इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन की मांग भारतीय खिलाडि़यों को चाहिए दाल, रोटी और सब्जी

नई दिल्ली : भारतीयों के लिए दाल, रोटी और सब्जी की अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता. किसी भी काम को अंजाम देने के दौरान खानेपीने की अपनी अहमियत है. मनपसंद व माकूल खाना मिलने से इनसान की कूवत में काफी इजाफा हो जाता है. जब अपना देश छोड़ कर किसी वजह से दूसरे देश जाना पड़ता है, तो खाने का मुद्दा काफी अहम हो जाता है.

अगर विदेश में भी अपनी पसंद का खाना नसीब हो जाए तो व्यक्ति निहाल हो जाता?है, वरना मजबूरन जैसेतैसे काम चलाना पड़ता है. अब बारी?है भारतीय खिलाडि़यों के दल की रियो जाने की. रियो ओलंपिक में भारत को भी अपने खिलाडि़यों से तमाम तमगों की आस है. ऐसे में वहां खिलाडि़यों के खाने का बंदोबस्त बहुत ज्यादा अहम हो जाता है.

रियो ओलंपिक आयोजन समिति ने इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन से जब पूछा कि उन के खिलाडि़यों को ओलंपिक खेलों के डाइनिंग के मेन्यू में कौन से भारतीय पकवान चाहिए, तो जवाब दिया गया कि खाने में दाल, रोटी और कोई शाकाहारी सब्जी पक्के तौर पर होनी चाहिए. इन के अलावा वे लोग अन्य भारतीय व्यंजन अपनी मर्जी से मेन्यू में शामिल कर सकते?हैं. यह हकीकत भी?है कि हिंदुस्तानियों को अगर खाने में ये तीनों चीजें मिल जाएं, तो फिर उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती. भारतीय खिलाडि़यों के लिए इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन (आईओए) की ओर से दाल, रोटी और सब्जी की मांग ठीक उसी तरह की गई है, जिस तरह किसी भी ओलंपिक या दूसरे खेल आयोजन में मुसलमान देशों के खिलाडि़यों के लिए हलाल मीट की मांग की जाती है. आमतौर पर ऐसे आयोजनों में मुस्लिम खिलाडि़यों के लिए हलाल मीट का बंदोबस्त अलग से किया जाता?है. गेम्स की डाइनिंग में खास जगह पर बाकायदा हलाल मीट लिखा होता है.

रियो में जाने वाले भारतीय दल के चेफ डि मिशन राकेश गुप्ता के मुताबिक वे खाने के मामले में आयोजनकर्ताओं पर जोर डाले हुए हैं. दरअसल आईओए ने बहुत पहले ही रियो ओलंपिक आयोजन समित से भारतीय खिलाडि़यों के लिए भारतीय भोजन का इंतजाम करने की गुजारिश की थी. इसी कड़ी में रियो ओलंपिक आयोजन समित ने आईओए की गुजारिश कबूल कर ली थी और भारतीय पकवानों का मेन्यू मांगा था. इसी के तहत भारत की ओर से दाल, रोटी और तरकारी मुहैया कराने को कहा गया?है. इस दफे भारत के खिलाडि़यों का काफी बड़ा दल ओलंपिक में हिस्सा लेगा. ज्यादातर खिलाड़ी तो गेम्स विलेज यानी यानी खेल गांव में रहेंगे, मगर तीरंदाजों का अलग बंदोबस्त किया गया?है.

तीरंदाजों को?ठहराने का इंतजाम स्टेडियम के करीब मौजूद एक होटल में किया गया है. वहीं आर्चरी एसोसिएशन आफ इंडिया ने तीरंदाजों के लिए भारतीय भोजन का बंदोबस्त किया है. एसोसिएशन ने वहां एक हिंदुस्तानी बावर्ची की तलाश कर ली है. बावर्ची ने खिलाडि़यों की मरजी के मुताबिक खाना बनाने की बात मान ली?है.

मनचाहा खाना पकवाने के लिए भारतीय तीरंदाज तमाम जरूरी मसाले अपने साथ भारत से ले कर जाएंगे. आर्चरी एसोसिएशन आफ इंडिया (एएआई) के ट्रेजरार वीरेंद्र सचदेवा के मुताबिक तमाम तीरंदाज मसालों के साथसाथ पापड़ भी ले कर जाएंगे ताकि रियो में खाने के जायके में कोई कसर न रहे.

अब देखने वाली बात यह होगी कि तीरंदाजों सहित तमाम भारतीय खिलाड़ी रियो से कितने तमगे (पदक) जुटा पाते?हैं.    

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महंगी दाल की जिम्मेदारी सरकार पर

नई दिल्ली : केंद्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने तमाम सूबों को उन की मांग के मुताबिक दालों की आपूर्ति किए जाने का भरोसा दिलाया है. उन्होंने कहा कि अगर अरहर दाल की कीमत 120 रुपए प्रति किलोग्राम से ज्यादा हुई, तो इस के लिए सूबों की सरकारें ही जिम्मेदार होंगी.

रामविलास पासवान ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान महंगाई से जुड़े सवालों के जवाब में कहा कि जरूरी उपभोक्ता चीजों में शामिल 22 चीजों में सिर्फ दाल को छोड़ कर किसी अन्य चीज की कीमत नहीं बढ़ी?है. उन्होंने इस की खास वजह उत्पादन कम होना बताई. पासवान का कहना?है कि उत्पादन की तुलना में मांग ज्यादा है. सरकार ने साल 2014-15 में 173 लाख?टन और साल 2015-16 में 237 लाख टन दालों का आयात किया. इस के साथ ही निजी क्षेत्र ने 58 लाख टन दालों का आयात किया. पासवान का कहना?है कि अरहर की कीमत में इजाफे के लिए जमाखोरी जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार सूबों को उन की जरूरत के मुताबिक दालों की आपूर्ति करेगी, मगर इस के लिए सूबों की सरकारों को लिख कर मांग करनी होगी. पासवान के मुताबिक केंद्र सरकार ने 50 लाख टन दाल का बफर स्टाक खरीदा है.                       

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दिक्कत

किसानों का बकाया देने में देरी

पटना : बिहार के किसानों को 300 करोड़ रुपए देने में सरकार लगातार नानुकुर कर रही?है. किसानों को बकाया भुगतान के लिए कई तारीखें तय की गईं, पर इस के बाद भी सैकड़ों किसानों को उन के धान का पैसा नहीं मिल सका?है. राज्य खाद्य निगम ने धान खरीद के लिए पैक्सों को 500 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं किया है. वहीं दूसरी ओर राज्य खाद्य निगम का रोना है कि केंद्र सरकार ने उसे धान खरीद के लिए 1500 करोड़ रुपए अभी तक नहीं दिए हैं.

केंद्र और राज्य सरकार की खींचतान के बीच गरीब किसान पिस रहे हैं. साल 2015-16 में बिहार में 30 लाख टन धान खरीद का लक्ष्य रखा गया था, पर महज 18 लाख, 30 हजार टन धान की खरीद ही हो सकी. 2 लाख, 79 हजार, 88 किसानों सेधान की खरीद की गई. किसानों से 1410 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान की खरीद की गई. इस साल राज्य सरकार ने धान खरीद के लिए बोनस भी नहीं दिया, जबकि पिछले साल प्रति क्विंटल 300 रुपए का बोनस दिया गया था. राज्य खाद्य निगम के अफसरों का रोना है कि चावल की सप्लाई करने के बाद केंद्र सरकार से राशि मिलने में देरी होती है. इस से पैक्सों को किसानों का बकाया भुगतान करने में परेशानी होती है.                                       

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बीमारी

खुरहा व मुंहपका का प्रकोप

नालंदा : बिहार के नालंदा, वैशाली, रोहतास और पटना समेत कई जिलों में मवेशियों में खुरहा व मुंहपका की बीमारियों का प्रकोप फैल चुका है. इन जिलों में सैकड़ों गायों और भैंसों पर इन बीमारियों ने हमला कर दिया है, जिस से पशुपालकों की परेशानी बढ़ गई है.

पशुपालक रमेश राय बताते हैं कि मवेशियों के नियमित टीकाकरण न होने की वजह से ही खुरहा व मुंहपका बीमारियां फैली हैं. मार्च महीने में ही पशुओं को?टीका लगा दिया गया होता तो इस जानलेवा बीमारी से मवेशियों को बचाया जा सकता था.गौरतलब है कि राज्य में 1 करोड़ 80 लाख गायें और भैंसें हैं. खुरहा बीमारी होने पर पशुओं के खुर में घाव और कीड़े हो जाते?हैं. इस बीमारी से पशुओं के मरने का खतरा काफी कम होता है. एक बार इस रोग से बचाव का टीका लगाने पर उस का असर 6 महीने तक रहता?है. मुंहपका बीमारी में पशुओं की जीभ में छालों और मुंह में फफोले हो जाते हैं. इस से पीडि़त पशु खाना छोड़ देता?है और दुधारू पशुओं का दूध घट जाता है.

काफी हंगामे के बाद ‘पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग’ की नींद खुली है और उस ने इन बीमारियों के संक्रमण वाले इलाकों में गायों और भैंसों का टीकाकरण कराने का फरमान जारी किया है, ताकि बीमारियों का फैलाव रोका जा सके. हर टीके के लिए पशुपालकों से 1 रुपया लिया जाएगा, जबकि 1 टीके की कीमत 10 रुपए है. संक्रमण वाले जिलों में डाक्टरों की टीम भेजी गई है.                   

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सहूलियत

किसानों के खाते में डीजल अनुदान

पटना : बिहार में अब किसानों के बैंक खाते में सीधे डीजल अनुदान की राशि ट्रांसफर की जाएगी. अब तक सरकार बैंको में अनुदान की रकम डालती है और उस के बाद बैंक उसे किसानों के खाते में ट्रांसफर करते रहे हैं. कृषि उत्पादन आयुक्त विजय प्रकाश ने जानकारी देते हुए बताया कि पब्लिक फाइनेंस मैनेजमेंट सिस्टम के जरीए फिलहाल भूमि संरक्षण योजना के तहत अनुदान की राशि बांटी जा रही है. रिजर्व बैंक की मदद से चलाई जा रही इस योजना के तहत किसानों को राशि का भुगतान कर हार्ड कौपी बैंक को भेज दी जाएगी. कृषि विभाग राज्य के सभी किसानों का डाटा बैंक बना रहा है. इस से अब तक 15 लाख किसानों को जोड़ा जा चुका है. किसानों का डाटा बैंक बनने के बाद  विभिन्न कृषि योजनाओं से किसानों को जोड़ना आसान हो जाएगा. इस के अलावा आयुक्त ने बताया कि बिहार एग्रीकल्चर ग्रोथ एंड रिफार्म योजना शुरू की गई है, जिस के लिए सौ करोड़ रुपए का कोष बनाया गया है.

यकीनन इस सुविधा से तमाम किसानों को काफी राहत महसूस होगी. अभी तक तो किसानों को डीजल के पैसे के लिए काफी इंतजार करना पड़ता था.       

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इरादा

6 लाख हेक्टेयर में हरी खाद

पटना : बिहार में इस साल 6 लाख हेक्टेयर में हरी खाद के लिए ढैंचा और मूंग को उपजाने का लक्ष्य रखा गया है. ढैंचा और मूंग का उत्पादन करने वाले किसानों को अनुदानित दरों पर बीज मुहैया कराए जाएंगे. रासायनिक खादों के कम से कम इस्तेमाल के साथसाथ किसानों को हरी खाद के प्रति जागरूक किया जा रहा है.ढैंचा और मूंग के पौधों को खेतों में ही सड़ा कर आसानी से मिट्टी की उर्वरा ताकत को बढ़ाया जा सकता?है. हरी खाद से जहां फसलों का उत्पादन अधिक होता है, वहीं इस की कीमत भी रासायनिक खादों के मुकाबले काफी कम पड़ती है. इस के साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर बुरा असर नहीं पड़ता?है.

कृषि मंत्री रामविचार राय ने बताया कि अप्रैल महीने में हर जिले में ढैंचा और मूंग के बीजों को किसानों के बीच बांटा जा चुका है.

इस साल कृषि विभाग ने 2 लाख 48 हजार हेक्टेयर में मूंग और 3 लाख 53 हजार हेक्टेयर में ढैंचा लगाने का लक्ष्य रखा है. किसानों को ढैंचा बीज 90 फीसदी और मूंग बीज 80 फीसदी अनुदानित दरों पर दिया गया है. किसानों को 70 हजार क्विंटल ढैंचा और 50 हजार क्विंटल मूंग बीज मुहैया कराया गया?है.

बिहार सूबे में खेती की भलाई के लिहाज से उठाया जाने वाला यह कदम काबिले तारीफ कहा जा सकता?है. इस से सूबे की खेती में काफी सुधार होगा.             

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सख्ती

कर्ज लिया है तो चुकाना होगा

बुंदेलखंड : किसानों के प्रति भले ही सरकारी रवैया ढीला रहा हो, पर अब माफी मुमकिन नहीं है. बैंकों से कर्ज लिया है, तो वापस देना ही पड़ेगा, वह भी ब्याज सहित. सूखे का दंश झेल रहे किसानों को बैंकों का कर्ज अब हर हाल में चुकाना ही पड़ेगा. केंद्र सरकार ने इसे माफ करने की मांग को तमाम अड़चनें बता कर ठुकरा दिया है. वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि कर्ज माफी से वसूली का वातावरण खराब होता है.

गौरतलब है कि बुंदेलखंड के किसान 3 अरब रुपए से भी ज्यादा के कर्जदार हैं. इस साल पड़े सूखे और पिछली फसलों में ओलों और बेमौसम की बारिश जैसी कुदरत की मार से बुंदेलखंड में फसलों को भारी नुकसान हुआ था. इस से किसानों की रीढ़ टूट गई. कर्ज अदायगी के रास्ते नहीं बचे. इसी के मद्देनजर बांदा से समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद विशंभर प्रसाद निषाद ने राज्यसभा में बुंदेलखंड के किसानों का मामला उठा कर किसानों के कर्ज को माफ  करने की मांग की थी.

इस मामले पर वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि किसानों की कर्ज माफी के बारे में भारतीय रिजर्व बैंक का मानना है कि इस तरह की माफी कर्ज के वातावरण को खराब करती है. अब तो किसानों को सरकारी कर्ज लौटाना ही पड़ेगा. किसी तरह की कोई सुनवाई नहीं होगी और न ही उन पर किसी तरह का रहम खाया जाएगा. एक सामान्य नजरिए से देखा जाए तो सरकारी फरमान कतई गलत नहीं है. सरकार आड़े वक्त में किसानों को कर्ज देती है, तो उस की वापसी की उम्मीद भी करती है. दरअसल तमाम किसानों को हर कर्ज माफ कराने की आदत पड़ गई है.       

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बेकार

आमदनी अठन्नी खर्चा रुपया

जयपुर : आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया की कहावत बारां जिला मुख्यालय पर बने किसान भवन पर सटीक बैठ रही है. करोड़ों रुपए की लागत से बने इस भवन की हालत यह है कि यह न तो किसानों के लिए उपयोगी बन पाया है और न ही मंडी समिति के लिए फायदेमंद बना है. भवन का इस्तेमाल या आमदनी होना तो दूर, इस की साफसफाई के लिए मंडी समिति को हर महीने हजारों रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं.

गौरतलब है कि भवन निर्माण के साल 2009 के बाद से ही भवन की देखरेख की जिम्मेदारी मंडी समिति की है. किसानों को सुविधा मुहैया कराने के लिहाज से बनाए गए इस भवन का मीटिंग हाल ही कभीकभार काम आता है.

इस भवन के निर्माण पर 1 करोड़ 60 लाख रुपए खर्च हुए थे. दिलचस्प बात तो यह है कि किसानों के लिए बनाए गए इस भवन में न तो कोई किसान ठहरता है और न ही इस का कोई खास इस्तेमाल हो रहा है. प्रदेश की तमाम मंडियों में बने करोड़ों रुपए की लागत के भवनों का भी यही हाल है.               

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मदद

घोडे़गधे के मरने पर मिलेगा मुआवजा

बरेली : जानवर की मौत के बाद किसान या पशुपालक के आगे संकट खड़ा न हो, इस के लिए सरकार ने मुआवजे की रकम तय कर दी है. जिंदगीभर बोझ उठाने वाला गधा अब अपनी मौत के बाद भी मालिक को अच्छाखासा फायदा पहुंचा कर जाएगा. ग्लैंडर्स नामक बीमारी के संक्रमण को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने गधों की मौत पर 10 हजार रुपए का मुआवजा देने के आदेश जारी किए हैं. गधों की ही तरह घोड़ों की मौत पर 25 हजार रुपए और खच्चरों की मौत पर 15 हजार रुपए का मुआवजा दिया जाएगा. बरेली और बदायूं में ग्लैंडर्स नामक बीमारी से 2 घोड़े मर गए थे. इस बीमारी के खच्चरों और गधों में भी फैलने की संभावना है. बीमारी के लक्षण मिलते ही जानवर को इंजेक्शन लगा कर मार दिया जाता है ताकि यह दूसरे जानवरों में न फैले. चलो जानवर के मरने पर पशुपालक को माली परेशानी तो नहीं झेलनी पडे़गी. पशुओं की जबतब मौतें होने की वजह से ही पशुपालन को कच्छा धंधा कहा जाता?है. ऐसे में सरकारी मदद मिलना राहत की बात होगी.                    

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राहत

कैटल शेड सब्सिडी से मिलेगी छाया

जयपुर : सर्दी, गरमी व बारिश की मार सह कर दूध से किसानों को माली मजबूती देने वाले बेजुबान जानवरों को चालू वित्तीय साल से छाया मिलना शुरू हो जाएगी. इस के लिए सरकार किसानों को सब्सिडी मुहैया कराने जा रही है. प्रमुख शासन सचिव पशुपालन कुंजीलाल मीणा ने बताया कि किसानों को शेड निर्माण के लिए 50 हजार रुपए तक सब्सिडी मुहैया कराई जाएगी. उन्होंने बताया कि पशुओं की नस्ल सुधार के लिए भी प्रदेश में 1000 इंटीग्रेटेड लाइव डेवलपमेंट स्टोर शुरू किए जाएंगे. इन में से 350 सेंटरों की तो अनुमति भी दी जा चुकी है. इन सेंटरों की स्थापना का मकसद पशुओं की नस्ल में सुधार लाना है. गौरतलब है कि ज्यादातर पशुपालक पशुओं की दूध देने तक ही संभाल करते हैं. इस के बाद उन्हें खुला छोड़ देते हैं या फिर  दुधारू पशुओं से अलग बांधना शुरू कर देते हैं. ऐसे में चारेपानी के साथ छाया का भी बंटवारा हो जाता है. इस से पशु की सेहत पर गलत असर पड़ता है. यह समस्या छोटे पशुपालकों के साथ ज्यादा आती है, क्योंकि उन के पास शेड निर्माण के लिए पैसे की कमी रहती है. ऐसे ही छोटे पशुपालकों को इस योजना के फायदे से जोड़ने की मुहिम है.

पशुपालकों के लिए यह योजना किसी खुशखबरी से कम नहीं है. अब पशुओं को खुले आसमान के नीचे नहीं रहना पड़ेगा.          

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नजात

नीलगायों से मिलेगा छुटकारा

नई दिल्ली : जंगली जानवरों से परेशान किसानों के लिए एक अच्छी खबर है कि मोदी सरकार ने नीलगाय का शिकार करने की इजाजत दे दी है. इस से किसानों को काफी राहत मिलेगी. यह जानवर अभी तक इसलिए बच रहा था कि इस के नाम के पीछे ‘गाय’ शब्द जुड़ा हुआ था, इसलिए लोग इसे मारने में हिचकते थे. इस जानवर को केंद्र के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची 3 से हटा कर अनुसूची 5 में कर दिया गया है, जिस से इस के शिकार की अनुमति मिल गई है.

नीलगायों ने बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे अनेक राज्यों में किसानों का जीना दुश्वार कर रखा है. एक अनुमान के मुताबिक नीलगायें हर साल 40 से 50 करोड़ रुपए की फसल का नुकसान कर देती है. आखिरकार केंद्र सरकार ने नीलगायों को मारने के संबंध में आदेश जारी कर दिया.

बिहार के मुख्य वन्य प्राणी प्रतिपालक एसके चौधरी के अनुसार पर्यावरण और वन मंत्रालय की अधिसूचना के बाद संबंधित राज्य या जिला प्रशासन इस से सुरक्षा के बाबत उचित फैसला ले सकते हैं. बिहार के करीब 33-34 जिले नीलगायों के आतंक से प्रभावित हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार यह मानती है कि पूरे सूबे में तकरीबन ढाई लाख नीलगायें हैं. नीलगायों के झुंड खेती चौपट कर रहे हैं. उत्तराखंड में भी इन का कहर कम नहीं है. बुंदेलखंड इलाके में करीब 15 हजार नीलगायें हैं. एक लंबी लड़ाई के बाद उत्तर प्रदेश में भी संबंधित जिलों में नीलगायों को 70 फीसदी तक मारे जाने का आदेश जारी कर दिया गया है.

मध्य प्रदेश में भी यही हाल है. रतलाम, नीमच और मंदसौर के किसान नीलगायों के आतंक से परेशान हैं. राजस्थान का वन विभाग भी नीलगायों को मारने का अधिकार सरपंचों को देने जा रहा है.

विशेषज्ञों के मुताबिक नीलगाय हिरण प्रजाति से संबंध रखती है. इसे एशिया प्रायद्वीप का सब से बड़ा हिरण माना जाता है.            

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खुद को बदलें किसान

भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. पुरुषोत्तम का कहना है कि किसानों को सरकार से कोई खास उम्मीद रखने के बजाय खुद अपने बारे में सोचना होगा. उन्हें खुद अपनी दशा बदलनी होगी और खेती करने के तरीकों में बदलाव लाना होगा. किसानों को खेती के साथसाथ दूध उत्पादन जैसे काम करने होंगे. किसानों को छोटेछोटे समूह बना कर अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से सलाह ले कर इस दिशा में काम करना होगा. बोआई से पहले मिट्टी की जांच भी करानी होगी और आने वाली पीढ़ी को आधुनिक खेती करने का तरीका सीखना होगा.

डा. पुरुषोत्तम का मानना है कि आज के समय में खेती से संबंधित अनेक छोटी अवधि के कोर्स होने चाहिए, जिन में व्यावसायिक खेती, खाद बनाना, बीज उपचार करना  कीटबीमारी की पहचान करना व फूड प्रोसेसिंग जैसे विषय शामिल होने चाहिए.                                                        

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सुविधा

जिलों में होलसेल मछली बाजार

पटना : बिहार के मछली उत्पादकों को अधिक फायदा दिलाने के लिए हर जिले में मछली का होलसेल मार्केट बनाने की कवायद शुरू की गई?है. ‘नेशनल फिश डेवलपमेंट बोड’ ने पहले चरण में ‘मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपरण, पश्चिमी चंपारण, मधुबनी, समस्तीपुर, खगडि़या, भोजपुर, नालंदा, गया, सारण और दरभंगा जिलों में होलसेल मार्केट बनाने की मंजूरी दे दी है. कृषि विभाग की बाजार समिति की जमीन पर इस मार्केट को बनाया जाएगा.

एक मार्केट 3 एकड़ जमीन पर बनेगी और उसे बनाने में 2 करोड़ 50 लाख रुपए खर्च होंगे. इस में से 60 फीसदी रकम केंद्र सरकार और 40 फीसदी रकम राज्य सरकार खर्च करेगी. मार्केट के अंदर सेंटलाइज नीलामी हाल भी बनाया जाएगा. बिहार समेत दूसरे राज्यों के मछली व्यापारी मार्केट में पहुंचेंगे. होलसेल मार्केट के कैंपस में लोकल मछली व्यापारियों को भी कारोबार की सुविधा दी जाएगी. मार्केट में पानी का पूरा इंतजाम किया जाएगा और उस के साथ सीवरेज और ट्रीटमेंट प्लांट भी बनाए जाएंगे. मार्केट के कैंपस में ही बर्फ बनाने का प्लांट भी होगा, ताकि मछलियों को रखने और दूसरी जगहों पर भेजने में दिक्कत न हो. गौरतलब है कि फिलहाल बिहार में एक भी व्यवस्थित होलसेल मार्केट नहीं है, नतीजतन मछली उत्पादकों को ताजी मछलियां औनीपौनी कीमतों कीमतों पर बेचनी पड़ती हैं.

मत्स्य संसाधन मंत्री अवधेश कुमार सिंह का कहना है कि होलसेल मार्केट बनने से राज्य में जहां मछली उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, वहीं उत्पादकों को मछली की अच्छी कीमत भी मिल सकेगी. मार्केट के भीतर बिक्री प्लेटफार्म बनने से एक साथ कई उत्पादक मछली रख सकेंगे. इस के साथ ही मत्स्य बीज की सप्लाई में भी आसानी होगी.

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इनाम

तोहफे में गाय खिलाड़ी खुश

अहमदाबाद : बाइक, कार और ट्राफी मिलना किसी भी खिलाड़ी के लिए आम बात है, पर तोहफे में गाय का मिलना वाकई हैरान कर देने वाली बात है, यह सच है कि एक क्रिकेटर को पिछले दिनों गाय के साथ बछड़ा पुरस्कार के रूप में मिला. इस से उस खिलाड़ी की खुशी दोगुनी हो गई. 16 टीमों के बीच 10-10 ओवर का मैच आल गुजरात स्टूडेंट्स ग्रुप ने किया था. वडोदरा के एसआरपी मैदान में जंबुसार और गजरावाड़ी के बीच फाइनल मैच खेला गया. इस में जंबुसार टीम को जीत मिली. मैन आफ द सीरीज के रूप में जयेश देसाई को 50 हजार रुपए की कीमत की गाय और बछड़ा गिफ्ट किया गया. क्रिकेटर मुनफ पटेल ने होनहार खिलाड़ी जयेश देसाई को गिर प्रजाति की गाय और बछड़ा जीत के तोहफे के रूप में दिया.

बता दें कि इस से पहले साल 2003 में टेनिस स्टार रोजर फेडरर को उन के पहले ग्रैंड स्लैम की जीत के बाद एक गाय दी गई थी.

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सुविधा

बिहार में मिट्टी जांच की सुविधा

पटना : बिहार के सभी प्रखंड मुख्यालयों पर मिट्टी जांच किट मुहैया कराई जाएगी. इस के लिए कृषि विभाग पूरी योजना तैयार कर रहा?है. इस से किसानों को यह सुविधा मिलेगी कि उन्हें मिट्टी जांच किट के लिए जिला मुख्यालयों के चक्कर नहीं लगाने पडें़गे. मिट्टी का डिजिटल नक्शा बनाने या स्वायल फर्टिलिटी मैप बनाने के केंद्र सरकार के 3 साल के लक्ष्य को बिहार सरकार ने 2 साल में ही पूरा करने के लिए कमर कस ली है.

कृषि विभाग का दावा है कि मिट्टी का डिजिटल नक्शा बनाने के बाद उसे औनलाइन कर दिया जाएगा. इस से किसान किसी भी वसुधा केंद्र से मिट्टी की संरचना की पूरी जानकारी हासिल कर सकेंगे. जिस किसान के पास एंड्रायड फोन होगा, वे अपने खेत की मिट्टी की संरचना के बारे में जान सकेंगे. इस के लिए विभाग ने ‘मिट्टी बिहार’ के नाम से नया एप्लीकेशन तैयार किया?है. इस एप्लीकेशन के जरीए अक्षांश और देशांतर के आधार पर गांवों की पहचान की जा सकती?है. मिट्टी का नमूना ले कर पूरे आंकड़े को अक्षांश और देशांतर पर डाला गया है.

मिट्टी की जांच होने के बाद पूरी संचना को भी एप्लीकेशन पर डाल दिया जाएगा. इस से हर गांव के हर खेत की मिट्टी की संरचना एप्लीकेशन पर लोड हो जाती?है. इस के अलावा किसान अपने लेवल पर?भी इस से मिट्टी की जांच कर सकते हैं.                     

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तरक्की

एक पानी में ही मिलेगी गेहूं की फसल

बुलंदशहर : कृषि वैज्ञानिक गेहूं की एक ऐसी किस्म विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं, जो केवल एक पानी में ही तैयार होगी और उस की पैदावार भी अच्छी होगी. सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ के कृषि अनुसंधान केंद्र में 100 से ज्यादा बीजों की प्रजातियों पर शोध चल रहा है. गेहूं की 6 प्रजातियां ऐसी हैं, जिन पर शोध चल रहा?है. इन में केवल एक ही पानी की जरूरत होगी. आमतौर पर गेहूं की फसल को 3 से 4 बार पानी देना पड़ता है. फिलहाल गेहूं की कम पानी वाली 1 प्रजाति तैयार हो चुकी है.

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ में नौर्थवेस्ट जोन में पैदा होने वाली गेहूं व धान की प्रजातियों पर शोध होता है. फिलहाल गेहूं की इन 100 प्रजातियों में से  9 पास हुई?हैं. इन किस्मों की नवंबर माह में बोआई करनी होगी.

बुलंदशहर अनुसंधान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डाक्टर शिव सिंह ने बताया कि यह प्रजाति किसानों के लिए बहुत लाभकारी हो सकती है. रिसर्च के बाद इस प्रजाति को किसानों के बीच लाने में अभी कुछ वक्त लग सकता है. शोध पूरा होने के बाद इस वैराइटी को आईसीआर करनाल भेजा जाएगा. वहां से हरी झंडी मिलने के बाद किसानों के लिए इस के बीज कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा मुहैया कराए जाएंगे.                                              

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फायदा

रबीखरीफ के बीच मूंग और उड़द

गोपालगंज : रबीखरीफ के बीच उड़द और मूंग की खेती किसानों को दोहरा फायदा दे सकती?है. इस से केवल 75-76 दिनों ही दलहन की एक अतिरिक्त फसल किसानों को अतिरिक्त आमदनी दे देती है. इतना ही नहीं, फलियों को तोड़ने के बाद पौधों को खेत में पलट देने से हरी खाद की कमी भी पूरी हो जाती?है. कृषि वैज्ञानिक बीएन सिंह बताते?हैं कि मूंग और उड़द की खेती वैसे तो हर तरह की मिट्टी मे की जा सकती?है, पर दोमट मिट्टी में बेहतर पैदावार मिलती?है. मूंग की सम्राट, मेहा, टाइप 44, जागृति, पंत 1, 2 और 3, नरेंद्र 1, पीडीएम 11, आशा, ज्योति, मालवीय आदि उन्नत प्रजातयां हैं. वहीं उड़द की नरेंद्र 1, आजाद 2 और 3, पंत यू 35, शेख 1,2 और 3 उन्नत प्रजातियां हैं. मूंग के पौधे मिट्टी की उर्वरा शक्ति को तेजी से बढ़ाते हैं.           

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मुहिम

नदी जोड़ योजना पर काम शुरू

पटना : अगर कोई नया पेंच नहीं फंसे तो बिहार की पहली नदी जोड़ योजना को जल्द ही मंजूरी मिलने के आसार हैं. नदियों में पानी की उपलब्धता को ले कर केंद्र सरकार द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब बिहार सरकार ने भेज दिए हैं. बिहार सरकार ने अपने जवाब में कहा?है कि राज्य की संकरीनाटा नदियों में केवल मानसून के समय ही पानी रहता है. नदी जोड़ योजना से इस पानी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो सकेगा. गौरतलब है कि राज्य की नदी जोड़ योजना में केंद्र सरकार रोज नया पेंच फंसा रही है और अभी तक एक भी योजना को मंजूरी नहीं मिली है. संकरीनाटा योजना की तमाम खानापूरी हो चुकी?है, पर केंद्र ने पानी उपलब्धता को ले कर नया अडं़गा लगा दिया है.

बिहार सरकार सिंचाई प्रबंधन के लिए बनी 3 नदी जोड़ योजनाओं में संकरीनाटा लिंकिंग योजना को इसी साल शुरू करने की तैयारी में है. केंद्र सरकार ने 2903 करोड़ रुपए की लागत वाली कोसीमेची नदी जोड़ योजना के अलावा 572 करोड़ रुपए की संकरीनाटा नदी जोड़ योजना पर सहमति दे दी है.

राज्य सरकार का दावा है कि केंद्र से मंजूरी मिलने के बाद साल 2018 तक संकरीनाटा लिंक योजना को पूरा कर लिया जाएगा. इस योजना के लिए आपसी सहमति के आधार पर जमीन का अधिग्रहण किया जा चुका है. इस योजना के पूरा होने के बाद राज्य के कई जिलों को फायदा होगा.              

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किल्लत

पानी की कमी से फैक्टरियां बंद

लातूर : पानी की किल्लत हो जाने की वजह से राज्य में तमाम फैक्टरियां बंद पड़ी हैं. साथ ही बडे़ पैमाने पर इन कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. बता दें कि एक समय तक कई कारखानों और फैक्टरियों में काम करने वाले मजदूर आज सबकुछ छोड़ कर अपने घर लौटने को मजबूर हो गए हैं. जिन फैक्टरियों में कभी हजारों लोग काम किया करते थे, वहां अब कोई भी आदमी नजर नहीं आता. साल 2011 तक स्टील कारोबारी महेश मलंग का लातूर में बहुत बड़ा कारोबार हुआ करता था. उन्होंने लातूर में सौ करोड़ रुपए की लागत से 3 स्टील प्रोजेक्ट लगाए थे, जो हर रोज तकरीबन 300 टन स्टील का उत्पादन करते थे. इस प्लांट में करीब 1700 मुलाजिम थे. लेकिन यहां पानी की किल्लत होने पर अब प्लांट बंद हो चुका है. प्लांट के ज्यादातर मुलाजिम नौकरी छोड़ कर जा चुके हैं. कारोबारी महेश मलंग पिछले 8 महीनों से बाजार में आ रही मंदी से पहले ही परेशान थे. प्लांट बंद करने के पीछे उन का तर्क था कि हर रोज 3 लाख लीटर पानी का खर्च वहन करना उन के बस की बात नहीं, क्योंकि 5000 से 6000 लीटर पानी के टैंकर के लिए उन्हें हर रोज 1000 रुपए की कीमत चुकानी पड़ती है.              

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मुहिम

पैक्सों की औडिट का काम शुरू

पटना : बिहार के तमाम पैक्सों (प्राथमिक कृषि साख समिति) के औडिट का काम शुरू किया गया है. हर पैक्स को हर हाल में तय सीमा तक औडिट करा लेना है. जो पैक्स ऐसा नहीं कर पाएंगे, उन की तमाम व्यावसायिक गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगा दी जाएगी. बिहार सहकारी समिति अधिनियम 1935 (संशोधित 2013) के तहत राज्य की सभी सहकारी समितियों को साल में 1 बार औडिट कराना जरूरी कर दिया गया है. इस अधिनियम के तहत हर वित्तीय वर्ष खत्म होने के 6 महीने के भीतर उन्हें औडिट करा लेना है. राज्य में कुल 8363 पैक्स हैं और इन में से अब तक 1800 ने ही औडिट कराया है. पैक्सों को बाहरी लेखाकरों से भी औडिट कराने की छूट दी गई है. एक लेखाकार अधिकतम 35 पैक्सों का औडिट कर सकेंगे.

सरकार की इस मुहिम का पैक्सों की गतिविधियों पर खासा अर पड़ा है. अभी तक खुल कर लापरवाही बरत रहे पैक्सों पर लगाम लगाने के लिए ऐसा कदम उठाना जरूरी था.                     

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आंदालेन

टंकी पर चढ़ कर उड़ेला केरोसिन

मेरठ : नई भू अधिग्रहण नीति से मुआवजे की मांग को ले कर 23 महीनों से धरना दे रहे शताब्दीनगर के किसानों का हौसला आखिरकार पस्त हो गया. भाकियू की पंचायत के बीच तमाम किसान पास ही बनी पानी की टंकी पर चढ़ गए और अपने ऊपर केरोसिन उड़ेल लिया. किसानों ने अपने कपड़े उतार कर उन में आग लगा दी.इस बात की खबर मिलते ही अफसरों के होश फाख्ता हो गए. वहां पहुंचे अफसरों को किसानों ने बंधक बना लिया और उन की गाडि़यों पर कब्जा कर लिया. 7 मई को हुआ यह हंगामा करीब 7 घंटे तक चला. फिर अफसरों ने जिलाधिकारी से बात कर के जल्दी ही फाइनल बैठक कराने का भरोसा दिलाया. तब जा कर किसान टंकी से नीचे उतरे.

प्रतिकर की मांग को ले कर घोपला जैनपुर वगैरह गांवों के तमाम किसान 23 महीनों से शताब्दीनगर में धरना दे रहे थे. किसानों का कहना?है कि हर बार बैठक की तारीख मिलती?है, पर फैसला नहीं हो रहा. घटना वाले दिन किसानों ने?भाकियू की पंचायत बुलाई थी. पंचायत में गाजियाबाद व हापुड़ वगैरह जिलों के किसान पहुंचे थे. पंचायत शुरू होते ही ढेरों किसान पास ही बनी पानी की?टंकी पर चढ़ गए. 50 से ज्यादा महिला किसान भी?टंकी पर चढ़ गईं. किसान लाउडस्पीकर और केरोसिन ले कर?टंकी पर चढ़े?थे. किसानों का कहना था कि अगर उन की मांग पूरी न हुई तो वे?टंकी से कूद कर या आग लगा कर जान दे देंगे. फिलहाल तो मामला टल गया?है, पर अंत क्या होगा? परेशन किसानों द्वारा उठाए गए इस कदम से तमाम सवाल पैदा होते हैं. किसानों को अगर वक्त पर वाजिब मुआवजा मिल जाए, तो ऐसी नौबत ही न आए.         

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आयोजन

रैंप पर गायों का कैटवाक

रोहतक : मुंबईदिल्ली व बड़ेबडे़ शहरों में तो खूबसूरत सुंदरियां तरहतरह के फैशनेबल कपड़ों में कैटवाक करती नजर आती हैं, वहीं हरियाणा में देशी नस्ल की गाय भी कैटवाक करती नजर आई. यह नजारा बहुअकबरप़ुर गांव में पिछले दिनों देखा गया. वहां गायों की सौंदर्य प्रतियोगिता के साथसाथ दुग्ध प्रतियोगिता भी हुई. इस प्रतियोगिता में गाय की कई नस्लों को शामिल किया गया. हरियाणा गाय, साहीवाल, राठी, बिलाही, गिर, थारपारकर व गौशाला की गायों ने प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. गायों के कैटवाक को लोगों ने बहुत चाव से देखा. गायों का कैटवाक देश में पहली बार हुआ. इस से पहले हरियाणा की मुर्रा नस्ल की भैंस को बढ़ावा देने के लिए जींद में कैटवाक शो हुआ था. पशु पालन विभाग देशी नस्ल की गायों को बढ़ावा देने के लिए ऐसे आयोजन समयसमय पर करता रहता है.

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इजाफा

चीनी के दाम और बढ़ेंगे

नई दिल्ली : इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने मौजूदा सीजन में?भारत के चीनी उत्पादन के अंदाजे को करीब 10 लाख?टन कम कर के 2.5 करोड़ टन कर दिया?है. इस नए अंदाजे से चीनी के दामों में और इजाफा होने का अंदेशा?है. गुजरे 2 महीने में चीनी के दामों में करीब 15 फीसदी तक का इजाफज्ञ हुआ?है. इस्मा ने गन्ने की कम उपलब्धता की वजह से चीनी उत्पादन के अंदाजे में बदलाव किया है. चीनी विपणन सीजन सितंबर में खत्म होगा. इस्मा ने कुछ अरसा पहले अक्तूबरसितंबर 2015-16 के दौरान भारत में चीनी का कुल उत्पादन 2.6 करोड़ टन रहने का अंदाजा लगाया था.

भारत दूसरा सब से बड़ा चीनी उत्पादक है. इस मामले में ब्राजील पहले नंबर पर?है. उत्पादन में 12 फीसदी की अनुमानित गिरावट के बावजूद इस्मा ने कहा कि सितंबर के अंत में भारत का चीनी भंडार करीब 70 लाख टन होगा.

इस्मा का नया अंदाजा सरकार के 2.56 करोड़ टन के अंदाजे से कम है, मौजूदा 2015-16 सीजन की शुरुआत से ले कर अभी तक चीनी मिलों ने चीनी का जो उत्पादन किया है, उस में काफी कमी दर्ज की गई है. चीनी की महंगाई रोकने के लिए केंद्र सरकार ने सूबों से स्टाक लिमिट लगाने को कहा?है. खाद्य मंत्रालय चीनी के 32 लाख टन के अनिवार्य निर्यात आदेश को वापस लेने पर विचार कर रहा?है. ठ्ठ

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तरक्की

मातृ पौधों में बिहार आगे

पटना : फलों के मातृ पौधों के उत्पादन के मामले में बिहार आत्मनिर्भर हो गया?है. इस से बिहार को दूसरे राज्यों से मातृ पौधे नहीं मंगवाने पड़ेंगे. खास बात यह?है कि झारखंड ने बिहार के मिशन बागबानी से आम के 4 लाख मातृ पौधों की मांग की?है. इतना ही नहीं कोलकाता, ओडिशा और उत्तर प्रदेश ने भी बिहार से फलों के मातृ पौधे लेने के लिए बातचीत शुरू की है. 2 साल पहले तक बिहार को हर साल लाखों रुपए के आम, अमरूद, आंवला, लीची, पपीता आदि फलों के मातृ पौधे दूसरे राज्यों से खरीदने पड़ते थे. फिलहाल कृषि विश्वविद्यालयों में बड़े पैमाने पर मातृ पौधे उत्पादित किए जा रहे?हैं.                

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अंदाजा

पंचायत आधार पर नुकसान का अंदाजा

पटना : केंद्र सरकार ने बिहार में हुए फसलों के नुकसान की भरपाई के लिए पंचायत लेवल पर सैंपल की मांग की है. राज्य सरकार अब तक प्रखंड के लेबल पर सैंपल रिपोर्ट भेजती रही है. हाल में ही लागू हुई नई फसल बीमा योजना के तहत पंचायतवार रिपोर्ट बनाने में राज्य सरकार को पहले के मुकाबले 3 गुना मेहनत करनी होगी.

किसान अपनी फसलों का बीमा कराते हैं और फसलों के नुकसान होने की हालत में बीमा की राशि किसानों को दी जाती है. इस के लिए पहले एक प्रखंड में 20 सैंपल लिए जाते थे, पर नई बीमा योजना के मुताबिक पंचायतवार ही सैंपल रिपोर्ट देनी होगी. उस के बाद ही मुआवजे की राशि किसानों को मिल सकेगी. कृषि विभाग के सूत्रों का कहना?है कि पुराने नियम के तहत राज्य के कुल 534 प्रखंडों में से हर प्रखंड से 20 सैंपल रिपोर्ट लेने पर 10 हजार 680 सैंपल से काम चल जाता था. पर नए नियम के तहत राज्य की कुल 8378 पंचायतों में से हर पंचायत के 4 सैंपल लेने पर 33 हजार 512 सैंपल लेने होंगे. इतने सैंपल लेने के लिए राज्य सरकार को काफी मुलाजिमों की जरूरत पड़ेगी. खास बात यह है कि कृषि के जानकार ही सैंपल रिपोर्ट बना सकते हैं. कृषि विभाग को इस के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही?है. फसल के नुकसान का मामला काफी गंभीर होता है, लिहाजा इस मामले में केंद्र सरकार का सख्त होना कतई गलत नहीं कहा जा सकता.      ठ्ठ

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सुविधा

अनुदान पर मिलेगा सोलर पंप

पटना : बिहार के किसानों को सोलर पंप से सिंचाई करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा?है. इस के लिए राज्य के किसानों को सोलर पंप खरीदने के लिए अनुदान दिया जाएगा. केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की मदद से परंपरागत बिजली पर किसानों की निर्भरता कम करने के लिए सोलर पंप को बढ़ावा देने की मुहिम शुरू की?है. इस के लिए किसानों को वित्तीय साल 2016-17 में 10 लाख सोलर पंप बांटने का लक्ष्य रखा गया है. इस से पहले 2015-16 में 3300 किसानों ने सोलर पंप के लिए आवेदन दिए. इस में से 1800 आवेदन 2 हौर्स पावर के पंप के लिए और 1500 आवेदन 3 हौर्स पावर के पंप के लिए हैं.

पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर किसानों को सोलर पंप मिलेंगे. जो किसान पंप लेना चाहते हैं, उन्हें उपविकास आयुक्त के दफ्तर में आवेदन जमा करना होगा. आवेदन मिलने के बाद बिहार रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (ब्रेडा) की तकनीकी टीम इस बात की जांच करेगी कि आवेदक किसान के खेत में सूरज की पूरी रोशनी मिल पाती है या नहीं. उस के बाद ही किसान को सोलर पंप दिया जाएगा.

ब्रेडा के डिप्टी डायरेक्टर ने बताया कि पिछले साल जमा हुए आवेदनों की जांच इस साल 1 अप्रैल से शुरू की जा चुकी?है. सोलर पंप लेने वाले किसानों को पंप की कुल कीमत की 25 फीसदी रकम देनी होगी. बाकी रकम के भुगतान के लिए केंद्र सरकार 30 फीसदी और राज्य सरकार 45 फीसदी हिस्सा देगी. 1 एकड़ से ज्यादा और 5 एकड़ से कम खेती लायक जमीन वाले किसानों को ही केंद्र और राज्य सरकार के

75 फीसदी अनुदान का फायदा मिल सकेगा. बिहार के किसानों के लिए यह सुविधा किसी नायाब तोहफे से कम नहीं?है. अपनी जेब से महंगा सोलर पंप लगवाना आम किसान के बूते से बाहर होता?है.     

मधुप सहाय, भानु प्रकाश, अक्षय कुलश्रेष्ठ व बीरेंद्र बरियार

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सवाल किसानों के

सवाल : पालीहाउस खीरे में निमेटोड लगा है. इस का क्या इलाज?है?

-सुभाष जैन, व्हाट्सएप द्वारा

जवाब : सभी कद्दूवर्गीय सब्जियों में निमेटोड की समस्या आती है. इस के लिए खेत में अधिक दिनों वाला फसलचक्र अपनाएं और निमेगान/डीडी को खेत में डालें.

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सवाल : गरमी के मौसम में बोई जाने वाली सब्जियों की जानकारी दें. इन दिनों कौन सी सब्जियां बोना?ज्यादा फायदेमंद होता?है?

-रीता कुमारी, ग्वालियर, मध्य प्रदेश

जवाब : सभी कद्दूवर्गीय सब्जियां जैसे लौकी, तुरई, परवल, खीरा, ककड़ी, करेला, भिंडी व मिर्च वगैरह गरमी के मौसम में बोई जा सकती?हैं. ये सभी सब्जियां फायदेमंद साबित होती हैं.

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सवाल : मध्य प्रदेश के लिए आम की अच्छी वैरायटी के बारे में बताएं?

-पंकज पाटिल, व्हाट्सएप द्वारा

जवाब : आम की दशहरी, दशहरी 51, मलिका, आम्रपाली व रत्ना किस्में मध्य प्रदेश के लिए मुफीद हैं.

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सवाल : आमतौर पर गायभैंसों के बच्चे बच नहीं पाते हैं. आखिर इन के जल्दी मरने की क्या वजह है? और क्या सावधानियां बरत कर इन्हें मरने से बचाया जा सकता?है?

-अन्नू, गुड़गांव, हरियाणा

जवाब : गायभैंस के बच्चों को मरने से बचाने के लिए पशु के ब्याने के बाद आधे घंटे के भीतर नवजात पशु को खीस पिलाएं. खीस पिलाने से छोटे बच्चों की रोगों से मुकाबला करने की कूवत बढ़ती है और उन की वृद्धि जल्दी होती है. जन्म के दूसरेतीसरे दिन नवजात बच्चों को पेट के कीड़े मारने की दवा पिलानी चाहिए. दोबारा 21 दिनों के बाद कीड़ों की दवा पिलानी चाहिए. बाद में 6 से 8 महीने में 1 बार कीड़ों की दवा देनी चाहिए. जैसे ही बच्चा 1 महीने का हो जाए तो उसे कोमल घास और 100 ग्राम शिशु आहार रोजाना देना चाहिए. 3 महीने की उम्र पर बच्चे को जरूरी टीके लगवाएं.

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सवाल : मुरगीपालन के लिए चूजे कहां मिलते हैं?

-उपेंद्र सिंह, व्हाट्सएप द्वारा

जवाब : अगर आप उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं, तो ‘केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली’ से मुरगी के चूजे प्राप्त कर सकते?हैं. अगर आप हरियाणा में रहते हैं, तो पानीपत के ‘शुंगना पोल्ट्री फार्म’ से मुरगी के चूजे प्राप्त कर सकते हैं. आप अपने विकास खंड के पशुपालन विभाग में जा कर पशु चिकित्सक से इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर के मुरगीपालन शुरू कर सकते?हैं.

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सवाल : उत्तर प्रदेश में ट्रैक्टर के लिए मिलने वाली सब्सिडी की जानकारी दें?

-अनीत वर्मा, व्हाट्सएप द्वारा

जवाब : ट्रैक्टर पर मिलने वाली सब्सिडी के लिए अपने जिले के उपनिदेशक कृषि से संपर्क करें.

डा. अनंत कुमार व डा. प्रमोद कुमार मडके

कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद

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