प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मानें तो कांग्रेसी अब उनकी मां को गाली देने पर उतारू हो आए हैं क्योंकि उनमें, उनसे मुकाबले की ताकत नहीं रही है. मध्यप्रदेश के छतरपुर और मंदसौर की चुनावी सभाओं में नरेंद्र मोदी ने जब कांग्रेस की उन्हें दी गई मां की गाली का रहस्यमय शैली में जिक्र या खुलासा कुछ भी कह लें किया तो लोग हैरानी से एक दूसरे का मुंह ताकते नजर आए कि गाली गुफ्तार का यह आयोजन कब, कैसे और कहां सम्पन्न हो गया इसका तो उन्हें अता पता ही नहीं. किस कांग्रेसी ने पीएम को मां की गाली बकी, यह बात लोग समझ पाते इसके पहले ही नरेंद्र मोदी गाली का बदला लेने की जिम्मेदारी जनता के कंधों पर डालकर छू हो चुके थे.
सभा विसर्जन के बाद कुछ जानकारों ने बाकी लोगों को बताया कि मां की यह गाली वैसी शुद्ध गाली नहीं है जैसी कि आमतौर पर कानों का आहार बन ही जाती है. एक दिन पहले फिल्म अभिनेता और उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर ने जरूर इंदौर की एक ऐसी ही पब्लिक मीटिंग में नरेंद्र मोदी की मां का जिक्र किया था लेकिन वह गाली गलोच वाला नहीं था, बात कुछ और थी.
अब तक मीडिया और दोनों दलों के नेता राज बब्बर के उस भाषण की वीडियो क्लिप हजारों बार बारीकी से देखने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके थे कि उन्होंने अमर्यादित कुछ नहीं कहा था बल्कि नरेंद्र मोदी के ही एक बयान को आधार बनाते एक सियासी तंज भर कसा था जिसका इस्तेमाल नरेंद्र मोदी लोगों को जज्बाती तौर पर भड़काने के लिए कर रहे हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा वोट बटोरे जा सकें.
दरअसल में राज बब्बर ने कहा था कि, मोदी कहते थे कि डौलर के सामने रुपया इतना गिर गया है कि इसका मूल्य उस वक्त के प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) की उम्र के करीब जा रहा है. हम तो यह कहना चाहेंगे कि आज रुपया गिरकर आपकी पूज्यनीय माता जी की उम्र के करीब पहुंचना शुरू हो गया है. यानि बात देश की अर्थव्यवस्था और रुपए के अवमूल्यन से ताल्लुक रखती हुई थी जिसे नरेंद्र मोदी ने मां की गाली दी … कहते भुनाने की कोशिश की तो उन पर तरस आना स्वभाविक बात थी कि उन्हें हक है कि वे मनमोहन सिंह की उम्र की तुलना रुपये की गिरावट से करें लेकिन किसी कांग्रेसी को यह हक नहीं कि वह उनकी मां की उम्र से यही तुलना करे.
लगता यही है कि राज बब्बर के जेहन में भाषण देते वक्त किसी और उम्रदराज व्यक्ति का खयाल नहीं आया होगा इसलिए उन्होने नरेंद्र मोदी की मां हीरा बेन का नाम ले दिया जो 97 साल की हो चुकी हैं और अपने सबसे छोटे बेटे पंकज मोदी के साथ गांधी नगर में रहती हैं. क्या यह तुलना गाली थी और क्या इसे प्रधानमंत्री द्वारा गाली कहकर प्रचारित करना उचित था, इन दोनों ही सवालों का जबाब न में ही मिलता है.
दिक्कत तो यह है कि तीनों राज्यों में भाजपा की हालत ठीक नहीं है जिसे देख बौखलाए नरेंद्र मोदी बेहद घटिया हथकंडे अपना रहे हैं जो प्रधानमंत्री पद की गरिमा के तो अनुकूल कतई नहीं कहे जा सकते. दूसरी दिक्कत नरेंद्र मोदी का उतरता जादू है अब उनकी सभाओं में पहले सी भीड़ नहीं उमड़ती और न ही लोग खुद अपने मन से मोदी मोदी चिल्लाते. मुमकिन है यह हकीकत उन्हें हजम न हो रही हो और अब वे खुद को हीरो बताने इस तरह का मिथ्या प्रचार करने में यकीन करने लगे हों.
राहुल गांधी पड़ रहे भारी
साल 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार में कोई शक नहीं लोग नरेंद्र मोदी को सुनने और देखने टूटे पड़ते थे तो इसकी वजह भी थी कि लोग बदलाव का मन बना चुके थे और अपने भावी प्रधानमंत्री को नजदीक से देखना चाहते थे. अब हालत उलट है कि तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी उत्सुकता और आकर्षण का केंद्र बन गए हैं. दिलचस्प बात यह है कि जिन राहुल गांधी को पप्पू के खिताब से नवाजते भाजपा उनका मजाक उड़ाती रहती थी वही राहुल गांधी अब उसके और नरेंद्र मोदी के लिए खतरा नहीं तो बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं, जो अपने भाषणों में आमतौर पर भाजपाइयों के मुकाबले संयमित भाषा का इस्तेमाल करते हैं.
ऐसा भी नहीं है कि राहुल गांधी का जादू सर चढ़कर बोलने लगा हो पर इतना जरूर है कि लोग उन्हें गंभीरता से लेने लगे हैं तो इसका बड़ा श्रेय भी भाजपा को ही जाता है. नरेंद्र मोदी अपनी हर मीटिंग में उन्हें और नेहरू गांधी खानदान को जरूर कोसते हैं लेकिन राहुल गांधी कभी उनके परिवार का जिक्र नहीं करते, नहीं तो बेलगाम और बदजुबान होती राजनीति के इस दौर में वे भी नरेंद्र मोदी की पत्नी के बाबत कुछ भी कहने आजाद हैं. राहुल गांधी अब वक्त की नजाकत भांपते मुद्दों पर बोलते हैं जिनमें राफेल डील प्रमुख है. इस डील का जिक्र करते जब वे एक खास अंदाज से चौकीदार …. कहकर चुप हो जाते हैं तो जनता खुद चिल्लाती है कि चोर है. नरेंद्र मोदी को जुमलेबाज भी वे कहते हैं.
नरेंद्र मोदी के भाषणों का राहुल गांधी और उनके परिवार तक सिमटते जाना भाजपा के लिहाज से चिंताजनक बात हो चली है, वजह लोग अपने प्रधानमंत्री से इतने हल्केपन की उम्मीद नहीं रखते कि वह साढ़े चार साल बाद भी अपने भाषण के मुद्दे और विषय न बदले, दूसरे तीनों राज्यों में कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है. इस चुनाव का राहुल बनाम मोदी होते जाना भाजपा को नुकसानदेह ही साबित होगा और 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी का कद बढ़ाने वाला भी होगा.
जितना घटिया प्रचार हो रहा है उसे देख लोगों का मन ही राजनीति से उचटने लगा है. नरेंद्र मोदी की मां को गाली वाले मामले से कुछ या कोई फायदा भाजपा को नहीं हुआ है क्योंकि सच अब कोई छिपा नहीं सकता और लोग बात बात पर पहले की तरह उत्तेजित नहीं होते. छिछोरेपन से आजिज आए लोगों को उस वक्त भी गुस्सा आता है जब भाजपाई नेता कैलाश विजयवर्गीय सोनिया गांधी को इटली वाली मम्मी और कांग्रेसी नेता आनंद शर्मा नरेंद्र मोदी को नालायक कह देते हैं. राजनीति का यह वह दौर है जिसमें कुत्ता, सूअर, सांप, बिच्छू और सांड जैसे शब्द हर कोई हर कभी इस्तेमाल कर लेता है. लगता ऐसा है जैसे यह चुनाव प्रचार नहीं बल्कि कोई गाली गलोच प्रतियोगिता चल रही है जिसमें जो ज्यादा घटियापन दिखाएगा कुर्सी उसी को मिलने वाली है.
जबकि ऐसा है नहीं, मतदाता की चुप्पी ने क्या मोदी, क्या राहुल और क्या भाजपा, क्या कांग्रेस सभी को सूली पर टांग कर रखा है. कुछ घंटों बाद चुनाव प्रचार थमेगा और अधिसंख्य लोग वोट किसे दें का फैसला करेंगे, तब वे इस बात को भी ध्यान में रखेंगे कि किसने अशिष्ट शब्दों और भाषा शैली का कम से कम प्रयोग किया था और किसने हीरो बनने लोगों को झूठ बोलकर बहकाने की कोशिश की थी.