हंसता खेलता मासूम बच्चा जब अपराध का शिकार होता है तो न सिर्फ उस का कोमल मन तारतार होता है, इस सदमे को वह जीवन भर भूल नहीं पाता. बच्चों पर बढ़ते अपराध के चलते उन्हें रोकने के लिए यों तो चाइल्ड लाइन 1098 की सुविधा काफी सालों से चल रही है, लेकिन पिछले कुछ महीनों से बाल एवं महिला मंत्रालय ने इस में अपनी नई भागीदारी तय की है सा िही कई सुधार भी किए हैं. जो महत्त्वपूर्ण है.

चाइल्ड लाइन एप

महिला बाल विकास मंत्रालय मोबाइल फोन में बच्चों के लिए चाइल्ड लाइन एप लाने के लिए जोरशोर से काम कर रहा है. चाइल्ड लाइन फाउंडेशन के सहयोग से एप को तैयार किया जा रहा है और इस एप को डाउनलोड करने के बाद अगर बच्चा बटन दबाता है तो पैरेंट्स के साथसाथ चाइल्ड लाइन सैंटर पर भी कौल दर्ज हो जाएगी और मदद के लिए टीम बच्चे तक पहुंच जाएगी.

परफैक्ट काउंसलर

इस समय चाइल्ड लाइन एप में 25 भाषाओं में निपुण भाषा की जानकार उस की समस्या सुनेगी. अगर शिकायतकर्ता पंजाबी भाषा से है तो पंजाबी भाषा में निपुण काउंसलर उस से बात करे, तमिलनाडु से है तो तमिल भाषा की जानकार उस की समस्या सुनेगी. लेकिन बहुत सी कौल में बच्चों को काउंसलिंग की नहीं बल्कि तुरंत मदद की जरूरत पड़ती है और इस के लिए देश भर में जुड़े एनजीओ पुलिस की मदद से बच्चों तक पहुंचते हैं.

प्रोसेस

इस चाइल्ड लाइन में फोन बजते ही 6 सेकेंड में यह पता कर लिया जाता है कि शिकायत कहां से आ रही है. पिछले 1 साल में इस चाइल्ड लाइन में 2.5 लाख बच्चों को बचाया गया है. इस साल मार्च में 10 लाख से ज्यादा बच्चों और बड़ों ने चाइल्ड लाइन में फोन किया. इस में आने वाली फोन में 80 से ज्यादा रियल कौल्स नहीं होती. 20 फीसदी कौल्स काफी रियल होती हैं.

रियल कौल्स: इस में बच्चों का यौन शोषण, घर से भगा लाना, बेच देना, नाबालिग से काम कराना जला देना आदि तमाम शिकायतें आती हैं.

फेक कौल्स: स्कूल में टीचर ने डांटा, मम्मीपापा ने पैसे नहीं दिए आदि.

बच्चों की आयुसीमाः इस चाइल्ड लाइन पर फोन करने वालों में 11 से 14 साल के बच्चों की संख्या सब से ज्यादा है. लड़के इस लाइन पर मदद के लिए ज्यादा फोन करते हैं.

एनजीओ की संख्या: बाल विकास मंत्रालय का लक्ष्य है कि जल्द ही इस लाइन को हर जिले तक पहुंचाया जाए. अभी ये लगभग 400 जिले में उपलब्ध हैं और इस से करीब 800 एनजीओ जुड़े हुए हैं.

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