ भी रिलीज हुई. फिल्म पाकिस्तान के खिलाफ भारत द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर है. 18 सितंबर, 2016 को उरी हमले में भारतीय सेना के 19 जवान शहीद हुए थे, जिस के जवाब में भारतीय सेना ने पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक की थी. फिल्म उसी रात की कहानी को परदे पर ले कर आई है. सर्जिकल स्ट्राइक सेना का अभियान था, मगर मोदी सरकार ने इसे राजनीतिक रूप से भुनाने की पूरीपूरी कोशिश की.

फिल्म में परेश रावल, कीर्ति कुल्हारी, यामी गौतम और मोहित रैना ने अहम भूमिका निभाई है. ऐक्टर विक्की कौशल की फिल्म ‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’ ने बौक्सऔफिस पर काफी धमाल मचा रखा है.

राजनीतिक रंग

भाजपा की राज्य सरकारें इस से मनोरंजन कर माफ कर सकती हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फिल्म ‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’ को प्रदेश में टैक्सफ्री कर दिया है. टिकट के दाम कम हो जाने से ज्यादा से ज्यादा दर्शक सिनेमाघरों की ओर रुख कर रहे हैं.

यह फिल्म हालिया रिलीज हुईं कंगना रनौत की ‘मणिकर्णिका’ और नवाजुद्दीन सिद्दीकी की ‘ठाकरे’ को टक्कर दे रही है. इस फिल्म का ‘हाउज द जोश’ डायलौग काफी फेमस हो रहा है. यह फिल्म बौक्सऔफिस पर धूम मचा रही है, मगर इस के साथ रिलीज हुई ‘द ऐक्सिडैंटल प्राइम मिनिस्टर.’ का तो बौक्सऔफिस पर ऐक्सिडैंट ही हो गया, बहुत कम कमाई हुई. कुल मिला कर लोग अच्छी फिल्म पसंद करते हैं, प्रोपेगंडा नहीं. प्रोपेगंडा भी हो तो मनोरंजन की चाशनी में लिपटा हुआ.

वोट के लिए भाजपा शहीदों को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही. रिपब्लिक डे के मौके पर रिलीज हुई कंगना रनौत की रानी झांसी पर बनी फिल्म ‘मणिकर्णिका’ को भाजपा के एजेंडे का हिस्सा माना जा रहा है. ‘पद्मावत’ की तरह ही करणी सेना ‘मणिकर्णिका’ का विरोध करने की धमकी दे रही थी. हालांकि, जहां ‘पद्मावत’ की रिलीज से पहले दीपिका ने चुप्पी साधी थी, वहीं, कंगना रनौत ने करणी सेना की धमकियों का मुंहतोड़ जवाब दिया. वे फिल्म की निर्देशक भी हैं.

करणी सेना ने आरोप लगाया कि फिल्म में झांसी की रानी के किरदार को गलत तरीके से दिखाया गया है. फिल्म में दिखाया गया है कि रानी लक्ष्मीबाई का ब्रिटिश सैनिक के साथ अफेयर था. इस के अलावा फिल्म में रानी लक्ष्मीबाई को एक गाने में डांस करते हुए भी दिखाया गया है.

फिल्म की मेकिंग के दौरान ब्राह्मणों के संगठन सर्व ब्राह्मण महासभा ने फिल्म का विरोध किया था. इस कंट्रोवर्सी से पद्मावत तो सुपरडुपर हिट हो गई मगर ‘मणिकर्णिका’ बहुत ज्यादा सफल नहीं हो पाई.

‘मणिकर्णिका’ के प्रदर्शित होने पर इन विवादों पर विराम लग गया. इस फिल्म के कणकण में कंगना हैं. इसे देखते हुए कम ही मौके ऐसे आते हैं जब वे फ्रेम में नहीं होतीं और जैसे ही आप का ध्यान इस पर जाता है, वे ओज से भरा कोई संवाद बोलती हुई दोबारा नजर आने लगती हैं. इस सब के बावजूद ‘मणिकर्णिका’ में वह चीज गैरमौजूद है जिसे फिल्म का दिल कहा जा सके.

अगर यह फिल्म किसी भी वजह से देखी जानी चाहिए तो वह केवल इस का रानी लक्ष्मीबाई पर आधारित होना और उन की भूमिका में कंगना रनौत का जानदार अभिनय है. भाजपा इस में अपना एजेंडा इस तरह लाई है कि रानी युद्ध के मैदान में ‘हर हर महादेव’ का उद्घोष कर फिरंगियों पर टूट पड़ती हैं. बीजेपी समर्थकों का दावा है कि यह फिल्म भी ‘द ऐक्सिडैंटल प्राइम मिनिस्टर.’ की तरह पार्टी को फायदा पहुंचाएगी.

बाल ठाकरे का महिमामंडन

शिवसेना के नेता संजय राउत निर्मित ‘ठाकरे’ विशुद्ध प्रोपेगंडा फिल्म है जो बाल ठाकरे का महिमागान करती है और केवल शिवसेना की विचारधारा में यकीन करने वालों को ही रास आएगी. ठाकरे के पास कभी कोई पौजिटिव कार्यक्रम नहीं था. मराठी मानुस की रक्षा के नाम पर उन्होंने कभी दक्षिण भारतीयों को मुंबई से भगाने का अभियान चलाया, कभी उत्तर भारतीयों को निकालने का. कभी मुसलमानों के खिलाफ लड़े. नएनए विवाद पैदा करना ही उन की लोकप्रियता का राज था.

‘सामना’ की तरह ही ‘ठाकरे’ में बाल ठाकरे के हर विरोधी की आलोचना की गई है और उसे शिवसेना प्रमुख से कमतर दिखाया गया है. बाल ठाकरे के कई मोनोलौग फिल्म में हैं जो कि ‘सामना’ में लिखे उन के संपादकीय की तरह ही विवादास्पद बातें करते हैं.

लोकतंत्र में विश्वास न रखने से ले कर हिटलर जैसा होने की उन की ख्वाहिश तक को फिल्म में जोरशोर से रेखांकित किया गया है. दक्षिण भारतीयों को निशाना बनाने के लिए दिए उन के नारे ‘बजाओ पुंगी, हटाओ लुंगी’ से ले कर ऐंटीमुसलिम बातें भी खूब कही गई हैं.

फिल्म में शिवसैनिकों द्वारा हिंसा किए जाने वाले दृश्यों को बारबार महिमामंडित किया गया है और उन के द्वारा बाल ठाकरे के विरोधियों की हत्या तक करने को आराम से दिखा दिया गया है. यह प्रोपेगंडा फिल्म आखिर तक अपने सुप्रीमो और उन के सैनिकों द्वारा की गई हिंसा को सही बतलाती है और उसे किसी तरह की कोई हिचक इस पार्टी के हिंसक इतिहास को परदे पर चित्रित करने में नहीं होती. यह फिल्म ज्यादा चली नहीं, यह इस बात का संकेत है कि वोटर अब समझदार हो गया है. उसे हिंसा नहीं, विकास चाहिए.

चुनावी प्रोपेगंडा

भाजपा कांग्रेस को मांबेटे की पार्टी कहती है. जबकि वह खुद नरेंद्र मोदी का वनमैन शो बन गई है. उन के बिना भाजपा का प्रचार संभव ही नहीं है. इसलिए चुनावप्रचार के लिए मोदी पर फिल्म न बने, यह कैसे हो सकता है. ओमंग कुमार के निर्देशन में मोदी पर बनी फिल्म का फर्स्टलुक लौंच कर दिया गया है.

मूवी में विवेक ओबेराय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोल में दिखेंगे. करीबन 2 साल बाद विवेक किसी बौलीवुड फिल्म में नजर आएंगे. ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ फिल्म की रिलीज डेट का अभी ऐलान नहीं हुआ है मगर चुनाव के पहले रिलीज करने की कोशिश की जा रही है. इस बीच, फर्स्ट पोस्टर सामने आने के बाद विवेक के लुक पर बहस छिड़ गई है.

सोशल मीडिया पर एक सैक्शन ऐसा भी है जिसे विवेक ओबेराय ‘पीएम मोदी’ के लुक में बिलकुल भी पसंद नहीं आ रहे. इस सैक्शन वाले ऐक्टर को ट्रोल कर रहे हैं. लोगों ने तो विवेक की कास्टिंग पर भी सवाल उठा दिया है. पीएम मोदी के रोल में विवेक को साइन किए जाने से नाराज एक खेमा मेकर्स के खिलाफ बयानबाजी कर रहा है. उस खेमे का मानना है कि इस रोल के लिए परेश रावल को चुना जाना चाहिए था. इस तरह मोदी के प्रशंसकों में ही जंग शुरू हो गई है.

लोगों ने विवेक के फर्स्टलुक पोस्टर पर नकली, फोटोशौप्ड और हैवी मेकअप बताया है. सोशल मीडिया पर मेकर्स को सुझाव भी मिल रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘विवेक के बजाय इस रोल के लिए परेश रावल को कास्ट किया जाना चाहिए था.’ कुल मिला कर विवेक की कास्टिंग पर खुलेआम निराशा जाहिर की जा रही है. ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ को विवेक ओबेराय के पिता सुरेश ओबेराय और संदीप सिंह ने प्रोड्यूस किया है. मूवी को 23 भाषाओं में रिलीज किए जाने की तैयारी है. फिल्म का बजट करीब 200 करोड़ रुपए बताया जा रहा है.

कई जानकार मानते हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले सिनेमाहौल में ‘मोदीमोदी’ की गूंज सुनाई देगी. प्रधानमंत्री मोदी के किरदार से जुड़ी कम से कम 4 फिल्में रिलीज होंगी. किसी फिल्म में प्रधानमंत्री के तौर पर लीड हीरो, तो किसी में गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर तो किसी फिल्म में रणनीतिकार और चिंतक, तो किसी में कड़े फैसले लेने वाले के रूप में प्रधानमंत्री मोदी बड़े परदे पर दिखेंगे.

वहीं, बसपा समर्थक भी बायोपिक के चक्कर में उलझ गए हैं. यूट्यूब पर एक फिल्म ‘द ग्रेट लीडर कांशीराम’ रिलीज हुई है. इस फिल्म को अपलोड किए जाने के 2 दिनों के अंदर अलगअलग चैनलों पर 2 लाख लोग देख चुके हैं. यह फिल्म ग्वालियर शहर के 23 वर्षीय फिल्मकार अर्जुन सिंह ने बनाई है. वही इस फिल्म के प्रोड्यूसर भी हैं.

यह फिल्म डायरैक्टर की जेब के पैसे और लोगों की फंडिग से बनी है. इस पर कुल खर्चा 45 लाख रुपए के आसपास है. इस में कोई स्टार नहीं है, न ही इस का संगीत किसी जानेमाने संगीतकार ने दिया है और न ही अखबारों, पत्रिकाओं या चैनलों पर इस की कोई चर्चा हुई.

ग्वालियर के अलावा महाराष्ट्र के कुछ सिनेमाहौल में यह फिल्म आई और देखते ही देखते उतर गई. अर्जुन सिंह बताते हैं, ‘आखिरकार जब फिल्म की लागत वसूल नहीं हुई, कर्ज उतारने के मकसद से मैं ने इसे यूट्यूब पर जारी कर दिया.’ उन्हें लगता है कि इस तरह उन का कुछ पैसा वापस आ जाएगा और वे अपना कर्ज चुका पाएंगे.

दक्षिण भारत भी पीछे नहीं

दक्षिण भारत तो सिनेमा का स्वर्ग है जहां फिल्मी सितारे देवता की तरह पूजे जाते हैं. वहां वोट के लिए बायोपिक न बने, यह कैसे हो सकता है. वहां भी वोट के लिए बायोपिक बन रहे हैं. गैरकांग्रेसवाद के मसीहा और तेलुगू फिल्मों के सुपरस्टार व आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन टी रामाराव की बायोपिक की चर्चा पिछले काफी समय से चल रही थी. 9 जनवरी को इस फिल्म को बड़े स्तर पर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में रिलीज कर दिया गया. वहीं, तमिलनाडु में लगभग 1,000 स्क्रीन्स पर जबकि कर्नाटक और केरल में भी यह बायोपिक रिलीज की गई है.

एन टी रामाराव के जीवन पर 2 हिस्सों में बायोपिक बनाई गई है. यह इस बायोपिक का पहला भाग है और दूसरा भाग फरवरी में ही रिलीज होने की उम्मीद है. इस फिल्म का निर्देशन कृष जगारलामुडी ने किया है. फिल्म में एनटीआर का रोल उन के बेटे नंदमूरि बालकृष्ण ने निभाया है. जबकि बौलीवुड ऐक्ट्रैस विद्या बालन ने उन की पत्नी बासवतारकम नंदमूरि के किरदार में नजर आई हैं. वहीं, बाहुबली फेम राणा दुग्गुबाती आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू की भूमिका में है.

फिल्म को ले कर सोशल मीडिया पर जम कर रिऐक्शन आ रहे हैं. इन में बालकृष्ण और विद्या की ऐक्टिंग के अलावा, फिल्म की स्टोरी और स्क्रीनप्ले की तारीफ की जा रही है. कई लोग तो इसे बालकृष्ण के कैरियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी बता रहे हैं. एनटीआर फिल्मों के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर भी सफल रहे और 3 बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे.

इस फिल्म के जवाब में लक्ष्मी एनटीआर बनी है. लक्ष्मी पार्वती एनटीआर की दूसरी बीवी थी. उस का मानना है कि चंद्रबाबू ने एनटीआर की पीठ में छुरा घोंपा. इस कारण इस फिल्म के निर्माता रामगोपाल वर्मा एक बार फिर से विवादों में आ गए हैं.

उन की आने वाली फिल्म ‘लक्ष्मी एनटीआर’ का चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी जम कर विरोध कर रही है. फिल्म का एक गाना रिलीज किया गया है जिस का कई सारे नेता विरोध कर रहे हैं और उस पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं. टीडीपी के कार्यकर्ताओं ने इस फिल्म के पोस्टर जला दिए थे. इस बाबत टीडीपी नेता एस वी मोहन रेड्डी ने रामगोपाल वर्मा के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है.

फिल्म के एक गाने के रिलीज किए जाने के बाद ही यह विवाद खड़ा हो गया. टीडीपी के समर्थकों का आरोप है कि इस गाने में आंध्र प्रदेश के सीएम एन चंद्रबाबू नायडू की गलत छवि दिखाई गई है. उन्हें विलेन की तरह पेश किया गया है. बता दें कि चंद्रबाबू नायडू, एनटीआर के दामाद हैं. शिकायत में यह कहा गया है, ‘गाने में दिखाया गया है कि चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर एनटी रामाराव को धोखा दिया था. रामगोपाल वर्मा ने एक गाना रिलीज किया है जो कि मानहानिपूर्ण है. यह चंद्रबाबू नायडू को गलत रोशनी में दिखाता है.

आंध्र प्रदेश का प्रमुख विपक्षी दल वीएसआर कांग्रेस ने भी एक बायोपिक बनाया है यह उस के नेता जगन मोहन रेड्डी के पिता वीएसआर रेड्डी के बारे में है. कुल मिला कर बायोपिक के दौर में अब यह देखना कि बायोपिक के इस दंगल में कौन जीतता है.

फिल्मों के जानकार कहते हैं कि फिल्में किताबों की तुलना में ज्यादातर लोगों तक पहुंचती हैं, इसलिए उन का असर भी ज्यादा होगा. वे दर्शकों की सोच को प्रभावित भी करती हैं. बहरहाल, यह तो आने वाला चुनाव ही बताएगा कि फिल्में चुनाव में वोटरों को कैसे प्रभावित करती हैं और कितना.

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