ट्विटर के सीईओ माइकल जैक डोरसी द्वारा ‘स्मैश ब्राह्नीकल पैट्रिआर्की’ पोस्टर को पकड़े जिस ट्वीट पर बवाल मचा है असल में उसके पीछे बदलाव की पक्षधर महिलाएं हैं. जैक के साथ फोटो में कई महिलाएं खड़ी हैं. ये महिलाएं देश दुनिया की उस आधी आबादी की नुमाइंदगी की प्रतीक हैं जो जो ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से पीड़ित रही हैं और अब इस शोषणकारी, भेदभाव वाली सत्ता से छुटकारा पाना चाहती हैं.
जैक ने सोचा भी नहीं होगा कि भारत में वह महिलाओं के साथ ‘ब्राह्मणवादी पितृसत्ता का नाश हो’ पोस्टर पकड़े फोटो खिंचवा कर ट्वीट कर रहे हैं, उस से भारत भर में ब्राह्मणवादी ताकतें उन के खिलाफ जहर उगलते हुए उन्हें निगलने पर उतावली हो उठेंगी.
ब्राह्मणवादी पितृसत्ता किस कदर ताकतवर है, यह जैक द्वारा माफी मांग कर उन्हें खामोश कर देने की घटना से स्पष्ट हो गया है. इस भेदकारी शक्ति से जैक पर हमला कर उन्हें भयभीत कर चुप करा दिया था. सदियों पुरानी गैर बराबरी पर टिकी व्यवस्था जैक पर एक साथ टूट पड़ी और उस आवाज के दमन पर उतर आई जो महज एक पोस्टर के जरिए अनजाने में ही उजागर कर दी गई थी.
जैक की आवाज दबाने के पीछे ब्राह्मणवादी ताकतें ही नहीं, राजनीतिक सत्ता भी शामिल नजर आ रही है. देश में प्राचीन हिंदूवादी व्यवस्था कायम रखने के प्रयास में जुटी केंद्र सरकार के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने मामला तूल पकड़ते ही कह दिया था कि ब्राह्मणवादी विरोधी पोस्टर पर सरकार सख्त कदम उठाएगी.
यह सही हो सकता है कि जैक द्वारा माफी मांगने के पीछे उन का कारोबारी मकसद रहा हो पर विरोध करने वाली ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के सामने भी अहम सवाल उस के धंधे का है.
असल में धर्म के धंधेबाज जरा सी आहट होते ही चिल्लाने लगते हैं. जैक के ट्वीट का विरोध करने वाले ब्राह्मणवादी विचारधारा के लोग हैं जिन का इस व्यवस्था से स्वार्थ जुड़ा हुआ है.
क्या है ब्राह्मणवादी पितृसत्ता?
ब्राह्मणवादी पितृसत्ता सदियों पुरानी गैरबराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था है जो आज तक कायम है. इस में जातीय शुद्घता व ऊंचनीच के भेदभाव के साथसाथ स्त्रियों पर पुरुष के नियंत्रण का अधिकार भी खासतौर से शामिल है. इस पुरुष शासित समाज व्यवस्था में औरतें दोयम दर्जे की नागरिक मानी जाती हैं. उसे पाप की गठरी, पैर की जूती समझा जाता रहा है.
ब्राह्मणवादी सत्ता से स्त्रियों के साथसाथ दलित भी पीड़ित रहे हैं. अब यही वर्ग इस के खिलाफ ज्यादा मुखर हो रहे हैं. इन वर्गों के साथ कदम कदम पर भेदभाव बरता गया. इन्हें व्यक्तिगत आजादी नहीं दी गई. सारे अधिकार सामाजिक सत्ता ने अपने पास रखें.
जैक का पोस्टर इस व्यवस्था की पोल खोलने वाला नजर आता है, इसीलिए इस के खिलाफ आवाज उठाने, बदलाव की कोशिश करने या छेड़छाड़ करने वालों पर हमले किए जाते रहे हैं.
ब्राह्मणवादी पितृसत्ता का विरोध करने वाली स्वयं ऊंची जाति की महिलाएं शामिल हैं और वे खुद इस सत्ता की शिकार हैं. अब यही महिलाएं इस सत्ता के खिलाफ खुल कर सामने आ रही हैं. मीटू अभियान इसी व्यवस्था की खिलाफत का प्रमाण है.
हिंदू धर्मग्रंथों ने स्त्रियों के लिए अलग से स्त्रीधर्म बना दिया. उसे एक निर्धारित दायरे में कैद कर दिया गया. खुद के शरीर के अंगों पर अधिकार स्त्री को नहीं, पुरुष ने अपने पास रखे. औैरत को पर्दे में रखा गया. उसे पढ़ने लिखने के अधिकार नहीं दिए गए. खाने पीने, पहनने ओढने, मर्जी से प्रेम विवाह का हक नहीं दिया गया. औरत को पुत्र ही पैदा करना है, उसे कितने बच्चे जन्मने हैं, सारे फैसले पितृसत्ता ने अपने पास रखे. पति को परमेश्वर मानना जैसी बातें ही उस का धर्म करार दिया गया.
सदियों से थोपी गईं इन सब बातों का औरतों की तरक्की से कोई मतलब नहीं रहा. औरत अब इस सत्ता में घुटन महसूस करने लगी और उस ने इस के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया है. मीटू अभियान इसी सत्ता के खिलाफ महिलाओं का विरोध है. इस पितृसत्ता का विरोध दुनिया भर में हो रहा है.
इस ब्राह्मनीकल पैट्रिआर्की के पीछे धर्म का विशाल कारोबारी साम्राज्य खड़ा है जो औरत को दबाए रख कर पंडेपुजारियों, पादरियों, मुल्ला मौलवियों को ऐश और ऐय्याशी का हक प्रदान करता आया है. ब्राह्मणवादी पितृसत्ता किसी भी परिवर्तन की विरोधी है. इस के खिलाफ आवाज उठाने वालों को आजकल सोशल मीडिया के जमाने में ट्रोल करना शुरू कर दिया जाता है.
यह स्त्रियों पर अब भी अपना नियंत्रण रखना चाहती है. वह क्या खाए पीए, क्या पहने ओढ़े, क्या पढ़े लिखे, किस से शादी करे, इन सब बातों पर अपना अधिकार कायम रखना चाहती है. अब यही पितृसत्ता उन बगावती औरतों से आतंकित है और यह जैक ही नहीं, हर उस संस्था, बुद्घिजीवी, लेखक के विरोध में उतरी दिखाई देती है जो इस के खिलाफ बोल रहा या लिख रहा है.
प्रगति में बाधक ब्राह्मणवादी पितृसत्ता की दीमक लगीं दीवारें ढहाने पर अब औरतें खुद ही तुल पड़ी हैं. मीटू जैसे अभियान अब सामाजिक जागरण आंदोलन बन रहे हैं जो महिलाओं के लिए पितृसत्ता से मुक्ति के रास्ते खोल रहे हैं.
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