‘दिल से शरीर के अंगों का संचालन होता है. मौजूदा समय में रूमैटिक हार्ट डिजीज के मामले काफी आ रहे हैं. खराब लाइफस्टाइल भी हार्टअटैक की समस्या को बढ़ावा दे रही है. बच्चों में जन्मजात हृदयरोग के साथसाथ रूमैटिक हार्ट डिजीज यानी आरएचडी के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं. विकासशील देशों में रूमैटिक हार्ट डिजीज ज्यादा मिलती है.

5 से 15 साल के बच्चे रूमैटिक फीवर से ज्यादा ग्रसित हो रहे हैं जोकि ग्रुप ए स्ट्रैप्टोकोक्कल इन्फैक्शन के कारण होता है.

क्या है रूमैटिक हार्ट डिजीज

रूमैटिक हार्ट डिजीज एक छोटी अवधि (एक्यूट) और एक लंबी अवधि (क्रोनिक) के हार्ट डिस्और्डर का एक समूह है. इस में घटित या उत्पन्न समस्या को रूमैटिक फीवर कहते हैं. रूमैटिक फीवर आमतौर पर हार्ट के वौल्व को नुकसान पहुंचाता है. इस से वौल्व डिस्और्डर भी हो सकता है. वौल्व खून के बहाव को कंट्रोल में रखते हैं. यह एक तरह की पतली सी झिर्री होती है जो मुख्यतया 4 तरह की होती हैं, ऐऔर्टिक, मिटरैल, पल्मोनरी और ट्रीकस्पिड.

हार्ट डिजीज कई तरह की होती हैं, लेकिन रूमैटिक हार्ट डिजीज को बाल्यावस्था से होने वाला रोग भी कहा जाता है. वैसे वौल्व हार्ट डिजीज होने के बहुत से कारण हैं. बाल्यावस्था में बारबार गला खराब रहने, ब्लड में इन्फैक्शन होने, जन्मजात सिकुड़न होने, डिजनरेटिव डिजीज, कौलाजन टिश्यू डिस्और्डर होने और तनाव के कारण भी आजकल लोगों को हार्ट की बीमारियां हो रही हैं.

हृदय रोगियों की संख्या बढ़ने का कारण हमारा खानपान व बदलती लाइफस्टाइल है, जिस में शरीर की देखभाल के लिए लोगों को फुरसत नहीं है. काम व टारगेट ने लोगों में तनाव बढ़ा दिया है, जिस के कारण ऐसा हो रहा है.

इस के अलावा, भीड़भाड़ वाले इलाकों और गंदगी में पनपने वाले बैक्टीरिया मुंह के रास्ते गले तक जाते हैं, जिस से सब से पहले गले में खराश होती है, फिर हृदय के वौल्व के छेद छोटे होने लगते हैं जिस से खून का बहाव रुक जाता है और आखिर में यह बीमारी फेफड़ों तक पहुंच जाती है. इस की वजह से फेफड़ों में पानी भर जाता है और मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है, जिस की वजह से हार्ट फेल हो सकता है.

वहीं, इस के लक्षण भी बहुत आम होते हैं, जिन्हें ज्यादातर लोग नजरअंदाज कर देते हैं. या सामान्य रोग समझ कर अनदेखी कर देते हैं, लेकिन अगर बच्चों में रहरह कर थ्रोट इन्फैक्शन या जोड़ों में दर्द जैसी शिकायतें रहती हैं तो यह रूमैटिक हार्ट डिजीज का सब से बड़ा लक्षण है. इस का एक कारण अनियमित लाइफ भी है. अकसर पेरैंट्स बच्चों में इन्फैक्शन को नजरअंदाज कर बड़ी बीमारी को न्योता देते हैं. इस के साथ ही, सांस चढ़ने लगे, सांस लेने में दिक्कत होने लगे, हमेशा खांसी रहना, कमजोरी, थकान आदि का होना भी इस के अन्य लक्षण हैं. यदि बीमारी लंबे समय तक रहती है तो लिवर के साथ पैरों, एड़ी, पेट और फिर उस से गरदन में सूजन हो जाती है. आमतौर पर मरीज को भूख कम लगती है, जिस के फलस्वरूप मरीज का वजन कम हो जाता है.

गौरतलब है कि रूमैटिक हार्ट डिजीज 2 तरह की होती हैं. पहली, सिकुड़ने वाली जिसे स्टेनोसिस कहते हैं और दूसरी, फैली हुई जिसे रिगर्जिटेशन कहते हैं. इसलिए रूमैटिक हार्ट डिजीज से रोगमुक्त होने के उपचार भी 2 तरह से होते हैं. एक वौल्व को रिपेयर कर के यानी उस रोग को ठीक कर के और दूसरा, वौल्व को बदल कर यानी जब रोग सामान्य तरीके से ठीक न हो पा रहा हो तो उस को बदल दिया जाता है. लेकिन सिकुड़ने के उपचार का तीसरा जरिया बैलुनिंग भी है चूंकि सिकुड़ी हुई चीज को फुलाया भी जा सकता है.

रखें खास खयाल

रूमैटिक हार्ट डिजीज का सब से बड़ा कारण गंदगी और साफसफाई की कमी रहती है. इसलिए हमेशा अपने खानपान और अपने आसपास सफाई का विशेष ध्यान रखें. गले के कोर्निक थ्रोट इन्फैक्शन की समस्या को हलके में न ले कर तुरंत इलाज कराएं. यदि परेशानी लंबे समय तक बनी रहती है तो जल्द से जल्द किसी हृदय रोग विशेषज्ञ को दिखाएं.

-डा. दिनेश कुमार मित्तल

(लेखक मैक्स सुपरस्पैशलिटी अस्पताल, नई दिल्ली में प्रमुख सीटीवीएस व सीनियर कंसल्टैंट हैं)

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...