हर शख्स दौड़ता है यहां भीड़ की तरफ,

फिर यह भी चाहता है कि उसे रास्ता मिले.

इस दौरे मुंसिफी में जरूरी तो नहीं वसीम,

जिस शख्स की खता हो उसी को सजा मिले.

वसीम बरेलवी की ये पंक्तियां बढ़ रही मुकदमेबाजी व बेगुनाहों को सजा पर बड़ी मौजूं लगती हैं. कायदेकानून समाज में बुराई व अत्याचार रोकने, लोगों की हिफाजत करने व उन के अधिकारों को बचाने के लिए बने हैं, लेकिन दूसरों को फंसा कर मोटी रकम ऐंठने की गरज से कानूनों का बेजा इस्तेमाल भी खूब होता है. इस में औरतें भी पीछे नहीं हैं.

अकसर घरेलू झगड़ों को बढ़ाचढ़ा कर आपराधिक बना दिया जाता है. धन व जमीनजायदाद हड़पने, दबाव बनाने, रंजिश निकालने व परेशान करने के लिए झूठे केस बनाए जाते हैं. सो, कोर्टकचहरियों में मुकदमों की भरमार है. हालांकि बेबुनियाद, मनगढ़ंत व झूठी शिकायतें करना जुर्म है लेकिन इस से कोई नहीं डरता. दरअसल, न कहीं लिखा है, न कोई बताता है कि झूठा केस करने पर कड़ी सजा मिलेगी. सो, झूठी शिकायतों पर धड़ल्ले से मुकदमे दर्ज होते रहते हैं.

नतीजतन, बेगुनाह लोग कोर्टकचहरी के चक्कर में फंस जाते हैं. वे राहत और इंसाफ के लिए वकीलों व पुलिस के पास जाते हैं व अपनी जेबें कटवाते हैं. अदालती दांवपेंचों में मात खा कर कई बेगुनाह कितनी ही बार बेवजह सजा भी भुगतते हैं.

यह सच है कि बहुत सी औरतें अपने हक में बने कानून का बेजा इस्तेमाल करती हैं. वे अपने घर वालों, सखीसहेली या वकीलों आदि के भड़काने से अकसर झूठे व संगीन इलजाम लगा कर किसी को भी फंसा देती हैं.

झूठे मुकदमे में फंसे इंसान का वक्त, पैसा और कोर्ट का कीमती समय बरबाद होता है. दूसरे, मामला मीडिया में उछलने से समाज में बेवजह बदनामी भी होती है. कई लोग तो इस ब्लैकमेलिंग से दुखी हो कर खुदकुशी तक कर लेते हैं. पत्नी से तंग आ कर जान गंवाने के मामले अकसर सुर्खियों में आते रहते हैं.

अदालतों को पता है इस झूठ का

महिलाओं को दहेज की मांग से बचाने के लिए भारतीय दंड संहिता में धारा 498ए के तहत अपनी शिकायत दर्ज कराने का हक है, लेकिन कई घटनाओं में झूठी शिकायतों पर पूरे परिवार को सलाखों के पीछे डाल दिया गया. सो, सुप्रीम कोर्ट कई बार इस कानून के बेजा इस्तेमाल की बात कह चुका है.

सुशील कुमार शर्मा बनाम भारत संघ एवं अन्य 2005 के केस में तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानूनी आंतकवाद तक कह दिया था.

बहुत सी औरतें खुद मरने व झूठे केस में पति व उस के पूरे परिवार को फंसाने की धमकी देती रहती हैं. अदालतों में दहेज, मारपीट, छेड़खानी, बलात्कार व चेहरे पर तेजाब फेंकने जैसे बहुत से मामले झूठे साबित हो चुके हैं. कोई ऐसा कारगर नियमकानून आज तक नहीं बना जिस से झूठे केस करने वालों को सबक मिले.

एक व्यापारी पर उस की पत्नी ने दहेज का केस दर्ज किया था. मुंबई हाईकोर्ट में इस केस की सुनवाई हुई तो मामला झूठा पाया गया. सो, कोर्ट ने पत्नी पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया.

अपने मर्द से छुटकारा पाने व सबक सिखाने को भी कई औरतें दहेज के अलावा घरेलू हिंसा यानी मारपीट करने व जान से मारने तक के झूठे इलजाम लगा देती हैं.

मेरठ में एक औरत ने सरकारी अस्पताल में अपनी डाक्टरी जांच करा कर सर्टिफिकेट बनवाया व थाने जा कर शिकायत दर्ज करा दी. पुलिस ने उस के पति को उठा कर जेल में डाल दिया.

पति का एक पत्रकार मित्र जब जेल में उस से मिलने पहुंचा तो उस ने आपबीती सुनाई. कोई मारपीट हुई ही नहीं थी. दरअसल, पत्नी के गैरमर्द से नाजायज संबंध थे. सो, पति मना करता था. इस बात पर पत्नी ने यह ड्रामा रचा व फर्जी मैडिकल सर्टिफिकेट बनवा कर पति को अंदर करा दिया. उस पत्रकार ने खुद जांच कर के मामले की पोल खोली कि एक दलाल को 7 हजार रुपए दे कर वह फर्जी मैडिकल सर्टिफिकेट बनवाया गया था.

इस केस में आईपीसी की दफा 193 के तहत झूठा सुबूत बनाने वाले डाक्टर व उस औरत को 7 साल की कैद व जुर्माना हो सकता था, लेकिन पति ने मुकदमेबाजी करने के बजाय उस से तलाक ले लिया. यही आमतौर पर होता भी है. झूठे केस दर्ज कराने पर अदालतों को कड़ा रुख अपनाना चाहिए ताकि उन में कमी आए.

इसी तरह मुजफ्फरनगर के छपार गांव की लक्ष्मी ने हरिद्वार के रविंद्र पर उस का रेप करने का केस दर्ज करा दिया. पुलिस ने जांच में रेप के वक्त जब दोनों के मोबाइल की लोकेशन देखी तो उस वक्त लक्ष्मी पुरकाजी में व रविंद्र हरिद्वार में था. केस झूठा पाया गया. सो, पुलिस ने लक्ष्मी व उस के 2 साथियों को जेल भेज दिया. मामला अदालत में चल रहा है.

हुआ यों कि बिजनौर के एक तांत्रिक ने रविंद्र से 5 लाख रुपए ठगे थे. सो, हरिद्वार पुलिस रविंद्र की शिकायत पर तांत्रिक को पकड़ने बिजनौर गई. फरार तांत्रिक ने रविंद्र पर केस वापस लेने का दबाव बनाने के लिए यह नाटक रचा व रविंद्र पर रेप का झूठा आरोप लगवा दिया, लेकिन पुलिस के सामने लक्ष्मी ने सारा सच उगल दिया.

वर्ष 2014 में बिलासपुर की एक अदालत ने रेप का झूठा केस दर्ज कराने वाली एक औरत को 2 साल की ही सजा सुनाई थी. दरअसल, ज्यादातर कानून औरतों के हक में हैं जो सिर्फ उन्हीं की हिफाजत करते हैं. पुरुषों के हक व उन की मानमर्यादा बचाने का कोई कानून नहीं है. सो, ज्यादातर पुरुषों की बात अनसुनी व दरकिनार की जाती है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2013 से जुलाई 2014 के बीच अकेले दिल्ली में रेप के 2,753 मामले दर्ज हुए थे. इन में 1,464 मामले झूठे पाए गए थे. जाहिर है कि उन औरतों की कमी नहीं है जो अपने मकसद के लिए रेप का इलजाम लगाने से नहीं चूकतीं. हमारा समाज यह मानने के लिए सदा तैयार रहता है कि आरोप में कुछ न कुछ सचाई होगी.

यह माना जाता है कि पुरुष ताकतवर होते हैं. उन का शोषण नहीं हो सकता. औरत उन के साथ क्रूरता नहीं कर सकती. सो, उन्हें थाने या कचहरी से जल्दी कोई राहत नहीं मिलती. यह भी एक कारण है जिस से औरतों द्वारा झूठी शिकायतों से मर्दों को लूटने, ठगने व फंसाने के मामले तेजी से बढ़े हैं. नतीजतन, बहुत से पुरुष बेहद परेशान हैं.

आजकल अमीर लोगों पर नाबालिग लड़की से रेप का आरोप लगवा कर फंसाया जाता है. फिर उसे पोक्सो में फंसवाने की धमकी दी जाती है. बाद में समझौते के नाम पर मोटी रकम ऐंठी जाती है. ऐसी कई शिकायतें पिछले दिनों देश की महिला एवं बाल विकास मंत्री के पास पहुंचीं तो उन्होंने राष्ट्रीय महिला आयोग को पत्र लिख कर पीडि़त पुरुषों को जल्द ही एक प्लेटफौर्म मुहैया कराने को कहा ताकि पीडि़त पुरुष भी अपनी बात रख सकें. लेकिन नतीजा सिफर रहा. दरअसल, आयोग महिलाओं के लिए है, पुरुषों के लिए नहीं. उस का काम महिलाओं की हिफाजत करना है.

इसी तरह बीते दिनों गृह राज्यमंत्री ने जयपुर में कहा था कि झूठे मुकदमे करने वालों की अब खैर नहीं. उन के खिलाफ पुलिस द्वारा दफा 108 व 211 के तहत सख्त कार्यवाही की जाएगी. लेकिन सब जानते हैं कि  हमारे रहनुमाओं की ऐसी जुमलेबाजी असलियत से कोसों दूर रह कर सिर्फ भाषणों के दौरान तालियां बटोरने तक ही सिमटी रहती है.

लालच के लिए जालसाजी

मुफ्त की चीज पाने के लिए कुछ को छोड़ कर ज्यादातर लोगों की लार टपकती रहती है. यदि सरकारी खजाने से राहत का धन मिलता हो तो छीनाझपटी और भी बढ़ जाती है. इस मामले में औरतें भी अपवाद नहीं हैं. मसलन, उत्तर प्रदेश में लड़कियों पर तेजाब फेंकने की घटनाओं को देखते हुए सरकार ने कई कठोर कदम उठाए हैं.

इस के तहत तुरंत शिकायत दर्ज करने, जल्द जांच पूरी करने, सख्त कार्यवाही करने व साढ़े 5 लाख रुपए तक पीडि़ता को माली इमदाद देने का इंतजाम किया गया है. साथ ही, भारतीय रेल ने उन्हें ग्रुप 3 व 4 में नौकरी देने का भी वादा किया है. झूठ व फरेब के चलते इस में भी जम कर हेराफेरी की जा रही है.

पिछले दिनों अकेले मेरठ मंडल में तेजाब फेंकने के दर्ज कराए गए कुल 210 मामलों में से 80 मामले जांच के दौरान फर्जी पाए गए हैं. कमोबेश यही हाल बेसहारा व विधवा पैंशन जैसी दूसरी सरकारी स्कीमों का है.

दरअसल, झूठ, फरेब व जालसाजी से फायदा उठाने के लिए झूठी शिकायतें व मुकदमेबाजी पर जब तक कोई लगाम नहीं लगती, तब तक बेगुनाहों की जिंदगी तबाह होती रहेगी. अब वक्त आ गया है कि राजकाज चलाने वाले ओहदेदार इस अहम मुद्दे पर भी गौर फरमाएं व जल्द ही कुछ करें.

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